श्रीमति मल्होत्रा और श्रीमति गुप्ता अपने घर के दरवाज़े पर खड़ीं किसी बात को लेकर एक -दूसरे से बातचीत कर रहीं थीं।तभी श्रीमति मल्होत्रा बोलीं -चलो भाभीजी !त्योेहारों के दिन हैं , चलो बाज़ार घूम आते हैं। श्रीमति गुप्ता बोलीं -आप ठहरिये ,मैं अभी आती हूँ और वो घर के अंदर चलीं गयीं। मल्होत्रा अभी इंतजार में खड़ी ही थीं ,तभी उन्होंने देखा- एक महिला तेज क़दमों से उधर की तरफ ही चली आ रही है ,साथ में उसकी बेटी भी है। श्रीमति मल्होत्रा ने उस महिला को देखा तो उनके चेहरे पर एक मुस्कान आई ,बोलीं
-आज कहाँ जा रहीं हैं ?माँ -बेटी की सवारी। वो बोली -कहीं नहीं ,चाचीजी ![अपनी बेटी की तरफ इशारा करते हुए ]इसे ,इसकी पसंद की राखी दिलवाने ले जा रही हूँ ,अपने भाई को अपनी पसंद की राखी जो बाँधनी है ,इसे। अच्छा ,तो हम भी बाज़ार ही जा रहे हैं ,तुम चाहो तो हमारे साथ चल सकती हो। नहीं ,चाचीजी मैं थोड़ा जल्दी में हूँ ,घर पर पिंटू को मम्मीजी के पास छोड़कर आयी हूँ, कहीं उन्हें तंग न करे ,इसीलिए जल्दी जाना है कहकर ,वो आगे बढ़ गयी। तभी श्रीमति गुप्ता जी आ गयीं ,बोलीं -आप किससे बातें कर रही थीं ?गीता से ,वो बोलीं। कौन गीता ?श्रीमति गुप्ता ने अनभिग्यता जताते हुए कहा। चौंककर श्रीमति मल्होत्रा बोलीं -अरे ,आप गीता को नहीं जानतीं ,हमारे घर से चौथा मकान ही तो उनका है। यादवजी की बहु है। क्यों ऐसी क्या बात है ,उसमें ? जो मुझे जानना चाहिए ,श्रीमति गुप्ता जी बोलीं। श्रीमति मल्होत्रा बोलीं - इसकी तो सारी राम कहानी मुझे पता है ,आपको बताती हूँ ,इसमें क्या ख़ास बात है ?
-आज कहाँ जा रहीं हैं ?माँ -बेटी की सवारी। वो बोली -कहीं नहीं ,चाचीजी ![अपनी बेटी की तरफ इशारा करते हुए ]इसे ,इसकी पसंद की राखी दिलवाने ले जा रही हूँ ,अपने भाई को अपनी पसंद की राखी जो बाँधनी है ,इसे। अच्छा ,तो हम भी बाज़ार ही जा रहे हैं ,तुम चाहो तो हमारे साथ चल सकती हो। नहीं ,चाचीजी मैं थोड़ा जल्दी में हूँ ,घर पर पिंटू को मम्मीजी के पास छोड़कर आयी हूँ, कहीं उन्हें तंग न करे ,इसीलिए जल्दी जाना है कहकर ,वो आगे बढ़ गयी। तभी श्रीमति गुप्ता जी आ गयीं ,बोलीं -आप किससे बातें कर रही थीं ?गीता से ,वो बोलीं। कौन गीता ?श्रीमति गुप्ता ने अनभिग्यता जताते हुए कहा। चौंककर श्रीमति मल्होत्रा बोलीं -अरे ,आप गीता को नहीं जानतीं ,हमारे घर से चौथा मकान ही तो उनका है। यादवजी की बहु है। क्यों ऐसी क्या बात है ,उसमें ? जो मुझे जानना चाहिए ,श्रीमति गुप्ता जी बोलीं। श्रीमति मल्होत्रा बोलीं - इसकी तो सारी राम कहानी मुझे पता है ,आपको बताती हूँ ,इसमें क्या ख़ास बात है ?
गीता के ससुर यादवजी अपने बिगड़े लड़के के लिए कोई अच्छी लड़की ढूँढ रहे थे ,उन्हें गॉँव की सीधी -साधी लड़की गीता बहु के रूप में मिली। यादवजी का लड़का तो क्या खुबसूरत ,आकर्षक किसी हीरो की तरह लगता था। जब सब रिश्तेदार गीता को देखने गए तो सबने ही मुँह बनाया। बोले -लड़के के सामने तो लड़की अट्ठारह है ,रंग भी सांवला था लेकिन यादवजी ने तो अपने लड़के के लिए गीता को पसंद कर लिया उन्होंने किसी की भी नहीं सुनी। सब कहते ही रहे कि इन्होंने इस लड़की में ऐसा क्या देखा जो इन्हें पसंद आया। घर आते ही बहु ने घर के सारे काम समझ लिए और वो यादवजी की लाड़ली बहु बन गयी। गाँव से शहर में आई ,रहन -सहन बदला तो उसका रूप -रंग भी निखर आया। व्यवहार से तो पहले ही सबका दिल जीत चुकी थी। अपने पति का भी ध्यान रखती धीरे -धीरे वो भी सुधरने लगा। सबकी इच्छाओं ख़्याल रखती। तीन साल बाद उसके देवर का विवाह हुआ ,उसकी बहु सुंदर , पढ़ी -लिखी और तेज थी। उसे अपनी उपलब्धियों का एहसास था और घमंड भी। गीता सुबह उठकर सारे घर के काम नियमित रूप से करती ,जैसे वो पहले से ही करती आई थी।
छोटी बहु ने , गीता को भी अपनी बातों में उलझाना चाहा लेकिन गीता ने पहले अपनी ससुराल यानि घर को महत्व दिया। उसे अपने ससुर का विश्वास नहीं तोडना था लेकिन छोटी बहु फिर भी किसी न किसी बात पर घर में अशांति का माहौल बना ही देती ,तब तो अति हो गयी जब वो गर्भवती हो गयी। रिश्तेदारों ने भी कहना शुरू किया कि बड़ी बहु को तो चार वर्ष हो गए अभी तक बच्चे का मुँह नहीं दिखाया और उससे छोटी आते ही गर्भवती हो गयी। अब तो गीता भी महसूस करने लगी और उसने अपने मायके जाकर किसी वैद्य को दिखाया लेकिन उसकी दवाइयों ने उसे और बिमार सा कर दिया। इधर छोटी के नखरे बढ़ते ही जा रहे थे। न ही किसी का कहना मानती न ही कोई बात सुनती ,अपनी मनमर्जी करती। इस कारण से उसके अपनी सास से भी झगड़े हो गए। गीता अपनी सास को ही समझा देती- कि अभी उसकी हालत ऐसी नहीं है ,उसके बच्चे पर गलत असर होगा ,वो छोटी का पूरा ध्यान रखती लेकिन पता नहीं क्यों ?उसके मन में गीता के प्रति अजीब सी कड़वाहट थी। उधर गीता अपनी पढ़ाई भी पूरी कर रही थी। गीता के परिक्षा शुरू होने वाली थी और छोटी का भी नवा महीना चल रहा था। गीता ने उससे पूछा भी -यदि कोई परेशानी हो तो बताना मैं अपनी परिक्षा छोड़ दूंगी। उसने किसी भी तरह की मदद के लिए इंकार कर दिया।
एक दिन छोटी को परेशानी हुयी और उसने घर में किसी को नहीं बताया अपने पति को फ़ोन करके बुलाया और अस्पताल में दाख़िल हो गयी। उसने एक बेटी को जन्म दिया ,दोनों ही पति -पत्नी प्रसन्न थे। अब उसके पति ने कहा, कि घर में सूचना दे देते हैं। वो घर के लोगों को बताने के लिए आया घरवालों ने आपत्ति जताई कि तुम्हें पहले ही बताना चाहिए था। उसने बताया कि मेरी पत्नी ने ही मना किया था अभी इस विषय पर वार्ता चल ही रही थी कि उसे फोन आया कि अचानक उसकी पत्नी की हालत गंभीर हो गयी है। वो अस्पताल के लिए भागा ,घर के सभी सदस्य दौड़े। बहु को किसी दूसरे बड़े अस्पताल में भर्ती किया गया ,उसका केस बिगड़ गया था। तीन -चार दिन की जद्दोजहद के बाद छोटी ने दम तोड़ दिया। अब गीता पर जिम्मेदारियाँ आ पड़ीं। छोटी दुधमुंही बच्ची को सम्भालना ,घर का काम करना ,देवर को भी सांत्वना देना। सारे ही काम उसने बख़ूबी निभाये। देवर तो बेटी का मुँह देखना ही नहीं चाहता था उसे मनहूस कहता। गीता ने उसे अपनी बेटी बनाकर रखा। अब तो रिश्ते दारों को नई बात मिल गयी ,कहते -ये तभी तक इसे लाड़ लड़ा रही है जब तक इसकी अपनी कोई औलाद नहीं हो जाती ,इसको इसका बाप तो रख नहीं रहा इसीलिए इसे इसके मामा के यहाँ भेज दो लेकिन गीता को उस बच्ची से प्यार हो गया उसने मना कर दिया। बोली -मेरी बेटी बनकर रहेगी।
रिश्तेदारों ने कहा -जिसकी माँ इसके साथ इतना दुर्व्यवहार करती थी ,उसकी बेटी को कैसे रखेगी ?तब गीता बोली -उसने तो मुझे इतना सुंदर उपहार दिया है ,मैं कैसे ?उससे नाराज़ हो सकती हूँ। इस बेचारी ने तो अपनी माँ का मुँह भी नहीं देखा, कहकर गीता रोने लगी। उसके देवर को सम्भलने में दो -तीन साल लग गए ,उसके पिता ने उसके लिए लड़की देखनी शुरू की। एक जगह रिश्ते की बात बनी भी लेकिन उन्होंने बेटी की जिम्मेदारी सोच इंकार कर दिया तब गीता ने कहा -ये मेरी बेटी है ,इसका तुम लोगो से कोई मतलब नहीं होगा। गीता ने उस लड़की का नाम ज्योति रखा। श्रीमति गुप्ता जी कहानी में दिलचस्पी लेती हुयी बोलीं -क्या गीता के कोई बच्चा नहीं हुआ ?श्रीमति मल्होत्रा मुस्कुराकर बोलीं -अब ये ही तो बताने जा रही हूँ ,गीता ने बहुत से डॉक्टर ,वैद्य बदले। कई टैस्ट भी कराये और भगवान ने विवाह के दस साल बाद उसकी सुन ली और उसने एक बेटे को जन्म दिया। गीता सबसे यही कहती कि भगवान ने ज्योति के लिए भाई भेजा है ,बेटे का नाम उसने दीपक रखा। कहती- इस कन्या के कारण ही मुझ पर बाँझ होने का कलंक नहीं लगा। माँ तो मैं पहले ही बन गयी थी। उसकी ऐसी अच्छी सोच और निःस्वार्थ भाव से एक बच्ची को उसने माँ का प्यार दिया। श्रीमति गुप्ता जी बोलीं -और उस बच्ची की सौतेली माँ ,वो नहीं पूछती।श्रीमति मल्होत्रा बोलीं - नहीं ,उसका कोई मतलब नहीं इस बच्ची से ,न ही पिता को। वो बच्ची भी अपनी सब परेशानियाँ अपनी गीता माँ को ही बताती है। आज भी छोटे बच्चे को छोड़ वो बेटी को उसकी पसंद की राखी दिलाने ले गयी।
पता नहीं ,गीता के विषय में आपको क्यों नहीं मालूम ?हमारे मौहल्ले में तो सब जानते हैं ,और अब अपने बच्चों के विद्यालय में ही अध्यापिका है।श्रीमति गुप्ता बोलीं - सच में बड़ी हिम्मती लड़की है और सच्ची भी। अब सारे रिश्तेदार समझ गए कि यादव जी सबके मना करने के बावजूद भी क्यों अपने बेटे का विवाह गीता से ही करने पर तुले थे ?


