बच्चों को अंग्रेजी माध्यम में डालकर हम संतुष्ट हो गए। बच्चों का जब' ए 'ग्रेड आता तो बहुत प्रसन्नता होती कि बच्चे पढ़ रहे हैं ,आगे बढ़ रहे हैं। गर्मियों की छुट्टी में अपने दादा -दादी के पास गाँव गए ,सब खुश थे। बच्चे कई चीजों से अनजान थे, उनके लिये बहुत सी चीजें नई थीं। गांव में सब लोग हँसते कि शहर के बच्चे हैं ,ऐसी चीजें कहाँ देखीं होंगी ?बच्चे शाम को दादाजी को घेरकर बैठ जाते दादाजी उन्हें कभी कहानी सुनाते ,कभी प्रश्न पूछते। हमने उनके दादाजी को बताया कि ये शहर के महँगे विद्यालय में पढ़ते हैं लेकिन बच्चे उनके प्रश्नों के उत्तर नहीं दे पाते। हमने समझाया भी कि ये अभी उनके कोर्स में नहीं है। तो क्या ?दादाजी बोले। ऐसी बातें तो बच्चों को कहानी द्वारा भी समझाई जा सकती हैं। हमें अपने धर्म ,संस्कारों का ज्ञान तो ऐसे भी दे सकते हैं। मुझे बड़ी बेइज्जती हुई कि बच्चों को ज्ञान नहीं इनके दादाजी ने तो बस कह
दिया। हम जब गांव से आये तो मन ही मन निश्चय कर लिया कि बच्चों को कहानी द्वारा या कैसे भी अपनी सभ्यता -संस्कृति से परिचित कराना है। एक दिन मैं कहानी सुनाने बैठी ,एक साधु की ,जो एक नदी में स्नान कर रहे थे। तभी उन्होंने देखा ,एक बिच्छू नदी में तैरता हुआ जा रहा था वो साधु महाराज उसे बचाने के लिए पकड़ते हैं। बिच्छू उन्हें डंक मारता है ,वो उनके हाथ से छूट जाता है ,वो फिर उसे पकड़ते हैं ,वो फिर छूट जाता है। यही प्रक्रिया कई बार दोहराई जाती है। अंत में वो उस बिच्छू को नदी किनारे रख ही देते हैं। इस कार्य को एक व्यक्ति बहुत देर से देख रहा था।
दिया। हम जब गांव से आये तो मन ही मन निश्चय कर लिया कि बच्चों को कहानी द्वारा या कैसे भी अपनी सभ्यता -संस्कृति से परिचित कराना है। एक दिन मैं कहानी सुनाने बैठी ,एक साधु की ,जो एक नदी में स्नान कर रहे थे। तभी उन्होंने देखा ,एक बिच्छू नदी में तैरता हुआ जा रहा था वो साधु महाराज उसे बचाने के लिए पकड़ते हैं। बिच्छू उन्हें डंक मारता है ,वो उनके हाथ से छूट जाता है ,वो फिर उसे पकड़ते हैं ,वो फिर छूट जाता है। यही प्रक्रिया कई बार दोहराई जाती है। अंत में वो उस बिच्छू को नदी किनारे रख ही देते हैं। इस कार्य को एक व्यक्ति बहुत देर से देख रहा था।
उस व्यक्ति ने साधु महाराज से पूछा -जब वो बिच्छु आपको डंक मार रहा था तो उसे बह जाने दिया होता लेकिन आपने ऐसा क्यों नहीं किया ?साधु महाराज ने तब उसका उत्तर दिया -उसकी प्रकृति ही ऐसी है, डंक मारने की और मेरी प्रकृति है, रक्षा करने की। जब वो जानवर होकर अपनी प्रकृति को नहीं छोड़ सकता तो मैं इंसान होकर अपनी प्रकृति [स्वभाव ]को कैसे छोड़ सकता हूँ ?मैंने इस कहानी को सुनाकर अपने बेटे से पूछा- इससे हमें क्या सीख मिलती है ?तो बेटे का उत्तर था -जब साधू बाबा को पता था कि बिच्छू का स्वभाव डंक मारने का है और वो बाबा भी अपना स्वभाव नहीं छोड़ सकते थे। पहली बात तो उन्हें उसके कार्य में दख़ल देना ही नहीं चाहिए था। क्या मालूम? उसकी तैरने की ही इच्छा हो ,इसीलिए वो डंक मार रहा हो। दूसरे जब उन्हें पता था कि उसकी प्रकृति डंक मारने की है उन्हें उसे बचाना ही था तो किसी डंडे या किसी कपड़े अथवा किसी पत्ते द्वारा बचा सकते थे। अपने हाथ से पकड़ने की क्या आवश्यकता थी? ये तो सरासर मूर्खता है। उसकी बातें सुन मैं अपने बेटे का मुँह देख रही थी। इस कहानी को मैंने भी कई बार सुना किन्तु मेरे मष्तिष्क में ऐसी बातें क्यों नहीं आईं? ये एक ही किस्सा नहीं और भी कई हैं जिन्होंने मुझे भी सोचने पर मजबूर कर दिया।
कुछ दिनों पहले पूरे देश में ही ''लॉकडाउन ''लग गया। बच्चे घर में रहते ,उधर कई चैनलों पर महाभारत और रामायण शुरू हो गयीं। मैंने भी छुटपन में रामायण और महाभारत देखीं थीं ,मैंने सोचा -इस बहाने बच्चों का ज्ञान भी बढ़ जायेगा। और मैंने बच्चों को उन्हें देखने के लिए प्रोत्साहित किया। आजकल के बच्चों को अपने विषयों से ही फुरसत नहीं उसमें भी समय मिले तो फ़ोन पर लग जाते हैं रामायण ,महाभारत हमारे धार्मिक ,पौराणिक ग्रंथ हैं ,पढ़ेंगे तो हैं नहीं ,देख भी लें तो काफी ज्ञान हो जायेगा। मैंने उन्हें वे धारावाहिक देखने के लिए प्रेरित किया।मैंने कहा -शुरू से ही देखें ताकि हमारी संस्कृति के बारे में पता चल सके। हमारे ऋषि -मुनियों के बारे में पता चल सके। महाभारत क्यों और किन कारणों से हुई? बच्चे महाभारत देखने लगे ,धीरे -धीरे बच्चों की दिलचस्पी बढ़ने लगी ,साथ ही प्रश्न भी कौंधने लगे जिस कारण मेरे मन में भी महाभारत होने लगी।
बेटे ने प्रश्न किया -ये केेसा राजा [शान्तनु ] है ?जिसे इस उम्र में एक मछवारन से प्यार हो गया। ये केे सा पुत्र है ? जिसने अपने पिता को समझाया या रोका नहीं। मैंने कहा -पहले समय में अपने बड़ों की बातों का मान रखते थे, उनके विरुद्ध कुछ नहीं बोलते थे।' चाहे वो गलती करें,' बेटे ने फिर प्रश्न दाग दिया।गलती के ऊपर और गलती बेटे ने भीष्म प्रतिज्ञा ले ली ,क्या ये सही था ? क्या वे लोग अपनी भावनाओं में इतने बह गए या यूँ कहें बेबस हो गए कि एक मछवारन के पिता की उचित -अनुचित शर्त मानने के लिए विवश हो गए।जिस -जिस तरह महाभारत आगे बढ़ी -बच्चों के प्रश्न भी बढ़ते गए -अंबा ,अम्बिका के बच्चे नहीं हुए तो ऋषि की दृष्टि मात्र से कैसे बच्चे हो गए ?इसी तरह राजा दशरथ के भी फल खाने मात्र से कैसे बच्चे हो गए ?वहाँ तो मैंने समझाया कि यज्ञ भी किया, उसका ही फ़ल है ,आशीर्वाद के रूप में। इसीलिए तो कहते हैं कि बड़ों का आशीर्वाद लेना चाहिए। मैंने समझाने का प्रयत्न भी किया -वो ऋषि थे ,अन्तर्यामी थे ,उनमें शक्तियाँ थीं। ज्ञानी पुरुष थे। मैं उनकी जिज्ञासा को कितना संतुष्ट कर पाई, पता नहीं। इसी तरह पाण्डु वाला हादसा ,बेटे ने कहा -एक तरफ तो आप कहतीं हैं कि हमारे ऋषि -मुनि ,मोह- माया से दूर हैं ,ज्ञानी होते हैं तो फिर इन ऋषि ने पाण्डु को श्राप क्यों दिया ?जबकि उन्होंने अपनी गलती मानी ,क्षमा याचना भी की। वे चाहते तो चुपचाप भी जा सकते थे। तब भी उन्होंने माफ नहीं किया। इसी तरह राजा दशरथ ने तो अनजाने ही'' शब्द -भेदी'' बाण चलाया था। उन्होंने भी राजा होकर क्षमा याचना की फिर भी उन्हें माफी क्यों नहीं मिली ?मैं सिर्फ इतना ही कह पाई -गलती की सजा तो मिलती ही है ,चाहे अनजाने में ही क्यों न की हो ?फिर क्षमा याचना का तो कोई अर्थ ही नहीं रह गया बेटे ने असंतुष्ट होकर जबाब दिया।
मम्मा !अधर्म क्या है ?अधर्म जो दुर्योधन कर रहा है ,झूठ, छल -कपट ,पराई स्त्री का अपमान। मेरा जबाब था। धर्म करके पांडवों ने क्या पाया ?वनवास ,अपना राज्य भी गंवा दिया ,अपनी पत्नी का भरी सभा में अपमान देखते रहे ,इतने ताकतवर होकर भी उसकी रक्षा न कर सके। दुर्योधन बेईमानी करके भी बारह -तेरह वर्षों तक राज्य करता रहा। इतने देवी -देवताओं के आशीर्वाद के बाद भी पाण्डु ,भीष्म पितामह ,द्रोणाचार्य जैसे धुरंधर न बन सके। युद्ध में यदि किसी ने धोखे से वचन ले लिया तो क्या ,अपनों का साथ छोड़कर दुश्मनों का साथ देते हैं?मामा शाल्व पांडवों का साथ न दे सके तो उनका भी न देते। युद्ध में जी तने के लिए फिर भी छल का सहारा लेना ही पड़ा ,इससे तो पहले ही छल कर लेते तो अभिमन्यु जैसे बच्चों को युद्ध में स्वाहा न होना पड़ता जिन्होंने जिंदगी में कुछ देखा ही नहीं। ये तो सबको पता ही चल गया था कि दुर्योधन उन्हें बचपन से ही नीचा दिखाने का प्रयत्न कर रहा हैं। बचपन में ही भीम को जहरीली खीर खिलाकर मारने का प्रयत्न किया तब भी नहीं समझ पाए कि उससे संभलकर या बचकर रहना है।
भगवान '' कृष्णजी 'ने'' गीता ''का ज्ञान दिया कि आत्मा न ही मरती है ,न कटती है ,न जलती है ,वे तो भगवान थे फिर अपने चक्र से उन्हीं दुराचारियों को मारते जो गलत थे। इस युद्ध में तो वो भी मारे गए जो सही थे। इतने नरसंहार की आवश्यकता पड़ती ही नहीं। उसके बाद जब राज्य प्राप्त हुआ, मन में दुःख ,क्लेश ,अपनों का बिछोह ,इससे क्या प्राप्त हुआ ?मैंने कहा -धर्म की स्थापना के लिए ही सब हुआ। इतने नरसंहार के बाद भी धर्म नहीं दिखता ,छल ,कपट ,झूठ ,बेईमानी तो आज भी है। इतने नरसंहार के बाद तो ये होना चाहिए कि अधर्मी लोग बचते ही नहीं। न जाने कितने प्रश्नों के उत्तर दिए ?कुछ दे भी नहीं पाई लेकिन इन बच्चों के प्रश्नों ने मेरे मन में जरूर महाभारत करा दी।


