क्यों ,जीवन पर,' दाग़ 'लगा बैठे ?
जीवन भर त्याग किया ,सेवा की ,
थोड़े से लालच की ख़ातिर ,
क्यों ,अपनों का विश्वास गँवा बैठे ?
क्यों ,जीवन पर', दाग़' लगा बैठे ?
जीवन जब तक अपना था ,सच्चा था।
गैरों की ख़ातिर ,क्यों'' जुबाँ'' गवां बैठे ?
सब अपने थे ,अपनों का था साथ ,
क्यों, अपनों का विश्वास लुटा बैठे ?
क्यों जीवन पर ,'दाग़' लगा बैठे ?
क्या जीवन से बड़ा ,'अहं' है ?
अपनों का प्यार नहीं ,
क्यों प्यार की 'वेदी' बना बैठे ?
क्यों जीवन पर,' दाग 'लगा बैठे ?
हवनकुंड 'की सामग्री में ,
जीवन की आहुति दे डाली।
भौतिक 'सुख की खातिर ,
अपनों का साथ गँवा बैठे।
क्यों ,जीवन पर ,दाग़ 'लगा बैठे ?
सबने अपना माना ,दिल था' बेग़ाना '
जीवनभर की पूंजी ,क्यों लुटा बैठे ?
क्यों ,जीवन पर ,दाग़ लगा बैठे ?
क्या ,कुछ लेकर आये थे ?
क्या ये सब ,लेकर जाओगे ?
स्वर्णाक्षरों में ,नाम लिखा ,
क्यों ,इस पर 'कालिख़ 'लगा बैठे ?
क्यों ,जीवन पर,' दाग़ 'लगा बैठे ?
तुम चाहते , अपनों की ख़ातिर ,
अपने लोगों संग रह सकते थे ,
इस सत्ता के लालच में ,अपना मान गँवा बैठे।
क्यों ,अपनों से ही लड़ बैठे ,अपना प्यार गँवा बैठे।
क्यों ,जीवन पर ,'दाग़ 'लगा बैठे ?