pahla pyar

'पहला प्यार 'शब्द सुनते ही आदमी के चेहरे पर एक रहस्य्मयी  मुस्कान आ जाती है। कुछ तो अपनी यादों में ही खो जाते हैं। कुछ के चेहरों पर चमक आ जाती है। कहते' पहले प्यार 'की बात ही अलग होती है जो भुलाये नहीं भूलता। सुमन भी जिंदगी के उसी दौर से गुजर रही थी। उसे फिल्में देखने का बहुत ही शौक था ,फिल्मों में जो प्यार दिखाते हैं ,जब प्यार होता है बाल उड़ने लगते हैं ,मिलने के नए -नए तरीक़े दिखाते हैं। सुमन अक्सर सोचा करती ,मुझे भी न जाने कब प्यार होगा ?या किसी को देख कर  बाल उड़ने लगें। पता नहीं कैसा और कौन होगा वो ?लेकिन असल जिंदगी में सपनों का राजकुमार कब जिंदगी में आ जाता है ?

पता ही नहीं चलता। इसी तरह सुमन के साथ भी हुआ। वो तो इंतजार कर रही थी किसी के आने का। एक दिन उसने देखा उनके नल से एक लड़का पानी  ले गया। अगले दिन भी वो आया फिर मम्मी से  बोला -आंटीजी हमारा नल खराब हो गया है तो मम्मी ने कहा कि आपके यहाँ से भर लाऊँ। मम्मी ने जबाब दिया -कोई बात नहीं ,लेकिन तुम्हें पहले तो नहीं देखा। हाँ जी ,मैं मौसी के पास रहकर पढ़ रहा था लेकिन अब आ गया हूँ। वो बात करते हुए अंदर की तरफ देख  था। वहीं पर्दे के पीछे सुमन थी लेकिन वो छिपी हुई थी।
               अगले दिन भी वो आया ,इस बार सुमन बाहर थी वो तिरछी नजरों से उसे देख रहा था। अभी नल का कार्य थोड़ा अटक गया। वो दिन में दो तीन चक्कर लगा जाता। उसकी नजरों का एहसास सुमन को हो रहा था। जिस कारण अब वो सुबह जल्दी ही उठकर नहाकर तैयार हो जाती। अपने को कई बार आईने में निहारती। मम्मी ने कहा भी -चलो हमारी बिटिया ,आजकल समय पर नहा लेती है ,अपना ध्यान रखने लगी है ,समझदार हो गयी है। जिस बेटी को मम्मी डांटती रहती थीं कि नहा लो ,कहने से नहा भी ली तो बाल बेतरतीबी  से बिखरे रहते। मम्मी कहती रहतीं -इस लड़की का न  जाने क्या होगा ?न ही समय  पर नहाती है न ही बाल बनाती है, उलझे रहते हैं। इसके जितनी लड़कियाँ कैसी साफ -सुथरी रहतीं हैं ?ये तो कुछ सीखती ही नहीं। चेहरा भी देखो ,कैसा रुखा सा लगता है? मम्मी जब तक चार बातें न सुना लें तब तक काम होता ही नहीं। अब देखो बाल भी क़रीने से सजाये हैं ,अब भी तो अच्छी लग रही है ,मम्मी खुश थीं कि बेटी समझदार हो गयी है लेकिन वो ये  नहीं सोच पाईं  कि ये सब पड़ोसी के लड़के के कारण हो रहा है। शा यद सुमन स्वयं भी नहीं समझ पाई। 
             उसका तो अपना तर्क था ,बाहर से कोई आता है तो ऐसे रहना क्या अच्छा लगता है ?दूसरे पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?लेकिन उसने ये नहीं सोचा कि उसे अपना प्रभाव क्यों डालना है ?अच्छा -बुरा कब से सोचने लगी वो ?जिस परिवर्तन के लिए मम्मी परेशान रहती थी वो अपने आप हो रहा है लेकिन क्यों ?यह जानने की आवश्यकता महसूस ही नहीं की। माता -पिता अपने बच्चे के बारे में सब जानते हैं लेकिन वो उम्र के इस पड़ाव पर किस दौर से गुजर रहा होगा ?उनका सीधा -साधा बच्चा प्यार में भी पड़ सकता है ऐसा वो सोच ही नहीं सकते कि हमारी बिटिया के मन में कोमल कोपलें उत्प्नन होने  लगीं हैं। जो काम वो इतने दिनों से नहीं कर पाई वो उस लड़के की तिरछी निगाहों ने कर दिया। अब तो उनका नल भी ठीक हो गया लेकिन फिर भी इंतजार रहता शायद वो आये। बेचैनी बढ़ी, तो वो छत पर टहलने लगी। बार -बार नजरें उसके  घर की तरफ उठ जातीं।  लगता वो कहीं से भी, कैसे दिख जाये ?वो निराश नीचे आ गयी। अपने आप से ही प्रश्न पूछने लगी-मैं क्यों उसका इंतजार कर रही हूँ ?वो आये न आये मेरी बला से, लेकिन मन खुश क्यों नहीं है ?

               वो अपने आप  को ही नहीं समझा पा  रही थी कि वो क्या चाहती है ?अगले दिन वो फिर से छत पर गयी, क्यों ?उसे नहीं पता, बस छत पर जाना है। यूँ ही बिना कारण टहलती रही ,एकाएक उसने देखा कि सुदीप पानी लेकर आया है फिर चिड़ियों को दाना डालने लगा। अब तक उसने इधर क्यों नहीं देखा फिर सुमन ने अपनी किताब अपने चेहरे के आगे लगाकर पढ़ने लगी शायद वो अब देखे, फिर एकाएक तेज आवाज़ में बोली -हाँ मम्मी ,आई फिर नजर बचाकर उधर देखा ,उसने देखा सुदीप तो अपने छत की मुंडेर पर बैठा उसे ही देख रहा था।सुमन का  दिल जोरों से धड़कने लगा। फिर उसने हाथ हिलाया बदले में सुमन ने भी हाथ हिलाया और नीचे भाग आयी ,अपने तेज धडकते दिल को थामने के लिए। आज उसे सब अच्छा  लग रहा है। अपने ही आप चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाती मन ही मन सोचने लगी ' अबकि बार मिला तो भागूँगी नहीं ,अपने आप को विश्वास  दिलाया।  
            अगले दिन भी उसी  समय वो छत पर पहुंची ,अब उसे इंतजार नहीं करना पड़ा।  वो भी आया, आते ही उसने सुमन की तरफ देखा उसका दिल फिर से उछलने लगा उसने हिम्मत की और मुस्कुराई बदले में उसने हाथ हिलाया। इशारों में बातें होने लगीं कुछ वो समझ पाया ,कुछ नहीं। कई  दिनों तक ऐसे ही चलता रहा। एक दिन उसने कागज़ का जहाज बनाकर फेंका उसमें कुछ लिखा था -सुमन !मुझे तुम अच्छी लगती हो ,क्या मैं भी तुम्हें पसंद हूँ ?सुमन ने इशारे से हाँ में सिर हिलाया और नीचे भाग गयी। और उस पर्चे को अपनी किताब में छिपाकर रख दिया। सब कुछ अपने आप होता जा रहा था वो किस रस्ते जा रही है ?इसका एहसास ही नहीं। उसके कदम अपने आप ही बढ़ते  जा रहे हैं ,न ही जुल्फें उड़ीं ,न ही एक दूसरे से टकराये ,न ही झगड़े फिर भी क्या हो रहा है ?समाज का एहसास था कि कहीं कोई देख न ले। पत्रों का आदान -प्रदान होने लगा। उन पत्रों को छुपाने के लिए दिमाग चलने लगा फिर भाई -बहनों की नजरों से बचने के लिए कॉपी के कवर में छुपा दिए। अब तो सुमन के रहने का तरीका बदल गया।' केश  सज्जा 'भी बदली थोड़ा 'मेकअप' भी होने लगा अब तो बिटिया पर नूर बरस रहा था।  देखकर मम्मी खुश होतीं लेकिन ये नूर कहाँ से आ रहा था ?मन की ख़ुशी से और मन खुश कैसे है ?पड़ोसी के घर में उसके  पहले  प्यार से जो अनजाने ही परवान चढ़ता जा रहा था।  

              दोनों ने एक ही कॉलिज में दाखिला ले लिया अब तो प्रतिदिन मिलना होता ,पता नहीं जिंदगी किस दिशा में जा रही है ?बस दोनों एक -दूसरे के साथ अधिक से अधिक समय बिताना चाहते हैं। कॉलिज में प्रिया बोली -क्या तुम दोनों एक -दूसरे से प्यार करते हो ?नहीं, हमारे घर तो आस -पास है इसलिए हम साथ रहते हैं सुमन ने जबाब दिया। तुम लोग हमें बेवकूफ समझ रहे हो या अपने आप को धोखा दे रहे हो।एक दिन सुमन ने प्रिया  को अपने घर पर बुलाया -प्रिया  ने  देखा ,सुमन के  बहुत से रिश्तेदार आये हैं ,अच्छा आलीशान मकान था। आज उसका जन्मदिन था।  प्रिया ने नाराज होते हुए कहा -यदि तू मुझे बताती कि जन्मदिन है तो मैं कुछ उपहार ले आती। सुमन हंसकर बोली -इसलिए तो नहीं बताया। कार्यक्रम के बाद प्रिया बोली -मुझे सुदीप से भी मिलना है ,क्या उसे नहीं बुलाया ?किस बहाने से बुलाती ?कहकर उसने उसका घर दिखा दिया। प्रिया सुदीप के घर पहुँची ,उसके घर में शांति थी उसके मम्मी -पापा और वो। उनका रहन -सहन का स्तर सुमन के स्तर से कम था इसीलिए सुमन के घरवाले उन्हें अपने बराबर का नहीं मानते थे। कॉलिज में प्रिया  ने जो महसूस किया उस आधार पर दोनों से पूछा -सुमन क्या ,तुम्हारे मम्मी -पापा सुदीप को अपने दामाद के रूप में स्वीकार कर लेंगे ?तुम दोनों के घर का वातावरण बिल्कुल विपरीत है। वो तो इसके परिवार को अपने बराबर का मानते ही नहीं। कहाँ तुम ठाकुर परिवार से और ये सीधे -साधे ब्राह्मण। जानते -बुझते भी तुम इस रिश्ते को आगे बढ़ा रहे हो ,तुम लोग बच्चे नहीं ,इस रिश्ते का क्या भविष्य होगा ?कभी सोचा है। 
               प्रिया की बातें सुनकर दोनों  जेेसे अँधेरे गढ्ढे में गिर गए हों ,  उनका दम घुटने लगा उस स्थिति में वो अपने को ज्यादा देर बर्दाश्त नहीं कर सके और तुरंत ही सुमन बोली -जब जैसा  होगा ,देखा जायेगा ,बिना भविष्य को जाने हम अपने आज को बर्बाद नहीं करेंगे और उन्होंने अपना मिलना -जुलना जारी रखा। हमारा स्नातक  पूरा होने  वाला था। एक दिन सुमन ने  जानकारी दी कि उसका विवाह तय हो गया है। उसने बड़े ही आसानी से अपनी बात कह दी सुनकर मैं चौंक गयी। मैंने सोचा मज़ाक कर रही होगी लेकिन जब मुझे अपने घर ले जाकर सामान दिखाए तो विश्वास करना पड़ा। अब उसने कॉलिज आना बंद कर  दिया ,अगले ही महीने विवाह होना था। उसने मुझसे नोट्स मंगवाए थे ,मैं उसके घर गयी। मैं एकांत की तलाश में थी। मुझे जब भी मौका मिला मैंने पूछ ही लिया -अब सुदीप का क्या होगा ?तू तो उससे प्यार करती थी न। उसकी आँखों के कोरे कुछ गीले हुए बोली -वो अपने घर है ,सही -सलामत। पहली बात तो उसमें इतनी हिम्मत नहीं कि वो मेरे घर आकर मेरा हाथ मांग सके। और यदि मैं ही उसकी बात अपने घरवालों को बताऊं या उसके लिए लड़ूँ तो मेरे घरवाले उसे मार डालेंगे। वो अपने माँ -बाप का इकलौता लड़का है। मैं अपने प्यार के लिए इतनी स्वार्थी नहीं हो सकती कि उसे मरवा डालूँ। 

              जिन्दा रहा तो कभी अपने घर आई ,कम से कम उसे नजर भर देख तो लिया करूंगी। घर में बता दिया तो वो बचेगा नहीं। मुझे उस पर गुस्सा आया -फिर तुमने इस रिश्ते को बढ़ाया ही क्यों था ,तभी तोडा क्यों नहीं  ?जब हिम्मत ही नहीं थी।सुमन शांति पूर्वक बोली - प्यार बढ़ाया या सोच - समझकर नहीं किया जाता, सब अपने आप होता चला जाता है। लेकिन जब समझ आई ,तब हमने ये ही फैसला लिया कि जब तक हैं साथ रहेंगे। हमने एक -दूजे के साथ अधिक से अधिक समय व्यतीत किया ताकि उन बातों और यादों के सहारे जीवन काट लें। हम एक -दूसरे के लिए मरना  नहीं जीना चाहते हैं। इस याद  में कि वो मेरा 'पहला प्यार 'था 


















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मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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