पराग ने धीरे -धीरे कदम बढ़ाये ,ताकि उसके आने की खबर किसी को न लगे। तभी उसने देखा ,गौरी तो बाहर घास पर ही मूढ़ी डाले बैठी थी ,उसके बाल खुले हैं उसने शायद अभी सिर धोया है और बाल सुखाने के लिया बैठी होगी। तभी पराग दूसरी तरफ से अंदर गया लेकिन कमला ने उसे आते हुए देख लिया था। उसने कमला को भी चुप रहने का इशारा किया ,वो चुपचाप अपना काम करती रही। पराग अंदर से एक कैंची ले आया। गौरी निश्चल बैठी रही ,धूप का पूरा आनंद ले रही थी ,उसकी आँखें बंद थीं। पराग ने धीरे -धीरे उसके पास जाकर उसके बालों पर कैंची चला दी और आकर अपने कमरे में लेट गया।थोड़ी ही देर में गौरी आ गयी ,अपने को शीशे में निहारा तो उसकी चीख़ निकल गयी उसके इतने लम्बे बाल कंधों तक झूल रहे थे। वो जाने के लिये मुड़ी ही थी कि उसकी नजर पलंग पर गयी , बोली -मैं जानती थी, ये हरकत तुम्हारी ही हो सकती है।मुँह बनाते हुए बोली -क्यों काटे मेरे बाल ? पराग मुस्कुराकर अनजान बनता हुआ बोला -मैंने तो नहीं काटे ,वैसे अच्छी लग रही हो, इन बालों में। गौरी ने कमला को आवाज़ लगाई -कमला ,कमला !तभी कमला चाय की ट्रे लेकर कमरे में दाखिल हुई। गौरी ने कमला से प्रश्न किया -क्या तुम जानती थीं ?कि साहब आये हैं ,मुझे बताया नहीं। कमला बोली -साहब ने ही मना किया था, तो मैं क्या करती ?गौरी बोली -साहब तो कभी -कभी आते हैं तब देखना कैसे बदला लेती हूँ तुमसे ?सुनकर कमला मुस्कुराने लगी। साहब ने बाहर जाने का इशारा किया।
कमला सोच रही थी -जब से ये कोठी साहब ने बनाई है तब से ही मैडम और उनके बच्चे यहाँ रह रहे हैं ,पहले तो सब साथ ही रहते थे लेकिन मैडम को किसी जगह का पानी ,उसने दिमाग पर जोर डाला ,वो क्या कहते हैं ?सुट नहीं किया ,कहीं त्वचा पे संक्रमण हो जाता ,एक जगह तो मैडम के बाल ही झड़ने लगे ,तब साहब ने यहाँ कोठी बनाई ,मैं भी तब से इन्हीं लोगों के पास हूँ। कहने को मेरा अपना तो कोई नहीं ,बस ये ही मेरा परिवार है।साहब को पैसा कमाना है, उनकी मजबूरी है ,परेशानी तो इन्हें भी होती होगी बिना बीवी बच्चों के कहाँ रहते होंगे ,क्या खाते होंगे ?अभी वो ये सब सोच ही रही थी कि बच्चों के विद्यालय की गाड़ी उसे दिखाई दी और वो बच्चों को लेने दरवाजे की तरफ बढ़ी। इसी तरह जिंदगी चली जा रही थी। मेहनत तो आदमी को करनी ही पड़ती है वो अपने सुख ,परिवार के सुख के लिए ,उनके सपनों को पूर्ण करने के लिए जीवनभर भागता -दौड़ता रहता है ,करे भी तो क्या ?मजबूरी है। सर्दियाँ चल रही हैं ,पराग अपने परिवार से दूर किसी अनजान शहर में अकेला रहता है ,उसे अपने बीवी बच्चों से प्यार है उन्हीं के लिए तो यहाँ है ,मजबूरी भी ,उसकी नौकरी ही ऐसी है। आज तो बहुत ही ठंड लग रही है ,बिस्तर में घुसे उसे आठ बज गए किन्तु जाना तो है ही। घर में तो कोई स्टोव ,या अँगीठी भी नहीं जिससे वो नहाने के लिए पानी गर्म कर सके। वैसे तो जरूरत भी नहीं उसने अपने मन को समझाया। बिस्तर में पड़े रहो तभी तक ठंड लगती है। एक बार ठंडे पानी से नहाये नहीं कि सर्दी छूमंतर।
उसने हिम्मत की और बिस्तर से उठा ,सोच रहा था -तैयार नहीं हुआ तो रामगोपाल आ जायेगा उसे क्या जबाब दूंगा ?चार दिन पहले ही तो उसे समय पर न आने कारण डाँटा था। यही बातें सोचता हुआ पराग स्नानागार में घुस गया। उसने पानी में हाथ डाला तो उसे फिर से सर्दी का एहसास होने लगा फिर भी हिम्मत करके वो नहाया ,बाहर निकला तो छाती में अज़ीब सा दर्द हुआ उसने जल्दी -जल्दी कपड़े पहने लेकिन दर्द बढ़ने लगा। वो लेट गया ,साँस लेने में परेशानी लगी। तभी किसी ने दरवाजा खटखटाया ,उससे उठा नहीं जा रहा था ,आवाज़ बढ़ने लगी लेकिन वो उठ नहीं पाया। बाहर रामगोपाल था उसे कुछ अनहोनी की शंका हुयी उसने दरवाज़े को तेज़ -तेज धक्के मारे जिस कारण दरवाजे की कुण्डी टूट गयी। वो अंदर आया ,जिस शंका से उसने दरवाजा तोडा था, वही हुआ। उसने दो -तीन बार आवाज लगाई -साहब !साहब !फिर उसने एक पड़ोसी को आवाज लगाई ,वो भी अंदर आया। अब रामगोपाल घबरा गया था ,पड़ोसी ने आकर किसी डॉक्टर की तरह पराग की नब्ज़ और साँस को देखा फिर उसने जबाब दिया कि इन्हें अस्पताल ले चलो ,वहाँ डॉक्टर ने अपना फैसला सुना दिया -इनके घरवालों को ख़बर कर दो। ये बात सब जगह फैल गयी ,दफ़्तर वालों ने एक गाड़ी करके उनके सामान के साथ उनके शव को विदा किया। जिसने भी सुना अचम्भित हुआ ,अभी उम्र ही क्या थी ?बच्चे भी छोटे हैं।
कैसे बहु ,ये पहाड़ सी जिंदगी गुजारेगी ,दो पैसे कमाने के लिए दोनो सालों से अकेले रह रहे थे। महीने दो महीने में आ जाते थे अब वो सहारा भी गया। समझ नहीं आता ,भगवान क्यों इतनी कठिन परिक्षा लेता है ?सारी क्रियाएँ होने के बाद ,पराग का छोटा भाई बोला -भाभी अभी बच्चे भी छोटे हैं ,आप सब अकेले कैसे संभालोगी ?चलो! हमारे साथ रहना ,मैं सब संभाल लूंगा। गौरी बोली -भइया ,ये मकान तो अपना ही है ,उन्होंने इतने प्यार से इसे बनवाया ,मैं इसे छोड़कर और कहाँ जाऊँगी ?बच्चों के विद्यालय की बस भी यहीं आती है ,जब वो दूसरे शहर में रहते थे तब भी तो मैं यहीं रहती थी ,मैं यहीं रहूँगी। भाभी का जबाब सुनकर वो थोड़ा तिलमिलाया और वहाँ से चला गया। एक दिन संजीव फिर से अपनी सहानुभूति लेकर आया ,बच्चों से प्यार ,अपनापन जताया फिर मौका देखकर बोला -भाभी ,आप इन कागजों पर अँगूठा लगा दो ,गौरी ने पूछा -कैसे कागज़ हैं ये ? संजीव बोला -भाई के दफ़्तर के कागज़ हैं कुछ औपचारिकताये होंगी ,आप बस इन पर अँगूठा लगा दीजिये। गौरी ने कागज़ हाथ में लिए पढ़ने का प्रयत्न करने लगी। संजीव बोला -आपकी समझ में नहीं आयेंगे ,आप बस अँगूठा लगा दीजिये ,तब तक गौरी नजर भर उन कागजों को देख चुकी थी, बोली -अँगूठा लगा दूँ ताकि ये कोठी तुम्हारे नाम हो जाये। सुनकर संजीव चौंक गया बोला -ये आप क्या कह रही हैं ?आप.... उसके वाक्य पूरा होने से पहले ही गौरी ने उसकी गलतफ़हमी दूर कर दी। हाँ ,मैं पढ़ सकती हूँ ,अनपढ़ थी ,हूँ नहीं। मुझे क्या करना है या मेरे बच्चों का क्या होगा ?तुम्हें फ़िक्र करने की आवश्यकता नहीं है ,समझे !अपनी दया की पोटली उठाओ और यहाँ से जाओ। संजीव को विदा कर पराग के फोटो के पास आकर रोने लगी ,बोली -क्या इसी दिन के लिए तुमने मुझे पढ़ाया था ,या इन्हीं दिनों के लिए तैयार कर रहे थे ?मैं न पढ़ती तो कम से कम तुम जिन्दा तो होते ,मेरी तरफ से बेफ़िक्र हो चलते बने। सोचा होगा ,मैंने तो अब इसे तैयार कर दिया सब संभाल लेगी। महिने दो महिने में एक उम्मीद तो रहती थी कि तुम आओगे ,इंतजार रहता था ,अब तो वो भी समाप्त हो गया। संजीव की आज की हरकतें सोचकर -हमारे हमदर्द ,इन्हें तो थोड़ा इंतजार भी नहीं हुआ ,आ गए कागज़ात लेकर, फिर रोने लगी।फिर थोड़ा संभलकर ,बोली -अच्छा हुआ ,तुमने पढ़ा दिया ,वरना मैं क्या करती ?वो सोचने लगी ,जब उसका विवाह सोलह बरस की उम्र में हुआ था ,वो पहली बार गॉँव से शहर आयी थी ,शहर देखकर उसकी आँखें फैल गयीं ,वहाँ की सुविधाएं देखकर वो आश्चर्यचकित थी। पराग देखने में तो गंभीर स्वभाव के लगते थे लेकिन असल में बहुत ही 'प्रेम प्रदर्शित ''करने वाले थे। जिस समय में वे मुझे बाहर घुमाने ले गए थे उस समय में ऐसी बातें सोचते हुए भी शर्म आती थी।
मैंने अपने जीवन में पहली बार ''लौहपथ गामिनी 'को देखा था। इतनी लम्बी -लम्बी पटरियां बिछी थी ये ही बताया था न तुमने ?और एक -दूसरे से मिले इतने सारे डिब्बे ,जब उसने सीटी बजाई तो मैं डर गयी ,तब तुम बहुत हँसे थे ,मैंने घबराते हुए तुमसे पूछा था -ये क्या है ?तब तुम्हें पहली बार एहसास हुआ कि मैं तो बाहरी किसी भी चीज से अनभिज्ञ थी तुम्हें भी ये जानकर बहुत ही आश्चर्य हुआ था कि मैं अनपढ़ हूँ। उसके बाद तुम मेरे अध्यापक बन गए। तब भी तुमने मुझे समझाया कि इसे रेल या ट्रेन कहते हैं। तुमने मुझे बहुत घुमाया ,कहते थे -''याद करने से ज्यादा देखकर चीजें याद रहतीं हैं। मुझे तो लग रहा था कि जैसे मैं स्वर्ग में आ गयी हूँ ,सब कुछ सपने जैसा ,उस पर इतना प्यार करने वाला ,और समझने वाला पति। पराग ने मुझे पढ़ाया लिखाया ,इस मामले में तुम एक सख्त अध्यापक थे ,कभी बिना याद किये सो जाती तो उठाकर बेेठा देते ,मेरे पीछे मेहनत से लगे रहे ,जब तक मैंने बाहरवीं की परिक्षा न दे दी। हर वो चीज दिखाई जिससे मैं अनजान थी। इस बीच हमारे दो बच्चे भी हो गए ,मेरे बगैर कहीं जाते तो वहाँ की कुछ न कुछ प्रसिद्ध वस्तु लेकर आते। हमारा प्यार ,विश्वास इतना दृढ़ हो गया था कभी अकेले भी रह जाती तो कभी असुरक्षा की भावना नहीं आई। पराग के कारण ही आज मैं किसी के भी सामने एक पढ़ी -लिखी
,जागरूक सशक्त महिला के रूप में खड़ी हो सकती हूँ। अब तुमने मुझे ये किस परिक्षा में डाल दिया ?जो सिखाया ,उसकी परिक्षा ले रहे हो ,वो तो जीते जी भी ले सकते थे। तभी कमला की आवाज से उसकी सोच टूटी -मैडम खाना खा लीजिये। नहीं ,मुझे भूख नहीं गौरी बोली। ये शब्द [मैडम ]भी पराग ने ही कमला को कहने के लिए कहा वरना वो तो मुझे बीबीजी बोलती थी लेकिन पराग को ये पसंद नहीं था। कमला फिर से बोली -साहब तो गए ,जब वो आपको देखेंगे तो कितने दुखी होंगे ?वो तो हर वक़्त आपको अच्छा देखना चाहते थे। अब आप अपने को सम्भालिये ,वो उठी नहाई। पराग के दफ़्तर से कुछ लोग आये थे। तब उनमें से एक ने पूछा -भाभीजी आप कितना पढ़ी हैं ?गौरी ने अपनी शिक्षा बताई। तब वो बोले -तो ठीक है आपको उनकी जगह नौकरी मिल सकती है। मुझे एक नई दिशा मिली और आज भी मैं उनके दफ़्तर में उनकी दी हुयी जिम्मेदारियां पूरी कर रही हूँ। मैं सोचती हूँ। काश ! सबको मेरे जैसा जीवन साथी मिले जिसने मेरी कमियों को दूर कर ,मुझे मेरे अस्तित्व की पहचान कराई। अपने पैरों पर खड़े होने लायक बनाया वरन आज मैं उनके बिना क्या कर पाती ?सोचकर ही सिहरन होती है।
,जागरूक सशक्त महिला के रूप में खड़ी हो सकती हूँ। अब तुमने मुझे ये किस परिक्षा में डाल दिया ?जो सिखाया ,उसकी परिक्षा ले रहे हो ,वो तो जीते जी भी ले सकते थे। तभी कमला की आवाज से उसकी सोच टूटी -मैडम खाना खा लीजिये। नहीं ,मुझे भूख नहीं गौरी बोली। ये शब्द [मैडम ]भी पराग ने ही कमला को कहने के लिए कहा वरना वो तो मुझे बीबीजी बोलती थी लेकिन पराग को ये पसंद नहीं था। कमला फिर से बोली -साहब तो गए ,जब वो आपको देखेंगे तो कितने दुखी होंगे ?वो तो हर वक़्त आपको अच्छा देखना चाहते थे। अब आप अपने को सम्भालिये ,वो उठी नहाई। पराग के दफ़्तर से कुछ लोग आये थे। तब उनमें से एक ने पूछा -भाभीजी आप कितना पढ़ी हैं ?गौरी ने अपनी शिक्षा बताई। तब वो बोले -तो ठीक है आपको उनकी जगह नौकरी मिल सकती है। मुझे एक नई दिशा मिली और आज भी मैं उनके दफ़्तर में उनकी दी हुयी जिम्मेदारियां पूरी कर रही हूँ। मैं सोचती हूँ। काश ! सबको मेरे जैसा जीवन साथी मिले जिसने मेरी कमियों को दूर कर ,मुझे मेरे अस्तित्व की पहचान कराई। अपने पैरों पर खड़े होने लायक बनाया वरन आज मैं उनके बिना क्या कर पाती ?सोचकर ही सिहरन होती है।


