buniyaad

देख लो ,जीजी !जीजाजी हाथ से निकले जा रहे हैं ,आप कहती भी कुछ नहीं ,न ही रोकती -टोकती हैं। सारे बहन -भाई  इकट्ठे होकर ,अपनी विवाहित जीजी के यहाँ पहुंच गए और वहीं बैठ मुस्कुराते हुए अपनी जीजी से उसके पति की चुगली कर रहे थे। उन्हें वहीं बिठाकर वो अंदर पानी लेने गयी तो सारे एक स्वर में बोले। उनकी बातें सुनते हुए वो बाहर आयी और बोली -क्यों भई !क्या हुआ ?कैसे मेरे पति की बुराई में लगे हो ?

हम क्यों बुराई करते ?हम तो आपके भले के लिए ही कह रहे हैं ,आपने ही इतनी छूट दे रखी है। मनमौजी हैं ,कहीं भी चल देते हैं, ऊपर से आप ''सोने पर सुहागा ''आप कहीं भी जाने से रोकती नहीं हो ,आपको डर नहीं है।  तुम लोग सावन का '' सिंधारा ''लेकर आये हो या मेरे घर में लड़ाई कराने आये हो वो मुस्कुराती हुई बोली। और भाई -बहन जो सामान लेकर आये हैं उन्हें अंदर रखने चली गयी,साथ ही उनके लिए नाश्ता भी तैयार करने लगी। नाश्ता लेकर लौटी ,और बोली -किस डर की बात कर रहे थे, तुम लोग ?तभी उसकी छोटी बहन शालू बोली -ऐसे कह रही हो, जैसे के जानती या समझती ही नहीं  ,आपने ही उन्हें इजाज़त दी होगी। अरे ,किस बात की इजाजत ?कुछ पता तो चले, अभी वो छोटे बहन -भाइयों की बातों को उनकी  मस्ती समझ रही थी ,अब वो थोड़ा गंभीर हो गयी। अपनी बहन का  चेहरा देखकर सारे मुस्कुराकर बोले -अभी थोड़ी देर पहले बाहर जाते हुए ,जीजाजी ने हमें बताया कि बाहर घूमने जा रहे हैं और वो भी अकेले। सुमन ने उनकी बात समझते हुए बोली -ओह !वो तो कई बार जा चुके हैं , कई जगह ,उसने  संतुष्टि से जबाब दिया।
            अबकि बार कहाँ जा रहे हैं ?पता है। राहुल बोला। हाँ.... थाईलैंड ,क्यों क्या वहाँ नहीं जा सकते ?उसने उनकी तरफ देखते हुए कहा। वे आपस में मुस्कुराये, फिर सचिन बोला -आप नहीं  जानती ,वहाँ क्या होता है ?सुमन चिढ़ते हुए बोली -तुम तीनों तो जैसे गए हो ,तुम्हें सब पता है। सुमन ने अंदाजा लगाया शायद वो ग़लत जगह होगी ,तभी कह रहे हैं। उन तीनों ने खाना खाया और अपने घर के लिए रवाना हो गए।

लेकिन अपनी बहन के मन में कुछ प्रश्न छोड़ गए ,उनके जाने के बाद सुमन सोचने लगी -वहाँ  प्रशांत के अन्य दोस्त भी तो जा रहे हैं ,ये अकेले ही नहीं जा रहे ,वैसे होता क्या होगा वहाँ ?मैं इन्हें कैसे जाने से मना कर सकती हूँ ?इनके साथ जो जा रहे हैं ,उनकी बीवियों ने भी तो मना नहीं किया ,फिर ये ही क्यों ,वहाँ जाने से वंचित रहें ?इन्हें तो शुरू से ही घूमने का शौक है ,यदि मैं मना भी करती हूँ तो क्या कहूँगी ?और इनके मन की इच्छा मन में ही रह जायेगी। हो सकता हो, बच्चे वैसे ही मस्ती कर रहे हों। तभी उसे ध्यान आया कि फोन पर 'गूगल 'से सब पता चल जाता है ,उसने गूगल से जानकारी ली उसे कुछ ग़लत नहीं लगा। उसने सोचा -जब इतनी बार बाहर गए हैं तब भी नहीं रोका तो अब क्या नई बात हो गयी ?जब अब तक विश्वास किया है तोआगे भी ऐसे ही विश्वास बनाये रखना है।
          उन्हें वहाँ जाने का कितना उत्साह है ,मैं अपने अविश्वास के कारण उनके उत्साह को कम तो नहीं कर सकती। मुझे अविश्वास को जन्म देना ही नहीं चाहिए। फिर सोचा -चलचित्रों में दिखाते हैं ,कि कोई भी सीधा व्यक्ति बाहर जाता है लेकिन कुछ लोग अपने को बचाने के लिए ,दूसरे के थैले में 'नशीले पदार्थ 'रख देते हैं। तब व्यक्ति वहाँ कानून के पँजे में फँस जाता है ,लेकिन ये तो पहले भी कई बार बाहर जा चुके हैं ,वो सोचते -सोचते थक गयी ,उसने चूल्हे पर चाय चढ़ाई ,फिर सोचने लगी -ये भाई -बहन भी न अपने आप तो मस्ती करके चले गए और मुझे ये सोचने की 'सिरदर्दी 'छोड़कर गए। चाय पीते हुए ,उसने अपने विचारों को झटका दिया और वो अंतिम फैसले पर आई कि उन्हें जाना है तो जायेंगे। किसी की भावनाओं को दबाना उचित नहीं ,मुझे उन पर विश्वास होना ही चाहिए। इतने वर्ष हो गए साथ रहते ,इतना तो समझ ही सकती हूँ कि वो ग़लत नहीं हैं, जो भी होगा अच्छा ही होगा। इसी सोच के साथ उसने अपने विचारों को 'विराम' दे दिया। अगले दिन सुबह ही प्रशांत को लेने, गाड़ी आ गयी , वो  पहले से ही तैयार बैठे थे ,ख़ुशी -ख़ुशी सारी तैयारी करके चले गए। मैंने भी चलते समय बस इतना कहा -अपना ख़्याल रखना ,किसी से कोई वस्तु मत लेना ,अपने सामान का ध्यान रखना। मेरी बातें सुनकर प्रशांत हँसे -मैं कोई छोटा बच्चा थोड़े ही हूँ ,हँसे और चले गए। वो कई बार जा चुके हैं लेकिन ऐसे परेशानी और शंका पहले कभी नहीं हुई ,कारण क्या है ?वो भी पता नहीं। वहाँ पहुँचकर प्रशांत ने बहुत सारे घूमने के  फोटो भी  भेजे ,मुझे तो सब ठीक लगा फिर ये सब क्यों बोल रहे थे ?सबके सब पागल हैं ,मुझे वैसे ही भड़काने का प्रयत्न कर रहे होंगे। 

           अभी प्रशांत को गए दो दिन ही हुए थे कि मेरी सहेली निशा का फोन आया -अरे सुमन !सुना है तेरे पति' बैंकॉक 'घूमने गए हैं। हाँ पर.......  मेरा वाक्य पूरा होने से पहले ही बोल उठी -बढ़िया है। कहकर हँसी और बोली -तूने अकेले ही जाने दिया ,तू नहीं गयी ?यार ,तुझे तो पता है ,सफ़र में मेरी हालत ख़राब हो जाती है ,तो मैं उनके साथ जाकर उनका मज़ा किरकिरा नहीं करना चाहती। निशा व्यंग से हंसती हुयी बोली -मैं तो वहाँ गयी हूँ। इतना सुनते ही वो भड़की और बोली -तू वहाँ जा सकती है और वे नहीं जा सकते। निशा बोली -मैं तो अपने पति के साथ गयी हूँ और तेरे मियाँ जी दोस्तों के संग। मैंने भी अपनी बात बड़ी की -क्या हो गया तो दोस्तों के साथ घूमने का भी अपना अलग ही मज़ा है। उधर से हंसने की आवाज़ आई और बोली -तू बता ,अब कैसी है ?और उसने हाल -चाल पूछ ,अपना दूरभाष बंद कर दिया  लेकिन मैं फिर सोचने  लगी -ऐसा क्या है ,वहाँ ?फिर सोचा -जो होगा ,देखा जायेगा। एक सप्ताह बाद वो घर आये ,वो बहुत प्रसन्न थे ,मेरे लिए भी हर बार कुछ न कुछ लाते ,इस बार भी लाये। 
           शाम को मौका सा देखकर मैंने निशा के फ़ोन का ज़िक्र करते हुए कहा -ऐसा क्या है वहाँ ?जो वो हँस रही थी। प्रशांत ने जहाँ -जहाँ भी घूमे सब बताया ,एक बात ऐसी भी थी जिसे सुनकर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ ,जो मेरी सोच में दूर -दूर तक भी नहीं था। मैंने प्रश्न किया -क्या वहाँ मान -मर्यादा,इज्ज़त कोई मायने नहीं रखती प्रशांत बोले -वो उनकी रोजी -रोटी है ,उसके लिए सरकार से मान्यता मिली हुई है। ऐसे काम की मान्यता ,ये कैसा देश है ?मैंने आश्चर्य से पूछा। ख़ैर छोडो ,अब आप बताइये ,आपने तो पूरी मस्ती की। लेकिन उसका दिमाग सोच रहा था इसी कारण वो लोग ऐसा कह रहे थे। फिर उसने प्रशांत से पूछा --आप तो नहीं गए वहां ?प्रशांत मुस्कुराकर बोले -नहीं जाता तो कैसे पता चलता ?मैंने वहाँ नृत्य देखा किन्तु मेरे अन्य सहयोगी[ इशारे  करते हुए ]अन्य जगह भी गए थे। कुछ ने तो घर में भी नहीं बताया कि कहाँ जा रहे हैं ?क्योंकि मन में चोर था। उसके मन में भी  आया, पूँछु। फिर सोचा -पूछकर भी क्या होगा ?गए होंगे तो अब कुछ नहीं हो सकता। नहीं गए होंगे तो मेरा विश्वास जीत जायेगा। मुझे चुप देखकर प्रशांत पास आकर  बोले -कुछ पूछना या कहना चाहती हो ?मैंने अपने भावों को छुपाते हुए कहा - नहीं। प्रशांत बोले -तुम्हें मुझपर विश्वास है न ?मैंने छोटा सा उत्तर दिया -हाँ। तो फिर ठीक है उन्होंने ठंडी साँस  हुए कहा। फिर स्वयं ही बोले -मुझे घूमने का शौक है। ऐसे कामों से मैं दूर  रहता हूँ ,उसमें मेरी कोई दिलचस्पी नहीं। कोई क्या करता है , मुझे कोई सरोकार नहीं। उनकी बातें सुन कर मेरा मन संतुष्टि और विश्वास से भर गया। 

            आज उस बात को तीन वर्ष हो गए वो फिर वहीं जा रहे हैं। फिर से फोन की घंटी बज उठी ,उधर से आवाज़ आई -जीजी तू नहीं सुधरेगी ,जीजाजी को फिर से भेज रही है ,जानते -बुझते हुए भी। पहले तो तुझे पता नहीं था ,अब तो पता है। सुमन पूरे आत्मविश्वास के साथ बोली -पता है ,तभी भेज रही हूँ ,तेरे जीजाजी चरित्रहीन नहीं,मुझे उन पर पूरा भरोसा है ,चरित्रहीन इंसान जहाँ भी जायेगा ,उसके लिए वहीं 'थाईलैंड ''हो जायेगा। उसी जगह जाने से मनुष्य नहीं बिगड़ेगा ,जो बिगड़ा होगा ,उसके लिए सभी जगह ही ''थाईलैंड ''हैं।'' रेत  को मुट्ठी में भरकर ,जितने कसकर मुट्ठी बंद करोगे ,उतनी ही शीघ्रता से वो फिसलेगी,  जितनी   ढील दोगे ,उतनी ही देर तक रेत हाथ में रहेगी। रिश्ते ,विश्वास और प्यार भी इसी तरह टिकते हैं ,किसी के कहने पर या छोटी -छोटी बातों पर अविश्वास जताना तो मज़बूत रिश्तों की'' बुनियाद ''नहीं हो सकती। 
 

























     
laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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