aab ,tum meri ho

आज  फिर उसे देखने वाले आ रहे हैं ,माता -पिता ने भगवान के आगे हाथ जोड़े ,प्रार्थना की -'कि बस किसी तरह यहाँ बात पक्की हो जाये। पांच -छः साल से उसके लिए लड़का देख -देखकर परेशान हो रहे थे। जो भी लड़का उसे देखने  आता  ,उससे मिलता और चला जाता। अपने घर जाकर इंकार कर देता। इतने सालों में कई रिश्ते आये और गए ,माँ -बाप उसे कोसते ,अपनी क़िस्मत को कोसते ,करें भी तो क्या ?उसका भूतकाल  उसका पीछा ही नहीं छोड़ता। किसी भूत की तरह ही पीछे लगा है ,वे उस दिन को कोसते जिस दिन उसे पढ़ने के लिए तीन कोस दूर एक क़स्बे में भेजा था। इस गाँव में तो दसवीं तक का ही  विद्यालय था। सभी बड़े खुश थे ,जब बिटिया पूरे विद्यालय में सबसे ज्यादा नंबर लाई थी ,गाँव में लड़कों के भी इतने नंबर नहीं थे। प्रधानजी की तो गर्व से छाती चौड़ी हो गयी थी। परिणाम देखकर भागे जा रहे थे ,पीछे से अनुज ने आवाज़ दी -कहाँ जा रहे हैं ,चाचा ?चलते -चलते बोले -मिठाई लेने जा रहा हूँ ,पूरे गाँव में जो बाँटनी है ,आज मेरी बेटी ने मेरा नाम ऊँचा कर दिया। मिठाई बांटते समय ,कुछ अनुभवी बुजुर्गों ने सलाह दी -अब बेटी स्यानी हो गयी है ,उसके लिए कोई अच्छा सा लड़का देखकर' हाथ पीले कर' दो। नहीं ,उन्होंने इंकार करते हुए कहा -अभी वो और आगे पढ़ेगी ,उसने तो पहले ही शर्त लगाई थी यदि मैं गांव में सबसे ज्यादा नंबर लाई तो आप मुझे आगे पढ़ायेंगे। कहाँ भेजोगे ?उसे आगे पढ़ने के लिए ,वहीं पास में जो कस्बा है ,वहाँ पर लड़कियों के लिए एक अच्छा विद्यालय है ,वहीं भेजेंगे। वो तो गांव से तीन कोस दूर है ,वहाँ कैसे जाएगी ?देखेंगे जो भी साधन होगा। 

               अब तो पूरे गांव में पुष्पा ही छाई थी और भी जो लड़कियाँ थी जो पढ़ाई छोड़कर घर में ही बैठ गयी थीं ,अब वे भी आगे पढ़ने की जिद करने लगीं। इसी सोच के चलते गांव की दो -चार लड़कियाँ और हो गयीं। प्रारम्भ में तो सब छोड़ने जाने लगे लेकिन तीन कोस दूर जाना फिर छोड़कर आना ,पुनः लेने जाना ,अब ये भारी लगने लगा। घर के अन्य कार्य भी रुक जाते ,अब परेशानी महसूस होती। तब सभी लड़कियों ने मिलकर तय किया कि अब हम सब लोग मिलकर एक साथ पैदल ही घर से निकला करेंगे। सबके परिवारवालों ने मना भी किया लेकिन जब सबने समझाया तो मान गए। शुरू में तो परेशानी हुई, पैर दुखते फिर धीरे -धीरे आदत बन गयी। छः -सात लड़कियाँ झुण्ड बनाकर पैदल ही घर से निकलतीं ,सभी गांव वाले उनकी हिम्मत और साहस की प्रशंसा करते। इस तरह एक वर्ष बीत गया।अब सब  निश्चिन्त हो गए। अगले साल एक -दो लड़कियाँ और बढ़ गयीं। अबकी बार कलुवे मास्टरजी की पोती भी जाने लगी ,वो बहुत ही सुंदर थी। हमारे गांव और उस कस्बे के बीच एक छोटा सा गांव और पड़ता था ,मुश्किल से दस -बीस घर होंगे। उस गांव का एक नामी गुंडा था ,पता नहीं उसे कैसे भनक लग गयी कि गाँव की पटरी से [कच्चा रास्ता ]कुछ लड़कियाँ पढ़ने जाती हैं। 
           अब वो रोजाना ही वहाँ खड़ा होकर उन लड़कियों को जाते देखता चूँकि पुष्पा के कारण ही सभी का हौसला बना था ,पुष्पा  ने सबको सावधान किया -सभी चुपचाप सीधी चलती रहें ,इधर -उधर न देखें ,उन लड़कियों की जिम्मेदारी वो अपने ऊपर समझती थी। उस लड़के की नजरें मास्टरजी की पोती शालू पर थी। वो कुछ न कुछ छिछोरी हरकतें करता। शालू को सारी  लड़कियाँ घेरकर चलतीं। एक दिन तो उसने उसका दुपट्टा ही खींच लिया। पुष्पा  को गुस्सा आया उसने आव देखा न ताव और खींचकर उसे एक तमाचा रसीद कर दिया। उस समय तो वो चला गया लेकिन यह बात  सारे गाँव में 'आग की तरह फैल' गयी। अब गांव वाले सचेत होकर फिर से साईकिल ,बुग्गी ,ट्रेक्टर जो भी साधन मिलता उसी से उन लड़कियों को उनके विद्यालय छोड़ आते। दो माह बीत  गए ,न ही कोई  हादसा हुआ न ही  कोई दिखाई दिया। अब सब संतुष्ट हो गए। पुष्पा की हिम्मत की प्रशंसा भी की। 

             आज मौसम बहुत ही सुहावना था हल्की ठंड भी पड़ने लगी थी ,लड़कियाँ रोजाना की तरह अपने मार्ग से जा रहीं थीं ,अचानक बीच रास्ते में पहुंचकर चार लड़के दिखाई दिए ,लड़कियाँ फिर से  सावधान हो गयीं लेकिन उनमें उस दिन की दहशत थी और उसे  चार लड़कों के साथ देख उन्हें कुछ गलत की आशंका हुई और  वे भाग खड़ी हुईं। भागते समय वे शालू को आगे की तरफ खींच रहीं  थीं लेकिन उनकी सोच के विपरीत उनमें से एक ने पुष्पा का हाथ खींचा और करीब ही खेत की तरफ ले गए। इससे पहले लड़कियाँ कुछ समझ पातीं वे ग़ायब हो गए ,अचानक इस हादसे से लड़कियाँ बदहवास गाँव की तरफ भागने लगीं। गाँव में पहुँचकर सबने ये बात बताई। सभी समझ  गए कि वो बदले के उद्देश्य से आया है और किसी भी तरह ग़लत होने की आशंका से , जिसके जो भी हाथ में आया लेकर भाग खड़ा  हुआ। उधर पुष्पा  चार लोगों का कब तक विरोध कर पाती ?उसकी जिंदगी का सबसे बड़ा कलंक उसके माथे लग गया। सोचते -सोचते उनकी आँखों से  आँसू टपक पड़े ,तभी पुष्पा की माँ वहाँ आई और बोली -क्यों चिंता करते हो जी ,जो होगा अच्छा ही  होगा। क्या ,ख़ाक अच्छा होगा ?चार -पांच वर्ष ऐसे  ही बीत गए ,सब लड़के भाग जाते हैं। यदि  हमारी लड़की ही अपनी बदनामी का ढिंढोरा न पीटती तो अब तक हो गया होता लेकिन वो स्वयं ही अपने गले  में रस्सी बांधती है। सारा गांव चुप है ,इस बार उम्मीद है ,शायद बात बन जाये। लड़का पढ़ा -लिखा किसी अच्छी कम्पनी में मैनेजर है। हमारी बिटिया भी तो नौकरी करती है ,ख़ैर !छोडो जो होगा देखा जायेगा। फिर कुछ सोचते हुए बोले -तुमने समझा दिया न उसे ,किसी से कुछ न कहे।  उनकी पत्नी बोली -समझाया तो है। थोड़ी देर बाद ही लड़के वाले आ गए ,पूरे गांव की साँस अटकी थी कि प्रधानजी के घर से क्या सूचना आती है ?
              लड़का देखने में आकर्षक व्यक्तित्व का मालिक था ,देखने में  किसी बड़े घर का लग रहा था ,पुष्पा  को उनके सामने लाया गया वो सभी को पसंद आ गयी। लेकिन तभी लड़के की माँ बोली -देखो जी हम तो पुराने विचारों के नहीं हैं लड़के -लड़की को आपस में मिलवा देते हैं। इतनी बात सुनते ही प्रधानजी और उनकी पत्नी के'' पैरों तले से जमीन खिसकती'' नजर आयी। इसी बात से वो  बचना चाह रहे थे। पुष्पा  की माँ ने अपनी बेटी की तरफ देखा ,नजरों ही नजरों  समझाने का प्रयत्न किया। लड़का -लड़की मिले ,पुष्पा ने उसे भी  अपनी कहानी सुनाई जैसे और लड़कों को सुनाई थी। बोली -मैं चाहती हूँ ,ये बात आपको किसी और से मालूम हो ,उससे पहले ही मैं बता देने में विश्वास रखती हूँ ,मैं किसी भी रिश्ते की शुरुआत झूठ से नहीं करना चाहती ,धोखा देना नहीं चाहती इसीलिए अब आप जो चाहें,सोचें या  समझें ,अब मैं जाती हूँ ,मुझे डांट पड़ेगी लेकिन मेरी ही नहीं तुम्हारी जिंदगी का भी सवाल है। 

          उधर प्रधानजी की हालत खराब ,वो सोच रहे थे ,इतनी देर क्यों लग रही है ?वो लड़का पुष्पा से बोला -मेरा नाम मोहित है ,तुम्हारी सच्चाई ,ईमानदारी और बहादुरी ने मुझे मोह लिया है। तुम चाहतीं तो इन बातों को  छिपा भी सकतीं थीं। सच्चाई को स्वीकार करना भी एक हिम्मती व्यक्ति का ही काम हो सकता है। जो बीत गया वो भूत था ,भूत में नहीं  अब हम वर्तमान में जी रहे हैं ,भूत कभी किसी का नहीं हुआ वो चला गया ,उसे भूल जाओ। अब हमारा वर्तमान अच्छा ही होगा। फिर वो बोला -मैं भी तुम्हें एक कहानी सुनाता हूँ ,पुष्पा ध्यान से सुनने लगी --एक लड़का था ,मोहित। वो एक लड़की की बहादुरी ,ईमानदारी और सच्चाई पर मर मिटा ,कहकर वो हँस पड़ा। वो बोला ''अब तुम मेरी हो ''जो हुआ उसे भूल जाओ। बाहर आकर सबको अपना निर्णय  सुना  दिया। इस निर्णय ने सबके चेहरों पर आई चिंता की लकीरें पोंछ दीं। इतने दिनों में बाद  कोई ख़ुशी की ख़बर सुनी थी। जब लड़के वाले चले गए तो सारे गाँव में ख़ुशी की लहर दौड़ गयी। इतने वर्षों की परेशानी जो दूर हो गयी थी। 






















           
laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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