कहते हैं ,मच्छर का पता अट्ठारह सौ सत्तानवें में चला था लेकिन मुझे तो लगता है कि मच्छर और इंसान की दुश्मनी तब से ही है जब इंसान पैदा हुआ होगा। इंसानों के साथ ही साथ मच्छर की उत्पत्ति भी हुयी होगी। क्योंकि मच्छर तो इंसानों के खून पर ही आश्रित रहता है। किसी नेता की तरह लेकिन नेता तो आम जनता का खून पीते हैं किन्तु मच्छर किसी भी तरह का भेदभाव नहीं करते वो तो नेता हो या अभिनेता या फिर आम जनता सभी को एक समान मानते हैं। विज्ञान में पढ़ें तो इसकी लगभग पेंतीस सौ प्रजातियां हैं ये तो अच्छा है सभी इंसानों का खून नहीं पीतीं। ख़ैर मुझे औरों से क्या लेना मुझे तो उस मच्छर से मतलब है जो हमारे आस -पास मंडराता रहता है। अब तो इसने इतना जीना दूभर कर रखा है कि दिन में भी हाथ साफ करने से बाज नहीं आते, इतनी एहतियात के बाद भी अपना एहसास करा जाते हैं। ये घरवालों को ही नहीं बाहर से आने वालों को भी नहीं छोड़ते। लगता है जैसे सम्पूर्ण मानव जाति ही इसकी दुश्मन है। बचपन में दादी से कहानियाँ सुनते थे तो उनकी कहानियों में एक 'खूनी पिशाच 'होता था। अब तो लगता है कि वो ''खूनी पिशाच 'और कोई नहीं ये मच्छर ही होगा। उस समय इसका कोई नामकरण न हुआ होगा तब किसी अंग्रेज ने इसका नामकरण किया होगा।
हम प्राचीन इतिहास में भी झाँककर देखें तो उस समय बड़े -बड़े लोग ,राजा -महाराजा मच्छहरी में सोते थे। बेचारे ग्रामीण या यूँ कहें आम जनता तो इससे बचने के लिए' नीम की पत्तियों का धुंआ करते थे। बचपन में तो हमने भी देखा है कि कई बिमारियों के इस आवाहक से बचने के लिए हमारे बड़े -बूढ़े अपने घर और घेरों में धुंआ करते थे। अब हम बड़े हो गए लेकिन महंगाई की तरह ही इस मच्छर का नाश नहीं हुआ। ये 'खूनी पिशाच' भी बढ़ता ही जाता है। इस राक्षस से पीड़ित व्यक्ति अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं। ये कई बिमारियों का द्योतक है। इससे बचने के लिए कुछ लोग मच्छरदानी का प्रयोग करते हैं, तब भी यदि एक भी मच्छर मच्छरदानी में घुस जाये तो अच्छे -अच्छे को नानी याद दिला देता है। कुछ लोग तो इसके काटे को काफी हद तक झेल जाते हैं ,कुछ के लिए इसके काटे को झेलना भारी हो जाता है। रातों की नींद खराब कर देता है ,ये मच्छर। मेरे विचार से तो किसी चोर या डाकू को सजा देनी है तो उसे मच्छरों के साथ छोड़ दें या तो वो उसके काटने से परेशान हो जायेगा या फिर मच्छर उसे बिमार करके कमज़ोर कर देगा। मेरे हिसाब से तो यही सज़ा काफी है वैसे मुझे किसी क़ानूनी पचड़े में नहीं पड़ना।
समय के साथ -साथ लोगों ने तरक्क़ी की तो मच्छर की ताकत भी बढ़ी। आदमी ने मच्छर को मारने के लिए क्या -क्या तरीक़े नहीं अपनाये -पानी में मिट्टी का तेल डाला [घासलेट ]कई स्थानों पर पानी एकत्र नहीं होने दिया ,साफ -सफाई पर विशेष ध्यान दिया ,घरों में जाली के दरवाज़े लगवाए। उससे बचने के लिए अनेकों क्रीम ,मैट ,लोशन खोज डाले। आदमी ने इससे बचने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी लेकिन इसका' बाल भी बाँका 'न हुआ ये तो किसी आतंकवादी की तरह ही ताकतवर होता जा रहा है जबकि किसी भी देश ने इसको पनाह नहीं दी। देखने में तो इतना छोटा लगता है लेकिन ये लाखों लोगों को बेबस या मारने की क्षमता रखता है। इसे तो किसी सेना या फौज की भी आवश्यकता नहीं ,ये तो अकेला ही अनेक लोगों को बीमार करने का मादा रखता है। इसकी इसी क्षमता को देखते हुए चित्रपट पर'' नाना पाटेकर जी '' ने कहा है -साला ,एक मच्छर आदमी को हिजड़ा बना देता है। ''इसकी बहन मक्खी वो भी तो बिमारियों की कुंजी है उस पर तो पूरी फ़िल्म ही बना डाली। इसका मतलब तो यही है कि इनका उत्पात इतना अधिक है कि बॉलीवुड को भी अपनी ताकत का लोहा मनवा दिया।
अब तो ये इतना ताकतवर हो गया है इसकी क्षमता इतनी बढ़ गयी है कि अगरबत्ती या मार्टिन ,रिफिल इत्यादि के ऊपर से ही गुजर जाता है।वहीं इंसानों की' रोग प्रतिरोधक क्षमता ''दवाइयों या गोलियों के जरिये बढ़ रही है। अक्सर मस्तिष्क में यही सोच आती है कि पहले लोग इससे कैसे बचते होंगे ? तब तो इतने साधन भी नहीं थे। ऐसे घर भी नहीं थे ज्यादा जंगल ही थे ,कैसे रातभर सोते होंगे ?इसीलिए तो सुबह तड़के ही उठ जाते होंगे ,इससे लाभ नजर आया -'सुबह उठकर लोग ताज़ी हवा खाते होंगे तभी उनकी 'रोग प्रतिरोधक क्षमता 'इतनी मजबूत थी आजकल तो बंद कमरों में देर तक जागना, फिर देर तक सोना , सुबह की ताज़ी हवा तो आजकल कम ही लोग महसूस कर पाते हैं, इस कारण इंसानों की कार्यक्षमता कमजोर होती जा रही है और नए -नए शोध के बाद भी ये मच्छर ताकतवर होता जा रहा है। रात में जितना समय सोने के लिए मिलता भी है तो ये सोने नहीं देता, उसके बाद दिनभर आलस ,थकान घेरे रहते हैं ऊपर से काम का बोझ ,ऐसे में आदमी करे भी तो क्या ?मुझे तो लगता है -रहीमदास जी ने ये दोहा इसीलिए लिखा होगा -'रहिमन देख बड़ेन को ,लघु न दीजिये डार।
जहाँ काम आवै सुईं ,कहाँ करे तलवारि। .''
अब आप ये सोच रहे होंगे ,वैसे तो यहाँ वस्तुओं के विषय में वर्णन किया गया है लेकिन मुझे तो लगता है -रहीमदास जी कहना कुछ और ही चाह रहे थे कि छोटी-छोटी चीजें यानि कीट -पतंगों को भी नकारना नहीं चाहिए। जैसे छोटी से छोटी चींटी भी बड़े से बड़े हाथी का जीवन दूभर कर देती है उसी प्रकार एक छोटा मच्छर भी बुद्धिमान से बुद्धिमान आदमी को बेचारा और लाचार बना सकता है। रहीमदास जी ने भी मच्छर के काटे का दर्द सहा होगा तब लोगों को ये संदेश देने के लिए इन साधनों का नाम ले दिया होगा। ''जहां काम आवै सुईं ,कहाँ करे तलवारि। उस समय पर तलवारें होतीं थीं। कवि भी तो उस समयानुकूल ही तो अपनी कल्पना करता होगा क्योंकि उस समय पर कोई इसका नाम जानता ही नहीं होगा। फिर दोहा कैसे बनाते ?इसीलिए तलवार और सुईं का उदाहरण दे डाला। लेकिन कुछ लोगों ने इस पर कहानी बना डाली होगी ''खूनी पिशाच ''की, लेकिन मुझे तो अब ये लगता है कि 'खूनी पिशाच 'और कोई नहीं ये मच्छर नाम का प्राणी ही होगा। एक भी मच्छर को मारकर देखो हमारा[ उसके द्वारा चूसा गया ]कितना खून निकलता है? तभी तो एक इश्तेहार में ''मच्छर को मारने ''का [मुहावरा ]अर्थ ही बदल डाला गया और मारने वाले को'' शाबाशी' मिलती है।


