tapasya [part 2]

जया ने  किसी अन्य शहर में  जाकर नौकरी शुरू कर दी। एक रिहायशी इलाके में घर लेकर रहने लगी। अब पिताजी तो रहे नहीं ,सो जया अपनी माँ को अपने साथ ले आयी। अब यहाँ कोई रोकने -टोकने वाला न होगा ,क्या बिना विवाह के लड़कियाँ नहीं  रह सकतीं ?उन्हें  किसी के सहारे की क्या आवश्यकता है? जो आत्मनिर्भर नहीं हैं, उन्हें तो अपने पति का मुँह देखना पड़ता होगा। मैं तो सक्षम हूँ ,मुझे किसी के सहारे की आवश्यकता नहीं ,ऐसा सोचकर उसने अपने को विश्वास दिलाया। जीवन कितना छोटा है? लेकिन समय ही समय हो तो यही जीवन बहुत ही लम्बा लगने लगता है। जिंदगी की भागदौड़ में पहले इंसान मंजिल पर पहुँचने के लिए दौड़ता है, और जब मंजिल तक पहुंच जाता है तो जीवन में अब क्या करे ?कैसे इस बाक़ी बचे  जीवन को काटें , तब ये अकेलापन काटने को दौड़ता है। जब माता -पिता जीवन साथी ढूँढ दें तो उनकी जिम्मेदारी होती थी-'' बच्चा आकर माता -पिता से झगड़ता -हमें पढ़ाया -लिखाया भी नहीं ,न जाने हमें कहाँ डाल दिया ?हम परेशान हैं।अपनी ससुराल से आकर - ऐसा कहतीं थी बहनें भी। और आज सब अपने परिवारों में लिप्त हैं उनके अपने परिवार है जो  उनके सुख -दुःख में उनके  साथ खड़े है।मेरा  अपना कहने को तो सब हैं लेकिन अकेलापन बाँटने को कोई नहीं।  

         जया को  पढ़ने के बाद  मंजिल मिली भी तो साथ में अकेलापन भी। कितना भी मन को समझा लो ?,कहीं न कहीं कुछ तो रिक्त है। उधर माँ परेशान, कल मैं न रही तो मेरी बेटी का मेरे बाद क्या होगा ?ये प्रश्नचिह्न उस माँ को दिन -रात खाये जा रहा है। जया सुबह जल्दी तैयार होती है ,अक्सर वो कलफ़ लगी,खड़े कपड़े की सूती साड़ी पहनती है।  जब जया साड़ी पहनकर तैयार होती तो सांवला रंग होने के बावजूद भी वो खिल उठती थी।कॉलिज में तीन घंटे पढ़ाने के बाद जब वो घर आती तो घर का सूनापन उसे कचोटता ,सुबह से लेकर  कॉलिज से आने तक तो समय कट जाता उसके बाद समय काटे नहीं कटता। कभी -कभी जीवन के बारे में सोचते -सोचते पता नहीं कब ,आँसुओं से तकिया गीला हो जाता ?उसका मन अपने आप से ही प्रश्न करता -कौन है तेरा जो तेरे सुख -दुःख में तेरे साथ खड़ा हो? सब अपने -अपने परिवार में हैं ,कभी किसी ने पूछा भी नहीं -मैं कैसी हूँ ?अब तक तो मेरे सूनेपन का सहारा माँ है जब माँ न  होगी तब मुझे कौन संभालेगा ?क्या मैं एक निराश जीवन जीती रहूँगी ?ये प्रश्न उसे रह -रहकर झकझोरते। 
           आज जब वो कॉलिज से लौटी तो माँ के चेहरे पर मुस्कान थी। जया बोली -क्या बात है ,आज बड़ी खुश नजर आ रही हो ? तब माँ ने बताया -आज मैं अपने पड़ोस में जो रहतीं हैं श्रीमति शुक्लाइन से बात कर रही थी तो तुम्हारा ज़िक्र आया तो उन्होंने एक लड़के के विषय में बताया, कोई व्यापारी है ,इकलौता लड़का है उन्हें सिर्फ़ पढ़ी -लिखी लड़की चाहिए, यही उनकी माँग है। कल वो उस लड़के का फोटो भी मंगा देंगी। माँ ने एक साँस में अपनी बात कह दी।शायद माँ को डर था कि जया विवाह से इंकार कर देगी लेकिन  जया बोली -माँ आप भी न किस -किसके चक्कर में पड़ती रहती हो ?अगले दिन माँ ने एक फोटो मेरे सामने रख दिया। फोटो देखकर जया को पसंद आया किन्तु तुरंत ही आशंकाओं ने घेरा बोली -वो काली लड़की से विवाह क्यों करेगा ?'क्या सब बताया 'आंटी ने मेरे विषय में  जया ने पूछा।हाँ ,कह तो यही रहीं थीं ,माँ ने जबाब दिया। शाम को आंटी ने आकर  बताया -बेटे उन लोगों की तरफ से' हां' है। अब तुम अपना जबाब दे सकती हो। उन्होंने बिना देखे ही कैसे हां कर दी ?जया ने शंका जताई। आंटीजी बोलीं -वो तुम्हें देख चुका है,देखकर ही हां की है। जया को बड़ा आश्चर्य हुआ बोली -कब और कहाँ ? आंटीजी बोलीं -वो तुम्हें देख  चुका  है कॉलिज जाते हुए। जया बोली -मैं भी उससे मिलना चाहूंगी। वो एकाएक बोल उठी। हाँ -हाँ क्यों नहीं आंटीजी बोलीं। 

            एक' कॉफी शॉप ' में दोनों मिले। जया ने देखा -उसके सामने आत्मविश्वास से भरा ,एक सजीला व्यक्ति खड़ा है। उसने अपनी कहानी बताई -स्नातक के बाद वो आगे की पढ़ाई जारी न रख सका क्योंकि पिता के जाने के बाद उनका व्यापार संभाला फिर आगे की पढ़ाई के लिए समय ही नहीं मिला। जया ने अपनी बात रखी बोली - तुम्हे तो और भी सुँदर लड़कियाँ मिल जातीं  फिर तुमने मुझे ही क्यों  चुना वो बोला  - जो मुझे समझ सके, मेरी भावनाओं  को समझे और जो विश्वसनीय हो ऐसी लड़की मुझे  मिली ही नहीं ,तुम्हारे अंदर मैंने ये चीजें महसूस कीं , रंग से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता काला हो या गोरा।  रंग के आधार पर गुणों को तो नहीं नकार सकते, जब तुम कॉलेज में  घुसती हो  तो तुम्हारे चेहरे की चमक अलग ही होती हैं। तुम्हारे चेहरे पर ज्ञान का नूर हैं, विद्या की चमक हैं। तुम्हारा आत्मविश्वास ही उस सुंदरता को दोगुना करता हैं। ऐसी अच्छी बातें  जया  ने पहली  बार सुनी थीं ,वो उसकी बातों व् विचारों से प्रभावित हुई  लेकिन इतनी जल्दी भावुकता में फैसला नहीं लेना चाहती थी। जया ने अपने बारे में भी उसे बताया। जो जया विवाह नहीं करना चाहती थी वो अब दीपक  के साथ कुछ दिनों की मुलाकात में ही भाने लगा , उसे फैसला लेने पर मजबूर कर  दिया वो दीपक  से बोली- हम समझदार हैं, परिपक़्व हैं। हमें अपनी  ज़िम्मेदारी भी पता हैं इससे पहले वो कुछ और कहती दीपक बीच में ही बोल उठा -तो क्या ये रिश्ता मैं पक्का समझूँ  ?जया ने शरमाते हुए हाँ कर दी काफी  धूम - धाम के बाद उनकी सगाई हो गयी।
           उन्हीं  दिनों में कॉलेज में एक सेमिनार हुई, सेमिनार में जगह -जगह  से अनेक लैक्चरर आये ,वो उन  सभी का स्वागत कर रही थी तभी उसने रोहित को देखा, उसको देखते ही जया को अपनी पिछली बातें याद हो आयीं। रोहित भी उसको पहचान गया ,उसके नजदीक आते ही जया का दिल जोरों से धड़कने लगा। वह  उसे देखकर सकुचा गयी। अब उससे मिलते हुए झिझक हो रही थी ,अजीब ही स्थिति  थी। सेमिनार के बाद वो उससे बातें  करने लगा। बातों ही बातों में उसने बताया -'नीलम 'अब नहीं रही अपनी निशानी के तौर पर एक बेटा छोड़कर गयी है। नीलम के लिए सुनकर उसे बहुत ही दुःख हुआ किन्तु तुरंत ही मन में एक इच्छा जाग्रत हो उठी।[ मन बड़ा बेईमान होता है, वो उसे उकसा रहा था कि आज वो अपने प्यार का उससे इज़हार कर दे कि इतने सालों से मैं तुम्हारे ही इंतजार में थी ,तुमने पहचाना नहीं ,मैं तुमसे प्यार करती थी लेकिन उसने अपने आप को रोककर रखा।] रोहित ने जया  से उसके विवाह के विषय में पूछा तो वो बोली -हाँ एक जगह रिश्ता तय हुआ  है। उसके कॉलिज की लैक्चरर को जया के विषय में मालूम था क्योंकि वो उसकी सहेली भी थी। उसने एकांत मिलते ही जया  से कहा -आज तो मौका था, फिर भी तूने अपनी भावनायें रोहित को क्यों नहीं बताईं? तब जया  बोली -जो बात पर्दे में है पर्दे में ही रहे तो अच्छा है। मेरे मन में ही उसके प्रति भावनायें थीं, उसके मन में नहीं ,उसे तो पता भी नहीं। उसके मन में अपनी पत्नी के लिए जो प्यार था  वो मुझे कभी नहीं दे पायेगा। और अब उसे लगेगा कि मैं उसकी इस स्थिति का लाभ उठा रही हूँ।

 
           जो मान -सम्मान मुझे दीपक से मिलेगा वो रोहित से नहीं ,हालंकि कुछ वर्षों पहले मेरे मन में रोहित को लेकर कुछ भावनायें थी ,वो मेरी अपनी थीं। दीपक ने मुझे एहसास कराया कि मेरा भी अस्तित्व है ,मेरे जीवन का भी मूल्य है। मुझसे भी प्यार किया जा सकता है उसने मेरे जीवन को एक अर्थ दिया है। मान भी लो, मैं रोहित कोअपनी भावनायें बता दूँ तब भी मुझे न स्वीकार करे। कर भी ले तो क्या दीपक को धोखा देना नहीं होगा? इसीलिए ये दोस्ती यूँ ही बनी रहे यही काफी है। कुछ दिनों बाद दीपक और जया का विवाह हो गया। जब वो अपनी ससुराल आई तो घर के दरवाजे पर उसने अपने नाम की तख्ती देखी जिस पर लिखा था -''श्रीमति  डॉक्टर जया त्रिवेदी ''  मान -सम्मान ,प्यार और अपनेपन के लिए उसने इतने वर्षो तपस्या की वो उसे अपनी ससुराल में मिल रहा था।  























laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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