ichchha [meri ek romanchk yatra 2]

अगले दिन हम' नवी मुंबई ' के लिए ' बोरीवली 'स्टेशन पर उतरे क्योंकि मेरे एक दोस्त ने पहले ही बता दिया था कि कहाँ उतरना है ? वो वहीं मुंबई में रहता था। स्टेशन पर उतरकर वो मेरा मुँह ताकने लगी  ,शायद वो जानना चाहती थी कि अब क्या करेंगे ,कहाँ जायेंगे ?तब मैंने एक टैक्सी की और और अपने दोस्त के बताये पते पर पहुँचे,वरना इस नए शहर में कहाँ जाना है, क्या करना है ?कैसे पता चलता ?दोस्त पहले से ही इंतजार में था, वहाँ से हमें वो अपने घर ले गया।यहाँ से उसके घर जाने में भी कम से कम चार घंटे लग गए।  हमने सोचा -चलो अब तो घूमने में आराम हो जायेगा ,वो तो इतने सालों से यहां रह रहा है ,उसको यहाँ की जानकारी भी होगी। रात -दिन का सफ़र करके हम थक गए थे, थोड़ी देर  सोना चाहते थे। हम नहाकर और खाना खाकर सो गए।  शाम को मेरा दोस्त भी अपने दफ़्तर से आ गया। उसकी पत्नी और कोमल ने मिलकर खाना बनाया। हमने अगले दिन का कार्यक्रम' खंडाला 'जाने का बनाया ,मैं सोच रहा था -कि वो और उसकी पत्नी भी हमारे साथ चलेंगे तो घूमने में मज़ा आएगा लेकिन उसने तो ये कहकर मेरे अरमानों पर पानी फेर दिया कि मुझे छुट्टी नहीं मिली। मैं इस बात से थोड़ा परेशान हुआ लेकिन फिर हिम्मत करके कहा -तू हमें वहाँ जाने का रास्ता बता देना हम अपने -आप ही चले जायेंगे। 

          अगले दिन हम लोग सुबह जल्दी उठे, कपिल ने एक कागज पर हमें रास्ता समझाया ,नाश्ता करके हमने उसकी मोटरसाईकिल ली ,और अपने बच्चे के साथ उन अनजान राहों पर निकल पड़े जो हमारे लिए पूर्णतः अपरिचित थीं। आज भी कभी उस समय की   याद आती है तो सोचता हूँ हमने बड़ी ही हिम्मत की थी। उन सड़कों पर हमारी मोटरसाइकिल दौड़ रही थी, चौड़ी सड़कें दोनों तरफ पेड़ ,अनजान जगह फिर भी बहुत आनंद आ  रहा था। हम उस नक्शे को देखते , किसी से रास्ता पूछते जा रहे थे। वहाँ हमने महसूस किया- किसी को किसी से बात करने का समय ही नहीं। सबको कहीं न कहीं जाने की जल्दी थी।  पता किसी को नहीं, कि  कहाँ जाना है ?देखकर लग रहा था कि उनमें एक होड़ लगी है कि पहले मैं जाऊंगा और उस भीड़ में हम भी शामिल हो गए। हमने बीच में रुककर खाना खाया। हमने देखा, कि बच्चा भी नई जगह के मजे ले रहा है। खाना सादा और स्वादिष्ट था। हमने अपने आगे का सफ़र आरम्भ किया। हम पूछते -पाछते अपने गंतव्य की और बढ़े जा रहे थे। अब तक हमें उन सड़कों पर दौड़ते हुए तीन घंटे हो चुके थे। बी च -बीच में पहाड़ भी थे, तभी कोमल ने रास्तों पर लगी तख़्तीयों पर पढ़ा -''काळा  काढ़ा चश्मा आहे ''ऐसी कई तख्तियों पर उसने पढ़ा। उसे इस तरह पढ़ने का शौक था तो वो उन्हें भी पढ़ती जा रही थी। फिर एकाएक बोली -ये  तख्तियां क्यों लगी हैं ?इन पर जो लिखा है, उसका क्या अर्थ है ?मैंने कहा -मुझे क्या मालूम ?मैं भी तो यहाँ पहली बार ही आया हूँ ,न ही मुझे मराठी आती है। वो फिर भी समझने का प्रयत्न करती रही। 
       थोड़ी देर बाद ही हमें एक सुरंग सी दिखाई दी ,वो किसी पहाड़ को ही काटकर बनाई गयी थी। हम उसके नज़दीक पहुंचे ,वहाँ तो घुप्प अँधेरा था। हमने देखा ,जो लोग उधर से निकल रहे थे उन्होंने अपने -अपने वाहन की रौशनी से निकल रहे थे। हमने भी यही करने का प्रयत्न किया लेकिन हमारे वाहन की तो ''हेडलाइट ''खराब थी। मैंने कोमल को नहीं बताया वरना वो घबरा जाती ,मैंने सोचा  जब भी कोई उधर से निकलेगा ,मैं उसी रौशनी में अपना वाहन भी दौड़ा दूंगा। तभी एक जोड़ा ,पति -पत्नी या फिर दोस्त कोई भी हो सकते थे। वो निकले जा रहे थे, मैंने भी अपना वाहन दौड़ा दिया लेकिन बीच रास्ते में पहुंचकर वो बंद हो गया। मैंने बहुत प्रयत्न किया कि चालू हो जाये लेकिन उसने धोखा दे दिया। तब तक वो लोग भी बाहर निकल गए, अब वहाँ घुप्प अँधेरा था ,हाथ को हाथ नहीं सूझ रहा था ,तब कोमल बोली -उजाला करो , तब मैंने उसे बताया ,तो वो घबरा गयी। मैंने अपना धैर्य नहीं खोया, मैं लगातार प्रयत्न करता रहा तभी एक मालवाहन की आवाज़ सुनाई दी। कोमल बुरी तरह घबरा गयी, जैसे -जैसे  वो नजदीक आ रहा था ,मेरा प्रयत्न बढ़ता जा रहा था ,तभी उस वाहन की रौशनी हम पर पड़ी और हमारा वाहन भी चालू हो गया और उसी वाहन के  उजाले में हमने भी अपना वाहन दौड़ा दिया ,तब उस सुरंग से हम बाहर निकले। 

            अब कोमल बोली-''काळा  काढ़ा चश्मा आहे ''का ये ही अर्थ होगा।'' काळा  काढ़ा मतलब घना अँधेरा। वो बोली -ऐसी स्थिति में कोई फँस जाये तो ,या  कोई दुर्घटना हो जाये तो किसी को पता भी न चले यह कहकर वो सिहर उठी। हम फिर भी अपने गंतव्य की और बढ़े जा रहे   थे। इतना आगे आकर वापस नहीं जाना चाहते थे। हम ऊँचाई की ओर बढ़े जा रहे थे। अब हम उस सड़क पर थे जो पुणे जाती थी। अब हमने किसी से पूछना ही बेहतर समझा ,उसने हमें बताया-' सीधे जाइये'हमें सीधे चलते हुए काफी समय हो गया. वहाँ एक मील का पत्थर देखा जिस पर पुणे की दूरी लिखी थी ,तब कोमल बोली -शायद हम ग़लत रास्ते पर हैं, फिर से  किसी से पूछा कि ''भूसी डैम ''कहाँ है ?तब उसने हमें वापस जाने के लिए कहा। हम जहाँ से चले थे, वापस वहीं आये किसी से पूछा तो उसने वहीँ नज़दीक ही रास्ता बताया। बच्चे के साथ परेशानी के बाद भी हमारे चेहरे पर ख़ुशी आ गयी और हम आगे बढ़े। आप पढ़ेंगे तो हँसेंगे -हम कुछ आगे चले तो हमें वहाँ एक बड़ा सा तालाब दिखा, हमने सोचा- शायद यही वो जगह है। और हमने वहीं मज़े करने का मन बनाया लेकिन उस जगह कोई नहीं था। वहाँ का वातावरण ही ऐसा था किसी से दो बार पूछो तो एक बार जबाब देते हैं।  किसी को किसी से कोई मतलब ही नहीं ,देखकर निकल जाते हैं। हम वहीं नहाये ,बच्चे को दूध दिया फोटो खींचे। उस समय न ही फोन थे कि किसी से दूरभाष पर सम्पर्क करके जगह का मालूम करें या गूगल से पूछ लें कि अब हम कहाँ हैं ?हमने वहीं आराम किया।कपड़े   बदले ,जब हम  चलने को हुए तो कोमल बोली -इस दूसरे रास्ते से ये लोग कहाँ जा रहे हैं ?मैंने कहा -चलो वहाँ भी देख लेते हैं, हम अपने वाहन पर बैठे और उधर ही चल दिए वहाँ थोड़ी भीड़ लगी ,तभी हमने पूछा- इधर कौन सी जगह है तो उस व्यक्ति  बताया कि इधर ''भूसी डैम ''है तब हमने एक -दूसरे को देखा कि जहाँ हम लोग नहाये वो क्या जगह थी ?हम आगे बढ़ चले ,वहाँ  बहुत से रेस्तरां थे और गाड़ियों में लड़के -लड़कियाँ आगे बढ़े जा रहे थे। हम भी उधर ही चले लेकिन वहाँ तो बरसात  थी।  जैसे -जैसे हम आगे बढ़ते जा रहे थे वैसे ही बरसात भी बढ़ रही थी। मोटी -मोटी बूँदे चेहरों पर पड़ रही थीं, बरसात इतनी घनी थी कि कुछ दिखाई नहीं पड़ रहा था। वहाँ हमें बाज़ार से अलग एक चाय की बंद दुकान या कहें तो झोपडी सी दिखी ,जो  बंद थी।  हमने सोचा -यहाँ थोड़ी देर खड़े हो जाते  हैं

,बरसात रुक जाये तो आगे बढ़ेंगे। दूर कहीं से पहाड़ दिखाई दे रहे थे लेकिन कुछ समय बाद बारिश की अधिकता के कारण वे भी दिखने बंद हो गए। हम बहुत देर से वहाँ भीगे खड़े थे। अब बच्चे की चिंता भी होने लगी कि कहीं वो बीमार न हो जाये। लड़के -लड़कियाँ इकट्ठे वहाँ से शोर मचाते हुए जा रहे थे। कुछ अजीब नजरों से देख रहे थे, कोमल थोड़ा घबराई ,बोली -अब हम यहाँ से चलते हैं ,मैंने भी यही ठीक समझा ,फिर भी मेरी एक बार  इच्छा  थी  वो जगह देखने की ,तब हम  अपनी मोटरसाइकिल पर बैठे और मैंने हिम्मत करके उधर ही दौड़ा दी, बारिश की  मोटी -मोटी बूँदे ओलों की तरह लग रही थीं। कुछ दिखाई नहीं दे रहा था काफी आगे जाकर कुछ धुंधला सा दिखा कि एक झरना सा था जिसमें कुछ लोग नहा रहे थे। हम कुछ समझ नहीं पाए और वापस जाने के लिए मुड़ गए जैसे -जैसे हम उस जगह से दूर होते गए, बरसात कम होती गयी। उस जगह से निकलने के बाद हमने देखा कि यहाँ तो बरसात की एक भी बून्द नहीं थी। 
            अब हम अपने रास्ते लौट रहे थे। कोमल बोली -क्या यही है ,''आती क्या खंडाला ''यहाँ तो लोखंडवाला लिखा है। क्या लड़के -लड़कियाँ इतनी बारिश के बाद, फिर उस झरने में भी तो नहाते ही हैं ,यहाँ इतनी दूर भीगने आते हैं। मैंने अपनी रफ़्तार बढ़ा दी तभी वो बोली अब भी उसी काले चश्मे से निकलेंगे तब मैंने कहा -नहीं दूसरे रास्ते से जायेंगे। तब  वो आश्वस्त हुई। हमने वहाँ की प्रसिद्ध चिक्की खरीदी ,हमारे कपड़े भीगे थे, बदलने के लिए और कपड़े नहीं थे। धीरे -धीरे हवा और गर्मी से सूख गए। बरसात की मा र और हवा के थपेड़ों से कोमल की त्वचा लाल पड़ गयी।   शाम को हम घर पहुंच गए। एक दिन बाद हमें जाना था तो हमने उस दिन मुंबई घूमना बेहतर समझा। अगले दिन हम अपनी' लौहपथ गामिनी'  से वापस लौट रहे थे। इन बातों को कई वर्ष बीत गए ,उसके बाद तो हम और भी  कितनी ही जगह जा चुके लेकिन ऐसा रोमांच हमें आज तक नहीं हुआ। आज भी जब कभी उस यात्रा की याद आती है तो लगता है जैसे कल ही की बात हो। घर में या दोस्त से हमने कभी कुछ नहीं बताया। वो हमारी जिंदगी का पहला अनुभव था जो  हमें रोमाँच से भर देता है। 





















laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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