bhukh

इंसान जब पैदा होता है तो उसके साथ भगवान ने एक चीज और दी ,वो है ,पेट। वो पेट जिसमें भूख लगती है और उस  भूख को मिटाने  के लिए उसे खाना पड़ता है। खाना खाने से उसे ताकत ,शक्ति मिलती है लेकिन मनुष्य की भूख यहीं तक सीमित नहीं ,वो शरीर को चलाने के लिए ही नहीं खाता ,बल्कि उसकी भूख ही विशेष प्रकार की है। दो तरह की भूख देखी गयी हैं- शारीरिक ,मानसिक। शारीरिक भूख में, खाना हमारे शरीर के लिए ऊर्जा ,बल प्रदान करता है। मानसिक भूख में ,जब तक उसका मस्तिष्क शांत नहीं होता ,तब तक उसकी भूख बढ़ती रहती है। उसके मष्तिष्क में  कोई भी बात बेेठ  जाये ,वो उसके लिए परेशान रहता है। इस तरह की भूख में पैसे की भूख ,आगे बढ़ने की भूख ,दूसरे को नीचा दिखाने की भूख ,सत्ता की भूख। भूख कैसी भी हो? उसकी अति बुरी ही होती है। अपने तक सीमित रहे तो ठीक लेकिन जब ये भूख दूसरों के लिए परेशानी का सबब  बन जाये तो समझो, जिसे भूख है ,वो तो संतुष्ट हो रहा है। आगे बढ़ने की भूख में, मनुष्य अपनी उन्नति के लिए ,कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहता है।  फिर चाहे उसे अपना भोजन बाँटना ही क्यों न  पड़ जाये? तो बांटता है। दूसरों की भूख शान्त करते -करते वो आगे बढ़ता है।इसे ''सहयोगात्मक भूख'' कह सकते हैं ,जो अपने साथ -साथ मजबूरीवश दूसरों की भूख का भी ध्यान रखना पड़ता है  

             धन कमाने की भूख में आदमी अपना खाना- खाना ही भूल जाता है ,जिस भोजन के लिए वो रात -दिन एक कर रहा है ,धन कमाने की भूख में वो' पेट की भूख 'को भूल जाता है। उसे तो कमाने की भूख है जिसके लिए वो किसी भी हद तक जा सकते हैं ,उनके मित्र भी पैसे वाले ही होते हैं। वो कहावत तो सुनी ही होगी, कि ''पैसा ,पैसे को खींचता है ''और पैसा कमाने के लिए वो व्यक्ति  ऐसे ही लोगों के साथ रहेगा ,जिनसे उसे लाभ की उम्मीद हो। ये भूख बढ़ती जाती है ,कम नहीं होती। ये' भूख 'बड़े -बड़े लोगों से जा मिलती है  जिसकी कोई सीमा नहीं।'' सत्ता की भूख ''भी इससे मिलती -जुलती है। सत्ता के भूखे व्यक्ति को ऐसे ही कुछ स्वार्थी लोगों का साथ मिल जाये तो भूख  शांत नहीं होती वरन' दिन -दूनी रात चौगुनी'' उन्नति होती है। ये भूख ख़तरनाक भी हो सकती है ,जितने बड़े लोग, उतनी ही बड़ी भूख। इस तरह तो हम भूख को दो खंडों में विभाजित कर सकते हैं -छोटी भूख -बड़ी भूख। भूख सभी में होती है -छोटे लोगों की छोटी-छोटी  भूख  है। छोटी इच्छाओं  के पूर्ण होने के साथ ही ,कुछ दिन बाद दूसरी छोटी भूख  लग जाती है। ,किन्तु बड़ी भूख तो अजगर की तरह मुँह भी बड़ा फैलाती है ,जब वो जुनून बन जाये तो दूसरों के लिए भी खतरा बन जाती है।फिर उस जुनून को पूरा करने के लिए वो व्यक्ति  किसी भी हद तक जा सकता है। ये भूख अच्छा बुरा कुछ नहीं देखती ,ये भूख कभी शांत नहीं होती , अपने चंगुल में दूसरों को भी ले लेती है।  जिस तरह अजगर शिकार को पहले अपने चंगुल में लेता है फिर उसे कसता है और जब शिकार विवश हो जाता है तब उसका दम  घोंटकर उसे मार डालता अथवा निगलता है। अजगर की तरह ही ये भूख बड़ी और ख़तरनाक होती है लाखों की शुरुआत होते -होते करोड़ों में पहुंच जाती है। हालाँकि' प्रजाति' सबकी अलग -अलग होती है लेकिन ये एक शृंखला की तरह एक -दूसरे से जुड़े होते हैं। सबका अपना -अपना स्वार्थ एक -दूसरे को जोड़े रखता है और ये जोड़ ही साँप को अजगर बना देता है। 

             मानसिक भूख में, कुछ पढ़ने -लिखने वाले प्राणी  आते हैं -कुछ को तो जैसे पढ़ने का शौक होता है कुछ को लिखने का।किसी को गाने की भूख है किसी को  नाचने की, ये छोटी -छोटी ऐसी भूख हैं जो इंसान को स्वयं को ही नहीं दूसरों को भी ख़ुशी देती  है।  इनकी भूख इतने में ही शांत हो जाती है अथवा और पढ़ने और लिखने की भूख बढ़ती है जिससे ज्ञान ही बढ़ेगा या बांटोगे तो भी बढ़ेगा इससे किसी को हानि नहीं। लिखने वाले की लिखने के बाद भी  संतुष्टि नहीं होती, फिर वो चाहता है कि कोई पढ़े ,पढ़कर अपनी टिप्पणी भी प्रस्तुत करे। ये भूख ऐसी है ,किसी से कोई जबरदस्ती नहीं। बस विचारों का आदान -प्रदान है , कभी - कभी ये विचार किसी की जिंदगी को नया मोड़ दे देते हैं। किसी को लाभ नहीं तो हानि भी नहीं। शारीरिक भूख का एक पहलू और भी है जो वासना की ओर ले जाता है इसमें भी व्यक्ति गर्त में चला जाता है।वासना के भूखे व्यक्ति की भूख भी कभी शांत नहीं होती ,जब ये पागलपन बन जाये ,उसकी स्थिति बद से बद्त्तर हो जाती है ,लेकिन ऐसे व्यक्ति सबकी नज़रों में आ जाते हैं। वह्शी ,दरिंदे कहलाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप दंड के पात्र बन जाते हैं। लेकिन पैसे  की  भूख वाले व्यक्ति भी न जाने क्या -क्या कर गुजरते हैं



?और इतना आगे निकल आते हैं कि हर किसी की पहुंच से बाहर होते हैं ,वे समुन्द्र की बड़ी मछली बन जाते हैं और समाज में सम्मानित व्यक्तियों की श्रेणी में आ जाते हैं ,उनके लिए तो छोटी -छोटी मछलियाँ ही उनकी भूख को शांत करने के लिए कार्य करती  हैं।  भूख के और भी कई छोटे -छोटे रूप होते हैं ,एक सुंदर लड़की के लिए उसे और सुंदर दिखने की भूख, यहाँ तक तो किसी -किसी की नज़र में ठीक हो सकता है लेकिन ये ही  भूख बढ़कर दिखावा बन जाये अथवा पैसे कमाने  भूख बन जाये तो ये आगे बढ़ने के लिए और रास्ते तलाशेगी। इस तरह एक कड़ी से दूसरी कड़ी जुड़ती जाती है और ये  छोटी भूख बढ़कर कब सुरसा का रूप धारण कर लेती है ?आदमी को पता ही नहीं चल पाता। संसार में हर किसी को भूख है -कोई पैसे का ,कोई मान -सम्मान का ,कोई प्यार का ,कोई दौलत का। भूख सबके अंदर है ,जैसे मुझे ही लो ,मैं भी भूख की बातें करते -करते, मुझे भी भूख लग गयी। मैं भी चलती हूँ ,अपने पेट की भूख शांत करने। 






















laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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