Sapana

आज हमारे घर एक छोटी बच्ची को लेकर एक महिला आयी, मधुरिमा समझ गयी कि वे लोग उसी को देखने आयीं हैं ,जब से वो यहाँ ब्याहकर आयी है तो धीरे -धीरे नई बहु को देखने, उससे मिलने मौहल्ले की कोई न कोई महिला आ ही जाती है। मम्मीजी तो बाहर गयी हुईं हैं ,मैंने उनसे कहा। मेरी बात सुनकर  वे बोलीं -कोई बात नहीं ,आज तुमसे ही मिल लेते हैं कहकर और हँसकर वो बराबर में पड़ी कुर्सी पर बैठ गयीं। अपनी बेटी को उन्होंने अपनी गोद में बिठा लिया। मैं अंदर उनके लिए पानी लेने गयी ,पानी का तो बहाना था असल में वो अपने को आईने में  देखने गयी थी अपने को ठीक -ठाक कर संतुष्ट होकर वो पानी के दो गिलासों के साथ बाहर आई। वे अपना परिचय देती हुयी बोलीं -अरे !पानी की कोई आवश्यकता नहीं ,हम तो तुम्हारे पड़ोस में ही रहते हैं ,ज्यादा दूर से नहीं आये गली में जो कोने वाला मकान है न ,वो ही हमारा है। मधुरिमा ने बस गर्दन हिला दी जैसे वो समझ गयी लेकिन जब से यहाँ आयी है तब से ऐसे ही घर में पड़ी

है। मौहल्ले वाली आती हैं ,अपने परिचय देकर इसी तरह ही अपना मकान बता जाती हैं ,वो बस मुस्कुराकर गर्दन हिला देती है। आज भी यही कर रही  है ,तभी उनकी बेटी बोली -मम्मी आंटी तो अच्छी हैं ,उसकी मम्मी ने हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा -अच्छी नहीं ,बोलो सुंदर हैं। उन्होंने मुझे समझाते हुए कहा- कि वो सुंदर को ही अच्छी कह रही है। फिर अपनी बेटी को किसी दार्शनिक की तरह समझाते हुए बोलीं -सुंदरता को हम बाहर से देख सकते हैं लेकिन अच्छाई तो व्यवहारिक होती है ,और तुम्हारी आंटी  अच्छी और सुंदर दोनों हैं ,इस बात से मुझे लगा कि मैं बुरा न मान जाऊँ इसीलिए उन्होंने वो लाइन जोड़ दी।
             मधुरिमा ने भी मुस्कुराते हुए उस बच्ची से  पूछा -अब आप बताइये ,आपका क्या नाम है ?उसने उत्तर दिया -सुप्रिया। मैंने तुरंत ही दूसरा सवाल दाग दिया -कौन सी कक्षा में पढ़ती हैं ?उसका जबाब था -दूसरी। मैं अधिकतर बच्चों से जल्दी घुल -मिल जाती थी ,पड़ोसन या आंटियों से क्या बात करनी है ,कुछ समझ नहीं आता था ,इस कारण मैं बचती थी। कोने वाली भाभी जी  ने ही बात शुरू की, बोलीं- मैंने सुना है कि तुम काफी पढ़ी हो। मैंने उत्तर दिया- मैंने साइंस से मास्टरी की है और अध्यापिका का कोर्स भी किया है। मैंने ये इसीलिए बोला था कि पहले जो भी आई थीं उन्हें नहीं पता था लेकिन वो स्वयं ही बोलीं -'बी.एड.' किया है ,ये बोलो न। हाँ....पर पहले जो आयीं थीं उन्होंने मेरी बात बीच में काटते हुए बोलीं -वे नहीं समझ पायीं लेकिन मैं समझ सकती हूँ। मैंने भी ''ग्रेजुएशन ''किया हुआ है। मेरी जल्दी शादी हो गयी और मैं आगे नहीं पढ़ पाई ,इनसे [अपने पति के लिए ]भी कहा था कि मेरी आगे पढ़ाई करवा दें किन्तु ये नहीं माने और बोले -'अब तुम पढ़ोगी या बच्चे ?अब बच्चों की शिक्षा पर ध्यान दो। '' मेरा बड़ा बेटा पाँचवीं में पढ़ता है ,बहुत ही होशियार है। मैं देख रही थी ,अपने बच्चों को लेकर उस माँ की आँखें जैसे चमकने लगीं।

उनकी आँखों में जैसे बहुत सपने थे। मैंने उनकी बेटी यानि सुप्रिया की तरफ देखते हुए कहा -आप बड़ी होकर क्या बनेंगी ?वो बच्ची कुछ कहती या समझती ,इससे पहले ही वो बोल उठीं -इसके लिए तो मैंने सोच लिया है कि इसे तो  मैं ''भारतीय प्रशासनिक सेवा ''में भेजूँगी। मैंने मुस्कुराते हुए कहा -अभी तो ये बहुत छोटी है ,पता नहीं  बड़ी होकर ये क्या बनना चाहेगी। वो पूरे विश्वास के साथ बोलीं -बच्चे को हम जैसा बनाना चाहेंगे ,वैसा ही बनता है ,ये हमारे ऊपर है 'बच्चे तो कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं, जैसा ढालोगे वैसा ही ढलेगा। उन्होंने पूरे विश्वास के साथ चाय और अपनी बात दोनों समाप्त की।मैं उनकी बात से सहमत नहीं थी लेकिन  मैं ज्यादा तर्क नहीं करना चाहती थी सो मैंने उनकी हाँ में हाँ  मिला दी। तभी मम्मीजी ने घर में प्रवेश किया। उन्हें देखकर वो बोलीं -आप अब आयीं हैं ,अब तो हम जाने ही वाले थे। मम्मी जी बोलीं -अब थोड़ी देर हमारे साथ भी बैठ लो, माँ -बेटी। वो फिर से बैठ गयीं, मैं किसी काम का बहाना लेकर  अंदर आ गयी। वो देर तक बातें करती रहीं। 
           लगभग एक घंटे बाद मम्मीजी अंदर आयीं और बोलीं -सुनयना को बड़ा घमंड है ,अपनी पढ़ाई पर।मैंने पूछा -कौन सुनयना ?मम्मीजी बोलीं -अरे ,वही जो तुम्हारे साथ बैठी थी। अच्छा, मैंने जैसे समझते हुए कहा।मम्मी जी ने अपनी बात जारी रखी ,बोलीं -  वो ,ये देखने आयी होगी कि क्या सचमुच ही इनकी बहु इतनी पढ़ी -लिखी है ?ये मौहल्ले में किसी से भी 'सीधे मुँह बात  भी नहीं करती ''अपने को बड़ा पढ़ा -लिखा मानती है। इसमें क्या घमंड करना ,शिक्षा तो विनम्रता देती है मधुरिमा बोली। अपनी लड़की को  अफ़सर बनाएगी ,सारे मोेहल्ले में कहती फिरती है। मधुरिमा ने  जबाब दिया -हाँ ,मुझसे भी कह रहीं थीं। मम्मी जी आश्चर्य से बोलीं -अच्छा ,लो इसने तो हमारी बहु को भी नहीं छोड़ा ,अरे ,मैं तो कहती हूँ ,उसे पहले कुछ बन तो जाने दे ,अभी दूसरी कक्षा में ही है ,पर'' ढिंढोरा पीटती फिर रही है। मैंने बात को बदलते हुए कहा -मम्मीजी, मेरी एक साड़ी में फॉल लगना  रह गया।  उनका ध्यान बदला बोलीं -कौन सी साड़ी है ,मुझे दिखाना। मैं अभी लेकर आती हूँ, कहकर मैं अंदर आ गयी। मेरे विवाह को तीन वर्ष हो गए ,कभी -कभार सुनयना जी से  रास्ते में मुलाक़ात हो जाती ,बस हम  दोनों एक दूसरे को देख मुस्कुरा देते। अब हमने किसी अन्य मौहल्ले में बड़ा घर ले लिया। हम भी अपनी घर -गृहस्थी में लग गए ,बच्चे भी अपने विद्यालय जाने लगे। एक दिन सुधीर आकर बताया कि- अब तो सुप्रिया बड़ी हो गयी है , उन्होंने उसे किसी  बड़े आदमी के साथ उसे  घूमते देखा। मैंने लापरवाही से कहा, होगा कोई उसका रिश्तेदार। एक दिन बाज़ार में सुनयना जी  मिलीं ,लेकिन उनके चेहरे पर कोई भाव नहीं थे। मैंने पूछा -अब बेटी की पढ़ाई कैसी चल रही है ?

उन्होंने कहा -ठीक चल रही  है किन्तु उनकी आँखों में  चमक नहीं थी। मैं उनसे बातें करने को  उत्सुक हो उठी, लेकिन मुझे लगा ,वो मुझसे बचना चाह रहीं हैं। मैंने कहा- सारा दिन बच्चों के काम में निकल जाता है पहले अपने विद्यालय जाते हैं फिर 'ट्यूशन ''सारा दिन उन्हीं के कामों में लगे रहते  हैं । उन्होंने कहा -इतना करने का बाद भी बच्चे सुनते नहीं ,कहना नहीं मानते। माता -पिता अपनी पूरी जिंदगी बच्चों की जिंदगी संवारने में लगा देते हैं और बच्चे अपनी ही मनमर्ज़ी करते हैं। अब तो शिक्षा का भी कोई  लाभ नहीं ,पहले बच्चों में  शिक्षित होने के बाद भी, उनमें संस्कार होते थे ,अपने बड़ों का कहना मानते थे। अब तो शिक्षा का दुरूपयोग हो रहा है। न ही आजकल के बच्चे कहना मानते हैं ,शिक्षित होने का भी कोई लाभ नहीं। ग़लत बातें जल्दी गृहण करते हैं ,माता -पिता की सुनते नहीं ,तर्क -कुतर्क करते हैं।मुझे लग रहा था , जैसे उनके अंदर काफी कड़वाहट भरी थी ,वो निकल रही थी। मधुरिमा ,उनसे  बात करते -करते किसी गली में ले आयी। ऐसे लग रहा था जैसे वो अंदर से बड़ी उलझन में हो। ये बात तो भाभी जी आप सही कह रही हैं ,कुछ तो इस फोन के कारण भी बिगड़ रहे हैं। सारा दिन पढ़ाई के बहाने फोन पर लगे रहते हैं ,अब तो पुस्तकें तो जैसे उठाकर रखी गयीं। बार -बार देखना पड़ता हैं कि पढ़ रहे हैं या खेल रहे हैं।'' कुछ भी ''खोलकर देख लें ,तो हम कब तक उनके पीछे लगे रहेंगे ?
           ये बात तो सही कही तुमने ,उन्होंने मेरा पूरा समर्थन किया जैसे मैंने उनके दिल की बात कह दी हो बोलीं -ये फोन ,फिल्में उनसे जुड़ी खबरें हमारे बच्चों को बिगाड़ रहे हैं। बच्चों को पता ही नहीं ,क्या ग़लत है ,क्या सही ?समझाओ तो समझते नहीं। माता -पिता का कैसे सम्मान करना है ,कैसे उनका मान बढ़ेगा ?उन्हें कुछ नहीं पता। इन खबरों से भी तो हमारे बच्चे बिगड़ ही रहे हैं। पढ़ाई -लिखाई तो एक तरफ ,उनसे  तो ठीक से ज़िंदगी के फ़ैसले भी नहीं लिए  जा रहे ,ये लोग स्वयं तो संस्कारहीन हैं ही, हमारे बच्चों पर भी बुरा प्रभाव डाल रहे हैं। क्या सीखेंगे हमारे बच्चे ?कोई बीस वर्ष बड़े से विवाह कर रहा है ,कोई छोटे से ,कोई दो विवाह कर रहा है, जिंदगी में उलझन आई नहीं कि तलाक हो जाता है ,कोई बिन विवाह साथ  रह रहा  है ,इन्होंने तो विवाह जैसी'' पवित्र  रस्म ''का ही  खिलवाड़ बना दिया। आज इसके साथ ,कल उसके। हमारे संस्कारों की  तो जैसे धज्जियाँ उडा  रखी हैं। ये ही नहीं ,कि हम बच्चों से भी कह सकें कि ये तो अभिनेता हैं अपना अभिनय कर रहे हैं। असल जिंदगी में भी ये ही हो रहा है ,एक दोस्त छोड़ा ,दूसरा छोड़ा। इन्होंने तो रिश्तों की पवित्रता क्या होती है ,उनका मान क्या होता है ?सब भुला दिया और हमारे बच्चों पर हमारे समझाने से ज्यादा इन लोगों का अधिक प्रभाव होता है। ज़िंदगी नर्क बनाकर रख दी है। जब हम समझाते हैं तो हमारे पुराने विचार बता कर उल्टा कुतर्क करते हैं। अब तुम ही बताओ ?क्या ये ही आधुनिकता है ,न ही अपने जीवन का पता, कहाँ जा रहे हैं ?न ही सुनते हैं। हमारे संस्कार, रीति -रिवाज़ ,रस्में इत्यादि का तो कोई मूल्य रह ही नहीं गया। मधुलिका उनकी बातों का मूल्यांकन कर रही थी कि वो किस बात से ख़फ़ा हैं ,कौन सी ऐसी बात है ?जो वो कहना चाहकर भी कह नहीं पा  रहीं हैं। चलते -चलते हम गली से बाहर आ गए और उन्होंने अपने घर के लिए रिक्शा कर लिया। मैं भी बाज़ार से काफ़ी दूर आ गयी थी ,मैं भी घर की तरफ चल दी। 

            मैं रास्ते में सोचती रही कि वो किस बात को लेकर परेशान हैं ?शाम को मैंने सुधीर के आने पर उन्हें सुनयना जी से हुयी मुलाक़ात बारे में बताया ,वो सुनकर चुप हो गए। इस बात को लगभग एक सप्ताह ही बीता था कि सुधीर ने मुझे आकर बताया कि सुनयना जी ने पंखे से लटककर आत्महत्या कर ली। मेरी आँखों के सामने उनका वो परेशान चेहरा घूम गया। क्या कारण रहा होगा? कि उन्हें ऐसा कदम उठाना पड़ा। मैं तो जा नहीं सकती थी क्योंकि उनकी मम्मी को पसंद नहीं था ऐसे भी कहीं जाना। सुधीर और भी कई लोग वहाँ गए जो भी उन्हेँ   जानते थे। मैं बेसब्री से उनके आने का इंतजार कर रही थी। सुधीर ने आकर जो बताया उसे सुनकर मेरे'' पैरों तले से ज़मीन'' निकलती नज़र आयी और उनकी बातों का मर्म भी। सुधीर ने बताया कि सुप्रिया ने भागकर  विवाह  कर लिया और वो भी चालीस -पैंतालीस  अधेड़ से ,वो भी कोई पैसे वाला भी नहीं। पता नहीं कैसे ,किस तरह उसने उस लड़की  पटाया जो अपनी दूनी उम्र के आदमी से भागकर विवाह कर लिया। क्या -क्या सपने देखे थे उन्होंने अपनी बेटी के लिए ,उन टूटते सपनों के कारण ,मान -मर्यादा के लिए ,उन्हें ऐसा क़दम उठाने पर मजबूर होना पड़ा। 



























laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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