सुधा के घर के नजदीक ही एक कमरा खाली था ,वो बहुत दिनों से खाली पड़ा था। जब वो लोग इस मकान को देखने आये थे तो वो दो कमरों का सेट था ,मकान -मालिक ने भी इसी तरह से बनवाया था कि मकान का पूरा हिस्सा एक ही परिवार को दे देंगे लेकिन सुधा और उसके पति की हालत अभी ऐसी नहीं थी कि दो कमरे किराये पर ले सकें, वो कमरा उनके बज़ट से बाहर था। उनकी परेशानी समझ मकान-मालिक ने उन्हें एक ही कमरा दिया लेकिन साथ ही कह भी दिया कि यदि कोई इस कमरे के लिए आता है तो मैं इसे किराये पर चढ़ा दूंगा। तब तो दोनों ने हामी भर दी लेकिन आज उस कमरे की सफाई हो रही है तो सुधा को परेशानी हो रही है। वो ये बात जानने के लिए उत्सुक थी कि नया किरायेदार कौन है ?क्या करता है ?शादी -शुदा है या कुँवारा।उसने दोनों कमरों के आगे जो खाली जगह थी उस जगह पर कपड़े का पर्दा
टाँगकर रसोईघर के उपयोग में लेती थी लेकिन अब दूसरे व्यक्ति के आने से उसे थोड़ा अटपटा सा लग रहा था। जब वो लोग यहाँ आये थे तो उनके साथ एक छोटी सी बच्ची थी ,सुधा सुघड़ ,मेहनती और सफ़ाई पसंद महिला थी। उसने उसी जगह पर अपने सामान को बड़े ही व्यवस्थित तरीक़े से सजाया था। वहाँ रहते -रहते दोनों पति -पत्नी को लगभग एक वर्ष हो गया ,इस बीच उनके परिवार में एक बेटा भी आ गया। सब कुछ सही से चल रहा था लेकिन मकान -मालिक को तो अपने किराये से मतलब था तो इसी कारण से उसने वो कमरा किराये पर दे दिया। तभी से सुधा परेशान थी।
टाँगकर रसोईघर के उपयोग में लेती थी लेकिन अब दूसरे व्यक्ति के आने से उसे थोड़ा अटपटा सा लग रहा था। जब वो लोग यहाँ आये थे तो उनके साथ एक छोटी सी बच्ची थी ,सुधा सुघड़ ,मेहनती और सफ़ाई पसंद महिला थी। उसने उसी जगह पर अपने सामान को बड़े ही व्यवस्थित तरीक़े से सजाया था। वहाँ रहते -रहते दोनों पति -पत्नी को लगभग एक वर्ष हो गया ,इस बीच उनके परिवार में एक बेटा भी आ गया। सब कुछ सही से चल रहा था लेकिन मकान -मालिक को तो अपने किराये से मतलब था तो इसी कारण से उसने वो कमरा किराये पर दे दिया। तभी से सुधा परेशान थी।
उस कमरे की सफाई के लगभग एक सप्ताह बाद एक व्यक्ति ,छोटी अटैची और एक थैला लेकर आया ,सुधा ने देखा ,उसे वो उसके हाव -भाव और पहनावे से तो कोई नौकर लगा। सुधा से अपने को रोका नहीं गया और उसने पूछ ही लिया -भइया ,क्या तुम इस कमरे में रहने के लिए आये हो ?उस व्यक्ति ने सुधा की समस्या का समाधान करते हुए ,बताया- नहीं ,साहब तो सीधे दफ़्तर ही चले गए ,मैं तो सामान रखने और जरूरी सामान जुटाने आया हूँ। शाम को लगभग छह बजे वो व्यक्ति आया और सीधे अपने कमरे में चला गया और कमरा अंदर से बंद कर लिया। सुधा को अफ़सोस रहा कि वो उसे देख नहीं पाई। सुधा और उसके पति को प्रातः काल उठने की आदत थी ,साथ में छोटे -छोटे बच्चे भी थे। दोनों साथ ही उठते और बच्चों को नहलाना ,स्वयं तैयार होना ,कपड़े धोने में भी सुधा का सहयोग करना ये सभी काम वो अपने काम पर जाने से पहले सुधा की मदद करते ,उन दोनों की यही बातें देखकर मकान -मालिक उन्हें ''आदर्श जोड़ी '' कहते। चंदन भी देख रहे थे कि आठ बज़ गए ,वो व्यक्ति अभी तक कमरे से बाहर नहीं आया। शायद वो भी उससे मिलना चाहते थे। जब चंदनजी नहाकर बाहर निकले तभी उस व्यक्ति ने दरवाज़ा खोला। उसकी नज़र सीधे चंदन पर गयी, उसने नज़र मिलते ही चंदन को 'नमस्कार 'किया फिर उससे स्नानागार के लिए पूछने लगा। चंदन ने उसी तरफ इशारा किया, जिधर से वो निकला था उसने बताया- कि एक ही स्नानघर है। वो व्यक्ति नहाकर तैयार होकर नौ बजे तक अपने काम पर गया। चंदन ने सुधा को बताया -देखने में तो वो किसी भले घर का लग रहा है ,यदि वो इसी तरह रहने वाला है तो हमें कोई परेशानी नहीं होगी। चंदन तो अपना अनुमान लगाकर और सुझाव देकर चले गए। सुधा के लिए ,तो जैसे वो रहस्य बन गया ,उसके विषय में सोच रही थी- कि वो कहाँ खाना खायेगा ,क्या उसकी पत्नी नहीं है ?यही बातें जब उसने चंदन से कहीं, तो चंदन ने लापरवाही से कहा -कैसे भी अपना इंतजाम करे ,हमें क्या ?वो रोजाना ही ऐसे आता और सुबह को चला जाता दोनों पति -पत्नी थोड़े आश्वस्त हुए ,यदि ऐसे ही चलने वाला है तो कोई परेशानी नहीं।
रविवार को शायद वो अपने घर गया हो ,दोनों ने अंदाजा लगाया। दो सप्ताह बाद ,एक दिन वो दफ़्तर से बीच में ही आ गया। तभी सुधा की ननद ने पोंछा लगाया था ,उसे देखते ही सुधा के साथ ही उसकी ननद का भी मुँह बन गया कि अब ये सारे में गंदगी कर देगा ,पैर -पैर हो जायेंगे। अभी वो ये सब सोच ही रहीं थीं कि उस व्यक्ति ने अपने नौकर शंभू से एक कुर्सी लेन को कहा। शंभू दौड़कर मकान -मालिक के यहाँ से एक कुर्सी उठा लाया उस पर वो व्यक्ति बैठ गया और तब तक बैठा रहा जब तक कि पोंछा सूख नहीं गया। उसके इस बर्ताव से सुधा बहुत ही प्रभावित हुई और उसने चंदन के आते ही सबसे पहले ये बात उसे बताई। चंदन भी कुछ बातों को लेकर उससे प्रभावित था। चंदन ने सुधा से कहा --ये आते ही अपने कमरे में चला जाता है ,क्या इसे गर्मी नहीं लगती ? एक दिन चंदन ने उस व्यक्ति का दरवाजा खटखटाया ,उसने दरवाजा खोला, तो चंदन जी बोले - महाशय ! क्या आपको गर्मी नहीं लगती ?बाहर आँगन में भी बैठ सकते हैं। वो बोला -कभी आप लोगों को असुविधा हो ,आपका परिवार है। चंदन जी बोले -परिवार वाले तो आप भी होंगे ,ध्यान तो रखना ही पड़ता है लेकिन आप आँगन में लेट ,बैठ सकते हैं। वो थोड़ा आश्वस्त होकर, शर्माता सा बाहर बैठ गया चंदनजी ने भी अपनी कुर्सी उससे बातचीत के उद्देश्य से वहीं बिछा ली। उस व्यक्ति से बात करके चंदनजी ने सुधा को उसके विषय में बताया --इस व्यक्ति का नाम कपिल है ,इसके दो बच्चे हैं और इसने पास ही शहर में कोठी बना रखी है ,बच्चे वहीं रहते हैं। खाने -पीने का सारा इंतज़ाम शंभू ही देखता है। मेरी ही उम्र का है और जब उन्होंने बताया कि उसकी कोठी सदर में है तो एकाएक सुधा को जैसे कुछ याद आया और बोली -वहाँ तो हमारी रिश्तेदार भी हैं ,पता करने पर पाया कि दोनों कोठी बराबर में ही हैं ,उन्हें बड़ी ख़ुशी हुयी। इससे घनिष्ठता भी बढ़ी।
धीरे -धीरे सुधा उसकी एक -एक हरकत को ध्यान में रखती ,उसके व्यवहार से प्रभावित होती जा रही थी। देखो ,कितना सभ्य है ,कितने आराम से बातें करता है ,महिलाओं के लिए उसके मन में सम्मान है ,चेहरे पर जैसे नूर टपकता है। इसके हर व्यवहार से शालीनता झलकती है ,बड़े घरों वाला रूआब है, इसके चेहरे और हाव -भाव में। सुधा इसलिए ये सब बातें ध्यान देती क्योंकि किसी समय में उसके सपनों का राजकुमार लगभग ऐसा ही था। हालाँकि चंदन भी पढ़े -लिखे ,अपनी पत्नी का सहयोग करने वाले थे लेकिन बोलचाल में ,व्यवहार में, किसी औरत से किस तरह पेश आना है? उस मायने में वो अपनी पत्नी की नजरों में खरे नहीं उतरते थे। सुधा चंदन से प्यार करती थी ,उसके बच्चों की माँ थी लेकिन कई बार चंदन में मर्दों वाला अहं जग उठता ,पढ़े -लिखे होने के बावजूद भी ऐसा व्यवहार करते जो सुधा को कतई पसंद नहीं था।
कई बार सुधा ने टोका भी था कि अपने व्यवहार में सुधार लाओ लेकिन चंदन के लिए किसी औरत का कहना मानना, तो उसका गुलाम होना था ,कभी उसकी बातों को महत्व ही नहीं दिया ,न ही उसे समझने का प्रयत्न किया कि वो क्या चाहती है ,क्या सोचती है ?चंदन एक लापरवाह ,फक्क़ड व्यक्ति थे। उधर सुधा कपिल की तरफ खींच रही थी या उसके व्यवहार से प्रभावित थी वो स्वयं ही नहीं समझ पा रही थी लेकिन कपिल की आदतों ने उसके सोये सपने जैसे जगा दिए थे।
कई बार सुधा ने टोका भी था कि अपने व्यवहार में सुधार लाओ लेकिन चंदन के लिए किसी औरत का कहना मानना, तो उसका गुलाम होना था ,कभी उसकी बातों को महत्व ही नहीं दिया ,न ही उसे समझने का प्रयत्न किया कि वो क्या चाहती है ,क्या सोचती है ?चंदन एक लापरवाह ,फक्क़ड व्यक्ति थे। उधर सुधा कपिल की तरफ खींच रही थी या उसके व्यवहार से प्रभावित थी वो स्वयं ही नहीं समझ पा रही थी लेकिन कपिल की आदतों ने उसके सोये सपने जैसे जगा दिए थे।
वो अक्सर अपनी ननद से कहती -दीदी देखा ,कभी गाली -गलौच नहीं सुनी, उसके मुख से ,अपनी पत्नी का भी कितना सम्मान करता है हालाँकि वो इतनी सुंदर भी नहीं लेकिन उसे सुंदर बनाया, उसके पति के व्यवहार ने। एक दिन तो सुधा और चंदन में झगड़ा भी हो गया ,सुधा चंदन से भी उसकी बातें बताती ,कुछ दिन तो चंदन ने सुनी- फिर एक दिन वो झल्ला उठा और बोला - देख रहा हूँ ,आजकल तुम्हारा घ्यान इसी पर लगा रहता है। दोनों में झगड़ा हुआ खाना भी नहीं खाया। अगले दिन सुधा अपनी ननद से बोली -मैं तो यही चाहती थी कि तुम्हारे भाई का व्यवहार भी उसे देखकर बदले। इसी तरह तीन -चार वर्ष बीते ,एक दिन कपिल कुछ फोटो खींचे उसमें उसके और चंदन के परिवार के फोटो थे ,वो शहर गया और फोटो धुलवाकर ले आया कुछ फोटो उसने उन्हें भी दिए। यादगार के लिए क्योंकि एक साल बाद उसकी बदली हो गयी। कई बार जीवन में कोई न कोई व्यक्ति ऐसा आ ही जाता है ,जो हमारी सोच के अनुकूल हो। न चाहते हुए भी,, हम उसके विषय में सोचने लगते हैं ,समाज का भय ,परिवार के लोग ,न चाहते हुए भी ,उस स्वतंत्र सोच पर अंकुश लगाए रहते हैं ,अंकुश न हो तो ऐसी स्थिति दोेराहे पर लाकर खड़ा कर देती है।
जीवन में शायद ही कोई पति -पत्नी ऐसे होंगे, जिनकी सोच अथवा व्यवहार एक -दूसरे से मिलता होगा। दोनों में ही कुछ खूबियां होती हैं तो कुछ कमियां भी ,तभी तो एक -दूसरे को मिलाकर ही पूरक हो पाते हैं। अब भाभी के किस्से भी कम हो गए ,सब कुछ सही चल रहा था ,कभी -कभी दोनों कपिल के शहर वाले घर में मिल भी आते। बच्चे भी बड़े हो रहे थे ,एक दिन भाभी की बेटी से कपिल की फोटो फ़ट गयी ,उसे देख भाभी को बहुत गुस्सा आया ,बेटी ने कहा भी कि गलती से हो गया और फिर भाभी को इतना गुस्सा आया कि उन्होंने अपने परिवार के भी सारे फोटो फाड़ दिए। बोली -ये नहीं तो और भी नहीं। मैं चुपचाप ये सब देख रही थी और सोच रही थी- कि कहीं न कहीं ,कुछ न कुछ तो उसके प्रति भावनायें थीं जो उन्हें इतना गुस्सा दिला गयीं।
जीवन में शायद ही कोई पति -पत्नी ऐसे होंगे, जिनकी सोच अथवा व्यवहार एक -दूसरे से मिलता होगा। दोनों में ही कुछ खूबियां होती हैं तो कुछ कमियां भी ,तभी तो एक -दूसरे को मिलाकर ही पूरक हो पाते हैं। अब भाभी के किस्से भी कम हो गए ,सब कुछ सही चल रहा था ,कभी -कभी दोनों कपिल के शहर वाले घर में मिल भी आते। बच्चे भी बड़े हो रहे थे ,एक दिन भाभी की बेटी से कपिल की फोटो फ़ट गयी ,उसे देख भाभी को बहुत गुस्सा आया ,बेटी ने कहा भी कि गलती से हो गया और फिर भाभी को इतना गुस्सा आया कि उन्होंने अपने परिवार के भी सारे फोटो फाड़ दिए। बोली -ये नहीं तो और भी नहीं। मैं चुपचाप ये सब देख रही थी और सोच रही थी- कि कहीं न कहीं ,कुछ न कुछ तो उसके प्रति भावनायें थीं जो उन्हें इतना गुस्सा दिला गयीं।



