उस माँ की छाती में ,
कितनी हिलोेर उठी होंगी?
उसे बड़ा किया होगा।
आज वो अर्ध नग्न,
जली लाश दिखती है।
पाले थे ,न जाने कितने स्वप्न ?
आज सब वो ,अंधकारमय है।
क्या ---
उस माँ का दिल नहीं दहला होगा।
जिसकी बाँहों में ,अपना लाल झूला होगा।
आज वो अपने कर्मों की ख़ातिर,
राह भटका भूला होगा।
उसके अपने साथ कोई नहीं ,
अपमानों का तूफ़ा होगा।
अपने ही आँसू पीती होगी ,
रोती -पीटती ,अपना लाल कैसे भूला होगा ?
अपमान भरे शब्दों को ,अपने सीने पर झेला होगा।
दिखा न पाई ,वो मुँह अपने ही आप को ,
जब उसका ही दूध ज़हरीला हुआ होगा।
जीते जी अपने सीने पर रखा पत्थर ,
अपना दिल छलनी जाना होगा।
शुष्क नयन ,वो तकती राहें ,क्या बीतेगी?
उस माँ पर ,अब उसका न आना होगा।
उस लाल !का अब न वापस आना होगा।