जब' मोह 'होगा ज़िंदगी से ,
कुछ क्षण 'उधार' माँग लूँगी।
अभी तो ज़िंदगी बेबस ,लाचार ,
नश्वर नज़र आती है ,
उन क्षणों को कुछ देर तक जी लूँगी।
कुछ अपने लिए ,कुछ अपनों के लिए ,
प्रभु पाश में ,बंधी'' मैं ''[आत्मा ]
उन क्षणों भरपूर जी लूँगी।
'छद्म भेष ''ज़िंदगी से ,
कुछ क्षण 'उधार 'माँग लूँगी।
कितना तोडा ?जाँचा परखा ,
फिर भी तू , मेरी न हुई।
जा तू !मैं भी न तेरी रहूंगी।
अपने 'प्रिय ' के दिल में जा रहूंगी।
जब 'मोह 'होगा ज़िंदगी से ,
कुछ क्षण ''उधार ''माँग लूँगी।
ए ज़िंदगी !तूने मुझे अनेक रंग दिखलाये।
हम कभी तेरे झाँसे में न आये।
तेरे इस रंगीन झूठ को ,ठुकरा दूँगी।
जब मोह होगा ज़िंदगी से ,
कुछ क्षण' उधार 'माँग लूँगी।
