दोनों कॉलिज में साथ -साथ टहलते ,एक दूसरे से बातें करते ,ज्यादा से ज्यादा समय एक साथ व्यतीत करते ,साथ -साथ खाना -खाते, जब तक कॉलिज खुलता, साथ -साथ रहते, फिर अपने -अपने घर चले जाते। ये जोड़ी पूरे कॉलिज की नज़र में थी। नरेंद्र बोला -भई ,दीपा और रोनित कुछ ज्यादा ही साथ -साथ रहते हैं ,मैंने तो एक दिन रोनित से पूछा भी कि तुम दोनों कुछ ज्यादा ही साथ नहीं रहते ,तो बोला -नहीं ऐसी कोई बात नहीं। कुछ तो है ,निधि रहस्यमयी तरीक़े से बोली, फिर दोनों हँस पड़े। दीपा धूप में बैठी ,जल्दी -जल्दी 'नोट्स 'लिख रही थी ,तभी रोनित उसके पास आया और बोला -क्या यार ,मेरा काम तो पूरा हुआ ही नहीं और तुम लगी पड़ी हो ,मेरी भी थोड़ी मदद करा दो। दीपा बोली -पहले मैं अपना कार्य समाप्त कर लूँ फिर तुम्हारी मदद भी कर दूंगी। आज अभी जो नरेंद्र और निधि बोलकर गए ,उनकी बातें उसके कानों में गूँज रही थी। दीपा को आज वो दिन याद आ रहा है ,जब वो पहली बार कॉलिज में प्रवेश कर रही थी ,उसने पहले ही तिरछी निगाहों से उन लड़कों को देख लिया था जो उसको देखकर आपस में कुछ कहकर
मुस्कुरा रहे थे। रिक्शे से उतरकर वो उनके बराबर से निकलते हुए थोड़ी सहम गयी थी ,यदि कोई दूसरा दरवाजा होता तो वो उससे जाती लेकिन ये तो एक ही दरवाजा था। अपनी किताबों को सीने से लगाकर वो बढ़ती जा रही थी किन्तु जाना किस तरफ है ? उसे नहीं पता।वो किसी ऐसे बंदे को ढूंढ रही थी जो उसका सही से मार्गदर्शन कर सके और वो उस पर विश्वास कर सके। तभी पीछे से एक लड़का दौड़ता हुआ आया। लगभग चिल्लाता सा बोला -अरे ,'एल.एल.बी.' की कक्षा तो आगे जो बरामदा है, उसके पीछे लगी हैं। कहकर वो तेजी से निकल गया।
मुस्कुरा रहे थे। रिक्शे से उतरकर वो उनके बराबर से निकलते हुए थोड़ी सहम गयी थी ,यदि कोई दूसरा दरवाजा होता तो वो उससे जाती लेकिन ये तो एक ही दरवाजा था। अपनी किताबों को सीने से लगाकर वो बढ़ती जा रही थी किन्तु जाना किस तरफ है ? उसे नहीं पता।वो किसी ऐसे बंदे को ढूंढ रही थी जो उसका सही से मार्गदर्शन कर सके और वो उस पर विश्वास कर सके। तभी पीछे से एक लड़का दौड़ता हुआ आया। लगभग चिल्लाता सा बोला -अरे ,'एल.एल.बी.' की कक्षा तो आगे जो बरामदा है, उसके पीछे लगी हैं। कहकर वो तेजी से निकल गया।
अब मेरी जान में जान आई कि अब मुझे परेशान होने की आवश्यकता नहीं ,मुझे पता चल गया कि कक्षा किधर हैं ?किन्तु तभी ख़्याल आया ,इस लड़के को कैसे मालूम? कि मैं' एल.एल.बी.'की छात्रा हूँ ,कहीं ये मुझे मूर्ख तो नहीं बना गया। आजकल नए छात्रों के साथ ऐसे मज़ाक भी करते हैं।क्या मालूम, मुझे भटकाने के लिए ऐसे बोलकर गया हो ,वो इसी दुविधा में थी कि उस लड़के की बात पर विश्वास करे या नहीं ,और आगे बढ़ती जा रही थी। तभी उसे एक लड़की आती दिखी ,दीपा ने राहत की साँस ली और उसकी तरफ देखते हुए बोली -क्या एल.एल.बी.की..... ?उसके वाक्य पूरा करने से पहले ही वो लड़की बोल उठी -हाँ उस तरफ मैं उधर ही जा रही हूँ ,आश्वस्त होकर दीपा भी उसके साथ बढ़ चली। जब उसने अपनी कक्षा में प्रवेश किया तभी उसकी दृष्टि सामने ही, आगे बैठे उस लड़के पर पड़ी , जो उसे वो कक्षा बताकर भागा था। वो आगे बैठा मुस्कुरा रहा था। ओह !तो ये भी इसी कक्षा में है ,किन्तु इसे कैसे पता चला? कि मुझे इसी क्लास में आना है,अभी वो ये सब सोच ही रही थी कि अध्यापिका आ गयी। सब शांत बैठ गए लेकिन दीपा का मन कहीं और सोच रही था । '' वो मन ही मन झुंझला भी रही थी कि अब तक लड़कियों के साथ ही पढ़ी हूँ ,यहाँ तो लड़के-लड़कियाँ साथ -साथ बैठे है, बड़ा ही अज़ीब लग रहा है ,प्रत्यक्ष में तो वो अपने को ठीक महसूस करा रही थी लेकिन अंदर ही अंदर अपने को असहज महसूस कर रही थी। वो और लड़कियों को भी देख रही थी कि वो लड़कों के साथ कितनी सहजता से बात कर रही थीं।
दीपा ने अपने साथ की लड़की से ही उसका परिचय पूछा और उससे अपनी बात बढ़ानी आरम्भ की। जब खाली समय हुआ तो वो बाहर आयी ,वो सोच रही थी कि एक घंटा उस लड़की के साथ व्यतीत करेगी किन्तु वो लड़की तो किसी काम से अपनी दोस्त के साथ चली गयी। दीपा वहीं बगीचे में एक बेंच पर बैठ गयी। आते -जाते लड़के -लड़कियों को देख रही थी ,तभी वो लड़का सुबह की तरह जोर से बोलता हुआ ,आया -मुझे तो बड़ी जोरों की भूख लगी है ,मैं तो पहले खाना खाऊंगा ''कहते हुए वो आकर उसी बेंच पर बैठ गया। दीपा थोड़ा और खिसककर बैठ गयी ,उस लड़के यानि रोनित[उसका नाम कक्षा में ही पता चल गया था ,जब अध्यापिका ने सबका परिचय पूछा था ] ने अपने थैले में से एक छोटा लिफाफा निकाला और खोला ,उसमें से अमरूदों की खुशबू आ रही थी जो आस -पास फैल गयी। उसने देखा ,मसालेदार अमरुद रोनित ने निकालकर कागज पर रख दिए। उनकी खुशबू दीपा के नथुनों में समा रही थी ,तभी रोनित बोला -खाओगी ?इच्छा होते हुए भी दीपा ने मना कर दिया। रोहित ने कहा -शरमाने की बात नहीं ,खा लो, हमारे ही पेड़ के हैं ,कोई बाजार की चीज़ नहीं, कहते हुए अमरुद उसकी तरफ बढ़ा दिए। दीपा ने हिचकिचाते हुए एक फाँक ले ली। रोनित अपनी मस्ती में कहते हुए बोला -मैं कभी बाहर का खाना नहीं खाता जैसे -पिज़्जा ,समोसे आदि इससे तो मैं फ़ल खाना ज्यादा पसंद करूंगा।
मैं अमरुद खाते हुए , सोच रही थी कि पूछूँ इसे कैसे पता चला, कि मुझे किस क्लास में जाना है ?दीपा बोली -तुम्हें कैसे पता चला ?रोनित बात को बीच में ही काटकर बोला -कौन सी क्लास में जाना है ?यही पूछना चाहती हो।जबाब देते हुए बोला - कोई बड़ी बात नहीं , मैं जब ''आवेदन पत्र ''भरने गया था तभी मैंने तुम्हारा ''आवेदन पत्र' भी देखा ,उस पर नाम देखा'' दीपा शर्मा ''तब मेरी उत्सुकता बढ़ी कि ये शर्मा कौन है ?क्यों ,तुम्हारी जिज्ञासा क्यों बढ़ी ?दीपा ने प्रश्न किया। क्योंकि मैं भी' शर्मा 'हूँ, रोनित ने अपनी बात समझाई। समझ आने पर दीपा बोली -ओह !तुम कहाँ से आते हो, कहाँ रहते हो ?बातें करते -करते कब एक घंटा व्यतीत हुआ, पता ही नहीं चला। अब रोनित के साथ वो अपने को सहज महसूस कर रही थी। अब तो दोनों साथ -साथ बैठने लगे ,एक देर से आता तो दूसरा उसकी जगह घेरकर रखता। ये बातें धीरे -धीरे अन्य लड़के -लड़कियों की नज़रों में आने लगीं। कभी -कभी तो वो रोनित की दुपहिया गाड़ी पर बैठकर भी चली जाती। आज नरेंद्र, निधि जो कहकर गए ,उन बातों से उसे भी लगने लगा कि वो कुछ ज्यादा ही घुलमिल गए हैं। इसी तरह एक वर्ष बीता ,अगले वर्ष वो उससे मिलने को व्याकुल हो उठी। घर में दीपा के विवाह के लिए भी लड़के देखे जाने लगे। एक दिन मम्मी ने पूछा भी- कि हम तुम्हारे लिए लड़का देख रहे हैं ,तुम्हारी नज़र में कोई हो तो बता देना। मम्मी के पूछते ही, उसका ध्यान रोनित पर गया ,सोचने लगी -वैसे तो रोनित भी अच्छा है ,नौकरी भी करता है ,पढ़ाई भी ,स्वभाव का भी अच्छा है ,उससे मेरी पटती भी अच्छी है। दूसरे ही पल वो सोचने लगी -न ही मैंने पहले ऐसा कुछ सोचा ,न ही उसने कुछ कहा।
पता नहीं, मेरे बारे में क्या सोच है उसकी ?लेकिन अब दीपा के मन ने रोनित के विषय में सोचना शुरू कर दिया था किन्तु जब तक उसके मन की बात पता न चले वो किसी फैसले पर नहीं पहुंचना चाहती थी। अगले दिन 'विश्वविद्यालय 'में पहुँची ,वो बेसब्री से उसका इंतजार कर रही थी। थोड़ी देर बाद ही रोनित अपनी मस्ती में चला आ रहा था। तभी दीपा बोली -कहाँ रह गए थे ,तुम ?इतनी देर देर से इंतजार कर रही हूँ। क्यों ,क्या कोई खास बात है आज ?उल्टे रोनित ने ही उस पर प्रश्न दाग़ दिया। तब दीपा को अपने व्यवहार का आभास हुआ ,तब संभलकर बोली -नहीं ,मैं तो कह रही थी'' कि अध्यापक आने वाले हैं। कहीं तुम्हें देर न हो जाये। वो अपनी जगह पर बैठते हुए बोला -चिंता मत करो ,अब आ गया हूँ। खाली समय में दोनों हमेशा की तरह ,बाहर की बेंच पर बैठे , बतिया रहे थे। दीपा की कई बार इच्छा हुई कि उससे कुछ पूछे लेकिन हिम्मत नहीं हो रही थी। तभी वहाँ आकर पायल बैठ गयी ,वो भी हमारे साथ ऐसे ही बातें करने लगी। बातें करते -करते वो एकाएक बोली -तुम लोग एक ही जाति के हो ,एक साथ पढ़ते हो ,साथ -साथ रहते हो तो विवाह क्यों नहीं कर लेते ?पढ़ाई के बाद ''प्रैक्टिस 'भी साथ -साथ कर लेना। दीपा पायल का मुँह ताकने लगी जो बात वो इतने दिनों से सोच रही थी इसने कितनी आसानी से कह डाली ?तभी रोनित बोला -ऐसा नहीं हो सकता। अब दीपा रोनित का चेहरा देख रही थी।पायल बोली -क्यों नहीं हो सकता ?जब तुम दोनों में तालमेल अच्छा है। वो कह रहा था -मेरा विवाह तो हो चुका ,मेरी एक अदद सुंदर सी पत्नी है ,वो मुस्कुराकर अपनी बात बता रहा था ,दीपा को लगा जैसे उसके' पैरों तले की ज़मीन ख़िसक' गयी हो। बस वो इतना ही कह पाई -पहले क्यों नहीं बताया ? रोनित बोला -इसमें क्या बताना ?न ही कभी ऐसी कोई बात ही की, हमने। अब दीपा ने सोच लिया था, कि मम्मी को क्या जबाब देना है ?