paheli

 इतने ग़म तो दे चुकी ,ए जिंदगी !
 कितने ग़म ,और हैं बाक़ी। 
 जटिलताओं को झेलना ,सम्भलना ,
 क्या यही ,जिंदगी हैं ?
 कब तक ,सताता रहेगा ?

 ये अंतर्दवंद ,
 क्या तू भी ,जिंदगी से जुड़ा है ?
 तू न होता तो ये जिंदगी ,
 शायद  !इतनी हसीं न होती। 
 एक ख़ाली बर्तन सा ,
 भावहीन ,शब्दहीन ,
 हाड़ -मांस का मकां होता। 
 इसमें न ग़म होते ,न ख़ुशी होती। 
 तब शायद जिंदगी ,जिंदगी  न होती। 
 संघर्ष ,सुख -दुःख यही तो जिंदगी है। 
  इक मकड़- जाल है, जिंदगी। 
  सुलझाते रहो ,उम्रभर ,
  उतनी ही उलझती है जिंदगी। 
  इक पहेली है , जिंदगी ,
  बूझो तो कैसी ?है जिंदगी। 
 मर -मरकर जीते हैं जिंदगी। 
 जीकर भी ,मरते है जिंदगी। 
 अपनों  से  पराई सी जिंदगी। 
 परायों  को अपना बना दे, ये जिंदगी। 
 लहराती ,बलखाती ,लहरों सी जिंदगी।
 रात के अंधेरों से लेकर ,उजाले सी जिंदगी  
 आओ ,मिलकर जी लें , जिंदगी 
laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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