lalch[part 2]

बुआजी ने कालीन के नीचे पड़ी  फोटो को उठाकर अपने पास रख लिया। अगले दिन दीपावली की छुट्टी में कल्पना भी अपने घर आ गयी। बहुत दिनों बाद देखकर बुआजी हैरान रह गयीं। उम्र के साथ कल्पना में कई बदलाव आ गए।  अब वो पहले जैसी नहीं दिख रही थी ,थोड़ी मोटी भी हो गयी थी ,चेहरे पर उम्र अपना असर दिखा रही थी। बुआजी ने पहले तो सोचा- कि कुछ नहीं कहूंगी लेकिन उनसे अपने आप को रोका नहीं गया बोलीं -अरे !तू कैसी होती जा रही है ,अपना ख़्याल नहीं रखती क्या ? क्या करूँ ?बुआजी समय ही नहीं मिलता। बुआजी फिर से  बोल उठीं -क्या ,'साज -सज्जा' की दुकान पर नहीं जाती ?कल्पना हँस पड़ी बोली -बुआजी उसे 'ब्यूटी पार्लर 'कहते हैं। हाँ वही ,पार्लर कहने से उसका काम थोड़े बदल जायेगा ,पर तू बता इतना पैसा कमाती  है। क्या अपने लिए समय नहीं है ,क्या फायदा ऐसे पैसा कमाने का ?तभी भाभी बोलीं --तीज पर मैं पार्लर गयी थी ,मैंने इससे कहा भी था कि दोनों माँ -बेटी चलते हैं लेकिन ये नहीं गयी।

बोली -मम्मी मुझे आराम करना है। हाँ ठीक कहा ,थोड़ा समय मिलता होगा तो उसमें आराम की ही सोचती होगी फिर मन ही मन कुढ़कर बुदबुदाई -पार्लर में तो तुम ही इस  बुढ़ापे में घूमो। प्रत्यक्ष में बोलीं -'बंटू' क्या कर रहा है ?इसकी कहीं नौकरी लगी है क्या ?बुआजी ने पूछा।
                 अरे ,बुआजी !छोटी -मोटी नौकरी तो ये करता नहीं ,अब कहता है कि कोई व्यापार ही करेगा भाभी ने उत्तर दिया।  बिना अनुभव के क्या व्यापार करेगा? बुआजी ने पूछा। कुछ न कुछ तो करेगा ही ,जब करेगा नहीं तो अनुभव ही कहाँ से होगा फिर से  भाभी हंसकर बोली -दीदी !अभी ये तो विवाह कर ही नहीं रही। कर ही  नहीं रही या हो नहीं रहा बुआजी ने पूछा। हाँ ,एक ही बात है भाभी  बुआजी के 'टोंट' पर ध्यान न देते हुए बोलीं -आप अब इसके लिए ही कोई लड़की ढूँढ दीजिये [बेटे के सिर पर हाथ मारते हुए ] इसका विवाह ही कर दें ,हँसते  हुए बोली।

शाम को दीपावली की खरीददारी करने के लिए सभी बाहर गए ,बाहर ही खाना खाया। बुआजी को भी उनके पसंद की साड़ी दिलवाई। त्यौहार के बाद कल्पना तो अपने काम पर चली गयी। बुआजी भी अपने घर जाने की तैयारी करने लगीं। जाने से पहले सबने साथ में खाना खाया ,खाते हुए एकाएक बुआजी बोलीं -अपने बंटू के लिए कैसी लड़की देखूँ ?ऐसी ही हमारी बिटिया जैसी, कमाती  हो ,हमारी तरफ से पूरी छूट है। हम बहु -बेटी में फ़र्क थोड़े ही करेंगे। हम ऐसे पुराने विचारों के नहीं जो बहु से पर्दा करवायें या घर  में रोटी बनवाते रहें ,अपनी इस सोच के चलते भाभी घमंड  से बोली।जब लड़की वाले पूछें, कि लड़का क्या करता है ?तो क्या बताऊँ ?बात  सुनकर भइया -भाभी ने एक दूसरे का मुँह देखा, फिर भाभी ने बात को संभालते हुए कहा -कह देना ,'पढ़ाई अच्छी की है लेकिन अब व्यापार करता है। तब तक कुछ न कुछ तो करवा ही देंगे ,भाभी ने सुझाव दिया। बुआजी जैसे असली बात पर आने के लिए भूमिका बाँध रही थीं फिर बोलीं -'बेटी का क्या होगा ? भाभी बोलीं -इसे तो कोई पसंद ही नहीं आ रहा। अभी मैंने जो चार माह पहले तस्वीर भेजी थी ,उसका क्या हुआ ?न ही कोई जबाब दिया। हमें तो कोई तस्वीर मिली ही नहीं भाई ने अनभिग्यता जताते हुए कहा। बुआजी ने वो तस्वीर निकालकर भइया -भाभी के सामने रख दी। 
               भाभी '' नजरें चुराने लगीं ''भइया बोले -मैंने तो ये फोटो तो देखी ही नहीं। मैंने परसों ही तुम्हारे महंगे वाले कालीन के नीचे से उठाई ,जब बंशी सफाई कर रहा था बुआजी रहस्यमयी अंदाज में बोलीं।  भइया -भाभी का मुँह देखने  लगे ,भाभी मुँह नीचे किये  खड़ी रहीं। अब बुआजी को अपनी बात कहने का  मौका मिल ही गया। बोलीं -मुझे एक बात बताओ ,वैसे तो बेटी तुम्हारी है, मुझे क्या ?जैसा तुम चाहोगे वैसा ही होगा लेकिन खून तो अपना ही है, देखकर दुःख होता है।उन दोनों की तरफ देखते हुए बोलीं - कब तक जिन्दा रहोगे ?दस साल, पंद्रह साल या बीस साल ,बेटे का विवाह हो जायेगा , वो अपने परिवार में' रम ' जायेगा। जब तुम दोनों नहीं रहोगे तब इसका अपना कौन होगा ?तब इसे एहसास होगा '' मैं क्यों कमा रही हूँ ,किसके लिए ?जब इसे अकेलापन खलेगा तो इसे कौन सहारा देगा ?किससे अपने मन का दुःख कहेगी ?कभी सोचा है ,ये स्वयं ही बत्तीस साल की हो गयी तो क्या, इसे पच्चीस साल का लड़का मिलेगा ?हमारी ही पसंद नहीं ,लड़का भी तो लड़की को देखेगा। पहले लड़कियाँ कमाती  नहीं थीं तो समय से ही माता -पिता अपनी जिम्मेदारी पूरी कर देते थे। लड़की अट्ठारह -बीस की हुई नहीं कि लड़का देखना शुरू कर देते थे। मेरी खुद का विवाह  इक्कीसवें वर्ष में हो गया।



            चलो ,माना कि समय बदल गया है ,लड़कियों की मांग भी बढ़ गयीं हैं लेकिन जो चीज सही समय पर होनी चाहिए वो सही समय पर ही ठीक लगती है। क्या बेटे के लिए लड़की ढूँढ़ने के लिए नहीं कह रहे हो ? तुम उसके सगे माँ -बाप हो या सौतेले ,जिन्हें अपनी बेटी का ध्यान ही नहीं। कैसे बदल गए ,तुम लोग ?पहले भी रहते थे ,जीते थे। ये जो कमाई का  लालच है न उन पर दृष्टि गड़ाते हुए बोली - लोगोँ ने अपनी आवश्यकताएं इतनी बढ़ा ली हैं कि कुछ ध्यान ही नही  रहता ,क्या सही है ,क्या ग़लत, की पहचान करना ही भूल जाता है। अभी तो तुम्हें सुनने में बुरा लगेगा पर 'ठंडे दिमाग ''से सोचकर देखना। तब तक बंटू भी रिक्शा लेकर आ गया बुआजी तो रिक्शे में बैठकर चलीं गयीं लेकिन उनके सामने कई प्रश्न छोड़ गयीं। 

  
laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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