इतने ग़म तो दे चुकी ,ए जिंदगी !
कितने ग़म ,और हैं बाक़ी।
जटिलताओं को झेलना ,सम्भलना ,
क्या यही ,जिंदगी हैं ?
ये अंतर्दवंद ,
क्या तू भी ,जिंदगी से जुड़ा है ?
तू न होता तो ये जिंदगी ,
शायद !इतनी हसीं न होती।
एक ख़ाली बर्तन सा ,
भावहीन ,शब्दहीन ,
हाड़ -मांस का मकां होता।
इसमें न ग़म होते ,न ख़ुशी होती।
तब शायद जिंदगी ,जिंदगी न होती।
संघर्ष ,सुख -दुःख यही तो जिंदगी है।
इक मकड़- जाल है, जिंदगी।
सुलझाते रहो ,उम्रभर ,
उतनी ही उलझती है जिंदगी।
इक पहेली है , जिंदगी ,
बूझो तो कैसी ?है जिंदगी।
मर -मरकर जीते हैं जिंदगी।
जीकर भी ,मरते है जिंदगी।
अपनों से पराई सी जिंदगी।
परायों को अपना बना दे, ये जिंदगी।
लहराती ,बलखाती ,लहरों सी जिंदगी।
रात के अंधेरों से लेकर ,उजाले सी जिंदगी
आओ ,मिलकर जी लें , जिंदगी
