mera hisab kar do

यार  !क्या  करें ?खाली बैठे हैं, मेरी तो नौकरी भी छूट गयी, विनोद ने सुमित से कहा। काम तो मेरा भी  मंदा चल रहा है सुमित बोला ,अपनी बात जारी रखते हुए -क्या करें ,घर के ख़र्चे बढ़ते ही जा रहे हैं ?और आमदनी न हो तो वो ही खर्चे ज्यादा लगने लगते हैं। आमदनी तो लगभग बंद ही है। तभी पीछे से आवाज आई -अरे , दोनों निठल्लों !क्या कर रहे हो ?दोनों ने एक साथ पीछे मुड़कर देखा फिर एक साथ हँसे ,बोले -एक और निठल्ला आ गया। अरे ,मैं निठल्ला नहीं ,काम करता हूँ उनके पास बैठते हुए समीर बोला लेकिन आमदनी बढ़ाने के लिए कुछ तो  सोचना पड़ेगा। इतने कम पैसों में घर के खर्चे नहीं चलते। विनोद की कमर में हाथ मारते हुए समीर बोला -तेरे तो पापा की पेंशन आ रही है ,तुझे कमाने की  क्या  आवश्यकता है ?समीर के व्यंग से विनोद चिढ गया। बोला - तुझे  क्या ?ऐसी किस्मत भी किसी -किसी की होती है ?जो बैठे- बैठे खाने को मिले। किन्तु सुमित कुछ ज्यादा ही परेशान था ,उनकी बहस से परेशान होकर बोला -इन बातों में कुछ नहीं रखा ,मेरे पास तो व्यापार में लगाने के लिए पैसा भी नहीं है ,न ही कोई 'ऑर्डर 'मिल रहा है ,मशीनें खाली पड़ी हैं। धंधा बिल्कुल चौपट है। घर की सारी जिम्मेदारी मुझ पर ही है। उसकी परेशानी को समझते हुए दोनों चुप हो गए। 

                  थोड़ी देर इधर -उधर की बातें कीं , तभी समीर को जैसे याद आया ,बोला -क्यों न हम स्कूलों की  ड्रेस बनाने का धंधा कर लें। मेरा एक जानने वाला बता रहा था, तब तो मैंने ध्यान नहीं दिया लेकिन तुम्हारी परेशानी देखते हुए याद आया।भई !मैं तो स्कूलों में जाकर ऑर्डर तो ला सकता हूँ समीर बोला। सुमित को जैसे उम्मीद बंधी बोला -मेरी मशीनें कब काम आयेंगी ,कितने दिनों से खाली खड़ी हैं ?कारीगर भी बुला लूँगा ,बेचारे वो भी  काम के लिए  परेशान हैं। माल को भेजना उनको स्त्री करके पैकिंग का जिम्मा मेरा। तीनों ही दोस्तों ने ख्यालों में ही सारी तैयारी कर दी। सब तय हो गया। कच्चा माल यानि ड्रेस के लिए कपड़ा कहाँ से लेना है ?यह भी  सोच लिया गया। और  सामान कहाँ  से और कैसे लाना  है? सब पूरी तरह तैयार हो गया। थोड़ी ही देर में 'ख़्याली पुलाव 'बनकर तैयार थे। तभी सुमित बोला -पैसे कौन और कितना लगाएगा ?मेरे पास तो पैसा है  ही नहीं वरना मैं अपना काम ही न कर रहा होता। विनोद ,समीर भी एक -दूसरे का मुँह देखने  लगे फिर एक साथ बोले -हम तो खानदानी रईस हैं न, कहकर दोनों एक साथ सुमित पर झपटे ,वो पहले से ही तैयार था भाग खड़ा हुआ। इस तरह तीनों बेरोजगारों की मीटिंग समाप्त हुई। 
                अपने -अपने घर में सबने इस विषय पर बातचीत की, सबने विवशता ही जाहिर की दस -बीस हजार की बात हो तो, किसी से उधार भी ले सकते थे लेकिन यहाँ तो पैसा बहुत चाहिए। यहाँ आमदनी बाँटने वाले तीन और पैसा लगाने वाला कोई नहीं। एक दिन अचानक ही विनोद के ममेरे भाई आए वो किसी काम से इस शहर में आये थे, सोचा, रिश्तेदारों से भी  मिलते चलें। बातों ही बातों में नौकरी छूटने का उसे पता चला उसे दुःख हुआ। सहानुभूति जताते हुए बोला -यदि मेरी किसी भी तरह से मदद चाहिए तो बताना। पहले तो विनोद चुप रहा फिर उसने अपने दोस्तों के साथ मिलकर जो व्यापार करने का सोचा था वो बताया। आकाश को उनके व्यापार प्रस्ताव अच्छा लगा बोला -ये तो अच्छा है ,कर लो सब मिलजुलकर लेकिन भाईसाहब !पैसा ही तो नहीं है ,कैसे करें शुरुआत ?आकाश बोला -जितने पैसे तुम मुझे बता रहे हो इतने तो मेरे पास भी नहीं हैं। बातचीत का सिलसिला शून्य में बदल गया, कुछ देर की शांति के बाद आकाश बोला -मैं एक तरह से तुम्हारी मदद कर सकता हूँ।  वो कैसे ?विनोद ने विचलित होते हुए पूछा। मैं बाहर से पैसा उठा सकता हूँ ,अपने जोख़िम पर किन्तु शर्त ये है कि पैसा आते ही पहले उसके पैसे देने होंगे जिससे मैं पैसे उधार लूंगा और आमदनी में चौथाई हिस्सा मेरा होगा। 

  
             सारी बातें सुनकर पहले तो विनोद चुप रहा, फिर बोला -मंज़ूर है। उसके भाई  एक सप्ताह बाद आने का वादा करके चले गए। विनोद ने यही बातें अपने दोस्तों को बताई ,पहले तो वो चौथाई हिस्सा देने के लिए तैयार नहीं हुए फिर विनोद ने समझाया न होने से तो कुछ हिस्सा निकल जाये तो अच्छा है। फिर इतनी बड़ी रक़म भी तो लगा रहे हैं ,वरना बैठे रहो  ऐसे ही। एक सप्ताह बाद आकाश पैसे लेकर लौटा। काम की शुरुआत बड़े उत्साह से हुई ,तीनों अपने -अपने तरीक़े से काम में जुट गए। आकाश पैसे देकर चला गया लेकिन जैसे ही समय मिलता आ जाता। माल तैयार होकर स्कूलों में वितरित कर दिया गया। जब पहला चैक आया तो उधार  पैसा चुकाया गया। अब तो दूने उत्साह से काम होने लगा। विनोद ने हिसाब -किताब अपने हाथों में ले लिया। आकाश भी निश्चिन्त होकर अपनी नौकरी पर चला गया। धीरे -धीरे सभी ऑर्डर पूरे होने लगे। आमदनी या यूँ कहें, लाभ अच्छा हुआ। अबकि बार आकाश आया तो विनोद के मिलने में वो उत्साह नहीं था। फिर भी आकाश बोला -चलो भई ,हिसाब कर लेते हैं। वैसे तो मुझे मालूम है कितना काम हुआ और कितना लाभ फिर भी हिसाब तो हिसाब ही है लेकिन विनोद ने कोई उत्साह नहीं दिखाया बोला -इसके लिए सुमित से बात करनी पड़ेगी। 
                आकाश बोला -मैं उन्हें नहीं जानता ,पैसे तो मैंने तुम्हें दिए थे। वो तो हमने लोेटा दिए विनोद ने कहा लेकिन मेरा हिस्सा अभी बाकि है ,मेरे हिस्से की बात भी हुई थी न। लेकिन इसमें मैं अकेला ही तो नहीं था विनोद अब झल्लाकर बोला। ये भी क्या बात हुई ?पैसा मैंने दिया अब उसमें मेरा जो हिस्सा बनता है वो मुझे दो आकाश को थोड़ी बेचैनी हुई। बोला -चलो सुमित के पास। वो घर पर ही था उसने बड़े आदर से बातचीत की, जब हिस्सा देने की बात आई तो बोला -पता नहीं ,पैसों का क्या हुआ ?समीर देख रहा था सब। अब आकाश को लगने लगा ये लोग मुझे टरका रहे हैं और मेरा हिस्सा मार चुके हैं। उसे तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि उसके अपने ममेरे भाई ने उसके साथ धोखा किया है। उनके हाव -भाव से लग रहा था कि वो अपने तीन हिस्से बाँट चुके हैं। इस धोखे से बहुत दुःख हुआ फिर भी एक कोशिश की लेकिन तीनों जैसे ठान चुके थे ,उन्होंने हिसाब नहीं किया। तीन -चार दिन ऐसे ही धक्के खाकर वो अपने घर लौट आये।

लौटते समय तीनों से कहा -ये अच्छी बात है कि तीनों अच्छे दोस्त हो और विनोद तो सबसे ही अच्छा है कि उसने अपने रिश्ते का लिहाज़ भी नहीं किया। कितने दिन चलेगा वो पैसा ?लेकिन मुझे जिंदगी की सबसे बड़ी सीख मिली ,अब जब भी मैं किसी जरूरतमंद की सहायता करने चलूँगा तो मुझे तुम लोगों का दिया धोखा याद आएगा तब मैं चाहे कोई ज्यादा जरूरतमंद हो ,ईमानदार भी हो तो शायद मैं मदद न कर पाऊँ।  क्योंकि हर इंसान एक जैसा नहीं होता यही सोचकर मदद की भी ,'तो विश्वास न कर सकूँ।'   






















laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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