घर में एकदम सन्नाटा छा गया ,सब चुपचाप अपने स्थान पर बैठे स्थिर निगाहों उसे घूरे जा रहे थे। सभी की निगाहें कुछ प्रश्न मुझसे जानना चाहतीं थीं। मैं उन नज़रों का सामना अधिक समय तक न कर सकी और उठकर अपने कमरे की तरफ चल दी, मैं घूरती नज़रों से पीछा छुड़ाना चाहती थी। रुको !तभी पापा की गरजदार आवाज़ गूँजी ,मैं वहीं की वहीं खड़ी रही और पापा की तरफ घूम गयी। पापा कीआवाज फिर से मेरे कानों में टकराई -आख़िर तुम विवाह क्यों नहीं करना चाहतीं ?समय रहते ही हम तुम्हारा विवाह करके अपनी जिम्मेदारियों से मुक़्त हो जाना चाहते हैं। हम सब इतने दिनों से लड़का ढूंढने में लगे हैं और जब लड़का मिला भी ,तो तुमने साफ इंकार कर दिया। अब कहती हो कि मैं विवाह नहीं करूंगी। खानदानी लोग हैं ,इनके पूर्वजों का अच्छा पैसा था ,लड़का भी अच्छा कमाता है , घर में नौकर -चाकर काम करते हैं और क्या चाहिए ?तभी मम्मी बोलीं -कोई कारण तो हो ,जो तुम विवाह नहीं करना चाहती हो। मैं चुपचाप खड़ी उनकी बातें सुनती रही। भइया -भाभी उठकर चले गए। मम्मी -पापा वहीं बैठे ,मेरे मुँह की तरफ देख रहे थे ,वे मेरे उत्तर के इंतजार में थे। मम्मी ने अपनत्व जताते हुए कहा, या फ़िर तुम्हें और लड़का पसंद है तो हमें बता दो। वो हमें पसंद आया, बात जँची तो हम तुम्हारा विवाह वहाँ कर देंगे। वैसे मुझे अपने खून पर विश्वास है ,ऐसा कुछ नहीं होगा। मुझे उनके कथन को सुन हँसी आई जैसे वो अपने ही आप को विश्वास दिला रहीं थीं कि नहीं ऐसा कुछ नहीं हुआ होगा।
मैं कई दिनों से देख रही थी कि मम्मी मेरे लिए लड़का देखने में लगीं थीं ,मैंने पूछा भी -अभी इतनी जल्दी क्या है ?तो बोलीं -विवाह की उम्र तो हो ही गयी है ,अभी से लड़का देखेंगें ,तब जाकर दो -तीन वर्ष बाद जाकर लड़का मिलेगा, फिर वो मुझे अपनी एक रिश्तेदार का उदाहरण देने लगीं -तुझे पता है उन्होंने अपनी बेटी के लिए लड़का पच्चीसवें वर्ष में देखना शुरू किया था और लड़का मिलते -मिलते वो तीस से ऊपर की हो गयी। मैंने आश्वस्त होते हुए कहा -फिर ठीक है ढूँढो ,लेकिन यदि लड़का जल्दी मिल गया तो मैं अभी विवाह नहीं करूंगी ,सीधे लड़के से ही इंकार कर दूँगी ,ये बातें उनसे मैंने पहले ही कह दी थीं फिर भी मेरी बातों पर ध्यान नहीं दिया या सोचा होगा ,अभी तो कह रही है फिर मान जाएगी। लड़के की ढूँढ तेजी से चल रही थी कई जगह मेरे फोटो और मेरे जीवन की उपलब्धियों का विवरण भेजा गया। कार्य प्रगति पर था ,मैं समझ नहीं पा रही थी कि इतनी जल्दी क्यों है ?तब भाभी ने बताया कि पंडित जी से पूछा था कि विवाह का योग कब है ?तब उन्होंने बताया था कि आगे आने वाले तीन -चार महीनों में वरना एक वर्ष बाद योग है। मैंने कहा -एक वर्ष बाद ही विवाह हो जायेगा इतने मेरा शोध कार्य भी पूरा हो जायेगा।
मम्मी -पापा अपने कार्य में लगे रहे ,कोई लड़का उम्र बड़ा मिलता किसी की आमदनी भी कम मिलती ,किसी का परिवार ठीक नहीं ,कोई मांगलिक ,मैं सोच रही थी कितने बखेड़े है ?विवाह में भी। फिर सोचा -चलो लगे रहने दो ,जो कर रहे हैं करने दो। मैं आश्वस्त होकर अपने शोध कार्य में जुट गयी। किन्तु एक दिन मुझे पता चला कि मुझे तो लड़के वाले देखने आ रहे हैं मैं सुनकर हड़बड़ा गयी ,मैंने कहा भी ,न ही मुझे बताया न ही उसकी फोटो दिखाई , बस मुझे बताया, कि देखने आ रहे हैं। बड़ा ही अज़ीब लग रहा था ,मैं मम्मी से बात करना चाह रही थी लेकिन उन्हें तो लड़कों की आवभगत की तैयारी से फ़ुरसत ही नहीं थी। उनके लिए नाश्ते और खाने की तेेयारी चल रही थी ,मैं क्या सोच रही हूँ या मैं क्या चाहती हूँ ?इससे किसी को कोई मतलब नहीं था। जो ये रिश्ता करा रहे थे वो पूरा जोर लगा रहे थे कि यहीं बात तय हो जायें। नियत समय पर वो लोग आये ,मैं अंदर कमरे में बैठी सुन रही थी कि जो मध्यस्थ थे वो अपनी बातों से व्यवहार से पूरा प्रयत्न कर रहे थे कि विवाह तय हो जाये और लड़की इन लोगों को पसंद आ जाये।
मैं सोच रही थी कि मेरे माता -पिता को मुझ पर विश्वास नहीं कि मैं पसन्द आऊँगी कि नहीं ,उन्होने मेरा फोटो पसंद किया तभी तो देखने यहाँ आये और मुझसे मेरी पसंद पूछी भी नहीं ,न ही लड़के का कोई चित्र दिखाया जैसे उन्हें उम्मीद थी कि मैं तो लड़के को देखते ही लट्टू हो जाऊँगी या मेरी पसंद -नापसन्द कोई मायने ही नहीं रखती। उनकी बातों से लग रहा था कि सारी बातें लड़केवालों की हाँ और न पर निर्भर करती हैं। ये सब इतना अचानक हो रहा था कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं ?मुझे अपने घरवालों के व्यवहार से लग रहा था यदि वो लोग हाँ कर देते हैं तो ये लोग विवाह के लिए तुरंत तैयार हो जायेँगे। मैंने उस लड़के को मात्र एक झलक देखा ,उसकी शिक्षा और नौकरी के अलावा मैं उसके विषय में कुछ नहीं जानती थी। मैं जिसके विषय में कुछ नहीं जानती कैसा व्यवहार है ?उसकी पसंद - नापसंद ,उसकी सोच कुछ भी तो नहीं जानती। मैं कैसे एक -दो माह के अंतर् में विवाह करके उसके घर चली जाऊँ ?सब कुछ एक भ्र्मजाल सा लग रहा था। सब कुछ होता जा रहा था और मैं कठपुतली की तरह नाच रही थी। कुछ समय पश्चात लड़के के घरवालों की तरफ से कहा गया कि लड़के -लड़की को आपस में मिलवा देते हैं।
मैं मानसिक रूप से किसी भी चीज़ के लिए तैयार नहीं थी ,हमने बातें कीं और वो चला गया। उधर जो मध्यस्थ थे उन्होंने अपने ही आधार पर हामी भर दी ,बोले -इनकी तरफ से और लड़की की तरफ से आप निश्चिन्त रहें। वो लोग चले गए ,जाते समय कहकर गए कि हम दूरभाष द्वारा सूचित कर देंगे। घर में सभी उनके निर्णय के इंतजार में थे। शाम को उन्होंने बताया कि लड़की ने ही हमारे लड़के से विवाह करने से इंकार कर दिया। उनकी बातें सुनकर जैसे सबको धक्का लगा। सभी अचम्भित हो मुझे घेरकर बैठ गए।
मुझ पर प्रश्नों की बौछार हो रही थी ,न जाने कितनी शंकाएँ जाहिर की जा रही थीं। मम्मी -पापा को जबाब देना अब जरूरी हो गया था। मैंने कहा -पुराने समय में भी स्वयंवर होते थे ,उस समय में भी राजकुमारियों को उनकी पसंद के राजकुमार चुनने की स्वतंत्रता थी फिर आज के समय में तो मैं पढ़ी -लिखी जागरूक लड़की हूँ ,ये नहीं कि मैं विवाह नहीं करना चाहती या मेरा किसी अन्य लड़के से संबंध हैं। ऐसा कुछ भी नहीं है ये सब आपके अपने मस्तिष्क की उपज़ है। मैं पूछती हूँ ,क्या मेरी इच्छा कोई मायने नहीं रखती ?मेरा अपना कोई अस्तित्व नहीं। जब विवाह मेरा होगा तो निर्णय लेने का अधिकार भी मेरा होना चाहिए,आप लोगों के लिए मेरे निर्णय का कोई महत्व ही नहीं था ,आप लोग तो लड़के वालों की हाँ या न पर बैठे थे ,जैसे हम लोगों का निर्णय कोई महत्व ही नहीं रखता। जीवन मुझे बिताना है ,आप लोगों को नहीं। जिसे मैं जानती ही नहीं, उसे कैसे अपना जीवनसाथी बना लूँ ?मैं कोई गाय नहीं ,पढ़ी -लिखी इंसान हूँ।
मुझ पर प्रश्नों की बौछार हो रही थी ,न जाने कितनी शंकाएँ जाहिर की जा रही थीं। मम्मी -पापा को जबाब देना अब जरूरी हो गया था। मैंने कहा -पुराने समय में भी स्वयंवर होते थे ,उस समय में भी राजकुमारियों को उनकी पसंद के राजकुमार चुनने की स्वतंत्रता थी फिर आज के समय में तो मैं पढ़ी -लिखी जागरूक लड़की हूँ ,ये नहीं कि मैं विवाह नहीं करना चाहती या मेरा किसी अन्य लड़के से संबंध हैं। ऐसा कुछ भी नहीं है ये सब आपके अपने मस्तिष्क की उपज़ है। मैं पूछती हूँ ,क्या मेरी इच्छा कोई मायने नहीं रखती ?मेरा अपना कोई अस्तित्व नहीं। जब विवाह मेरा होगा तो निर्णय लेने का अधिकार भी मेरा होना चाहिए,आप लोगों के लिए मेरे निर्णय का कोई महत्व ही नहीं था ,आप लोग तो लड़के वालों की हाँ या न पर बैठे थे ,जैसे हम लोगों का निर्णय कोई महत्व ही नहीं रखता। जीवन मुझे बिताना है ,आप लोगों को नहीं। जिसे मैं जानती ही नहीं, उसे कैसे अपना जीवनसाथी बना लूँ ?मैं कोई गाय नहीं ,पढ़ी -लिखी इंसान हूँ।
मम्मी बोलीं -मैं भी विवाह से पहले तेरे पापा को कहाँ जानती थी ?सभी के इसी तरह विवाह होते हैं , पहले कोई नहीं जानता। अबकी बात और है न ही लड़के ऐसे रहे न ही लड़कियाँ ,फिर मैं हंसकर बोली -तभी तो आप कहती हो ,न जाने किस घड़ी में इस आदमी से मेरा विवाह हुआ ?मम्मी ने पापा की तरफ देखकर मेरी तरफ आँख निकाली मैं चुप हो गयी। पापा कुछ सोचते हुए बाहर निकल गए। फिर मैंने मम्मी को समझाया
-भाभी -भइया भी पहले से ही एक -दूसरे को जान गए थे लेकिन मुझे तो इतना मौका भी नहीं मिलता ,मुझे तो लग रहा था जैसे जबरदस्ती धक्का दे रहे हों ,ज़िम्मेदारी समझते हो तो ,अच्छे से निभाओ भी , उसे बोझ समझकर खानापूर्ति मत करो। माँ ने मेरी बातों को समझा ,बोलीं -तूने ठीक ही कहा ,हम तो भृमित से हो गए थे उनकी हाँ में हाँ मिलाये जा रहे थे। विवाह तुम्हारा होगा तो निर्णय भी तुम्हारा ही होगा लेकिन शीघ्र करना ,कहीं तुम्हें निर्णय लेने में ज्यादा देर न हो जाये।
-भाभी -भइया भी पहले से ही एक -दूसरे को जान गए थे लेकिन मुझे तो इतना मौका भी नहीं मिलता ,मुझे तो लग रहा था जैसे जबरदस्ती धक्का दे रहे हों ,ज़िम्मेदारी समझते हो तो ,अच्छे से निभाओ भी , उसे बोझ समझकर खानापूर्ति मत करो। माँ ने मेरी बातों को समझा ,बोलीं -तूने ठीक ही कहा ,हम तो भृमित से हो गए थे उनकी हाँ में हाँ मिलाये जा रहे थे। विवाह तुम्हारा होगा तो निर्णय भी तुम्हारा ही होगा लेकिन शीघ्र करना ,कहीं तुम्हें निर्णय लेने में ज्यादा देर न हो जाये।



