हे ,पुरुष !
जीवन में ,तुममें मैं प्यार ,
न जाने ,कब तुम ?
जरूरत बन गए।
तुम दृढ़ ,संकोची ,
कोमल मन ,
विश्वासी ,न
जाने कौन तुम ?
हे पुरुष !
तुम आलंबन ,
किसी लता का ,
भावुक मन ,
पिता बेटी का ,
आधार तुम,
किसी मांग का
तुम शांत ,सागर से गहरे।
हे पुरुष !
तुम कौन हो ?
कर्मठ ,कुशल ,कुशाग्र ,
क्या बोलूँ ?
निर्मोही ,कठोर ,कर्कश ,
किस रूप को देखूँ ?
कभी शांत ,कभी बेबस ,
तुम बतला दो जरा।
तुममें समाहित तारे अनेक।
सागर की गहराई हो।
विषपान करते शिव ,
अथवा नटराज हो।
हे पुरुष !
मुझको बतलाओ जरा ,
तुम कौन हो ?