main yhan,tu kahan?

आहा !आज बहुत दिनों बाद ,वही अदरक वाली चाय का स्वाद है ,जैसी तुम बनाती थीं।' गोपालदास 'जी ने अपनी पत्नी के फोटो की तरफ देखते हुए कहा। मैंने अपने घर की उसी तरह सफाई भी की ,पता नहीं मुझे अब भी लगता है, जैसे तुम मुझे अब भी समझा रही हो और मैं तुम्हारे कहे मुताबिक़ ,मैंने अपने जूते ,मौजे ,तौलिया ,कच्छा और बनियान सब क़रीने से लगायें हैं ,जैसे तुम संभालती थीं। मैं जब भी कोई सामान इधर -उधर रख देता था ,तब तुम नाराज़ हो जाती थीं और झल्लाती हुईं , कहती  थीं -मैं कब तक तुम्हारे कामों में ,तुम्हारे पीछे लगी रहूँगी ?मुझे तुम्हें तंग करने में मज़ा आता था। समय के साथ -साथ तुम ज्यादा ही

चिड़चिड़ी हो गयीं ,पता नहीं, तुम क्या सोच रहीं थीं ?कैसे तुम बदलती जा रहीं थीं ?मैं अपनी जिंदगी जीना चाहती हूँ ,क्या तुम नहीं चाहते कि मैं शांति पूर्वक जीवन जियूँ। तब मैं कहता -मेरी जिंदगी तो तुमसे जुडी है ,तुम ही मेरे जीवन का आधार हो। क्या इतने दिनों से जीवन नहीं जिया ?मैं अपना स्वतंत्र जीवन जीना चाहती हूँ ,मैंने तुम्हारा घर संभाला ,तुम्हारे बच्चे अब बड़े हो गए ,अब अपनी जिम्मेदारियों से मुक़्त हो ,अपनी खुद की जिंदगी जीना चाहती हूँ। उसने कुछ ज्यादा ही गंभीरता से कहा।मैंने पूछा -क्या अब तक ,तुम जीवन नहीं जी रही थीं ?थोड़ा गुस्सा भी आया ,अपना गुस्सा दबाते हुए ,मैंने पूछा -क्या ये घर तुम्हारा नहीं ,क्या ये बच्चे सिर्फ़ मेरे हैं तुम्हारे नहीं ,तुम भी न जाने कैसी बातें करती हो  ?मैंने खुशामदी लहज़े में कहा।
           देखो !मेरी नौकरी का अभी समय है ,दोहरी जिम्मेदारी निभाई है ,मैंने। प्रदीप का विवाह करके 'मैं ,घर की जिम्मेदारियों से मुक्त, आराम से रहना चाहती हूँ। तुमने क्या सोचा है ?''सेवा निवृत्ति '' के बाद क्या करना है ?इसमें सोचने वाली बात ही क्या है ?अपने गॉँव चलेंगे ,अपनी खेती -बाड़ी संभालेंगे। वहाँ हमारी माँ अकेली रहती है ,बूढी हो गयी है ,उसकी सेवा करेंगे। वो मेरी बात सुनकर एकदम तुनककर बोली -यही ,यही मैं सोच रही थी कि तुम ऐसा ही कुछ कहोगे ,मैं नहीं जाने वाली गॉँव ,मेरी नौकरी को अभी चार -पांच वर्ष हैं। उसके बाद मैं प्रदीप के साथ रह लूँगी। क्या तुम अपने पति के साथ नहीं रहोगी ?मैंने उसकी आंखो में झाँकते हुए देखा। क्या तुम अपनी पत्नी के साथ नहीं रहना चाहते ?उसने उलटकर मुझसे ही सवाल पूछ लिया। मैंने इतनी जिंदगी तुम्हारे साथ बिताई है ,तो क्या अब दूर हो जाऊंगा ?मैं तो चाहता हूँ कि हम दोनों प्यार से एक साथ बाक़ी का जीवन व्यतीत करें। माँ भी है ,खेती भी है सबकी देखभाल हो जाएगी। किन्तु मैं गाँव में नहीं रहना चाहती ,इतना पढ़ी -लिखी ,नौकरी की और जब आराम का समय आया तो बुढ़ापा गाँव में काटें। तुम तो पीकर सो जाओगे लेकिन मैं अपना शेष जीवन ऐसे ही व्यर्थ नहीं गंवाऊँगी। तुम समझती क्यों नहीं  ?वहाँ माँ अकेली है ,उसका भी तो बुढ़ापा है ,उसे भी तो उम्मीद होगी कि इस उम्र में मेरे बच्चे मेरे साथ रहें। 

            खिड़की से बाहर झाँकते हुए ,चाय का आखिरी घूंट भरा ,आज बहुत ठंड है ,कहकर वो फिर से बिस्तर में घुस गए और फिर से विचारों में खो गए -''तुम भी न ,मानिनी कितनी ज़िद्दी हो गयीं ?कुछ भी कह देतीं ,मेरी माँ ने कितनी मुश्किलों से मुझे पढ़ाया -लिखाया ,बेटे की नौकरी लग गयी तो उसका घर बसने की चिंता हुयी ,दूसरे घर से लड़की आती है ,इस घर की बहु बनती है ,उसका घर पर ,घर के बेटे पर ,उसकी सम्पत्ति पर अधिकार जताती है। कभी ये क्यों नहीं कहती कि ये माता -पिता भी मेरे हैं ,वो कैसे ग़ैर हो जाते हैं ?माता -पिता की नज़रों के सामने से ही उनका बेटा ,अपनी पत्नी के साथ चला जाता है ,फिर भी वो खुश होते हैं ,ख़ुशी -ख़ुशी अपने बेटे को बहु को सौंप देते हैं और इसी बात से खुश हो लेते हैं कि बेटे का घर बस रहा है ,बहु भी उनकी अपनी हो जाती है, किन्तु बहु उन्हें अपना नहीं मानती। तुम भी मेरे साथ मेरी परछाई बनकर आ गयीं ,इतने वर्षों तक साथ रहे फिर भी तुमने एक ही झटके में इंकार कर दिया मेरे साथ गाँव में रहने के लिए ,जब मैंने माँ का वास्ता दिया तो तुम कितनी स्वार्थी बन गयीं ?और माँ को भी कह डाला -इतनी उम्र हो गयी ,तुम्हारी माँ जाने का नाम ही नहीं ले रहीं ,कब तक हमारी छाती पर मूँग दलेंगी ?सुनकर बहुत ही गुस्सा आया। मैं बस इतना ही कह पाया -तुम भी तो प्रदीप की माँ हो ,सोच लो। नहीं, मैं नहीं जाउंगी गाँव , तुम अपने शब्दों पर शर्मिंदा तो होने से रहीं ,और मुझे अपना अंतिम फैसला सुना डाला। 
             मेरी माँ तो मेरे साथ चार -पांच वर्ष रही ,तुम अपने बेटे के साथ। अकेलेपन में कभी सोचता ,--तुम मेरी परछाई थीं ,अब मेरा जीवन अंधकारमय हो गया , तो परछाई ने भी साथ छोड़ दिया। कभी -कभी तन्हाइयो में तुम्हारी याद सताती है ,मैं अपने -आप से ही प्रश्न करता -क्या मेरे प्यार में इतनी भी गर्माहट नहीं कि तुम्हें यहाँ खींचकर ले आती। जब माँ थी ,तो उन्हें खाना बनाकर खिला देता था ,माँ के सामने दो -चार काम थे तो समय कट जाता था अब तो माँ भी चली गयी कुछ करने का मन ही नहीं करता ,तुमने भी इतना सुनाया कि मिलने की इच्छा होते हुए भी नहीं जाता।'' मैं यहां ,तुम वहाँ ''ये ज़िंदगी भी क्या है ?हमें कहाँ से कहाँ ले आई ?क्या तुम्हारे सभी वादे झूठे थे ? 'करवा चौथ 'का व्रत वो सब क्या झूठ था ?कहाँ गया वो प्यार ,अपनापन ,क्या वो सब तुम्हारी सुख -सुविधाओं से जुड़ा था ?मैं आज तुम्हारे फोटो के सामने खड़ा हो

तुमसे पूछता हूँ। लगभग दस बजे होंगे ,एक पत्र आया ,वो पत्र खोलकर पढ़ने लगे -पापा आख़िरी बार मम्मी से  मिल लो। आपका बेटा ,प्रदीप। गोपालदास जी सारी शिकायतें ,सारी ज़िद ,सारा गुस्सा छोड़ ,बस में बैठ गए। सोचने लगे ,-उसे ऐसा क्या हुआ ?क्या बीमारी हो गयी या फिर कोई दुर्घटना। इतनी जल्दी कैसे ?मन सोचते -सोचते बेचैन हो उठा। बेटे के घर पहुंचे ,तब उसने बताया -मम्मी को कैंसर था ,उसका इलाज़ चल रहा था। फिर मम्मी मेरे पास रहने आ गयीं यहाँ रहकर उनका इलाज़ चलता रहा इसीलिए उन्होंने गांव में रहने के लिए मना किया था ,वहाँ आप दादी को संभालते या मम्मी को, वहाँ कोई अच्छा डॉक्टर भी नहीं। मम्मी ने अपना खर्चा भी खुद उठाया और अब डॉक्टर ने जबाब दे दिया ,तब मैंने चिट्ठी लिखी। सुनकर आंखें नम हो गयीं ,इतने वर्षों तक अकेली कष्ट सहती रहीं ,मुझे बताया भी नहीं ,मुझे इतना पराया कर दिया। बेटे के साथ अस्पताल की ओर दौड़े। उनकी जैसे जीवन की दौड़ ही ख़त्म हो गयी ,धम्म से किसी बेंच को पकड़ बैठ गए। बेटे ने हाथ पकड़ दिखाया ,बेटे ने हाथ हिलाया लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। वो एक तरफ बैठकर रोने लगा। मैं उसे अंतिम विदाई दे ,गाँव आ गया। मैं अक़्सर उससे प्रश्न करता -  'मैं यहाँ ,तू कहाँ ''ज़िंदगी तो मेरी चली गयी ,पहले दूर थी ,अब न जाने कहाँ ? 






















laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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