ये ,क्या किया ?तूने लड़की। इतने अच्छे रिश्ते को मना कर दिया, ऐसे रिश्ते बार -बार नहीं मिलते। कितनी मुश्किलों से यह लड़का हाथ आया था। खानदानी लोग हैं ,बहुत पैसे वाले हैं। मकान -दुकान सबसे फिट हैं ,फिर क्या बात थी ?लड़का भी अच्छी नौकरी पर था। चाचीजी के इतना कहते ही कविता जो इतनी देर से चुपचाप सुन रही थी, बोल उठी -अच्छी नौकरी थी ,अब नहीं है। चाचीजी बोलीं -तो क्या ?फिर लग जाती ,बहुत से लोगों की नौकरी छूटी है। कविता ने कहा -अभी तो घर में ही बैठा है ,विवाह होने के बाद न लगती तो ,साल दो साल कितने साल? उसके इसी भरोसे से मैं उसके घर चली जाती। पहली बात तो उसे आना ही नहीं चाहिए था जबकि उसे मालूम था कि उसके पास आमदनी का कोई साधन नहीं है। स्वयं तो माँ-बाप के भरोसे है। या यूँ कहें ,माँ -बाप के ऊपर बोझ बना बैठा है ,मैं भी जाकर बैठ जाती। मेरे अरमान ,मेरी इच्छाएँ कुछ महत्व नहीं रखती। मेरी भी इच्छा है कि मैं बाहर घूमूँ ,जैसे सब लोग जाते हैं मैं भी देश -विदेश घूमकर आऊं। जो आदमी अपने माता -पिता के खर्चे पर पल रहा है ,वो मेरा क्या खर्चा उठाएगा ,कैसे मेरे शौक पूरे करेगा ? कविता ने अपनी चाची को जबाब दिया। उसके जबाब से चाची तिलमिलाकर बोली --ये लड़की कितनी बोलने लगी है ?लड़कियों के भी कोई अरमान होते हैं ?क्या हमारा विवाह नहीं हुआ ?माँ -बाप के सामने जुबान चलाना तो दूर, कभी नजर उठाकर भी नहीं देखा।
इसे देखो ,इसने तो सीधे लड़के से ही मना कर दिया ,और पढ़ाओ ,लड़कियों को। ज्यादा पढ़ाने का नतीजा है ,ये। न ही अपने माता -पिता की इज्जत की परवाह है ,न ही घर में आये मेहमानों की। वो लोग भी क्या सोचते होंगे ?कि लड़की को ये ही संस्कार दिए हैं ,वो तो अच्छे लोग थे जो चुपचाप चले गए। चाची की बात सुनकर कविता को भी क्रोध आ गया बोली --अब मेरा मुँह न खुलवाओ चाची ,मैंने कौन सी संस्कारहीन बातें कर दीं ?,चुपचाप इसीलिए चले गए ,जो बात मैंने उसके सामने रखी थी वो'' सौ टका '' सही थी। अब चाची को भी उसकी बातों का कोई तोड़ न मिलते देख वो अपनी जेठानी यानि कविता की मम्मी के पास गयीं जो मेहमानों के आने से फैले सामान को समेट रही थीं ।उनके पास आकर बोलीं -दीदी आप तो यहाँ आकर रसोईघर में लग गयीं ,इसे कुछ कहती क्यों नहीं ?पूरी तरह ज़बान चलाने लगी है। कल्पना सामान समेटते हुए बोली -'जो भी हो इसका फैसला ,जिंदगी इसकी है तो फैसला करने का अधिकार भी इसका होना चाहिए ,ये भी तो अपना भला -बुरा देख समझ सकती है ,पढ़ी -लिखी है। वो ही तो कह रही हूँ कुछ ज्यादा ही पढ़ गयी ,इसको किसी की इज्जत या बेइज्जती से कोई मतलब नहीं ,चाची ने गुस्से में तिलमिलाते हुए मम्मी से कहा। तभी अपने छोटे लड़के का हाथ थामे मौसीजी ने घर में प्रवेश किया। रहतीं तो इसी शहर में हैं ,मम्मी ने बुलाया भी था लेकिन किसी परेशानी के चलते उन्होंने आने से इंकार कर दिया। मेरी इंकार करने की खबर उन तक पहुंचते ही, दौड़ी चली आईं ,आते ही बोलीं -क्या हुआ? चाचीजी ने जैसे राहत की साँस ली और उन्होंने नमक -मिर्च लगाकर सारी बातें मौसी को सुनाई। बातें सुनकर मौसीजी बोलीं -दीदी ये तो सही नहीं है। मौसी को अपने पक्ष में बोलते देख चाची संतुष्ट होकर कपड़े उतारने के लिए छत पर चली गयीं। मौसी बोलीं --दीदी ये तो सही नहीं ,क्या हमारे विवाह नहीं हुए ?हम पढ़े -लिखे नहीं थे ,हमने भी अपने माता -पिता का कहना सिर झुकाकर नहीं माना। मेरी तरफ देखते हुए बोलीं -इसमें इतनी हिम्मत कहाँ से आई ?आप तो इसी का समर्थन कर रही हो ,आपने इसे समझाया क्यों नहीं ?मम्मी ने मौसी को चाय पकड़ाते हुए कहा -हम भी तो पढ़े -लिखे थे लेकिन हममें हिम्मत नहीं थी ,ऐसा नहीं है। हममें हिम्मत थी ,लेकिन हमारी परिस्थितियाँ ऐसी नहीं थीं कि हम हिम्मत दिखा सकें। हिम्मत और समझ अपने -अपने हिसाब से हर आदमी में होती है लेकिन ''परिस्थितियाँ जब अपने अनुकूल नहीं होतीं, तो हिम्मत न दिखाने में ही समझदारी होती है''। तुझे पता है ,मेरा विवाह किन परिस्थितियों में हुआ ?पढ़ी -लिखी थी ,नौकरी करती थी,लेकिन कई जगह नौकरी छोड़नी भी पड़ी। इन सबका कारण था- कहीं पैसे ,कहीं परिस्थितियाँ ठीक नहीं। उधर मम्मी -पापा लड़का ढूंढ रहे थे, जो बिन दहेज के मिले। तुझे पता है ,हमारी बिरादरी में बिना दहेज के अच्छा लड़का मिलना कितना मुश्किल है ?चाहे लड़की कितनी भी पढ़ी- लिखी और योग्य क्यों न हो ?लेकिन बिन दहेज़ उसका कोई मूल्य नहीं। जो लड़का कुछ भी न कर रहा हो जब उसे ही इतना दहेज़ मिल जाता है तो अच्छे नौकरी वाले लड़के को दहेज़ न मिले या बिना दहेज़ के विवाह कर लें ,ऐसा कैसे हो सकता है ?दिन, महीने साल यूँ ही निकलते जा रहे थे। उम्र भी बढ़ती जा रही थी ,माता -पिता की चिंता भी। बिना दहेज़ के क़ामयाब लड़का कहाँ से लाएं? जब तेरे जीजाजी का रिश्ता आया था तब क्या वो कुछ कर रहे थे ?लेकिन मैंने इनके अंदर कुछ करने का जज़्बा देखा, देखने में भी अच्छे लगते थे ,उम्र भी ज्यादा नहीं थी। मेरे पास कोई विकल्प ही नहीं था। परिस्थितियों से समझौता करते हुए ''मैंने विवाह कर लिया। ''विवाह के बाद क्या बदलाव आया ?तेरे जीजाजी सफल होने के लिए संघर्ष करने लगे। मैं घर में थोड़े -थोड़े पैसे बचाकर परिस्थितियों से उबरने का प्रयत्न करने लगी ताकि हमारे बच्चे किसी भी तरह की परिस्थितियों में न फंसें। मम्मी ने मौसी से पूछा -क्या हममें हिम्मत नहीं थी ?हिम्मत थी ,तभी तो विपरीत परिस्थितियों का डटकर सामना किया। सरहद पर हमें पता होता है कि ये दुश्मन है ,इससे हमें लड़ना है। न ही कोई बंधन है ,तो हम हिम्मत दिखा देंगे। यहाँ तो अपने ही लोग थे, तो लड़ें किससे ?अपने ही लोगों से जो स्वयं ही लाचारी ,बेबसी की जिंदगी जी रहे थे। मेरे साथ तो परिस्थितियाँ ऐसी थीं एक तो उम्र बढ़ती जा रही थी दूसरी तरफ आर्थिक समस्या। समझौता तो करना ही पड़ता। तुम ही देख लो तुम्हारे समय में परिस्थितियाँ थोड़ी अनुकूल थीं, तो तुमने भी कह दिया था कि मैं ऐसे लड़के से विवाह करूंगी। आयी न हिम्म्मत ?मम्मी ने मौसी के चेहरे को देखते हुए पूछा। इसी तरह कविता में हिम्मत है ,इसकी परिस्थितियाँ अनुकूल हैं ,पढ़ी -लिखी है ,पिता के पास पैसा भी है ,नौकरी करती है ,सुंदर है तो फिर वो समझौता क्यों करे ?''हिम्मत तो सबमें होती है लेकिन कभी -कभी परिस्थितियाँ अनुकूल न होने के कारण हमें हिम्मत को दबाकर समझौता करना पड़ जाता है। परिस्थितियाँ अनुकूल होते ही हम वापस से ऐसे ही बन जाते हैं ,जैसे हम होते हैं। फिर मम्मी हँसते हुए बोलीं -''औरत को कभी कमज़ोर न समझना ,फ़र्क सिर्फ़ इतना है कि वो परिस्थितियों के अनुसार अपने को ढ़ाल लेती है, तू तो औरत होकर भी अपनी क्षमता नहीं पहचान सकी।'' मम्मी की बातें सुनकर मुझे लगा -कि मेरा भी अस्तित्व है ,मेरे माता -पिता को मेरी भावनाओं की क़द्र है उन्होंने मेरे ऊपर अपनी इच्छा थोपी नहीं वरन मेरे फ़ैसले का मान रखा। मेरे लिए तो बस यही काफी था।