jesa desh vesa bhesh

निशा बहुत दिनों बाद अपनी सहेली शालू के घर  आई है क्योंकि वो यहाँ  नहीं रहती, दूसरे शहर में नौकरी करती है, अब छुट्टियों में यहाँ आई है तो सोचा उससे यहीं  मिल लूँ। अपने विवाह के बाद भी उसने नौकरी नहीं छोड़ी ,ससुराल वालों ने छोड़ने के लिए कहा भी नहीं लेकिन उसे दूसरे शहर में रहना पड़ रहा है। छुट्टियों में यहाँ आ जाती है। निशा सीधे घर में घुसी चली गयी ,अंदर  कोई नहीं दिखा ,वो तो उसे अपने  आने से  उसे चौंका देना चाहती थी इसीलिए उसने उसे बताया भी नहीं कि वो आ रही है लेकिन घर में कोई नहीं दिखा ,उसने आवाज भी लगाई। दरवाजा भी खुला था कोई ऐसे ही घर का दरवाजा खुला छोड़कर तो जायेगा नहीं।  अभी वो ये सब सोच ही रही थी कि अचानक ध्यान आया उसके मकान में पीछे भी तो जगह है यही सोचकर वो पीछे की तरफ चल दी ,वहाँ जाकर देखा तो स्वयं ही अचम्भित रह गयी और बोली -अरे शालू !तू ये क्या कर रही है ?शादी के बाद तेरा इस तरह से शोषण हो रहा है और तू  हुए जा रही है। तूने कभी बताया ही  नहीं कि तू ये सब भी करती है। यार ,तू एक पढ़ी -लिखी लड़की है ,एक शिक्षिका भी है और ये सब। तुझसे ये लोग क्या -क्या करा रहे हैं ?मैं तो तुझे अचम्भित करने आई थी और तूने मुझे ही चौंका दिया। 

                निशा बोले जा रही थी ,शालू अपने काम में लगी थी। तू शहर में पली -बढ़ी और तू ये गाँव ,देहात वाले कार्य कर रही है ,क्या इन्होंने कोई नौकर भी नहीं रखा ?देख तू कैसी लग रही है ?तू कैसे इस तरह अपने को यातना दे सकती है या ये सब सहन करने के लिए तुझे ये मजबूर कर रहे हैं ? शालू ने जैसे -तैसे अपना काम किया ,हाथ धोये और निशा को अंदर चलने के लिए इशारा किया। निशा आराम से कुर्सी में पसर गयी फिर बोली -तेरे सब परिवार वाले कहाँ गए हैं ?कोई दिख नहीं रहा। शालू बोली -सब लोग गांव में किसी लड़की के विवाह में शामिल होने गए हैं। उसके इतना कहते ही निशा फिर बोल उठी -और तुझे छोड़ गए गाय के चारे -पानी के लिए। नहीं शालू बोली -दरअसल गांव में किसी गरीब की लड़की का विवाह है लेकिन घर के बड़े उसकी मदद के तौर पर गए हैं ,वहाँ घर की बहु -बेटियाँ नहीं जातीं। निशा ने शालू के चेहरे पर नजरें गड़ाते हुए कहा -तूने ये सब कब सीखा ,क्या तू यहाँ छुट्टियों में ये सब करने आती है ?
          इस काम को तो कोई अनपढ़ ,गवाँर नौकर भी कर लेता ,तूने क्या ये सब करने के लिए पढ़ाई की थी। शालू  चाय पकड़ाते हुए बोली -ले चाय पी ले ,इसी गाय के दूध की है ,दूध में पत्ती लगाई है ,देख गाय के दूध की चाय का स्वाद। अब वो भी आराम से बैठकर बोली -तूने सही कहा ,ये पढ़ाई इसीलिए नहीं की लेकिन अब मैं यहाँ रह रही हूँ और कोई घर में है नहीं तो मैंने कर दिया तो कौन सी आफत आ गयी। गाय का चारा -पानी तो घर का कोई भी सदस्य कर लेता है ,नौकर इसीलिए नहीं लगाया क्योकि गाय की सेवा तो उन्हें स्वयं करनी है ,इस सेवा को वो दूसरे को कैसे करने दे सकते हैं ?आज उन लोगों को आने में देरी हो गयी।

गाय भूखी -प्यासी थी ,मेरे सामने कोई जानवर भूखा -प्यासा खड़ा है तो इसमें मेरी शिक्षा क्या करेगी ?क्या मैं उसे चारा भी नहीं दे सकती ,हालाँकि मुझे इसका खाना बनाना नहीं आता लेकिन मैंने अपने अंदाजे से 
कुछ हरा चारा दे दिया तो कौन सा पहाड़ टूट गया। आज मेरी किस्मत में सेवा थी।अब  तू ये देख ,अनपढ़ ,गंवार भी अच्छे से सानी कर लेते हैं ,मुझ पढ़ी -लिखी को नहीं आती ,जिस कारण गाय आज भूखी रह जाएगी ,मैंने तो सिर्फ़ कोशिश की है। मैंने भी तो यही सोचा था ,'जब अनपढ़ ,गंवार सानी कर सकते हैं तो मैं क्यों नहीं ?मैं तो पढ़ी -लिखी हूँ ,इसमें बेइज्जती कैसी ?जैसा देश ,वैसा भेष कहकर वो हँस पड़ी। 
laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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