bukhaar

कुछ दिन पहले ,मैं अपने गांव गया। 
देखा ध्यान से ,तो गांव कितना बदल गया ?
चौपाल पर ,जो नीम का पेड़ था ,

जिस पर कभी मैं ,लटकता ,चढ़ता ,
उसकी जगह ,ताऊजी ,के दोमंजिले ने ले लिया। 
देखा ध्यान से ,तो गांव कितना बदल गया ?
कुछ दिन पहले ,मैं अपने गांव गया। 
जहाँ खेलते थे कभी ,गुल्ली -डंडा ,
रबड़ का पहिया ,कंचे ,कभी करते थे झगड़ा।
 उस कच्ची सड़क का स्थान ,अब पक्की ने ले लिया। 
 देखा ध्यान से ,तो गांव कितना बदल गया ?
कुछ दिन पहले ,मैं अपने गांव गया। 
जहाँ कभी बंधते थे ,गाय ,भैंस और घोड़े ,
अब वो स्थान ,मोटर गाड़ियों ने ले लिया। 
देखा ध्यान  से, तो मेरा गांव कितना बदल गया ?
जहां कभी ,मिलता था पीने को दूध ,
उसका स्थान चाय और बोतल ने ले लिया। 
कुछ दिन पहले ,मैं अपने गांव गया।

मुझे देख, मेरा गांव मुस्कुराया -
मैंने पूछा ,तू इतना ,कैसे बदल गया ?
वो हँसा ,मुस्कुराया और बोला -
 तू भी तो  उन्नति कर गया ,मैंने सोचा -
ज़माना बदल रहा है ,मैं भी बदल गया। 
कुछ दिन पहले ,मैं अपने गांव गया। 
तू छोटा था ,मुझे गंवार कह छोड़ गया। 
बड़ा हुआ तो छोड़ गया ,तू भी तो कितना बदल गया ?
मेरा भी ''शहरीकरण'' हो गया। 
 भाई !गलती न तेरी है ,न मेरी। 
 रीत ही कुछ ऐसी चली है ,मुझे भी शहरी बुखार चढ़ गया। 
 कुछ दिन पहले ,मैं अपने गांव गया। 
देखा ध्यान से ,तो गांव कितना बदल गया ?
 
 
laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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