जहाँ तक मैं जानता हूँ ,अमीर लोग जब दिल किया घूमने चल देते हैं ,अथवा व्यापार के सिलसिले में देश -विदेश घूमते हैं और कुछ नहीं तो छुट्टियाँ मनाने चल देते हैं। हम जैसे लोग तो एक-एक पैसा जोड़कर अपनी आवश्यकताएं ही पूरी करते रहते हैं ,जब अपनी आवश्यकताएं पूरी हो जायें तो बच्चों की आवश्यकताओ को पूरा करने का प्रयत्न करते हैं। घूमने जाना ,चलचित्र देखना तो ये हमारे लिए फ़िजूल खर्ची में आते हैं। पहले तो इतना समय मिलता ही नहीं कि अपने व्यस्त जीवन में से ,बाहर घूमने के लिए समय निकाल सकें लेकिन कभी-कभी हमारी इच्छाएं भी बलवती हो उठती हैं। जब मेरा विवाह हुआ तो 'श्रीमतिजी' यानि कोमल ने हमें भी अपनी एक छोटी सी इच्छा ज़ाहिर की ,उसका ये इच्छा ज़ाहिर करना बनता भी है क्योंकि जब नया -नया विवाह होता है तो सबकी इच्छा जाती है कि बाहर घूमें और अब तो चलन भी हो गया। अब तो लड़का -लड़की विवाह से पहले ही घूमने कहाँ जाना है ? इसकी तैयारी कर लेते हैं। उस समय वर -वधू विवाह से पहले नहीं मिलते थे। जब कोमल ने अपनी इच्छा बताई तो बड़ी परेशानी हुई कि हम अपनी पत्नी की इतनी छोटी सी इच्छा भी पूर्ण करने की स्थिति में नहीं थे। हमने कोमल को समझाया कि हमारी अभी ही नौकरी लगी है और ऊपर से विवाह में भी अधिक व्यय हो गया , लेकिन एक न एक दिन अवश्य ही उसकी इच्छा पूर्ति करेंगे।
इस मामले में मेरी लॉटरी अच्छी निकली ,कोमल ने हमारी परिस्थितियों को समझा और मान गयी। हम दोनों अपनी -अपनी जिम्मेदारियों में व्यस्त हो गए लेकिन मन में ठान लिया था कि एक दिन उसकी इच्छापूर्ति करके उसे चौंका देंगे। मैं थोड़ा -थोड़ा करके पैसे भी जोड़ रहा था ,विवाह की वर्षगांठ पर मैं उसे ये ही उपहार देने वाला था ,सोचा अब ये ही समय है उसे उपहार के रूप में घूमने जाने के टिकट देकर फिर सोचा कि पूछ लूँ ,कोई विशेष जगह जाने की इच्छा तो नहीं ,अंदर ही अंदर घबराहट भी थी कि कहीं ऐसी जगह न बोल दे जो बज़ट में न हो। फिर सोचा ,अभी इच्छा पूर्ति कर देते हैं वरना फिर बच्चे हो गए तो खर्चे बढ़ेंगे ही ,कम तो होंगे ही नहीं ,कितना भी बज़ट से चल लें लेकिन कुछ न कुछ ऊपर-, नीचे हो ही जाता है ?महंगाई भी तो स्थिर नहीं रहती। पचास -साठ का हिसाब लेकर चलते हैं तो सौ का पत्ता मुँह चिढ़ाता नज़र आता है। वैसे इस मामले में मैं किस्मतवाला ही था , जो श्रीमतिजी की इच्छाएं ज़्यादा बड़ी नहीं थीं ,कभी चलचित्र देखने जाने के लिए कहता भी तो कह देतीं -ये तो कुछ समय बाद दूरदर्शन पर ही आ जाती हैं ,क्यों पैसे बर्बाद करने ?मैंने हिम्मत करके कोमल से पूछ ही लिया -क्या तुम्हारी कहीं विशेष स्थान पर जाने की इच्छा है। उन दिनों एक गाना चलता था ''ए क्या बोलती तू ?''
कोमल ने वो ही गाना सुनाते हुए ,अपनी इच्छा ज़ाहिर की -मुझे 'खंडाला' जाना है ,मैं हैरत से बोला -तुम मुंबई घूमना चाहती हो ?मैं सोच रहा था, कि तुम कहीं देश से बाहर जाना चाहती थीं। वो बोली -अभी तो मैंने अपना देश ही नहीं देखा ,पहले यहीं घूम लेते हैं। मैं उसके भोलेपन पर रीझ गया। अब मैं लम्बी सी छुट्टी का इंतजार कर रहा था, कोई त्यौहार आये और हम घूमने जायें।पन्द्रह दिनों बाद मुझे कोमल ने सूचना दी , कि वो गर्भवती है।मैं सोच रहा था, कि मैं इस सूचना पर खुश होऊं या..... इस सूचना पर थोड़ा विचलित हुआ मैंने अपनी दुविधा कोमल को बताई तो बोली -कोई बात नहीं बच्चे के साथ ही चलेंगे। अब हमारा कार्यक्रम फिर से टल गया ,बच्चा होने के बाद कुछ न कुछ काम पड़ ही जाता बच्चा भी अब डेढ़ वर्ष का हो गया। अब मैंने निश्चय किया ,जाना ही है। किसी तरह मैंने हम दोनों की जगह आरक्षित करवाई और हम दोनों अपने बच्चे के साथ ,अनेक समस्याओं को छोड़ ,मुंबई जाने वाली' लौहपथ गामिनी 'में विराजमान हो ही गए। बच्चा साथ में था, वैसे अब श्रीमति जी का जोश भी अब लगभग समाप्त सा हो चला था। घर के कामों से फिर बच्चे की देखभाल से वो थक जाती थीं। मैंने समझाया जब भी मौका मिले तभी चल देना चाहिए वरना समय कभी नहीं मिलेगा।
बेमन से चल तो दीं लेकिन डिब्बे में बैठते ही कोमल की भावनाओं के फूल ख़िल उठे ,उसके चेहरे पर एक मासूम सी हँसी ने बसेरा किया। बच्चा भी बाहर के नजारे देख अचम्भित हो चारों तरफ़ देख रहा था। हम सुबह ही निकले थे, हमने दोपहर का खाना जो हम घर से ही बना कर ले गए थे, वो ही खाया। हींग ,अजवाइन की पूरी के साथ, आलू की भाजी और मिर्च का अचार बहुत ही स्वादिष्ट लगे। कोमल बच्चे को गोद में लिए बैठी थी ,मैं खाना खाकर थोड़ा सुस्ताने लगा था।तभी एक फौजी भाई हमारे डिब्बे में चढ़ा। हमारी लौहपथ गामिनी अपने गंतव्य की ओर बढ़ी जा रही थी। लगभग आधा घंटा ही बीता होगा। एक छोटे से स्टेशन पर चार -पांच लोग चढ़ गए। हमारे ही डिब्बे के दूसरी तरफ एक सुंदर लड़की बैठी थी। वो लोग उसे छेड़ने लगे कुछ देर तो वो बर्दास्त करती रही लेकिन कुछ देर बाद हाथापाई पर आ गयी ,शोर मचा तो हम भी हालात जानने का प्रयत्न करने लगे ,पता चला कि वो लोग अब मिलकर उस फौजी के साथ लड़ रहे हैं वो अकेला उन चारों से टक्कर ले रहा था। बात हाथ से निकलते देख उसने शोर मचाया -फ़ौजी को मार लिया ,फ़ौजी को मार लिया। तब कोमल ने बच्चा मेरे हाथों में दिया ,वहॉँ बैठे लोगों को सम्बोधित करके बोली -क्या आप लोग देख नहीं रहे कि वो लोग चार हैं ,एक अकेले को घेरे हैं। तभी एक बोला - हमने थोड़े ही कहा था ,उनसे उलझने के लिए ,क्या वो लड़की इसकी कुछ लगती है ?ऐसे कोई भी किसी की मदद के लिए तैयार नहीं होगा। कल को हमारी ही किसी बहन बेटी पर आँच आये तो कोई न बचायेगा। वो एक फ़ौजी है उसकी जान भी सस्ती नहीं ,वो लोग सिर्फ चार हैं, हम लोग इतने सारे। नेता बनने का इतना ही शौक है तो आप जाइये ऊपर की बर्थ से एक व्यक्ति ने मुँह लटककर कहा। हाँ, पहले मैं ही जाती हूँ ;लेकिन आप लोग भी उठकर आइये ,तभी हम इन्हें भगा सकते हैं। मैं बच्चे को लिए बैठा था, मैंने उसे रुकने के लिए भी कहा, लेकिन वो आगे बढ़ चुकी थी।
वो उनके पास जाकर बोली -क्या भाई! आप लोग ये सब क्यों कर रहे हैं ?अरे !आप चलिए, बैठिये अपनी जगह पर ,उनमें से एक झुंझलाकर बोला। एक बड़े की तरह उन्हें समझाने का प्रयत्न करने लगी। गलती तो तुम्हारी है। उसकी बातों पर ध्यान न देते हुए ,वो बोले देखो ,आपसे हमारी कोई दुश्मनी नहीं आप यहाँ से जाइये ,आपका क्या लगता है ये ?उसने कोमल को घूरते हुए पूछा। वो कड़े शब्दों में बोली -मेरा भाई लगता है ,देश का रक्षक है ये ,तुम्ही सोचो ,यदि इस लड़की की जगह तुम्हारी अपनी बहन होती तब भी ये उसे बचाता ,इसका फर्ज़ है लेकिन तुम लोग क्या कर रहे हो ?तब तक और लोग भी आ चुके थे। उस व्यक्ति को कोमल की बात ठीक लगी या फिर इतनी भीड़ को देखकर उसने अपने आदमियों को इशारा किया। पता नहीं उन्होंने क्या सोचा ,और वे कूदकर भाग गए। जब थोड़ा मामला शांत हुआ ,तब आकर वो अपनी जगह पर बैठी ,मैंने उसे नाराजगी जताते हुए कहा -बच्चा तो मुझे दे दिया और स्वयं मैदान में कूद पड़ी ,तुम्हें कुछ हो जाता तो ?हुआ तो नहीं ,वो बोली -मरना तो है एक न एक दिन ,तो फिर कोई अच्छा काम ही कर जाओ। उस दिन मैंने कोमल का एक नया ही रूप देखा था।अब चारों और शांति सी थी शायद ,सबके जहन में अब भी वो ही बातें घूम रहीं थीं। एक घंटे बाद फिर कोई स्टेशन आया। अब यहाँ चहल -पहल हो रही थी। चाय वाले ,भजिया वालों की आवाज़ आ थी कुछ लोग नीचे उतर रहे थे ,कुछ पानी लेने उतरे। हमने भी चाय ली और अपने घर से लाया खाना खाया। रात और गुजारनी है हमें ,अगले दिन हम अपनी मंजिल पर होंगे,मैंने कोमल से कहा।


