pahachan [part 2]

सुधीर को गए लगभग एक माह हो गया ,उसे लग रहा था, इतना  लम्बा जीवन कैसे काट पायेगी ?समझ नहीं आ रहा ,बच्चों का क्या होगा ?बच्चे अब पिता के जाने बाद माँ का सहारा ढूंढते लेकिन वो तो जैसे  सब कुछ भूल चुकी थी। उसकी सास ने ही उसे हिम्मत दी ,बच्चों का वास्ता दिया। शीला अब अपने बच्चों के लिए जीना चाहती थी अपने बच्चों के लिए ही उसने अपने को मजबूत बनाना चाहा। अब उसके जीने का उद्देश्य अपने बच्चों को सुखी, सफल भविष्य के लिए तैयार करना था। अभी उसने अपनी जिंदगी को संभालना ही शुरू किया था कि सुधीर की बरसी के बाद किसी रिश्तेदार ने यह बात उठाई कि दो बच्चों के साथ एक औरत कैसे अपनी जिंदगी को संभाल सकेगी? बिना आदमी के ,बिना सहारे कैसे जीवन कटेगा ?अभी तो उम्र भी कम है। आपस में विचार -विमर्श करके सबने यह तय किया कि उसका कोई जेठ जो रंडवा था ,उससे ही उसका विवाह करा देते हैं। ये बात जब शीला के कानों में पहुंची तो वो भड़क गयी। उसने विवाह करने से साफ इंकार कर दिया। शीला की  सास ने उसे जीवन के उतार -चढ़ाव समझाये ,बिना पति या बिन मर्द के ,औरत  की कितनी दुर्गति होती है ?सभी बातें उसके मन में भरने का प्रयत्न किया। वो बोली -उसकी नजर तो पहले से ही गलत है, मुझे तो वो फूटी आँखों नहीं सुहाता अब मेरे बच्चे ही मेरा सहारा बनेंगे, अभी मैं उनका सहारा बनूँगी। सास ने कहा -कल को यदि तेरे ससुर  और मैं नहीं रहे तो कौन खेती संभालेगा ?अकेली सब कैसे करोगी ?उसने कहा -जब की जब देखी जाएगी। उसके दिन गुजरने लगे लेकिन उसका वो रंडवा जेठ तो तिलमिलाया बैठा था। अब उसने दूसरे तरीक़े से उसे हासिल करने की सोची लेकिन उसे कोई मौक़ा ही हाथ न लगा। 

          एक दिन मौका देखकर वो स्वयं ही उससे लिपट गया ,शीला ने लाठी से जो उसकी खबर ली ,उसके बाद वो उसे नहीं दिखा।शीला के सास -ससुर ने भी अपना जीवन त्याग दिया। अब अपनी खेती उसने सुधीर के भाई को ही सौंप दी लेकिन उसने खर्चे ज्यादा और आमदनी कम दिखाई। एक बार तो उसे लगा कि जैसे सब  कुछ उसके हाथों से फिसलता जा रहा है वो संभाल नहीं पायेगी। अपने बच्चों के लिए उसने हिम्मत जुटाई और उसने स्वयं ही खेती करने की ठानी। कहने को तो उसके इतने रिश्तेदार थे ,भरा -पूरा परिवार था लेकिन ऐसे समय में कोई अपना नजर नहीं आ रहा था, जिस पर विश्वास कर सके या जो बिना स्वार्थ उसकी मदद के लिए तैयार हो। अब उसने अपने घूंघट को अपने कानों के पीछे लगाया और मैदान में उतर पड़ी। उसके इस भेष को देखकर सारे गाँव में वो चर्चा का विषय बन गयी। सुधीर की बहु को अब लाज -शर्म नहीं रही ,घूँघट हटा अब वो मर्दों की तरह गली -मौहल्ले में घूमती -फिरती है। घर का चूल्हा -चौका तो सम्भलता नहीं अब ये खेती सम्भालेंगी ,मर्दों की बराबरी करेगी। जिस जमाने में औरतें घूंघट में रहती ,दहलीज से बाहर कदम न रखतीं ,उस समय में शीला ने ये दीवार तोड़, खेती संभाली। किन्तु समय के साथ ही आज उसे ये भी एहसास हो रहा था कि काश !वो पढ़ी -लिखी भी होती तो बहुत कुछ कर सकती थी। जब से उसने अपने कुनबे के उस रंडवे जेठ की खबर ली है ,तब से तो कुछ लोग  उसे 'मर्दमारिणी 'औरत कहने लगे।  कितना भी छुपा लो लेकिन ऐसी बातें कहाँ छुपती हैं ?
           कुछ उसके पक्ष में बोलते ,खासकर औरतें कहतीं -शीला ने अपने पति के जाने के बाद कितनी हिम्मत से काम लिया ?अपनी इज्ज़त तो बचाई  ही , साथ ही खेती -बाड़ी और घर भी देखा लेकिन कुछ मर्दों के तो अहम को ठेस पहुंच रही थी ,वे ऐसे मर्दो में से थे ,  जो औरत को बेबस ,लाचार और बेचारी  रूप में ही देखना पसंद करते। उन्हें लगता, इस तरह तो इसे देखकर हमारे घर की औरतें भी सिर पर चढ़ जाएँगी। घूँघट हटाकर मर्दों की बराबरी करेंगी ,क्या भले घर की औरतों के ये लक्षण होते हैं ?औरत तो अपने घर में चूल्हे -चौके को संभालती ही अच्छी लगती है ,मर्दों की बराबरी करती नहीं।गांव में एक बूढ़ी महिला थीं उन्हे गाँव के ज्यादातर लोग' ताई 'जी  बोलते थे ,उन्हें सम्मान के कारण कोई कुछ नहीं कहता था और जो भी वो कहतीं ,सुन भी लेते थे। एक दिन ताई ने ही उन लोगों को धिक्कारा ,बोलीं -तुम्हें बर्दाश्त नहीं हो रहा कि कोई औरत अपने पैरों पर खड़ी हो अपने बच्चों को पाल रही है ,तुमसे तो कुछ नहीं माँगा। तब तुम्हें अच्छा लगता, जब वो घूंघट में लाचार ,बेसहारा नजर आती और तुम्हारी गंदी नजर उसकी मदद के बहाने ढूंढती। उसका ख़सम नहीं ,यदि वो ये कदम न उठाती तो तुम क्या उसे छोड़ते ?लेकिन जब उसने' मुँह तोड़ जबाब' दिया 'तो तुम्हारे क्यों 'कलेज़े में आग लग 'रही है ?

          उन्हीं दिनों गांव ''ग्राम प्रधान ''के पर्चे भरे जाने लगे। बिरसा जी ने भी पर्चा भरा था ,वे भी जाने -माने इज्ज़तदार व्यक्ति थे उनका गाँव में काफी रौब था। रामलाल की भी इच्छा थी कि वो भी पर्चा भरे लेकिन अंदर ही अंदर घबराहट थी कि बिरसा जी के विपरीत यदि वो लड़ा तो हार सकता है। रामलाल की दिली इच्छा थी कि बिरसा को प्रधान नहीं बनने देना है ,वो इसी कश्मकश में थे, तभी उन्हें  घेर से बाहर शीला जाती दिखाई दी और उनके मन में नया  विचार कोंधा -क्यों न शीला को 'ग्राम प्रधान 'का पर्चा भरवा दिया जाये? आजकल ये बहुत ही अपने कारनामों के कारण लोगों की नजरों में भी है ,महिलायें भी इसके साथ होंगी। घर -घर में शीला की  किसी न  किसी बात को लेकर चर्चा रहती ही है। बिरसा के लिए तो इज्ज़त का सवाल हो जायेगा कि एक औरत से लड़ रहे हैं, और हार गए तो भी इज्ज़त गयी समझो एक औरत से हार गये। रामलाल अपनी सोच और कल्पना करके बड़ा ही खुश हुआ दोनों तरफ से ही बिरसा की हार निश्चित है। यही विचार उसने अपने लोगों को सुझाया , उसने कहा -हमें महिलाओं को भी आगे बढ़ने का मौका देना चाहिए ,  हमारे गांव की महिलायें भी किसी से कम नहीं ,हम भी दिखा देना चाहते हैं कि हमारे गाँव की महिलायें कुछ भी कर सकती हैं ,वो मर्दों के कंधे से कंधा मिलाकर चलती हैं। बहुत सारी भूमिका बांधने के बाद उसने शीला का नाम सुझाया। रामलाल भी शीला के विरुद्ध उतना ही था जितने गांव के अन्य लोग लेकिन उसने बिरसा को नीचा दिखाने के लिए शीला का साथ देना ही  सही समझा। 

          इंसान भी कितना खुदगर्ज़  होता है ?जो कल तक उसके खिलाफ था ,आज उसके समर्थन में था पूरे गांव में चर्चा थी कि चुनाव में पहली बार एक औरत ,चौधरियों की बहु शीला खड़ी है ,महिलाओं में भी दूना जोश था ,अब महिलायें भी किसी से कम नहीं ,जिन बातों के लिए उसे दोष दिए जा रहे थे वे ही बातें अब उसका मजबूत पक्ष था। शुरू में तो उसने इंकार ही कर दिया था लेकिन कुछ रामलाल ने समझाया कुछ परिस्थितियों ने सिखाया और फिर उसने सोचा -अगर जिंदगी में आगे बढ़ना है तो कुछ न कुछ बड़ा तो करना ही होगा और अब उसे शायद यही मौका था जब उसकी एक अलग पहचान बन सकती थी और आगे बढ़ने की शायद यही शुरुआत हो ,यही बातें सोचकर उसने हामी भर दी। घूँघट वाली औरत कोई बेबस ,लाचार ,माँ ,बहन और बेटी ही नहीं ,अब वो मर्दों की बराबरी भी कर सकती है ,उसका अपना अलग अस्तित्व है ,समय आने पर वो दुर्गा भी बन सकती है। ये सब ताई ने सुना, तो फ़ीकी मुस्कान के साथ बोली -ये भी मर्दों का ही एक हथकंडा है ,इनकी सोच न कभी बदली है ,न ही बदलेगी।  समय की मांग अभी ऐसी है तो शीला को अपना मोहरा बना लिया। गांव की राजनीति तूल पकड़ रही थी। बिरसाजी के लिए तो इज्ज़त का सवाल हो गया था ,उन्होंने तो शीला को धमकी ही दे डाली कि अपना नाम वापस ले ले। पहले तो उसने ज्यादा ध्यान ही नहीं दिया लेकिन बिरसा की  धमकी के बाद उसने अपने बच्चों को तो उनकी सुरक्षा के लिए अपने भाई के पास भेज दिया और अब वह  पूरी  तरह जीत की  उम्मीद के साथ ,मैदान में आ गयी। 
             अब उसे एहसास हो रहा था कि काश !वो थोड़ी पढ़ी -लिखी होती। हम तो बच्चे थे ,माता -पिता ने भी कभी ध्यान ही नहीं दिया कि बेटी भी पढ़नी चाहिए क्योंकि वहां भी तो पिता के रूप में एक पुरुष ही था जो नहीं चाहता था कि औरत पढ़े -लिखे ,काबिल  बने।'' बेटियों को दुर्गा ,सरस्वती ,लक्ष्मी और अन्नपूर्णा माना लेकिन उसे सीख़ सिर्फ़ अन्नपूर्णा के रूप की ही दी और प्रयत्न किया कि  अपने अन्य रूपों  को न  पहचान सके ,शायद उसे औरत की शक्ति का बोध था कि औरत ने यदि अपने  अन्य रूपों को पहचान लिया तो वो उस पर भारी पड़ेगी। इसी से पुरुषों ने औरत को पहले ही दबाकर रखा। मेरे पिता ने भी मुझे न पढ़ाकर मेरे भाई को पढ़ाया। सोचा - इस पर क्यों पैसा बर्बाद करना ये तो अगले घर जाएगी वहाँ भी इसे रोटी ही बनानी है ,हमें क्या कमाकर देगी ?किन्तु ये नहीं सोचा कि यदि उसे पढ़ा दिया तो ये पढ़ाई उसकी विपरीत परिस्थितियों में उसके काम आएगी। तभी उसकी सोच रामलाल की आवाज से टूटी ,वो कह रहा था -आज परिणाम घोषित होगा। अब शीला के मन में भी घबराहट होने लगी। विरोधी पार्टी को पूर्ण विश्वास था कि जीत उन्हीं की होगी ,किसी को पैसे से ,किसी को डर से और किसी को दारू से तोड़ने का प्रयत्न जो किया था किन्तु परिणाम बिल्कुल विपरीत थे। शीला जीत चुकी थी। 

         शीला को  भरी सभा में अपनी बात कहने के लिए मंच  पर बुलाया गया ,शीला बोली -मेरे शुभचिंतकों !और मेरी प्यारी बहनों ,-आज में अनपढ़ होने के बाद भी ,मैंने अपनी हिम्मत और आप लोगों के सहयोग से नारी शक्ति को जगाया। आज उस' नारी शक्ति' ने दिखा दिया कि हम भी कुछ हैं ,हमारा भी अपना अस्तित्व है। ये नहीं की हम मर्दों को नीचा दिखाना चाहते हैं या उनके सिर पर सवार होना चाहते हैं ,उनके अहं को तोडकर उन पर हावी होना चाहते हैं ,तो ऐसा बिल्कुल नहीं है। स्त्री -पुरुष तो एक -दूसरे के पूरक हैं। हम उनके साथ चलकर उनके कंधे से कंधा मिलाकर सहयोग करना चाहते हैं और आप सभी से हाथ जोड़कर उम्मीद करती हूँ कि सभी लोग गांव की उन्नति में इसी तरह मेरा सहयोग करेंगे ,जिस तरह आप लोगों के प्यार और विश्वास  से जीत हासिल कर सकी। वरना मैं अनपढ़ किस क़ाबिल थी ?मेरा सबसे विनम्रता पूर्वक निवेदन है अपनी बेटियों को पढायें ,दूसरे घर की अमानत समझ ,अपनी जिम्मेदारियों से मुँह न मोड़ें और मैं तो बिरसा भाई से कहूँगी ,कि वे अनुभवी व्यक्ति हैं ,उनके सहयोग से ,उनके मार्गदर्शन में ही  मैं ये सब कार्य कर पाऊँगी ,उनसे विनम्र प्रार्थना है कि वे अपने गॉँव की बहु का मार्गदर्शन करें और आशीर्वाद दें। हालांकि मैं जानती हूँ कि मैं तो राजनीति का एक  मोहरा हूँ लेकिन अब तक जो भी सीखा है आप लोगों से ही........ अभी वो कुछ और कह पाती तभी उसे अपना  भाई बच्चों के साथ आता दिखाई दिया। वो मंच से उतरकर बच्चों के साथ घर पहुँची। उसका भाई भी उसकी सफलता से बहुत प्रसन्न हुआ  फिर बोला  -बहन जरा संभलकर रहना ये राजनीति है। शीला बोली -इतने सालों से यहीं रह रही हूँ ,इन्हीं लोगों से सीखा है, फिर एकाएक  अपने बेटे  से बोली -क्या तुम मेरे मास्टरजी बनोगे ?वो बोला -क्या माँ ,अब आप इस उम्र में पढेंगी ,अब तो आप प्रधान बन गयीं। तभी तो पढ़ना चाहती हूँ जिससे कोई मेरे अनपढ़ होने का लाभ न उठा सके और सही फ़ैसले ले सकूँ शीला ने अपने बेटे को समझाया। उसके विचार सुनकर उसके भाई बोले -ये तूने सही कहा ,हमारी बहन को जिंदगी ने कहाँ से कहाँ पहुंचा दिया ?अंत भला तो सब भला कहकर हँस पड़े। हाँ ,भाई अब मेरे अस्तित्व को एक नई पहचान ,नई दिशा मिली है शीला बोली।  























laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post