karva chauth

आज तो सुनीता सामान लेने बाज़ार गयी है , साड़ी और शृंगार का सामान लेने, रेनू बोली। लेकिन अभी तो उसके पीहर से भी सामान आया है दीपा ने बताया। किन्तु जो मज़ा पति की जेब ढ़ीली करवाने में है वो और कहाँ ?आख़िर  उसके नाम का  व्रत रख रही है ,उससे भी तो कुछ ख़र्चा करवाना चाहिए ,उसकी भी  ज़िम्मेदारी बनती है। मेरे विचार से तो उसका आज तगड़ा हाथ मारने का इरादा है ,रेनू ने बताया। आपको कैसे मालूम ?दीपाजी बोलीं। रेनू बोली -जब सुनीता राहुल के साथ  जा रही थी, तभी मेरी मुलाकात उससे हुई  मैंने पूछा भी कि जोड़ी कहाँ जा थी है ?तभी उसने बताया ,शायद कुछ सेट लेने की बात कर रही थी। क्या आपसे कहकर नहीं गयी ?रेनू ने पूछा। दीपाजी बोलीं -कहकर तो गयी है लेकिन ये नहीं बताया कि क्या लेने जा रही है ?मैंने भी ज्यादा ध्यान नहीं दिया कि बहु है ,अपने पति के साथ जा रही है तो कोई जरूरत का सामान लेने ही जा रही होगी। दीपाजी समझ नहीं पा  रहीं थीं कि रेनू जी बहु की चुगली कर रहीं हैं या मज़ाक बना रही हैं या ये पता करने आई हैं कि उनको पता है बहु कहाँ गयी है ?मुझे नहीं। फिर दीपाजी बोलीं -हार  क्यों लेने गयी है ?उसके पति की इतनी आमदनी कहाँ है ?अभी  उनके विवाह को दो ही वर्ष तो हुए हैं। विवाह में भी काफी खर्चा हो गया ,उसके बाद एक साल तक सिंधारे ,कोथली की रस्मों में एक वर्ष तक साड़ियां ,शृंगार का सामान इधर से गया और अब मायके की तरफ से आएगा। 

            विवाह के बाद त्योहारों में तो उपहार मिलते ही रहते हैं ,विवाह में भी इतने वस्त्र बन जाते हैं कि कुछ वस्त्र तो ऐसे हैं  उनका  नंबर ही नहीं आता। अभी तो कुछ साड़ियां ऐसी भी होंगी  जिनकी उसने अभी तह भी न खोली होगी और परसों ही उसके मायके से कई साड़ियां और शृंगार का सामान भी आया है। ख़ैर !छोड़ो, इन बातों को जो भी लेने गयी होगी ,ले आएगी तब देख लेंगे। फिर दीपाजी अपने विषय में बताने लगीं ,हमने तो अपने विवाह के पांच -छः वर्षों तक कुछ नहीं खरीदा था क्योंकि विवाह में भी बहुत कुछ मिल जाता है ,उपहार भी मिलते ही हैं ,बस उन्हें ही संभालने में लगे रहे ,इतने वर्षों में डब्बू के पापा ने पैसा जोड़ा। ये नहीं कि वो अपनी तरफ से कुछ नहीं लाये ,फिर मुस्कुराकर बोलीं -लाये थे ,एक चॉकलेट और इन्होंने बड़े प्यार से दी थी। रेनू हँसते हुए बोली --तुम भी क्या ?अपने ज़माने की बातें लेकर बैठ गयीं। ये आजकल का ज़माना है ,आजकल के बच्चों की सोच भी  ऊँची होती है। दीपाजी बोलीं --होनी भी चाहिए ,किन्तु उस  हिसाब से जेब भी तो होनी चाहिए। पति के लिए ,उसकी सलामती के लिए व्रत रखना है ,उसकी ज़ेब नहीं काटनी है। उसके लिए व्रत रख रहे हो या उस पर एहसान कर रहे हो,ये तो अपनी श्रद्धा और भावनायें हैं जो साल में एक बार विशेष रूप से प्रकट होती  हैं  ,ये एक दिन पति -पत्नी के लिए इसीलिए बनाया गया होगा कि इतने  व्यस्ततम  जीवन में एक दिन तो वो अपनी भावनायें एक -दूसरे के लिए ही रखें। महिलायें अपने पति -के लिए विशेष रूप से तैयार हों। 
          फिर दीपाजी बोलीं -घर में सामान न हो तो जाना आवश्यक है लेकिन सामान होते हुए भी बाहर पैसे डालना ,ये सब मेरी समझ से तो  बाहर है। जिसके लिए तुम व्रत रख रहे हो उसमें उसकी ख़ुशी और मर्ज़ी भी तो होनी आवश्यक है। तभी रेनू बोली --अरे !आदमियों की तो पूछो मत। हमारे ये तो बिल्कुल' लूलू 'हैं। अपने आप से तो इन्हें कभी लगता नहीं कि ये पत्नियाँ हैं ,सारे दिन तुम्हारे घर में खटती रहती हैं इनका भी मन होता होगा कि  बाहर जायें या घूमें -फिरें या पत्नी को अपनी ही इच्छा से कुछ ला दें। पतियों का  तो कभी  बज़ट रहता ही नहीं ,हमारे इनके दिमाग़ में तो ये बातें कभी आएँगी ही नहीं। मैं तो स्वयं ही बाज़ार जाकर अपनी पसंद का सामान ले आती हूँ पर कभी -कभी इच्छा होती है कि ये भी कुछ अपनी पसंद का लाकर दें। अरे !याद आया -''पिछले साल जब मैं' किट्टी '' में थी तो कल्पना जी के पति ने कितना .... सुंदर हार दिया था ?उसे पहनकर बड़ी इतरा  रही थीं। दीपाजी बोलीं -उसके पति का व्यापार भी तो अच्छा चल रहा है। हाँ ,ये तो है रेनू जी ने समर्थन में गर्दन हिलाई। बड़े दार्शनिक अंदाज़ में दीपाजी बोलीं -अब तो तीज -त्यौहार तो अमीरों के ही रह गए हैं। हम क्या तो खर्च कर लें, क्या जोड़ लें ?ज्यादा खर्चा करते समय डर लगता है कि कहीं महीने के आख़िर में फाके न करने पड़ें। अब देखो दीपावली हर वर्ष आती है लेकिन सबको उपहार और मिठाई देना तो संभव नहीं। जैसे कुछ याद आया ,अरे रेनू जी !क्या बताऊँ ?कभी -कभी तो कुछ लोग भावनाओं या परम्पराओं का सम्मान न करके स्तर देखते हैं,कौन ,कैसा दे  रहा है ?कितना ख़र्च कर रहा है? हमारे पड़ोस में पिछले वर्ष ही अग्रवालजी का परिवार आया। तुम्हें तो पता ही है ,मैं तो हमेशा से ही मिठाई के साथ खील -बताशे भी बांटती हूँ।'' ये  मिठाई का व्यापार तो व्यापारियों में ही चलता है  मिठाई के डिब्बे देते हैं या फिर अपने साथ काम करने वालों को उपहार भी देते हैं'' लेकिन अब सबके घरों में भी डिब्बे पहुंचाने का भी चलन हो गया। 

         मैं तो खील -बताशों के साथ ही मिठाई देती हूँ ,असल में प्रसाद तो वो ही होता है -फ़ल ,मिठाई ,धान ,बताशे। मेरी बहु और बेटी उनके घर प्रसाद लेकर गयीं ,पहले तो देखकर खुश हुईं फिर ढकी थाली में प्रसाद देखकर बोलीं -इसकी क्या आवश्यकता थी ?अब उनसे कोई पूछे ?ये तो लक्ष्मीजी का प्रसाद वितरित किया जा रहा है। उनके यहाँ डिब्बों की ढेरी लगी थी उस पर उनका व्यवहार। ऐसा देखकर बच्चों का मन हारा हो जाता है ,वो ऐसा ख़र्च कर रहे हैं ,हम क्यों नहीं ?लोगों की मानसिकता कैसी हो गयी है ?जहाँ से एक के बदले दो की उम्मीद हो या किसी तरह के लाभ की उम्मीद हो तब भी मिठाई का आदान -प्रदान होता है। तभी सुनीता ने घर के अंदर प्रवेश किया। रेनू जी बोलीं -लो हम भी न ''करवा चौथ ''से ''दीपावली ''तक पहुंच गए ,अच्छा अब  चलती हूँ, देखूँ  ,कभी डिम्पी के पापा आ गए हों। सुनीता आई तो उसका चेहरा उतरा हुआ था। दीपाजी ने पूछा -क्या हुआ ?सुनीता मुँह बनाते हुए बोली -देखो न मम्मीजी ,इन्होने मुझे एक जोड़ी सलवार -कुर्ती दिलवाकर छुट्टी कर दी ,मुझे तो कोई सोने की चीज लेनी थी ,ये मुझे प्यार नहीं करते। मेरी सहेली के पति  ने उसे'' सोने का सेट'' दिलवाया है। ओह !तो ये बात है ,मन ही  मन दीपाजी ने सोचा। फिर बोलीं --तुम्हें पता है ,तुम्हारे ससुरजी ने आज तक मुझे एक सोने का छल्ला भी नहीं दिया। तभी गुस्से से सुनीता बोली -ऐसा ही आपका बेटा है ,अपने पापा पर ही गए हैं। दीपाजी ने बहु की बात बुरा नहीं माना ,बोलीं -ये बात तो तुमने सही कही ,अपने पापा पर ही गया है ,तभी तो तुमसे इतना प्यार करता है।  
           प्यार का क्या मतलब ?सूखा -सूखा ,दिखना भी तो चाहिए सुनीता ने सपाट सा जबाब दिया। दीपाजी बोलीं -दिखेगा ,समय तो दो उसे ,अब मन शांत करो।देखो ,कितना प्यारा सूट दिलवाया है ?इसे पहनकर अलग ही दिखोगी। ज्यादा क्रोध करोगी तो आँखों पर काले घेरे आ जायेंगे ,जो साड़ी तुम कल पहनने वाली हो वो भी नहीं जचेंगी। हमारे पापा तो कहते थे -''लाल तो गुदड़ो में भी दिख जाते हैं ,सुंदरता महंगे कपड़ों की मोह्ताज नहीं ,बस कपड़े अच्छे और सादगी पूर्ण होने चाहिए। ''सुनीता शांत थी। दीपाजी समझ नहीं पा  रहीं थीं कि ये कैसी शांति है ? अगले दिन सुनीता तैयार हुई ,बड़ी ही प्यारी लग रही थी ,मौहल्ले की दो -तीन महिलायें भी आ गयीं ,सबने मिलकर  'करवा चौथ 'की कहानी सुनी ,सबने उसकी प्रशंसा भी की तो वो थोड़ा प्रसन्न हुयी। सबके जाने के पश्चात वो मेरे पास आई ,बोली -मम्मी जी ,पापाजी ने आपको करवा चौथ ''के उपहार में क्या दिया ?या कुछ दिया ही नहीं। पहले तो दीपाजी चुप रहीं ,फिर अलमारी खोलकर एक लिफ़ाफा निकाला ,उसमें से सामान निकलकर पहनने लगीं। सुनीता ने देखा और बोली --क्या ये ,चमड़े के मौजे ,मुँह बनाकर बोली -ये कैसा उपहार हुआ ?दीपाजी बोलीं -अब सर्दियाँ शुरू होने वाली हैं लेकिन मेरे पैर तो अभी से ही ठंडे होने लगे ,तब उन्हें मेरी परेशानी दिखी तो  जरूरत के मुताबिक़ ये मौजे लाकर दिए। प्यार सिर्फ गहने ,चीज -जेवर से ही नहीं ज़रूरत के हिसाब से भी झलकता है ,दूसरे आदमी को हमारी परेशानी महसूस हो हो रही  है। इन छोटी -छोटी चीजों से भी प्यार की गर्माहट का एहसास होता है। मुस्कुराकर बोलीं -जैसे मुझे अब तुम्हारे पापा के लाये मोजों को पहनकर हो रहा है कहकर हँस पड़ीं।

 
          शाम को जब चाँद निकला तो दोनों सास -बहु ने चन्द्रमा को जल दिया और सबने मिलकर खाना खाया ,अभी आराम करने के लिए लेटे ही थे तभी सुनीता घबराती सी बाहर आई और बोली --मम्मीजी मेरी सहेली के पति को पुलिस पकड़कर ले गयी है। एकाएक दीपाजी उठकर बैठीं और बोलीं -क्यों ,क्या हुआ ?वो तो पता नहीं ,बस उसने इतना ही बताया ,रो रही थी ,क्या मैं और राहुल जायें ?सुनिता ने पूछा। हाँ जाओ !लेकिन सम्भल कर जाना और जल्दी ही आना दीपाजी ने कह तो दिया पर परेशान हो उठीं कि बच्चे इतनी दूर त्यौहार के दिनों में रात में घर से बाहर निकल रहे हैं ,लेकिन ऐसे समय में उसके पास जाना भी जरूरी है। राहुल ने अपनी मम्मी की परेशानी  को समझा ,बोला --आप परेशान न होना ,यहाँ से आधा घंटे का ही तो रास्ता है हम शीघ्र ही आ जायेंगे। दोनों पति -पत्नी चले गए ,वैसे तो उसका घर इसी शहर में है ,यह बात उन्होंने अपने पति को बताई तो बोले --मैं जानता हूँ ,लेकिन ये कहकर तुम अपने को सांत्वना दे रही हो। आ जायेंगे अब बच्चे नहीं रहे कहकर वो दीपाजी को अंदर ले आये। 
         लगभग तीन -चार घंटों के बाद दोनों घर आये और जो बातें बताई उसे सुनकर दोनों पति -पत्नी चौंक गए। उन्होंने बताया --उसके पति ने अपने दफ्तर में दावत की थी कुछ खास लोग थे उनमें एक लड़की भी शामिल थी , कुछ लोग  चले गए तो उसके पति ने उसके साथ जबरदस्ती करने का प्रयत्न किया। जिस कारण आहत होकर उस लड़की ने उसके खिलाफ़ सारी  जानकारी जनरक्षक [पुलिस ]को दे दी, जिस कारण से उसे पकड़कर ले गए। सुनीता को अपनी सहेली का दुःख हो रहा था, बोली -बेचारी मधु ,ने सारा दिन उसके लिए व्रत रखा ,खूब रो रही थी। तब दीपाजी बोलीं -देखो बहु !तुम्हारे कुछ सवालों का जबाब तो अब तुमको मिल ही गया होगा। जिंदगी इतनी बड़ी है ,न जाने क्या -क्या दिखा दे ,ऐसे'' सोने के सेट ''का क्या फायदा ?जिसमें विश्वसनीयता और ईमानदारी न हो, कहकर दीपाजी सोने के लिए अंदर चली गयीं। 




















laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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