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पारस के लिए रिश्ता आया ,लड़की बहुत ही सुंदर थी ,देखते ही सबको पसंद आ गयी। जो रिश्ता लेकर आये थे ,उन्होंने बताया- लड़की दसवीं पास है। पारस  ने सोचा- कोई बात नहीं ,आगे हम पढ़ा देंगे ,वो बहुत ही महत्वाकांक्षी था ,आगे बढ़ना चाहता था। पत्नी भी इस महंगाई के जमाने में नौकरी करे वो ये ही चाहता था। अपनी सोच के आधार पर उसने अपने मष्तिष्क  में अपना  भविष्य  सोच लिया।न ही उसने उस लड़की से बात की ,न ही घर वालों ने उसे मिलवाया। वो तो अपने आप ही सुंदर और उज्ज्वल भविष्य के सपने सजाने लगा कि  दोनों मिलकर कमायेंगे और हमारे साथ -साथ  घर की उन्नति  भी होगी। इन्हीं छोटे -छोटे सपनों को देखते हुए उसने विवाह कर लिया। पत्नी बहुत ही सुंदर थी ,उसे अपनी क़िस्मत पर गर्व हुआ।

कुछ दिन बाद उसने सोचा -कि आगे की पढ़ाई के विषय में अब पत्नी से बात कर लेनी चाहिए। उसने रीवा से कहा -मैं तुम्हारा आगे पढ़ाई  के लिए दाख़िला करवा देता हूँ तुम अपने दसवीं के सारे कागज़ ,परिणामपत्र दिखा देना। सुनकर रीवा बोली -मैंने कोई दसवीं नहीं की ,मैं तो पांचवीं तक ही पढ़ी हूँ ,मुझे तो पांचवीं के बाद ही घर के कामों में लगा दिया। रीवा की बातें सुनकर जैसे उसके ऊपर'' बिजली गिर पड़ी'' हो। उसे अपने सपने बिखरते नज़र आये। कितना बड़ा धोखा किया इन लोगों ने पाँचवीं पास लड़की को दसवीं पास बताया। 
                पारस उठकर सीधे घरवालों के पास गया ,बोला -आप लोगों ने मेरा  विवाह कम पढ़ी लड़की से करा  दिया ,वो तो अनपढ़ बराबर है। घरवालों को भी नही मालूम था उन्होंने उस व्यक्ति से बात की जिसने ये रिश्ता बताया था। जब उस व्यक्ति को मालूम पड़ा तो वो भी बहुत दुखी हुआ। वो  बोला -मुझे तो जैसा बताया गया था वैसा ही मैंने आप लोगों को बताया इसमें कुछ भी छुपाने में मेरा  स्वार्थ  नहीं था।घरवाले   परेशान थे क्योंकि वो लड़का परेशान था जिसका अभी -अभी विवाह हुआ है। क्या किया जा सकता था ?कई दिन इसी उधेड़ -बुन में निकल गए। एक दिन ऐसे ही परेशान  बैठा था अपने दोस्त की कही बातें सोच रहा था -उसने कहा कि उन लोगों ने तुम्हें ही नहीं पूरे परिवार को  धोखा दिया है ,तुम उनकी बेटी को उसके घर छोड़ आओ। उनके किये की सज़ा उन्हें मिलनी चाहिए। अभी वो ये सब सोच  ही रहा था कि रीवा डरी -सहमी सी उसके पास आई ,बोली -मुझे पाँचवीं के बाद घर के घर के कामों में लगा दिया ,बुआजी बोलीं थीं -इसे पढ़ -लिखकर क्या करना है ,?तब भी रोटी ही बनानी हैं। मेरा भी मन नहीं लगा पढ़ाई में ,मैंने भी अपनी इच्छा से पढ़ाई छोड़ दी।वे भी  क्या करते ,बेटी का विवाह जो करना था ,सो झूठ बोल दिया कि दसवीं पास है। उन्हें क्या पता था कि आपकी क्या इच्छाएं हैं ?चिट्ठी लिखने लायक ही पढ़ पायी। वो रीवा का मुँह देखने लगा। वो बोला -अब चिट्ठी लिखने का जमाना है क्या ? अब तो फोन पर बातें होती हैं ,तुम किस दुनिया में हो ?उसे गुस्सा तो बहुत आ  रहा था फिर उसका भोलापन देखकर चुप  हो गया। ये ऐसी मक्खी थी जो अनजाने ही उसने निगल ली थी। क्या उन लोगों ने तुम्हारे भाई को नहीं पढ़ाया ?पारस ने प्रश्न किया। उसे तो कमाकर खाना है ,मेरा जिससे विवाह होगा वो कमायेगा ऐसा कहा था, बुआ ने। 

            पारस रीवा को  उसके घर छोड़ने गया ,उसने सोचा था कि अब वापस लेने नहीं जायेगा। रीवा ने अपने माता -पिता को सारी बातें बतायीं ,सुनकर उन्हें भी धक्का लगा ,दुःख भी हुआ लेकिन अनजाने  डर ने  उन्हें हिलाकर रख दिया। रीवा की मम्मी बोली -हम जानते हैं कि हमने झूठ बोला। क्या करते आगे पढ़ने के लिए इससे कहा भी था लेकिन ये तो बुआ की बातों में आ गयी फिर इसका मन ही नहीं लगा। कहती -जिससे मेरा विवाह होगा ,वो कमायेगा न किन्तु एक बात है इसे घर के सारे कामों के साथ -साथ सिलाई -कढ़ाई सब कुछ अच्छे से आता है। कमायेगी नहीं तो खर्चा भी ज्यादा नहीं करेगी। हम तुम्हारे हाथ जोड़ते हैं ,हमारी गलती की सजा, हमारी बेटी को मत देना। उन्हें इस तरह गिड़गिड़ाते देख वो चुपचाप रीवा को अपने साथ ले आया। रीवा ने धीरे -धीरे सारा घर संभाल लिया।एक दिन रीवा ने अपने हाथ से बनाये क्रोशिये के 'कवर ' सजाये देखने में वो बहुत ही अच्छे लग रहे थे। डिजाइन भी बहुत सुंदर थे। आस -पड़ोस की महिलाओं ने देखा तो उन्हें पसंद आये और उन्होंने उससे अपने लिए बनवाने के लिए भी कहा। रीवा ने उनके लिए भी बना दिए। फिर एक दिन एक महिला ने सलाह दी कि इससे तुम कमाई भी कर सकती हो। पहले तो रीवा ने सोचा -पारस को बता देती हूँ लेकिन फिर उसने उसे चौंका देने का फैसला किया। 

             अब रीवा दुकानों में माल तैयार करके भेजने लगी लेकिन ये एक  बारीक़ काम था तो उसने अपने व्यवहार से और भी महिलाओं को अपने   साथ  जोड़ा , जो घर में ही बैठे रहकर कुछ कमाना चाहती थीं। जिन्हें नहीं आता था उन्हें सिखाया। इस तरह उसका काम बढ़ गया ,आमदनी होते देख पारस को भी प्रसन्नता हुई ,अब तो वो भी उसका सहयोग करने लगा। धीरे -धीरे उसके पास पच्चीस से तीस महिलायें उससे जुड़ गयीं। उसका नाम हुआ ,अब तो सीधे कारखानों से कच्चा माल आता और तैयार  करके भेजा जाता। अब तो रीवा ने अपना काम भी इतना बढ़ा लिया कि घर के अन्य सदस्य भी साथ में लग गए। कुशन ,जैकेट ,शाल इत्यादि माल तैयार होकर कारखानों में जाता अपनी कुशलता से औरअपनी मेहनत के बल पर आज वो' 'कुशल महिला व्यापारी '' बन गयी थी। सोचती यदि पढ़ी होती तो इस काम को और बेहतरीन तरीक़े से संभाल पाती। तब पारस ने समझाया -तुमने अपनी कुशलता से, अपने काम को ही आगे नहीं बढ़ाया वरन अन्य घरों में खाली बैठी महिलाओं को भी रोज़गार दिलवाया। तुमने अपने हुनर के बल पर वो कर दिखाया जो कई बार पढ़ी -लिखी महिलायें भी नहीं कर पातीं ,अब मुझे एहसास हो रहा है यदि किसी के मन में कुछ करने  इच्छा है  रास्ते निकल ही आते हैं, कहकर पारस ने रीवा के हाथ चूम लिए। 






















laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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