pahachan[part1]

वो गुड़ी -मुड़ी  सी  बनी ,दुल्हन के जोड़े में लिपटी गाड़ी से उतरी। मोेहल्ले की, गांव की ,छोटी -छोटी लड़कियाँ उसे देखने के लिए दौड़ पड़ीं। गांव की व घर की महिलायें बहु के आगमन की तैयारी में लग गयीं ,वो अपने रीति -रिवाज़ के हिसाब से नई बहु के आगमन की तैयारी करने में जुटी थीं , कोई इधर ,कोई उधर ,जिसे देखो ,काम में लगा था जब बहु आकर खड़ी हो गयी तो तभी भागीं ,बोलीं -बहु को अभी वहीं बिठाकर रखो ,थोड़ा समय लगेगा। घर की महिलाओं की तैयारी न देख ताऊजी क्रोधित हो रहे थे। वे कह रहे थे ,क्या ये सब तैयारी पहले नहीं हो सकती थीं? वो इतनी देर से गाड़ी में बैठी थी किन्तु उसे फिर से गाड़ी में बिठा दिया गया। उसे गांव की छोटी -छोटी लड़कियाँ घेरे खड़ी थीं। उनके लिए नई बहु और गाड़ी दोनों ही आकर्षण का केंद्र थे। क्योंकि ये ही ऐसी बहु थी जो पहली बार गाड़ी में विदा होकर इस गांव में आई थी

,आख़िर चौधरियों की बहु है। दूल्हा थोड़ी देर तक तो उसके पास बैठा रहा फिर दोस्तों के पास चला गया। अब तो विवाह हो गया ,बहु कहीं भागे थोड़े ही जा रही है। लड़के भी अपने घर में लड़की के आते ही बेफ़िक्रे हो जाते हैं। दुल्हन गाड़ी में बैठी अपनी बारीक़ चुनरी के घूंघट की आड़ से आते -जाते लोगों को देख रही थी ,पता नहीं कितनी देर और लगेगी ?तभी कुछ औरतें गीत गाती हुई ,बहु को लिवाने आती दिखाई दीं। उन्हें देख उसने चैन की साँस ली। वो फिर से उतरने का प्रयास करने लगी ,तभी कुछ बड़ी लड़कियों ने आकर उसे थामा और गाड़ी के अंदर झाँका।  
           लड़के को गाड़ी में न देख बहु से पूछा -तो उसने न में गर्दन हिलाई ,तब लड़के की ढूँढेर मची। थोड़ी देर के बाद एक छोटे बच्चे ने बताया कि वो तो घेर [मर्दों के रहने सोने की जगह ]में हैं ,वहीं से उस बच्चे को ही ,दूल्हे को बुलाने के लिए दौड़ा दिया गया। उसके आने के पश्चात तब दोनों ने घर के अंदर कदम रखा। घर बहुत बड़ा था। धीरे -धीरे उसे पता चला कि घर में रहने वाले लोग भी ज्यादा हैं। उसे उसके लिए बनाई जगह पर ले जाकर बिठा दिया गया।' देवता पूजन' के बाद' कंगना खेलने' की रस्म हुयी , वो अपने को काफी थका महसूस कर रही थी लेकिन संटी की रस्म में उसे बड़ा आनंद आया। उसके बाद वो अपने कमरे में पहुंचा दी गयी। वो थकी थी ,उसने अपनी चुनरी उतारी और पास ही पड़ी खाट [चारपाई ]पर लेट गयी और लेटते ही उसे नींद आ गयी। वैसे तो दहेज में उसके मायके वालों ने अपनी बेटी को बहुत कुछ दिया है। पलंग भी दिया है लेकिन वो सारा सामान अभी घेर में ही है लेकिन वहाँ से उसका लाया बड़ा सा रेडियो घर आ गया है और उसे ऊंचाई पर रख कर तेज आवाज में चला दिया है। घर में आते-जाते लोग 'ऑल इण्डिया रेडियो 'पर चल रहे गानों का आनंद ले रहे हैं। उसे देख कह रहे थे -बहु लाई है ,पता नहीं चल पा  रहा था कि वो पूछ रहे हैं या बता रहे हैं। 

            बहु की आँख तब खुली ,जब उसकी ननद उसे पुकारती हुई , हिला रही थी -भाभी !भाभी !उठो चाय पी लो ,कपड़े बदल लो। वो अलसाई सी उठी ,उस बंद कमरे में उसे पता भी नहीं चल पा  रहा था कि कितना समय हो गया ?उसने अपनी ननद से समय  पूछा ?तो उसने बताया -भाभी शाम हो गयी है तैयार हो जाओ शाम को औरतें आनी  आरम्भ हो जाएँगी ,कुछ गाने भजन भी याद हैं ,उसने पूछा। नई बहु का नाच -गाना देखने आयेंगी ,जानकारी देकर चली गयी। किन्तु ये बात तो उसे पहले से ही पता थी क्योंकि मायके में पहले ही इस रस्म की तैयारी करवा दी थी। गाने -बजाने की रस्म के बाद जब सब सो गए ,तब धीरे से एक साया उसकी कोठरी की तरफ बढ़ा। वो साया कोई और नहीं उसका पति सुधीर था। उसके आने से उसे प्रसन्नता तो हुयी लेकिन परेशानी भी दोनों देर तक बैठे बात करते रहे ,फिर मुँह अँधेरे उठकर , चुपचाप जाकर घेर में मर्दों के बीच जाकर सो गया। अगले दिन उसने अपनी ननद से कहा -क्या कोई बड़ी खाट नहीं या मेरा पलंग ही मंगा दो ,वो काफी बड़ा है। ननद ने उसकी बात सुनी और बिना कुछ बोले चली गयी। जब वो अपने  कमरे से बाहर निकली तो उसे उसकी सास अजीब नजरों से देख रही थी किन्तु कहा कुछ नहीं। इसके बाद उसने भी किसी से कुछ नहीं कहा ,किसी को ठीक से जानती भी नहीं थी। सुधीर भी एक -दो बार और आये ,अभी तो दोनों एक -दूसरे को समझने का प्रयास कर रहे थे। एक सप्ताह बाद वो अपने मायके चली गयी। उसका गौना एक वर्ष बाद के लिए तय हुआ।अपने  घर  आने पर उसे ये सब एक सपना सा लगता ,अभी न किसी को जाना- पहचाना और वर्ष भर दूरी हो गयी। वहाँ की कुछ यादें उसके चेहरे पर मुस्कान ला देतीं। एक -दो बार सहेलियों ने भी छेड़छाड़ की, जीजाजी कैसे हैं ?वो हँसकर रह जाती। एक वर्ष कम नहीं होता ,अब तो उसकी यादें भी सपनों की तरह धुंधलाने लगीं।कभी -कभी  उसे लगता कि उसका विवाह हुआ भी है या गुड्डे -गुड़ियों के खेल की तरह ही हो गया। किसी से न ही कह सकती थी न ही कुछ पूछ सकती थी , आख़िर वो घड़ी आ ही गयी जिसका उसने वर्ष भर इंतजार किया। माता -पिता तैयारियों में जुट गए अबकी बार अपनी लाड़ली को और भी ज्यादा सामान देकर विदा किया।

 
           ससुराल आकर उसे पता चला कि तीन माह पश्चात उसकी ननद का विवाह तय हुआ है ,इसी कारण से बहु को भी घर में होना चाहिए, यही सोचकर गौना कराया गया। कुछ दिन तक तो उसकी आवभगत होती रही, शादी वाला घर था, काम भी ज्यादा ,अब उसे भी काम बताया जाने लगा। अब उसने  गृहस्थी सम्भालनी शुरू की  तो उसने पाया कि उसके घर से जो दहेज़ का सामान आया था ,वो अभी तक ऐसे ही बंद रखा है उसे खोला ही नहीं गया ,ऐसे ही बंद सामान को उसकी ननद के विवाह में दहेज़ के रूप में देने  के लिए  तैयार हो रहा है। ननद ने एक -एक सामान बांधकर रख लिया। तब उसने सुधीर से कहा --तुम लोग मेरा सामान क्यों दे रहे हो ?तो सुधीर ने कहा -यहाँ ऐसा ही होता है ,बड़ी भाभी का सारा सामान बड़ी बहन के विवाह में गया ,तुम्हारा छोटी के विवाह में जा रहा है। ये बात शीला को अच्छी नहीं लगी ,वो सोच रही थी कि माँ कैसे उसके छुटपन से ही एक -एक सामान जोड़कर रख रही थी? कि मेरी बेटी का है और यहाँ आते ही बरतना तो दूर ठीक से देखा भी नहीं। फिर मन ही मन बुदबुदाई -ये अच्छा है ,स्वयं से विवाह का इंतजाम नहीं हुआ तो लड़के का विवाह कर दो, बहु का  दहेज देकर अच्छे बन जाओ। सुधीर ने उसे बुदबुदाते हुए सुन लिया बोला --करना भी क्या है ?इस सामान का ,जरूरत का सभी सामान तो है। वो बोली -एक खाट तो ढंग की नहीं है ,मेरे सामान में कई चीजें तो ऐसी हैं जो तुमने देखी भी न हों। ये बात सुधीर को चुभी, बोला -हम तो गंवार हैं ,हम क्या जाने रहना -सहना? शीला ने भी महसूस किया कि वो कुछ ज्यादा बोल गयी ,फिर ख़ुशामद सी  करते हुए  बोली -देखो न ,ये खाट छोटी है ,मेरा पलंग ही मंगा दो न, मेरे घर की एक निशानी तो मेरे पास रहेगी। सुधीर बोला -कोई छोटी -मोटी वस्तु होती तो मैं ले भी आता लेकिन पलंग तो लाना संभव नहीं ,इतना बड़ा है ,सबकी नजरों में आ जायेगा ,सबको जवाब देना मुश्किल हो जायेगा कि पलंग कहाँ ले जा रहा है ?उसकी बातें सुनकर शीला की आँखें डबडबा गयीं। वो अपने को बेबस महसूस कर रही थी ,वो अपने सामान से भावनात्मक रूप से जुडी थी ,जब माँ उसके लिए सामान रखती थी तो वो ज्यादा ध्यान नहीं देती थी लेकिन उसके मन में तो था कि माँ मेरे लिए करती है ,सोचती है ,उसकी आँखों के सामने एक -एक चीज घूम रही थी। तभी उसे ध्यान आया कि भइया भी तो उसके लिए एक  छोटी सी ,बहुत सुंदर'' शृंगार दान  ''लाये थे ,जिसने भी देखी थी बहुत अच्छी बताई थी ,फिर उसने विवशता से ,आख़िरी प्रयत्न किया ,बोली -मेरे भाई की निशानी है ,मेरा भाई अपनी बहन के लिए आगरा से  'शृंगार दान '  लाया था ,यहाँ आस -पास भी नहीं मिलेगी और वो छोटी भी है ,कम से कम उसे ही लाकर दे दो। सुधीर ने उसकी इतनी इच्छा देखी तो बोला -वो मैं लाकर दे सकता हूँ ,कल रात को मैं चुपचाप लेकर आ जाऊँगा ,बाक़ी तुम संभाल लेना ,किसी को भी पता न चले। अगले दिन सुधीर चुपचाप उसका वो'' शृंगार दान ''ले आया। दोनों ने उसे खोलकर देखा तो बहुत ही अच्छा लग रहा था। शीला उसे देख बहुत खुश हुयी ,उसे खुश देखकर सुधीर को भी ख़ुशी मिली। मन ही मन सोच रहा था काश !मैं तुम्हारा सारा सामान लेकर तुम्हें दे देता लेकिन बड़े -बूढ़ों के सामने हमारी कहाँ चलेगी ?तुरंत ही उसे अपनी बहन का ख़्याल आया ,सोचा -किसी गैर के थोड़े ही जा रहा है ,जिसके जा रहा है वो भी तो अपनी ही बहन है। मैं भी अपनी बहन को ऐसी ही कोई अच्छी सी चीज लाकर दे पाता , सोचकर  उसकी आँखें भर आईं। तभी शीला की आवाज से उसका ध्यान टूटा ,वो कह रही थी -देखो जी ,मैंने उसे बड़े बक्से में रख दिया फिर थोड़ी परेशान होती हुयी बोली -कैसे दिन आ गए ?अपना ही सामान चोरों की तरह लेना और छुपाना पड़ रहा है। क्या माँ ने ऐसे दिनों के लिए ये सब जोड़ा था कि नजरभर देख भी ना पाऊँगी। फिर अपने ही मन को समझाते हुए बोली -भाभी भी तो रह रही हैं ,मैं भी रह लूँगी।ननद का विवाह बड़ी धूमधाम से हुआ और वो अपने घर चली गयी। धीरे -धीरे रिश्तेदार भी अपने -अपने घर की तरफ रुख करने लगे। जो नौकरी वाले थे वो अपनी नौकरियों पर चले गए।उसे मिलाकर वे चार देवरानी -जेठानी थीं ,दो तो बाहर अपने पतियों के साथ नौकरी पर चली गयीं, उसकी भी इच्छा थी कि वो भी गाँव से  बाहर निकले लेकिन जाये भी तो कैसे ,किसके साथ ?आदमी तो नौकरी करता ही नहीं ,कम पढ़ा -लिखा जो है। माता -पिता ने पढ़ाने पर ज़ोर ही नहीं दिया

,कहते --सभी पढ़ -लिख जायेंगे तो खेती कौन संभालेगा ?वो स्वयं ही कितनी पढ़ी है?' अंगूठा टेक ' तभी तो गांव में किसान से विवाह हुआ। धीरे -धीरे वो गृहस्थ जीवन की गहराई में उतरने लगी ,जिंदगी को समझने का प्रयत्न करने लगी। अबकि  बार उसने अपनी जिंदगी का कठोर कदम उठाया ,उसके दो बच्चे हो गए तो उसने आगे बच्चे बनाने से इंकार कर दिया ,अब तक उसने महसूस किया कि माता -पिता कई -कई बच्चे बना देते हैं न ही उन बच्चों की ठीक से परवरिश हो पाती है और न ही उनकी शिक्षा पर ध्यान दिया जाता है और जमीन भी छोटे -छोटे टुकड़ों में बंटती जा रही है। यही बात उसने सुधीर को समझानी चाही लेकिन सुधीर ने उसकी बात को नजरअंदाज कर दिया और वो फिर से गर्भवती हो गयी। इस बात का पता चलते ही उसने गांव की दाई से ही अपना ' गर्भपात 'करवा लिया। उसकी सास और सुधीर को बहुत ही गुस्सा आया,दोनों में कुछ दिन के लिए झगड़ा भी रहा लेकिन वो अपनी बात पर अटल रही। वो बोली -भले ही मैं अनपढ़ हूँ लेकिन सोचने -समझने की क्षमता है मुझमें ,सही -गलत का ज्ञान भी है ,हम इन दोनों को ही ठीक से पालेंगे और पढ़ायेंगे। अब सुधीर ने  भी उसकी बातों को समझा लेकिन जीवन इतना आसान नहीं ,एक दिन सुधीर खेतों पर गया वहीं किसी ज़हरीले साँप ने उसे काट लिया। बहुत भाग -दौड़ के बाद भी उसे बचाया नहीं जा सका। सुधीर के जाने के बाद महीनों वह  उठ न सकी। क्रमशः   






















 
laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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