daag

 क्यों ,जीवन पर,' दाग़ 'लगा बैठे ?
  जीवन भर त्याग किया ,सेवा की ,
   थोड़े से लालच की ख़ातिर ,
   क्यों ,अपनों का विश्वास गँवा बैठे ?
 क्यों ,जीवन पर', दाग़' लगा बैठे ?
  जीवन जब तक अपना था ,सच्चा था। 

  गैरों की ख़ातिर ,क्यों'' जुबाँ'' गवां बैठे ?
 क्यों, जीवन पर,' दाग़ 'लगा बैठे ?
  सब अपने थे ,अपनों का था साथ ,
   क्यों, अपनों का विश्वास लुटा बैठे ?
क्यों जीवन पर ,'दाग़' लगा बैठे ?
   क्या जीवन से बड़ा ,'अहं' है ?
    अपनों का प्यार नहीं ,
    क्यों प्यार की 'वेदी' बना बैठे ?
क्यों जीवन पर,' दाग 'लगा बैठे ?
 हवनकुंड 'की सामग्री में ,
   जीवन की आहुति दे डाली। 
    भौतिक 'सुख की खातिर ,
    अपनों का  साथ गँवा बैठे। 
क्यों ,जीवन पर ,दाग़ 'लगा बैठे ?
   सबने अपना माना ,दिल था' बेग़ाना '
     जीवनभर की पूंजी ,क्यों लुटा बैठे ?
क्यों ,जीवन पर ,दाग़ लगा बैठे ?
   क्या ,कुछ लेकर आये थे ?
      क्या ये सब ,लेकर जाओगे ?
       स्वर्णाक्षरों में ,नाम लिखा ,
 क्यों ,इस पर 'कालिख़ 'लगा बैठे ?
 क्यों ,जीवन पर,' दाग़ 'लगा बैठे ?
    तुम चाहते , अपनों की ख़ातिर ,
      अपने लोगों संग रह सकते थे ,
इस सत्ता के लालच में ,अपना मान गँवा बैठे। 
क्यों ,अपनों से ही लड़ बैठे ,अपना प्यार गँवा बैठे। 
क्यों ,जीवन पर ,'दाग़ 'लगा बैठे ?
laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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