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तीन बेटियाँ होने के बाद प्रेमा फिर से गर्भवती हुयी ,इस बार पूरी उम्मीद थी कि लड़का ही  होगा। गांव की अनुभवी महिलाओँ ने उसकी चाल -ढाल से ताड़ लिया था कि अबकि बार तो लड़का ही होगा। गॉँव की दाई भी इन्तज़ार में थी कि अबकी बार लड़का होगा तो वो तगड़ा 'नेग 'लेगी। सबकी उम्मीदें पूर्ण हुईं ,लड़के की किलकारी रामदीन के घर में गूँजी। घर के बाहर प्रेमा की ननद संतोष ने खूब थाली पीटी। गुड़ भी बाँटा। घर में जैसे खुशियों ने बसेरा डाल दिया। इतने इंतजार के बाद बेटे की किलकारी घर में गूंज रही थी तो रिश्तेदार भी बधाई देने आ रहे थे। जच्चा गायी जा रही थीं ,मोहल्ले -पड़ोस की महिलायें भी आ जा रही थीं।

ननद को ''छटी  पुजन ' की एक अच्छी सी साड़ी मिली। प्रेमा का दिल तो बहुत बड़ा था लेकिन उसके बड़ा  दिल होने से क्या होता है ?उसके लिए पैसा भी तो  होना चाहिए। दिल तो चाहता था कि अपनी ननद को सोने के जेवर दूँ लेकिन इतना बड़ा परिवार तो इस खेती की आमदनी से ही पल रहा है ,घर के खर्चे ही पूरे हो जायें यही बहुत है। उसके तो अपने मायके से जो गहने मिले थे ,वे भी गिरवी रखने पड़ गए थे, जब ब्याज़ ज़्यादा बढ़ गया तो बेच दिए। एक -एक पैसा जोड़कर चाँदी की पायल बनवाई थी। रामदीन ने कहा था कि अबकि बार लड़का होगा तो पायल प्रेमा के लिए पायल बनवाएगा ,जब बेटा हुआ तो चुपचाप बनवाकर रख ली थीं किन्तु प्रेमा को दिखाई थीं, कि उसे पसंद हैं या नहीं। प्रेमा ने वही पायल अपनी ननद को दे दीं और ननद से  हाथ जोड़े ,बोली -बहनजी ,अब तो मेरे पास यही हैं ,ननद अच्छी थी उसने वे ही ख़ुशी -ख़ुशी रख लीं। जब रामदीन को पता  चला तो वो नाराज़ हुआ। प्रेमा ने उसे समझाया -अपने घर की बेटी है ,ख़ुशी का मौक़ा है उसका नेग तो बनता ही है। उसके ससुराल में भी तो पूछेंगे कि भतीजा होने पर भइया -भाभी ने क्या नेग दिया ?मैं तो यहीं हूँ ,मेरे लिए और बनवा देना। प्रेमा की बात सुनकर वो चुप हो  गया लेकिन मन ही मन सोच रहा था कि ये ही कितनी मुश्किल से बनी हैं ?अब पता नहीं कब मौका मिले ? अभी तो उस सुनार के पांच सौ रूपये उधार हैं। 
                 प्रेमा की बेटियाँ होशियार थीं ,गाँव के विद्यालय में पढ़ने जातीं और घर आकर काम भी करा देतीं। जब दोनों बहनें बारह -तेरह वर्ष  हुईं तो दोनों ने घर का सारा काम संभाल लिया। प्रेमा तो रामदीन के साथ खेतों में जाती और दोनों बहनें घर की सफ़ाई से लेकर खाना बनाने तक सारा काम कर लेतीं। प्रेमा घर के कामों से निश्चिन्त हो गयी। जब तीसरे नंबर की बेटी बडी हुयी तो बड़ी वाली भी अपने माता -पिता के साथ खेतों पर जाने लगी। वो पढ़ भी रही थी ,उसने देखा, हम सारा दिन खेतों  लगे रहते हैं यदि ट्रैक्टर आ जाये तो काम जल्दी होगा, उसने अपनी बात अपने पिता से कही। रामदीन बोला -इतने पैसे कहाँ से  आयेंगे और फिर उसे चलाएगा कौन ?रूपाली बोली -मैं चलाऊंगी और ट्रैक्टर किस्तों पर ले लो। पहले तो रामदीन हंसा किन्तु बेटी के बार -बार कहने पर ,उसने किश्तों पर ट्रैक्टर ले ही लिया। रूपाली ने गांव के ही एक भइया से ट्रैक्टर चलना  सीख़ भी लिया  ट्रैक्टर चलाती ,काम  जल्दी हो जाता। अब तो वो दूसरों  खेतोँ में भी चलाती, उससे अतिरिक्त आमदनी होती। रामदीन अपनी बेटी को  देख  ख़ुश होता ,सोचता काश ! ये ही लड़का होकर पैदा होती ,इसने तो एक बेटे की तरह फर्ज निभा दिया। एक दिन गाँव के बड़े बुजुर्ग़ कालीचरण बोले -क्या रामदीन बेटी से काम करवाता है , बेटी तो घर के चूल्हा -चौके करते ही अच्छी लगती हैं ,आगे भी जाकर ये ही करना है। इससे पहले की रामदीन कुछ कहता ,रूपाली बोली -क्यों ताऊ ,बेटी बेटों वाला काम कर रही है तो बर्दाश्त नहीं हो रहा ,तुम्हारा तो बेटा ही गली -मौहल्लों में धक्के खाता फिरे। बात बेटा -बेटी की नहीं मेहनत और लग्न की है ,अब देख लो ,तुम्हारा बेटा भी वो काम नहीं कर पाता जो मैं कर रही हूँ। जब खेतों में काम कम होता तो अपने विद्यालय चली जाती। 

            उसे देखकर कोई कह ही नहीं सकता था कि वो लड़की है ,न ही लड़कियों की तरह रहती ,उसकी  वेशभूषा थी -घुंघराले छोटे छोटे बाल देखने में लगते जैसे किसी साधु की जटाएं हो, बत्ती सी बनी रहती लगता जैसे उसने महीनों कंघी भी न की हो बस उसे काम की धुन रहती एक ढ़ीला सा पजामा और कोई पुरानी सी 'टी ,शर्ट ' कभी कोई क्रीम या लोशन नहीं लगाया। उसकी मेहनत देखकर गाँववाले भी ''दाँतों तले ऊँगली दबा लेते '' कहते इतनी मेहनत तो कोई लड़का भी न करे। घर की आमदनी भी बढ़ी तो लड़कियाँ भी बढ़ रही थीं। प्रेमा ने थोड़े -थोड़े पैसे जोड़ने शुरू कर दिए। बारहवीं की परीक्षा के बाद वो पूरी तरह अपने पिता के कंधे से कंधा मिलाकर काम करती। ट्रैक्टर की किस्तेँ उतरने के बाद ,अब घर पक्का करने की सोची। अब वो बीस वर्ष की हो गयी थी ,भाई बारह वर्ष का हो गया था जिस उम्र में बेटियों ने घर का सारा काम किया उस उम्र में वो गलियों में खेलता फिर रहा था अभी बहनें ही घर का सारा काम संभाल रही थीं। तीनों बहनों का इकलौता लाड़ला भाई था, माता -पिता का इकलौता चिराग़ ,उससे  कोई काम को कहता भी नहीं।अब रूपाली पच्चीसवें वर्ष में लग रही थी रामदीन ने लड़का ढूंढकर उसका विवाह करा दिया लेकिन उससे पहले रुपाली ने अपनी छोटी बहन को ट्रैक्टर चलाना सिखाया ,मँझली ने तो मना कर  दिया ,न ही वो सीख़ पाई। छोटी जल्दी ही सीख़ गयी। एक -दो साल के अंतर् में मँझली का विवाह भी करा दिया। अब माँ -बाप की उम्मीद बिट्टू से लगी थीं ,उससे देर -सवेर कहते -बेटा अब तुम्हारी बहनें तो चली गयीं, ये भी दो -तीन साल बाद चली जाएगी। तुम अपनी खेती सम्भालो ,अपनी बहन के साथ काम करवाया करो। अब ये सब तुम्हें ही संभालना है ,लेकिन वो उनकी बातों  अनसुना कर गॉँव के बिगड़े हुए लड़कों के साथ घूमता रहता। सोचा था ,अब बेटियों की ज़िम्मेदारी पूरी हो जायेगी ,बेटा इसी तरह मेहनत से काम करेगा तो चार पैसे भी बचेंगे और घर भी पूरा बनवा लेंगे लेकिन वो तो सुनता ही नहीं। इस कारण कभी -कभी घर में क्लेश भी हो जाता। छोटी कभी -कभी उसे जबरदस्ती खेतों में भी ले जाती ,लेकिन वहाँ वो काम नहीं करता। अब रामदीन और प्रेमा की उम्र भी हो चली थी ,अब उनसे इतना काम नहीं होता लेकिन करना तो पड़ता ही। 

              बिट्टू गॉँव के लड़कों के साथ रहकर अब वो नशा भी करने लगा। माता -पिता परेशान कि ये कैसा नशा कर रहा है ?बाद में पता चला कि गॉँव में जो भाँग के पौधे हैं ,वो उनका नशा करने लगा था। किसी ने समझाया कि इसका विवाह कर दो ,बहु के आने पर अपनी ज़िम्मेदारी समझेगा तो काम भी करेगा और नशा भी छोड़ देगा। रामदीन को ये बात जँची ,उसने बिट्टू का इलाज़ तो करवाया नहीं कि उसका नशा छूट जाये और लड़की देखनी आरम्भ कर दी। अपने लड़के की जिंदगी सुधारने के लिए ,किसी ग़रीब की बेटी का जीवन दांव पर लगा दिया। किसी ग़रीब घर की बेटी को बहु के रूप में ले आये। नई बहु के आने पर कुछ दिनों तो वो ठीक रहा ,रामदीन और प्रेमा ने चैन की साँस ली लेकिन बीच -बीच में वो नशा कर ही लेता। अब तो उसके दो बच्चे भी हो गए और उसकी लत भी बढ़ गयी। जब बहु उसे रोकती -टोकती तो वो उस पर हाथ भी उठाने लगा। उसका नशा बढ़ता ही गया। वो अपना मानसिक संतुलन खोता जा रहा था। एक दिन उसकी दादी ने बहु और बच्चों का हवाला देकर उसे समझाने का प्रयत्न  भी किया लेकिन उसने दादी का गला ही दबा दिया।माँ की मौत के बाद, अब रामदीन बौखला गया ,माता -पिता ने ये कहकर उसे जेल में डलवा दिया कि नशा करता है ,किसी पर भी हाथ उठा देता है ,इससे हमें भी जान का ख़तरा है। बहु को भी उसके घर भेज दिया। उसकी हालत देखकर उसका इलाज़ चला। तीनों बेटियाँ अपनी क़िस्मत का लाई थीं सब उनके साथ ही गया। अब खेती कौन संभालता ,दोनों इस उम्र में जितना हो पाता ,उतना कर  लेते। ट्रैक्टर भी खड़ा था। सोचा था कि बेटियों के जाने के बाद बेटा सब संभाल लेगा ,इसके लिए कितने'' पापड़ बेले ''?जो पैसा जोड़ा था वो भी नहीं रहा ,आज बेटे से ही  जान का ख़तरा हो गया जिसे लोग घर का चिराग़ कहते हैं। 
























laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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