Udhaar

जब' मोह 'होगा ज़िंदगी से ,
कुछ क्षण 'उधार' माँग लूँगी। 
अभी तो ज़िंदगी बेबस ,लाचार ,
नश्वर नज़र आती है ,
उन क्षणों को कुछ देर तक जी लूँगी। 
कुछ अपने लिए ,कुछ अपनों के लिए ,
 प्रभु पाश में ,बंधी'' मैं  ''[आत्मा ]
उन क्षणों  भरपूर जी लूँगी। 
 'छद्म भेष ''ज़िंदगी से ,
 कुछ क्षण 'उधार 'माँग लूँगी। 
 ए ज़िंदगी !तूने मुझे ,

 कितना तोडा ?जाँचा परखा ,
 फिर भी तू  , मेरी न हुई। 
 जा तू !मैं भी न तेरी रहूंगी। 
 अपने 'प्रिय ' के दिल  में जा रहूंगी। 
 जब 'मोह 'होगा ज़िंदगी से ,
 कुछ क्षण ''उधार ''माँग लूँगी। 
 ए ज़िंदगी !तूने मुझे अनेक रंग दिखलाये। 
 हम कभी तेरे झाँसे में न आये। 
  तेरे इस रंगीन झूठ को ,ठुकरा दूँगी। 
  जब मोह होगा ज़िंदगी से ,
  कुछ क्षण' उधार 'माँग लूँगी। 
laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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