तरुणा उलझन भरी स्थिति में, घर से निकली ,वो बड़ी दुविधा में थी , पैदल ही चले जा रही थी ,वो अपनी सास के शब्दों से परेशान थी ,यूँ तो सास -बहु की घर -घर की कहानी होती है ,वो स्वभाव से बहुत ही सख़्त मिज़ाज हैं ,अब तक तो उनको और उनके स्वभाव को झेलती ही आयी है लेकिन अब जो उन्होंने कहा ,वो बात उसके गले से नहीं उतर रही ,तरुणा इसके लिए कतई भी तैयार नहीं ,लेकिन वो अपनी सास के स्वभाव को भी भली -भाँति जानती है कि वो अपनी बात मनवाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती हैं। ,तभी उसे वो नर्स दिखी जिसने उसे इस परिस्थिती से निपटने का तरीका सुझाया था। कुछ देर खड़ी दोनों बातें
करती रहीं फिर तरुणा ने उस नर्स को भी अपने साथ चलने के लिए मना लिया। पास ही खड़े रिक्शे में बैठीं और रिक्शा अपने गंतव्य की और बढ़ चला जो जगह उसे बताई गयी थी। वो अपनी घबराहट छुपाते हुए उस नर्स काम्या से बोली -इसका क्या ,और कोई इलाज़ नहीं ?काम्या बोली -और क्या इलाज़ हो सकता है ?तुम्हीं सोचो ,एक बेटी तो पहले से ही है। तरुणा बोली -लेकिन मैं 'जीव हत्या 'नहीं चाहती और मन ही मन भगवान से प्रार्थना करने लगी --भगवान जो भी अंश आपने मेरी कोख में डाला है ,मैं उसे नहीं मारना चाहती ,कुछ तो करो। उसकी हृदय गति तीव्र हो रही थी। उसे ध्यान आया कैसे उसकी जेठानी दो बार अपना गर्भपात करवा चुकी है? लेकिन इसमें उसकी जेठानी की भी मंजूरी थी। वो तो स्वयं ही कह रही थी कि कौन लड़कियों को पालेगा ?और फिर उनके विवाह का ख़र्चा उठाएगा। मैंने कहा भी था -पढ़ -लिख जायेंगी अपने पैरों पर खड़ी हो जायेंगी ,तब कौन सा आपको परेशानी होगी। तब वो लापरवाही से बोलीं -इतने उन्हें पालते -पालते हमारी कमर टूट जाएगी ,न ही अच्छा खाने के ,न ही अच्छा पहनने के ,ये सब किताबी बातें हैं ,न हमें कोई इनाम देगा कि तुमने इतनी मेहनत से लड़कियाँ पालीं ,एक तो है ही। ऐसी विचारधारा के चलते वो अपने बच्चे को कैसे बचा सकती है ?
करती रहीं फिर तरुणा ने उस नर्स को भी अपने साथ चलने के लिए मना लिया। पास ही खड़े रिक्शे में बैठीं और रिक्शा अपने गंतव्य की और बढ़ चला जो जगह उसे बताई गयी थी। वो अपनी घबराहट छुपाते हुए उस नर्स काम्या से बोली -इसका क्या ,और कोई इलाज़ नहीं ?काम्या बोली -और क्या इलाज़ हो सकता है ?तुम्हीं सोचो ,एक बेटी तो पहले से ही है। तरुणा बोली -लेकिन मैं 'जीव हत्या 'नहीं चाहती और मन ही मन भगवान से प्रार्थना करने लगी --भगवान जो भी अंश आपने मेरी कोख में डाला है ,मैं उसे नहीं मारना चाहती ,कुछ तो करो। उसकी हृदय गति तीव्र हो रही थी। उसे ध्यान आया कैसे उसकी जेठानी दो बार अपना गर्भपात करवा चुकी है? लेकिन इसमें उसकी जेठानी की भी मंजूरी थी। वो तो स्वयं ही कह रही थी कि कौन लड़कियों को पालेगा ?और फिर उनके विवाह का ख़र्चा उठाएगा। मैंने कहा भी था -पढ़ -लिख जायेंगी अपने पैरों पर खड़ी हो जायेंगी ,तब कौन सा आपको परेशानी होगी। तब वो लापरवाही से बोलीं -इतने उन्हें पालते -पालते हमारी कमर टूट जाएगी ,न ही अच्छा खाने के ,न ही अच्छा पहनने के ,ये सब किताबी बातें हैं ,न हमें कोई इनाम देगा कि तुमने इतनी मेहनत से लड़कियाँ पालीं ,एक तो है ही। ऐसी विचारधारा के चलते वो अपने बच्चे को कैसे बचा सकती है ?
तभी उसे मंदिर की याद आयी ,जब मंदिर में वो अपनी पड़ोसन के साथ गयी थी ,परिक्रमा करते हुए वो देवी से यही वरदान मांग रही थी कि जो भी बच्चा आये ,ठीक -ठाक हो ,मुझे इन परिस्थितियों से न गुजरना पड़े। तभी एक फूल गिरा उसे लगा कि देवी माँ ने उसकी प्रार्थना सुन ली ,मैं अभी उसे बताने ही वाली थी कि पड़ोसन बोल उठी -देखा ,भगवान ने मेरी सुन ली ,मैं चुप रही ,बस मन ही मन सोचा जो भी हो अच्छा ही हो। उसकी सोच काम्या की आवाज़ से टूटी -भाभी उतरिये ,भारी मन से वो उस ओर बढ़ चली।
अंदर बहुत ही भीड़ थी ,काम्या ने उसका पर्चा बनवा दिया और उसे एक जगह बिठाकर अपना नंबर आने का इंतजार करने को कहा और अपना कोई जरूरी काम बताकर वो चली गयी। तरुणा ने अपने आस -पास नज़र डाली। सब ओर ज़्यादातर गर्भवती महिलायें ही नज़र आ रहीं थीं या उनके साथ आई उनकी ही कोई रिश्तेदार होंगी। एक नज़र उसकी अपने सामने ही लिखे पर्चे पर पड़ी। जिस पर ये सब करना क़ानूनी तौर पर भी दंडनीय है ,अपराध है। जिस अस्पताल में वो बैठी थी ,उनके लिए उसके मन में घृणा का भाव आया फिर साथ ही बैठी एक महिला से पूछा -आप किस लिए आई हैं ?उसने बताया कि मेरा छटवां माह है लेकिन भ्रूण ठीक से विकसित हो रहा है कि नहीं यही पता लगाना है। उसकी बात सुन एकाएक उसकी विचारधारा बदल गयी ,सोचने लगी- कि इंसानों ने ही मशीनें बनाई हैं , ऐसी मशीनों के लाभ भी हैं ,और इंसान ही है कि अपनी जरूरत के हिसाब से उपयोग करता है ,अपना लाभ ही लाभ चाहता है ,मैं भी तो किसी लाभ की इच्छा से ही यहाँ बैठी हूँ लेकिन ये तो मेरी जाँच होने पर ही पता चलेगा कि लाभ है या हानि ,हम जिंदगी भर न जाने कितनी बार लाभ -हानी के फेर में पड़े रहते हैं ,जो हमारी दृष्टि में सही है दूसरे की दृष्टि में गलत भी हो सकता है। तभी उसकी नजर एक महिला पर पड़ी ,उसने अंदाजा लगाया शायद इसका नौवां महीना ही लगा हो। उसे देख तरुणा को अपना समय याद आ गया ,जब वो पहली बार गर्भवती हुई थी।
उसके उल्टियाँ लग गयीं थीं ,वो यही सोच -सोचकर परेशान थी कि उसने ऐसा क्या खाया कि बदहजमी हो गयी। सास के डर से चिकित्सक के पास जाने की हिम्मत न जुटा पाई। जब हालत ज्यादा बिगड़ गयी तब चिकित्सक के पास गए। उसने कुछ प्रश्न पूछे और टैस्ट करवाए जिससे पता चला कि मैं 'गर्भवती 'हूँ। सब कुछ ऐसे हो रहा था कि समझ ही नहीं पा रही थी कि क्या करूँ ?तबियत बिगड़ी थी, खुश होना है लेकिन ख़ुशी नहीं दिख रही थी। घर के लोगों के लिए आम बात थी क्योंकि और भी बहुएं थी लेकिन मेरे लिए कुछ अजीब था। मैं बिस्तर पर पड़ी सोचती- ये क्या स्थिति है ?फिल्मों में तो दिखाते हैं ,पता नहीं बहु ने कौन सा 'मैडल 'जीत लिया ,लेकिन असल जिंदगी इतनी स्वप्निल नहीं।न ही उसके मन में ऐसा कोई मातृत्व का फुहारा फूटा। वो उन परिस्थितियों को समझने का प्रयत्न कर रही थी। किसी तरह नौवें महीने के बाद उसने एक बच्ची को जन्म दिया। सास ने देखा तो मुँह बनाया लेकिन वो अभी भी बच्ची को छूकर देख रही थी कि ये मेरे अंदर थी मेरे खून से कैसे बनी ?किसी ने भी मुझे जानने की जरूरत महसूस ही नहीं की कि मेरे अंदर क्या चल रहा है ?मैं बार -बार अपने को भरोसा दिला रही थी कि ये मेरी अपनी बच्ची है इसे मैंने जन्म दिया है। समाज में , परिवार में एक नवजीवन सृजन में मेरा सहयोग है। किसी को कहते सुना -कि बच्ची है तो क्या ?पहला फ़ल है ,ठीक -ठाक रहे ,स्वस्थ रहे यही बहुत है। उनकी बात सुन मैं अपनी तुलना एक पेड़ से करने लगी ,जिस पर अनेकों फ़ल लदे थे। बेटी को पालते, घर की जिम्मेदारियों के पीछे ममता का स्रोत कहीं से झाँकता और फिर से अपने काम की धुन में उसे दूसरी तरफ रख देती लेकिन अबकि बार तो मैं उस एक -एक पल को महसूस करना चाहती थी ,लेकिन सास की बात सुनकर दुविधा बढ़ गयी। जब उसे पता चला कि एक नई कोंपल उसके अंदर अंगड़ाई ले रही है। अबकि बार उसे एहसास था कि माँ बनना क्या होता है ?तभी एकाएक उसका हाथ अपने पेट पर गया। उसका ध्यान अपने नाम की पुकार से टूटा -तरुणा !तरुणा !उसका नाम पुकारा गया था वो घबराती सी उठी ,अंदर गयी। चिकित्सक ने उसे सांत्वना दी और लेटने का इशारा किया -मशीन उसके पेट पर चल रही थी लेकिन उसकी निगाहें ''स्क्रीन ''पर थीं ,हालाँकि उसे समझ कुछ नहीं आ रहा था लेकिन फिर भी आँखें गड़ाए थी। चिकित्सक ने बाहर बैठने के लिए कहा। वो धडक़ते दिल से बाहर जा बैठी ,इतना निगाहें गड़ाने के बाद भी कुछ समझ नहीं आया ,उसकी जाँच का आंकलन होकर आ गया था ,उसकी जाँच में पुत्र की आशंका जताई गयी थी ,बस इतनी बात से ही जैसे उसकी जिंदगी ,सोच सब कुछ बदल गया। उसे इस बात की प्रसन्नता थी कि अब उसके हाथों 'जीवहत्या 'न होगी। अभी वो वहाँ बैठी इस कार्य को क़ानूनी जुर्म समझे बैठी थी ,अब वो उसे अच्छा लग रहा था कि इसकी जाँच से न जाने कितनी मांओं की उम्मीद बंधी होती है।
वो बाहर निकली ही थी कि रिक्शेवाले ने पूछा-उसने जगह बताई ,फौरन रिक्शे में बैठ गयी ,वो अब प्रसन्न थी ,रिक्शे में बैठकर उसने चारों तरफ देखा ,जब आई थी तो केवल उसे वो ही जगह दिख रही थी जहाँ उसे जाना था ,अब मन प्रसन्न है तो जैसे औरों को भी अपनी ख़ुशी में शामिल कर लेना चाहती थी। उसने जाते समय भी सोचा था कि मैं कैसे एक जीव को दुनिया में आने से रोक सकती हूँ ?उसका क्या अपराध है जो मैं उसे इस दुनिया में आने से रोकूँ ,उसने तो पहले ही मन बना लिया था कि जो भी होगा उसे दुनिया में आने देगी ,लोग इतनी बातें करते हैं, ज्ञान झाड़ते हैं ,जब अपनी बारी आती है तो सारा ज्ञान उड़नछू हो जाता है, लेकिन इस जांच के आधार पर अब वो इस दुविधा से बाहर आ गयी। अब वो अपने घर के मोड़ तक आ गयी ,उसने रिक्शेवाले को अंदर गली में चलने को कहा तो वो चुपचाप चल दिया उसने किसी भी तरह की झिक -झिक नहीं की। उसकी इस बात से तरुणा का ध्यान उसकी तरफ गया ,सोचने लगी -ये लोग भी न अपने बच्चों का पेट भरने के लिए कितनी मेहनत करते हैं ?इन्हें भी उचित मेहनताना मिलना चाहिए।
ये लोग भी जाने -अनजाने ही हम लोगों के सुख -दुःख में शामिल रहते हैं। उसने उतरकर पैसे दिए वो बोला -मेरे पास छुट्टे नहीं ,कोई नहीं रख लो जैसे ही तरुणा की नजर उसके चेहरे से टकराई वो बोली -तुम तो शायद सुबह भी लेकर गए थे ,तुम ही थे न ?देखो क्या संयोग है ?तुम्हारी रिक्शा मेरे लिए शुभ है ,मुझे अच्छी सूचना मिली। रिक्शेवाला बोला -जी हाँ ,लाने ,ले जाने वाला मैं ही हूँ जब आदमी दुखी होता है तब भी मुझे नहीं देख पाता और जब प्रसन्न होता है तब भी मुझ पर उसका ध्यान नहीं रहता ,इधर -उधर देखता है। जिसका काम अच्छा हो जाये उसके लिए मेरी रिक्शा शुभ होती है जिसका काम बिगड़ जाये उसके लिए अशुभ ,ये सब आदमी की सोच और उसके सुख -दुःख पर निर्भर करता है ,कहकर वो तो चला गया लेकिन तरुणा उसे जाते देखती रही कि वो कितनी बड़ी बात कह गया ?
ये लोग भी जाने -अनजाने ही हम लोगों के सुख -दुःख में शामिल रहते हैं। उसने उतरकर पैसे दिए वो बोला -मेरे पास छुट्टे नहीं ,कोई नहीं रख लो जैसे ही तरुणा की नजर उसके चेहरे से टकराई वो बोली -तुम तो शायद सुबह भी लेकर गए थे ,तुम ही थे न ?देखो क्या संयोग है ?तुम्हारी रिक्शा मेरे लिए शुभ है ,मुझे अच्छी सूचना मिली। रिक्शेवाला बोला -जी हाँ ,लाने ,ले जाने वाला मैं ही हूँ जब आदमी दुखी होता है तब भी मुझे नहीं देख पाता और जब प्रसन्न होता है तब भी मुझ पर उसका ध्यान नहीं रहता ,इधर -उधर देखता है। जिसका काम अच्छा हो जाये उसके लिए मेरी रिक्शा शुभ होती है जिसका काम बिगड़ जाये उसके लिए अशुभ ,ये सब आदमी की सोच और उसके सुख -दुःख पर निर्भर करता है ,कहकर वो तो चला गया लेकिन तरुणा उसे जाते देखती रही कि वो कितनी बड़ी बात कह गया ?
अंदर



