kyo darate ho ?

अक्सर कुछ इस तरह की पोस्ट पढ़ने को मिल जाती हैं -
                                             मुझे घमंड नहीं किसी बात का ,
                                                                 क्योंकि न जाने कब ,एक रात ऐसी होगी ,
                                                                           जिसका न होगा कोई सवेरा। 
    उत्तर में मैंने डाला -उस दिन सवेरा नहीं ,गुरु के पास होगा बसेरा। सबने ये पसंद भी  किया ,लेकिन मैं सोचने पर मजबूर हो गयी। ये डर कैसा है ?क्यों डरते हो ?अपनी मौत से या जिंदगी से। इस जिंदगी से मोह कैसा ?जिसने पल -पल हर मोड़ पर दुःख ,कष्ट ,परेशानी और परीक्षा ही तो लेती आई है। मौत ,ख़ामोश। शांति जीवन भर की। या फिर हम यूँ कहें -हम जिसे मानते हैं ,चाहते हैं ,उसके पास जाने का एक मौका। जिस प्रभु को माना तो उसके हो जाओ। गुरु को माना तो उसका हाथ थाम आगे बढ़ चलो। 

                ये तो गीता के ज्ञान में भी कहा  गया है ,सबने पढ़ा ही है -आत्मा न मरती है ,न जलती है ,न कटती है। सिर्फ़ पुराना वस्त्र ही बदलती है। तो इस पुराने वस्त्र ,यानि झुर्रियोंदार ,कमज़ोर ,लाचार ,बेबस ,बीमार शरीर को कब तक ढ़ोते रहोगे ?यदि तुम्हें गीता के ज्ञान  विश्वास  नहीं है तो तुम डरते हो ,अपने गुरु पर  विश्वास नहीं है तो  तुम डरो। मोह ,माया जाल में फँसे हो तो डरो। अरे !डरना ही है तो बुरे कर्म करते समय डरो। ये जिंदगी पता नहीं किस -किस इंसान से क्या -क्या करवा दे ?और वो करता है ,जब तक उसे भ्र्म रहता है कि  मैं कर रहा हूँ ये भी उसकी परीक्षा का ही एक तरीका है , वो न जाने किन -किन परिस्थितियों में ले जाकर पटक देता है ?कई बार परिस्थिति  वश भी मनुष्य अपने को  लाचार और बेबस पाता है। यदि कोई कर्म मजबूरी वश करना भी पड़े तो उसी का नाम लेकर करो ,वो कुछ गलत होने ही नहीं देगा। यदि ड़रना ही है तो अपने मन की बुराई से डरो। 
          हम जो इस जीवन में अपनी जिम्मेदारी निभाने आये हैं ,वे जिम्मेदारी पूरी हो जायें ,अधूरी न रहें ,इस बात से डर लगता है। बाकि तो वो संभाल ही रहा है ,संभाल ही लेगा। फिर नया  चोला ,मोक्ष की ख़ोज में नया जीवन।                                    

                                                        ''राधास्वामी ''
laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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