बधाई हो !बधाई ,बिटिया इंजीनियर बन गयी ,कहती हुई, बुआ जी घर के अंदर आ गयीं। हाँ जी ,आपको भी' बधाई' आपकी भतीजी इंजीनियर बन गई ,रसोईघर से बाहर निकलते हुए भाभीजी बोलीं। कुर्सी पर बैठते हुए ,बुआ ने ठंडी और गहरी साँस लेते हुए कहा -चलो मेरे भाई की एक जिम्मेदारी तो पूरी हुई। जैसे -तैसे इसने बच्चों को पढ़ाया ,बच्चों ने भी इसका साथ दिया ,मेहनत से पढ़े। अब इसका लड़का भी कामयाब हो जाये तो असली गंगा नहाएं। कल्पना उन ननद -भावज की बातें चुपचाप सुन रही थी ,बोली -क्या बुआजी !बेटा कामयाब हो तो गंगाजी नहाएं ,मैं सफल हुई तो मेरा कुछ नहीं। बुआजी बोलीं --तुम सफल हुईं ,अच्छी बात है ख़ुशी की बात भी है लेकिन घर का असली चिराग तो ये है ,इसके ऊपर होगी घर की जिम्मेदारी ,तुम तो अगले घर चली जाओगी। कल्पना तुनककर बोली -कितना भी पढ़ लो ?कामयाब हो जाओ पर असली ख़ुशी बेटे से ही मिलेगी। बुआजी ने समझाने के लहज़े से कहा -बिटिया तुम पढ़ीं -लिखीं ,सफल हुईं। नौकरी भी लग गई, क्या इसमें हमारी ख़ुशी नहीं है ?हम खुश हैं लेकिन जाना तो तुम्हें अगले ही घर है। वहाँ भी अपनी जिम्मेदारियों को समझना ,अपनी जिम्मेदारियों को निभाना। बुआजी !मैं कहीं नहीं जाने वाली ,अपने घर में ही बेटा बनकर रहूँगी। क्या मैं बेटे का फ़र्ज नहीं निभा सकती? कल्पना मुँह बनाती हुई बोली। तुम भी अपना फ़र्ज निभाओ ,पैसे जोड़ो !अपने विवाह की तैयारी करो ,तुम्हारे पिता का बोझ कम होगा ,तब तक भइया भी कामयाब हो जायेगा। इधर तुम्हारा विवाह होगा उधर भइया के लिए भी तुम्हारे जैसी बिटिया, बहु के रूप में ले आयेंगे हँसते हुए बुआजी बोलीं।यहाँ तो पूरी तैयारी में बैठीं हैं ,बुआजी कहकर कल्पना भी हँस पड़ी।
बुआजी एक सप्ताह रहीं फिर अपने घर चलीं गयीं। कल्पना ने अपनी मेहनत ,लग्न से ख़ूब सफलता प्राप्त की। एक साल बाद बुआजी ने रिश्ता भेजा ,पहले तो कल्पना ने मना ही कर दिया कि मुझे विवाह ही नहीं करना। अभी मुझे अपना करियर बनाना है। मम्मी -पापा ने समझाया- अभी से लड़के देखने आरम्भ करेंगे तब भी समय बीत जाता है ,ऐसा तो नहीं कि लड़का देखो और एकदम पसंद जाये। कभी बुआजी ,कभी ताऊजी रिश्ते भेजते रहते। कल्पना दिन -प्रतिदिन सफलता की सीढ़ियां चढ़ती जा रही थी। उसके रिश्ते आ रहे थे लेकिन पसंद कोई नहीं आ रहा था। हर लड़के में कुछ न कुछ कमी निकालकर मना कर दिया जाता। कल्पना को नौकरी करते -करते आठ -नौ साल बीत गए। उसका वेतन भी दिन -प्रतिदिन बढ़ता रहा। घर की सारी सजावट बदल दी गयी ,उन लोगों का रहन -सहन का स्तर भी बढ़ गया। अब उसके पिता को अपनी कम आमदनी में अच्छा नहीं लगता। उम्र के चलते कुछ बीमारियों ने भी घेर लिया जो कमाते थे वो भी छोड़कर घर में बैठ गए। बेटा जो घर का चिराग था, वो बाहरवीं के बाद आगे पढ़ ही नहीं पाया। न ही अब उसका पढ़ाई में ध्यान रहता। अब पूरा घर बेटी की कमाई पर ही आश्रित था।
घर के नए -नए खर्चे बढ़ गए ,बेटी भी कमाते -कमाते बत्तीस सावन पार कर गयी। ताऊजी ने रिश्ते भेजने बंद कर दिए ,बुआजी भी भेजतीं ,तो फिर वही बातें -'लड़के की कमाई कम है। किसी का' फेसकट 'अच्छा नहीं। ये तो लड़का सा लग ही नहीं रहा ,आदमी लग रहा है। कभी -कभार देखने वाली बात आ भी जाती तो गाड़ी में बैठकर जाते और किसी न किसी बात को लेकर मना कर देते ,उनकी 'पिकनिक ' सी हो जाती। कभी कोई पूछता भी कि' बेटी का विवाह नहीं कर रहे? पहले तो मन ही मन चिढ़ जाते , मन में बुदबुदाते -इन्हें क्या मतलब हमारे परिवार से ?जब देखो दूसरों के मामले में घुसे रहते हैं। लेकिन प्रत्यक्ष में कहते -;'-कोई लड़का मिल ही नहीं रहा ,आपकी नजर में कोई हो तो बताना''।
एक दिन बुआजी बैठे -बैठे सोच रहीं थीं कि लड़की बत्तीस साल की हो गयी ,इतने लड़के भी दिखाए लेकिन कोई लड़का पसंद ही नहीं आया। बुआजी ने भाभी को फोन लगाया -उधर से भाभी की आवाज आई -बहनजी !क्या करूँ ?कोई लड़का पसंद ही नहीं आता ,मुझे तो रात -रात भर नींद नहीं आती ,लड़की की उम्र बढ़ती जा रही है। भाभी की इन बातों को सुनकर वे फिर से लड़के की तलाश में जुट गयीं ,अबकि बार जो लड़के की फोटो आई थी उसे देखकर उन्हें पूरा यक़ीन था कि वो मना ही नहीं कर पायेंगे। लम्बा -तंदुरुस्त ,आकर्षक युवक था, कमाता भी अच्छा था। कई दिनों तक इंतज़ार करने के बाद भी जब कोई जबाब नहीं आया तो उन्होंने आने वाली दीपावली पर जाने का निश्चय किया। बहुओं पर जिम्मेदारी सौंपकर वे अपने मायके आ गयीं। वहाँ का वातावरण देखकर बहुत ही अचम्भित हुईं। सारा घर नया हो गया था ,अंदर जाकर देखा वहाँ की साज -सज्जा बहुत ही उच्च स्तर की थी।बुआजी आकर बैठ गयीं ,नौकर ट्रे में पानी लेकर आया। भाभी ने साड़ी नहीं महंगा सूट पहन रखा था। बेटे के हाथ में बहुत ही महंगा वाला फोन था। बुआजी इतना तो समझ गयीं कि ये सब बेटी के पैसों से बना है।
त्यौहार के दिन किसी भी तरह का क्लेश नहीं करना चाहती थीं ,इस कारण सब कुछ देखकर भी चुप रहीं। तभी भाभी बोलीं-बंशी ! दीदी के लिए चाय -नाश्ता ले आओ। उनके हाव -भाव देखकर उन्हें नहीं लगा कि कुछ कहा जाये। अपनी इज्जत अपने हाथ होती है ,मेरे प्रश्न के उत्तर में कुछ उल्टा -सीधा कह दिया तो दो दिन भी टिकना भारी हो जायेगा। पैसा आने पर न चाहते हुए भी ,आदमी के तेवर बदल ही जाते हैं। वो सोचने लगीं -'पहले जब भी आती थी पूरे अधिकार से आती थी भाभी के व्यवहार से कभी नहीं लगा कि ये घर मेरा नहीं ,अपनापन झलकता था। आज तो मात्र औपचारिकता लग रही है। मुझे आये इतनी देर हो गयी ,अभी तक इन्होंने एक बार भी रिश्ते के विषय में न ही पूछा न ही कुछ बताया। मुझे क्या ?इनकी बेटी है। कमा रही है ,इन्हें कमाकर दे रही है। मुझे क्या ?मैं क्यों अपने रिश्ते खराब करूं ?मेरे कहने से तो न ही ये लोग मानने वाले हैं ,न ही इनकी बेटी। मन में न जाने कितने विचार आये और गए ?रात का खाना खाकर कोई चलचित्र देखने लगा ,कोई अपने कमरे में जाकर सो गया। अब पहले की तरह नहीं कि बाहर कुर्सी या चारपाई डालकर घण्टों बातें किया करते थे। अगले दिन वो जल्दी उठ गयीं ,उन्हें जल्दी ही उठने की आदत पहले से ही थी। भाभी तो देर से उठेंगी बंशी ने बताया। ऐसा भी क्या ?जो अपने रहने -सहने का तरीक़ा ही बदल दिया बुआजी ,बुदबुदाई फिर बोलीं -जा तू मेरे लिए चाय बना ला ,मुझे चाय की इच्छा हो रही है। बंशी ने चाय बनाकर दी और वहीं साफ -सफाई में लग गया। कालीन हटाकर जब सफाई कर रहा था ,तभी बुआजी की नजर किसी वस्तु पर पड़ी ,उन्होंने पास जाकर, उठाकर देखा -'ये तो उसी लड़के की फोटो थी ,जिसे बुआजी ने रिश्ते के लिए भेजा था।[क्रमशः ]

