नहीं ,पिताजी !मैं अभी विवाह नहीं करुँगी। मुझे अभी और पढ़ना है। माँ ने दबी आवाज में बेटी को डाँटा । क्या, तेरी बहनों ने विवाह नहीं किया, समय से ही सब अपने घर -बार की हो गयीं। लेकिन माँ !मुझे अभी और पढ़ना है,जया बोली। चुपकर ,तू सबसे अलग चलेगी माँ ने इस डर से बेटी को चुप कराया कहीं इसके पिता सुन न लें। जया के पिताजी ,माँ -बेटी की बातें सुनकर चुपचाप बाहर चले गए। रास्ते में जाते हुए सोच रहे थे ,बेटी ने एक सवाल पूछा था -क्या ,मेरी सभी बहनें अपनी -अपनी ससुराल में खुश हैं ?उस समय वो उसे कोई जबाब नहीं दे पाए ,[ क्योंकि वास्तविकता से परिचित थे। ] पहले बहुत गुस्सा आता था ,उन्हें , उन्होंने विवाह की उम्र होते ही बेटियों के विवाह कर दिए। किसी की भी इतनी हिम्मत नहीं थी कि नजर मिलाकर भी बात कर सके। किसी ने कभी कुछ नहीं कहा लेकिन मैं जानता हूँ ,वे अपनी -अपनी ससुराल में परेशान हैं। अब ये छोटी रह गयी ,अपनी बहनों से ज्यादा भी पढ़ी लेकिन गांव में इससे आगे कोई और विद्यालय भी नहीं लेकिन वो अभी आगे पढ़ना चाह रही है। उसके तर्क से लगता है कि उसे आगे पढ़ना चाहिए। मन ही मन सोचा ''देखते हैं ,अपनी माँ को कैसे समझाती है ?
उधर जया अपनी माँ से बोली -जब मैं सबसे अलग हूँ तो अलग ही चलूंगी। देखा नहीं मेरी बहनें गोरी और सुंदर हैं फिर भी अपनी ससुराल में काम करती हैं और परेशान हैं। न ही मैं सुंदर हूँ न ही मेरा रंग गोरा है ,कुछ लोगों के लिए गोरा होना ही सुंदरता का मापदंड है। मुझे गांव में ब्याह देना, वहाँ चूल्हे पर रोटी बनाती रहूंगी। चेहरे पर जो थोड़ी बहुत चमक है ,वो भी न रहेगी।कल्पना करते हुए बोली - मुझे नहीं करना विवाह अभी और पढ़ना है। ससुराल में जब परेशान होऊँगी ,तब तुम न आओगी ,और बेटियों का कितना दुःख बाँट पाती हो ? शाम को पिताजी आये। माँ ने उन्हें अपनी योजना बताई -इसकी बड़ी बहन जो शहर में रहती है उसके पास भेज देते हैं वो इसे समझाएगी, उसका फोन भी आया था। अगले दिन पिताजी जया को लेकर उसकी बहन के पास गए। बहन ने समझाया - कुछ दिनों के लिए इसे यहाँ छोड़ दीजिये , मैं समझाने का प्रयत्न करुँगी , शायद इसका मन भी बदल जायेगा।
जया को उसकी जिम्मेदारी पर छोड़कर पिताजी गाँव चले गए।यहाँ उसकी बहन ने समझाने का प्रयत्न किया लेकिन जया तर्क के आगे उसने भी हार मान ली और उसके लिए कॉलिज का फॉर्म मंगवा दिया ,इस तरह जया की आगे की शिक्षा आरम्भ हो गयी। एक माह पश्चात जब पिताजी आये तो उन्हें पता चला कि जया ने आगे की शिक्षा जारी रखी है। बड़ी दीदी ने पिताजी को समझाना ही बेहतर समझा बोली - इसका रंग काला है ,पढ़े -लिखेगी नहीं तो ठीक सा लड़का कहाँ से मिलेगा ?फिर भी विवाह करा दिया और खुश नहीं रही तो क्या फायदा ?ऐसे विवाह करने से। बात पिताजी को जंची फिर भी बोले -मैं चाहता था कि जीते -जी अपने घर-बार की हो जाती ,मैं अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो जाता। दीदी ने समझाया -अब आप जया की तरफ से निश्चिन्त हो जाइये ,अब ये मेरी जिम्मेदारी है। कहकर पिताजी को भेज दिया। कुछ दिन तो जया ने वहीं रहकर अपनी पढ़ाई जारी रखी उसके पश्चात वो छात्रावास में चली आई।वहाँ रहकर उसने अर्थशास्त्र विषय से मास्टरी हासिल की। इस बीच पिताजी ने फिर से उसे विवाह के लिए टोका लेकिन अभी वो उस मंजिल पर नहीं पहुँच पाई थी जो उसने सोची थी। उसने फिर से कुछ सालों की मौहलत और मांगी, उसने अपने विषय में शोध किया। कुछ सालों बाद वो डॉक्टर जया बन चुकी थी लेकिन ये सब देखने के लिए उसके पिता जिन्दा नहीं रहे।
डॉ,जया अब नौकरी करने लगी ,उसने अब विवाह से बिल्कुल इंकार कर दिया , कारण सिर्फ वो ही जानती है और किसी को न ही उसने बताया न ही कोई पूछने वाला था। रोहित उसकी जिंदगी में जैसे कुछ क्षणों के लिए आया और चला भी गया। गलती उसकी भी नहीं है उसे तो पता ही नहीं था कि जया के मन में उसके प्रति कुछ कोमल भावनायें पल्ल्वित हो चुकी हैं। उसे लेकर वो सपने सजाने लगी है। वो जब भी उससे मिलता,हँसी -मज़ाक करता तो जया अलग ही दुनिया में खो जाती। शोध के समय दोनों एक -दूसरे से बातचीत करते ,उसके साथ रहना जया को अच्छा लगने लगा अब वो अधिक से अधिक समय उसके साथ व्यतीत करना चाहती। रोहित का अपनापन ,उसे सम्मान देना कब उसके मन में प्यार के अंकुर पनपने लगे, जया समझ नहीं पाई ,अभी वो ठीक तरह से अपने को ही जबाब दे पाती उससे पहले ही उसका भ्रम टूट गया। एक दिन वो कुछ सामान लेने बाजार गयी थी ,वहीं जया ने रोहित को एक सुंदर लड़की के साथ देखा। उन्हें देखकर लग रहा था कि वो एक -दूसरे को अच्छी तरह से जानते हैं।न चाहते हुए भी अधिक समय तक वो उन्हें देख नहीं पाई ,पता नहीं क्यों ?उसे उस लड़की के साथ घूमना ,बातें करना अच्छा नहीं लगा, वो अपने छात्रावास में लौट आयी। उसे जैसे अपने -आप पर ही गुस्सा आ रहा था।
आज वो अपने को बौना महसूस कर रही थी। आज उसे अपने काले रंग पर गुस्सा आ रहा था वो कहीं छुप जाना चाहती थी। जया उस लड़की से मिलना चाहते हुए भी मिल नहीं पाई। उसके मन में उस लड़की के विषय में जानने की इच्छा जाग्रत हो गयी। वो जानना चाहती थी कि उस लड़की का रोहित से क्या रिश्ता है ?कुछ बुरे की आशंका से उसके मन में घबराहट थी। ख़ैर ,धीरे -धीरे उसने अपने -आप को संभाला और समझाया अपने करियर के इतने नजदीक आकर वो किसी भी तरह की भावनाओं में नहीं बहेगी। दो दिन बाद रोहित उसके पास आया वो उससे मिली। एक विषय को लेकर दोनों में बहस छिड़ गयी। इस बीच बार -बार उसके मन में उस लड़की के विषय में जानने की इच्छा बलवती हो रही थी। बहस खत्म होते ही उसने पहला प्रश्न ये ही दाग दिया - परसों किस लड़की के साथ' सदर बाज़ार 'में घूम रहे थे ?रोहित ने पहले थोड़ा सोचने प्रयास किया फिर याद आते ही बेझिझक बोला -अच्छा वो ,तो मेरी पत्नी थी साथ में ,घर के कुछ जरूरी सामान लेने थे , उसकी बातें सुनकर वो एकदम से चौंक उठी और बोली -क्या तुम शादीशुदा हो ?रोहित अपनी ही मस्ती में मुस्कुराता हुआ बोला -हाँ। जया बोली -तुमने कभी बताया ही नहीं। वो उसी सहजता से बोला -कभी ऐसी बातें हमने की ही नहीं, पढ़ाई के अलावा ,मेरा विवाह तो जब मैं स्नातक कर चुका था तभी हो गया था 'नीलम' भी पढ़ रही थी लेकिन वो स्नातक के बाद पढ़ाई छोड़कर घर -गृहस्थी के कामों में लग गयी लेकिन मुझे आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करती रही। सब कुछ वो ही संभालती है ,वो अपनी पत्नी यानि नीलम की बातों में इतना खो गया कि उसे ध्यान ही नहीं रहा कि जया पर क्या बीत रही है?
रोहित के जाने के बाद जया देर तक रोती रही। इसके लिए वो किसी को दोष भी नहीं दे सकती थी ,वो उसकी अपनी भावनायें थीं। रोहित को तो उसकी भावनाओं की भनक भी नहीं थी। एक सप्ताह बाद सुचना मिली कि पिताजी नहीं रहे। जीवन व्यर्थ नजर आने लगा। उसे ये जीवन ही बेजान ,बेमतलब महसूस हो रहा था। उसे अब उम्मीद भी नहीं लग रही थी कि पढ़ने के बाद भी कोई उसके रूप -रंग को देखकर उससे विवाह करेगा। वो जैसे अपना आत्मविश्वास खोती जा रही थी। जिससे थोड़ी उम्मीद जगी थी वो तो पहले से ही किसी और का हो चुका था। अतः उसने फैसला लिया -विवाह के नाम पर किसी से बार -बार अपमानित होने से अच्छा है कि वो विवाह ही न करे।


