सरिता ने जल्दी -जल्दी घर का सारा काम निपटाया ,जल्दी से तैयार होकर ,घर से बाहर निकलकर ताला लगा ही रही थी ,तभी सामने रहने वाली आंटीजी ने पूछा -सरिता !कहीं जा रही हो ,क्या ?हाँ आंटीजी मेरे भाई के बेटा हुआ है न ,वहीं जा रही हूँ ,जल्दी -जल्दी ताला लगाते हुए सरिता बोली। ताला लगाने के बाद वो उनकी तरफ देखते हुए बोली -आंटीजी घर का ख्याल रखिएगा। हाँ ,हाँ क्यों नहीं उन्होंने उसे सांत्वना देते हुए कहा।सरिता जाने की तैयारी में थी लेकिन वो पूछे जा रहीं थीं ,बोलीं -कब हुआ ?सुबह ही ,उसने बात को आगे न बढ़ाते हुए छोटा सा उत्तर दिया। अब तो दोपहर हो रही है, उन्होंने फिर से प्रश्न दाग दिया। क्या करूं ?आंटीजी घर के सारे काम निपटाकर ही तो जाती ,सुबह बच्चों को उनके विद्यालय भेजकर उनके दोपहर तक के खाने का इंतजाम करके, तब जा रही हूँ ,इतनी तैयारियों में समय तो लगता ही है ,अब मैं शाम तक वहीं रहूंगी। हाँ ,ये भी है उसकी बात से सहमत होता हुए वे बोलीं। बच्चे कैसे करेंगे ?वो फिर से बोलीं। मैंने उन्हें सुबह ही समझा दिया था ,आपसे चाबी ले लेंगे, खाना तैयार रखा है ,खा लेंगे। कुछ याद आते ही सोचते हुए बोलीं - क्या तुम्हारे यहाँ' दूधी धुलाई 'रस्म नहीं होती ?होती तो है ,उसने जबाब दिया।अब तुम ऐसा करो ,तुम' दूब घास 'और थोड़ा सा दूध ले जाओ। क्या करना है ?उसका उसने शंकित होते हुए पूछा। अरे !बुआ बन गयीं ,दो बच्चों की माँ हो लेकिन इतना भी नहीं पता कि बुआ जब ये रस्म करती है तभी तो बच्चा दूध पीता है।
अरे !हाँ कुछ याद करते हुए बोली। जब तुम शाम तक वहीं रहोगी तो तीसरा पहर भी हो जायेगा ,फिर क्या वापस आओगी ?यहीं से तैयारी करके चली जाओ। उसने आंटीजी से दुब घास पूछी और लेने चल दी ,वह मन ही मन सोच रही थी कि हाँ मेरी ननद भी तो आयी थी ,ये बात मैं कैसे भूल गयी ?वो मन ही मन आंटीजी को धन्यवाद दे रही थी कि उन्होंने समय रहते याद दिला दिया। साथ ही ये सोचकर खुश हो रही थी मम्मी देखेंगी कि मैं सब तैयारी करके लायी हूँ तो ख़ुश हो जाएँगी। गर्मी के मौसम में भी दस -ग्यारह बजे भी कितनी धूप हो जाती है ?कितना पसीना -पसीना हो गयी ?वो दूब घास लेकर और दूध का पानी लेकर आंटीजी से कुछ जरूरी बातें करके अस्पताल की तरफ बढ़ चली। उसने रिक्शे वाले को रोका ,उसने इंकार कर दिया वो आगे बढ़ चली। चलते -चलते वो काफी आगे निकल आई, इस धूप में रिक्शेवालों के भी नखरे हो जाते हैं या फिर ज्यादा पैसे माँगते हैं मन ही मन बुदबुदाई।वो आगे बढ़ती रही थोड़ी दूर ही उसे अस्पताल नजर आने लगा उसने हिम्मत की और अब रिक्शेवालों को छोड़ वो पैदल ही तेज गति से चल दी। हालाँकि उसने छाता भी लगा रखा था फिर भी पैदल चलने से और भी ज्यादा गर्मी लग रही थी।
उसने अस्पताल में पहुंचकर चेेन की साँस ली ,वहाँ पड़ी एक बेंच पर बैठ गयी। थोड़ी देर सुस्ताकर फिर उसने एक नर्स से पूछा। नर्स ने दूसरी मंजिल की तरफ इशारा किया ,वो उस तरफ बढ़ चली। कमरा मिल जाने के कारण उसके चेहरे पर प्रसन्नता फेेल गयी। सोच रही थी ,उसे देखते ही सब खुश हो जायेंगे ,वो अभी अंदर जा ही रही थी कि मम्मी ने रोक दिया ,अभी बाहर से आयी हो ,वहीं रुको !वो बाहर बेंच पर बैठ गयी। कंधे पर बैग उसके हाथों में एक स्टील का डिब्बा और छाता था। मम्मी भी पास में बैठ गयीं ,बोलीं -इसमें क्या लाई हो ?उसने खुश होते हुए बताया कि इसमें दूब घास और कच्चा दूध है ,जब ये रस्म होगी तभी तो बच्चा दूध पियेगा उन्हें समझाते हुए बोली , जैसे वो तो जानती ही नहीं होंगी और मन ही मन खुश हो रही थी कि कहेंगी तुमने ये अच्छा किया। उनके चेहरे पर कोई ख़ुशी के भाव नहीं आये ,कुछ देर बाद वो आईं और अंदर आने का इशारा किया ,कमरे में बैठते ही ठंडक का एहसास हुआ , हो भी क्यों न वातानुकूलित कमरा था ,होना भी चाहिए क्योकि भाई की आमदनी अच्छी थी अपने परिवार की सुख -सुविधा का ध्यान तो सभी रखते हैं। कमरे में बैठी रही ,जैसे सोच रही थी ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। उसे इस तरह बैठे ऐसा लग रहा था ,जैसे वो अपने भाई के काम में नहीं किसी अपरिचित के यहाँ आ गयी हो। थोड़ी देर बाद मम्मी बोलीं -ला ,वो डिब्बा दे देना नेग कर देती हूँ।
सरिता अपने अधिकार के प्रति सचेत थी बोली -ये तो ननदों का अधिकार होता है। सरिता की बात सुनकर वो बोलीं -ये सब तो ननदों के नेग लेने के चोंचले होते हैं ,तेरा नेग तुझे मिल जायेगा और उसके हाथों से डिब्बा लेकर स्वयं ही वो रस्म करने लगीं। सरिता तो जैसे कुछ बोल ही न सकी , उनके उन शब्दों ने उसके दिल पर हथौड़े का काम किया ,उसके मन का फूल तो वहीं मुरझा गया। वो सोच रही थी कि इनके दिमाग में तो किसी रस्मों -रिवाज़ की क़ीमत ही नहीं ,उनके हिसाब से तो ये लेने के ही चोंचले हैं। वो अपनी बातें याद कर रही थी जब उसकी ननद आई थी ,आई नहीं बुलाई गयी थी ,सब तैयारियों के बाद उन्होंने ख़ुशी -ख़ुशी ये रस्म निबाही थी ,उन्हें एहसास दिलाया गया था कि तुम इस घर की बेटी हो ये तुम्हारा अधिकार है। घर में ख़ुशी भी थी तो उन्हें नेग देकर भेजा और दो दिन के बाद आने का वादा भी लिया। यहाँ तो वो इतनी मेहनत करके आई, लेकिन ऐसा वो महसूस कर रही थी जैसे जबरद्स्ती उनके सिर आ पड़ी हो। अब उसका यहाँ ठहरने का मन नहीं कर रहा था।उसकी कोई आवश्यकता ही नहीं थी वो एकाएक उठी और बोली -अच्छा, मैं चलती हूँ ,बच्चे भी अपने विद्यालय से आ गए होंगे। अच्छा ठीक है , उसकी मम्मी बोलीं। जैसे वो इसी बात के इंतजार में हों। न ही उसे किसी ने रोका ,न ही किसी ने झूठे भी कहा ,थोड़ी देर ठहर कर चली जातीं, अभी तो आई हो। वो तो शाम तक के लिए सोचकर आई थी ,चलते समय उसकी आँखों के कोरों में जो पानी की बूँदे आयी थीं उन्हें उसने झट से पोंछ लिया क्योंकि यहाँ उनकी कोई कीमत नहीं थी। भाई से मिली उसने भी ये नहीं कहा ,''चलो मैं अपनी गाड़ी से छोड़ देता हूँ। 'चलते समय माँ ने पुकारा -उसे कुछ उम्मीद बनी ,शायद कुछ कहें लेकिन वो बोलीं -दे देंगे तेरा नेग भी।
वो सीढ़ियों से नीचे उतरते हुए सोच रही थी -'पैसा इंसान की भावनाओँ ,विचारों को कितना बदल देता है ,मैं भी इसी घर की बेटी हूँ। पैसा आने पर भावनाओँ को रिश्तों को पैसों से तौलने लगे। आज पैसा है , भाभी तो क्या कहेंगी ,माँ ने ही जीते जी अपना नहीं समझा।

