निधि का विवाह धूमधाम से हुआ हालाँकि उसके पिता के पास इतना पैसा नहीं था उन्होंने कुछ सामान धीरे -धीरे जोड़ लिया था कुछ सामान पत्नी ने भी अपने तरीक़े से इकट्ठा किया था ,जब उसके विवाह की बात चली, तो जो उनके मध्यथ थे उन्होंने सामान की एक सूची तैयार करवाई और उन्होंने लड़के वालों को दिखलाई, जिसके आधार पर वो लोग निधि से अपने बेटे का विवाह करने के लिए तैयार हो गए। निधि ने विरोध करना चाहा लेकिन किया नहीं ,उसे पता था कि बिना दहेज़ कोई भी हमारी बिरादरी में विवाह करने को तैयार नहीं। पापा ने कितने लड़के देखे ?उन्हें लड़की की योग्यता या उसकी सुंदरता से कोई मतलब नहीं ,उन्हें तो पैसे से मतलब था कि शादी कैसी करेंगे ? उसके बाद लड़की देखी जाती, जितनी महँगी शादी उतनी ही जल्दी विवाह , फिर चाहे लड़की कैसी भी हो ?इसी कारण निधि ने भी विरोध नहीं किया
,आगे उम्र भी बढ़ती जा रही है फिर उसके छोटे बहन -भाई भी हैं ,माता -पिता एक चिंता से तो दूर हों। वो ख़ुशी -ख़ुशी अपने सामान के साथ अपनी ससुराल पहुँची। जब सामान सूची से मिलाया गया तो उसमें एक 'दीवान ' की कमी का पता चला ,तभी देवर आया बोला -भाभी हमारा दीवान कम है ,वो क्यों नहीं आया ?स्वयं निधि को भी इस बात की जानकारी नहीं थी ,जब वो' पग़ फेरे ''की रस्म के लिए गयी तो उसे बता दिया गया कि अभी दीवान नहीं आया है। वो घर आयी तो उसने इस बात का ज़िक्र किया। माता -पिता एक दूसरे का मुँह देखने लगे।
,आगे उम्र भी बढ़ती जा रही है फिर उसके छोटे बहन -भाई भी हैं ,माता -पिता एक चिंता से तो दूर हों। वो ख़ुशी -ख़ुशी अपने सामान के साथ अपनी ससुराल पहुँची। जब सामान सूची से मिलाया गया तो उसमें एक 'दीवान ' की कमी का पता चला ,तभी देवर आया बोला -भाभी हमारा दीवान कम है ,वो क्यों नहीं आया ?स्वयं निधि को भी इस बात की जानकारी नहीं थी ,जब वो' पग़ फेरे ''की रस्म के लिए गयी तो उसे बता दिया गया कि अभी दीवान नहीं आया है। वो घर आयी तो उसने इस बात का ज़िक्र किया। माता -पिता एक दूसरे का मुँह देखने लगे।
उन्होंने बताया- हमने सोचा एक दो वस्तु ऊपर -नीचे हो जाती है ,तुम्हारा ''डबल बेड ''तो है ही ,पैसे भी नहीं बचे थे इसीलिए सोचा 'दीवान 'नहीं देते हैं। वो वापस ससुराल आयी ,साथ में दीवान न देखकर उन्हें अच्छा नहीं लगा। उन्होंने कहा -भई ,दीवान कब आएगा ?उसकी जगह अभी खाली है तब उसके भाई ने एक महीने की मौहलत मांगी ,मन परेशानियों में घिर गया कि पैसा कहाँ से आये ?कई लोगों से उधार भी माँगा लेकिन कहीं से भी जुगाड़ नहीं हो पाया। एक दिन किसी ने बताया कि एक व्यक्ति है जो 'ब्याज़ 'पर रुपया उधार देता है ,एक उम्मीद जगी ,जब अग्रवाल जी पैसा लेने गए तो पता चला कि वो तो बिना कोई सामान गिरवी रखे ,उधार नहीं देता। उन पर ले देकर एक मकान ही था उसके कागज़ गिरवी रखकर वो पैसे लाये दीवान बनवाकर बेटी के घर भिजवाया गया। ऐसी परिस्थितियों से जूझने के कारण अग्रवाल जी ने मन ही मन निर्णय लिया कि अपने बेटे का विवाह बिना दहेज़ के करेंगे। बेटी के माता -पिता को कितना जूझना पड़ता है ?' अपनी पत्नी से बोले -''जाके पैर न फटे बिवाई ,वो क्या जाने पीड़ पराई। '' कुछ वर्षो पश्चात अग्रवाल जी का कर्जा भी चूक गया ,उनका बेटा पढ़ -लिखकर किसी गैर -सरकारी नौकरी में भी लग गया ,अब तो उसके रिश्ते भी आने लगे। अग्रवाल जी ने साफ़ -साफ़ शब्दों में कह दिया कि उन्हें दहेज़ बिल्कुल नहीं चाहिए ,बस लड़की सुंदर और सुशील होनी चाहिए ,पहले तो लोगों को लगा कि लड़के में जरूर कोई दोष होगा तभी बिन दहेज़ विवाह कर रहे हैं।
हमें यह जानकर दुःख हुआ कि लोग दहेज़ के प्रति इतने समर्पित हैं कि यदि कोई दहेज़ नहीं ले रहा तो इनके ख़ानदान या लड़के में अवश्य ही कोई कमी होगी और भी कई बातें लोगों ने सोच डालीं जो हम नहीं सोच पाये। बात सीधी सी थी कि हमने अपनी परेशानियों को देख ,दूसरे की परेशानी समझी। ख़ैर !हमारे लड़के के लिए भी एक रिश्ता आ ही गया ,उन्हें हमारी मंशा मालूम थी और वो तुरंत इस रिश्ते के लिए तैयार हो गए। हमने भी लड़की देखी ,सुंदर और पढ़ी -लिखी थी एक या दो -तीन बार मिल लेने से किसी के व्यवहार का थोड़े ही पता चलता है। हमने अपनी इच्छा के चलते अपने बेटे का विवाह उस लड़की से करवा दिया।सब कुछ अच्छा लग रहा था हम भी संतुष्ट थे कि बेटी के पिता पर हमने कोई बोझ नहीं डाला। किन्तु बहु तो न जाने कितने सुनहरे सपने लेकर आयी थी। धीरे -धीरे उसकी इच्छाएं बढ़ने लगीं ,उसने कहा -ये पलंग तो पुराना है ,नया लीजिये। ज़िंदगी की नई शुरुआत नई -नई चीजों से होनी चाहिए। क्या -क्या सोचा था? मैंने ऐसे रहूँगी ,वैसे रहूंगी। तुम्हारे यहाँ तो कुछ भी नहीं इससे ज्यादा तो मेरे घर में सुविधाएँ हैं ,तुम लोगों से महान बनने को किसने कहा था ?मेरे पिता के पास तो बहुत पैसा है ,मेरे लिए जोड़ भी रखा था। जब उन्हें लगा कि सस्ते में काम हो रहा है तो फिर कोई अपना पैसा क्यों खरचेगा ? अरे ,वो मेरे माता -पिता हैं ,मेरे लिए तो कर ही सकते थे।इस महानता से क्या मिला ?स्वयं तो परेशान हैं ही मुझे भी ऐसी ज़िंदगी जीने के लिए मज़बूर कर दिया। हमने उसे समझाते हुए कहा -बेटा सब सुविधाएँ होंगी ,बस थोड़ा समय लगेगा। तब तक क्या, मैं ये बेबसी की जिंदगी जियूँ, उसने तुनककर जबाब दिया। हमने भी कहा -जब तुम्हारी ऐसी इच्छाएं थीं तो उन्हें तुम्हारा विवाह यहाँ नहीं करना चाहिए था ,उन्होंने भी बिना दहेज़ विवाह का पूर्ण लाभ उठाया ,लड़की को एक ''ब्रीफकेस ''में भेज दिया। बहु भी बोली -मेरा जीवन नर्क बना दिया ,तु म लोगों ने दहेज़ न लेकर कोई महानता का काम नहीं किया मेरे माता -पिता जो भी देते मेरे लिए देते ,अब मैं अपने सामान का उपयोग कर सकती थी। इतनी ज़िंदगी गुज़र गयी पर समझ नहीं पाये ज़िंदगी हमसे क्या चाहती है ?
दूसरे बेटे के विवाह में कुछ रिश्ते, पहले रिश्ते को सुनकर आये कि बिन दहेज़ विवाह करते हैं ,अबकि बार उन्होंने न ही मना किया, न ही हाँ। वो कहावत तो सुनी ही होगी कि'' दूध का जला ,छाछ भी फूंक -फूँककर पीता है '' उन्होंने लड़की देखी ,उसकी इच्छायें जानी ,सब बातें हो गयीं तो लड़की वाले ने लेन -देन के विषय में हमारी इच्छा जाननी चाही। अबकि बार हमारी धर्मपत्नि ने बागडोर अपने हाथ में ली ,बोलीं -देखिये हमें कोई दहेज़ नहीं चाहिए ,न ही हमने बड़े बेटे के विवाह में लिया, न ही अब इच्छा है। आप जो भी देंगे अपनी बेटी को देंगे ,आपकी बेटी ही उपयोग में लायेगी। हमारे पास तो अपने लायक सब सामान है। बेटे की ससुराल से सास -ससुर के लिए एक साड़ी और कपड़े आ जाते हैं लेकिन बदनाम माता -पिता होते हैं कि दहेज़ माँग रहे हैं। गाड़ी देंगे ,तो आपकी बेटी घूमेगी हम इस बुढ़ापे में कहाँ घूमेंगे ?पलंग देंगे तो आपकी बेटी सोयेगी ,हमारे पास तो उसके लिए भी पलंग है किन्तु क्या मालूम वो उस पर सोना पसंद न करे। आपकी इच्छा है कि आपको अपनी बेटी को क्या देना है ?या फिर आप उससे कहें या पूछें कि हम जैसे भी हम रहते हैं ऐसे ही वो भी रह सकती है अथवा नहीं। कहकर वो लोग घर आ गए। वो सोच रहे थे जिंदगी भी क्या -क्या सिखाती है ,हर पल एक नई सीख़ दे जाती है। सबक सीखते -सीखते उम्र निकल जाती है ,करें भी तो क्या ?


