maa ka bachpna

माँ में अब भी बचपना  है  ,
कभी -कभी माँ  बच्ची नज़र आती है। 
सब कहते हैं ,माँ हिम्मती ,साहसी ,
त्यागी ,ममता की मूरत नज़र आती है। 
मैं सोचता हूँ ,माँ में अब भी बचपना है। 
माँ ! अब  भी बच्ची नज़र आती है। 
कभी -कभी पिताजी से झगड़ती है ,
गुस्साती है। कभी -कभी माँ बच्ची नज़र आती है। 
मनाओ, तो  मान जाती  है,समझाओ तो समझ जाती है।
 गलतियों पर हमारी, रूठ जाती है। 
सारा दिन  काम में  लगी रहती है। 
पर ,हमारे लिए ही सोचती है। 
ख़ुशी के मौकों पर ,संग हमारे नाच उठती है। 
संग हमारे खिलखिलाती है। 
कभी -कभी माँ बच्ची नज़र आती है।

हमें सीखाने  के फेर में ,अपने को भूल जाती है। 
उसकी जिंदगी हमारे इर्द -गिर्द घूमती नज़र आती है। 
कभी -कभी बच्चों की तरह मुस्काती है। 
पिताजी से हमारे लिए लड़ जाती है। 
कभी -कभी माँ बच्ची नज़र आती है। 
कभी हम बाहर जाते हैं ,
तो आंचल  से ऑंसू छिपा जाती है। 
बहुत दिन बाद मिलने पर ,गले लिपटकर रो देती है। 
कभी हमारे भले के लिए कठोर बन जाती है। 
कभी -कभी माँ बच्ची नज़र आती है। 
कठोर सास बन, अधिकार जताती है। 
फिर बेबसी ले ,मासूम नज़र आती है। 
बच्चों संग बच्ची बन जाती है। 
अपने बड़ेपन का भी एहसास दिलाती है।
 अपनी की गलतियों पे मुस्काती है। 
 मन ही मन , पछताती है ,भीड़ से अलग नज़र आती है। 
कभी -कभी माँ बच्ची नज़र आती है।  
laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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