dukhiya sub snsar

हम जब छोटे - छोटे थे, कबीरदास, सूरदास और तुलसीदास जैसे महान कवियों  की रचना उनके पद, दोहें पढ़ लेते थे। जिनमें जीवन के सार छिपे थे। विद्यालय में भी हिंदी विषय में ऐसे ही महान कवि पढ़े हैं। उस समय हम दोहें पढ़ लेते थे, उनके भावार्थ भी याद कर लिया करते थे। उनके दोहे जीवन की सच्चाई को उजागर करते थे। इन दोहों को याद करने, भावार्थ समझने के उपरांत भी हम महसूस नहीं कर पाए। ये तो समझते थे कि ज्ञान की बातें  हैं, लेकिन महसूस तो तभी होती हैं जब जीवन में स्वयं अनुभव किया हो या स्वयं पर बीतती हो । हमने कक्षाएं पास कीं और जीवन सागर में उतरते चले गए। जितनी गहराई तक गए, तभी उस जीवन रस का अनुभव हुआ। कभी लगता, कोई किसी का नहीं, कभी लगता प्रेम से सबको जीता जा सकता हैं। फिर पता चलता हैं, कि  जीवन में ऐसे लोग भी आते हैं, जो प्रेम का दुरुपयोग भी करना जानते हैं। फिर भी पानी में रहकर मगरमच्छ से बैर नहीं किया जा सकता। जीवन की गहराई में नए - नए अनुभव बढ़ते गए, लेकिन जीवन का रसपान करने से अपने को हम वंचित नहीं करना चाहते थे।                                                                             

   कटु अनुभवों की सारणी ज्यादा लम्बी रही। फिर सोचा और मनन किया कि  सब जीवन जी रहे हैं, लेकिन खुश कौन  हैं, सुखी कौन ? आस - पास नज़र डाली ,सब परेशान दुखी ही नज़र आये।  किसी के पास पैसा हैं, तो वो रिश्तों के तालमेल ना होने से परेशान हैं। कोई पैसा ना होने के कारण  परेशान,  कोई अपनी रोज़ी- रोटी के लिए परेशान। इंसान सुख से ज़िन्दगी जीना चाहता हैं, लेकिन उसे स्वयं ही नहीं पता कि  सुख क्या हैं ?जिस धन को वो सुख माने बैठा था ,उस धन ने न जाने कितने दुश्मन ,लालची बना दिये। स्वयं उसका व्यवहार ,सोच कब बदल गयी ?उसे पता ही नहीं चला। जरूरतें पूरी करते -करते कब वो उस लक्ष्मी का गुलाम बनता चला गया ?उसे पता ही नहीं चला। उसे इस बात का एहसास तब होता है  सच्चे रिश्ते उसका साथ छोड़ देते हैं और वो चापलूसों की चालाकियों में फँसता चला जाता  है।ये  भृमजाल भूल -भुलैया जैसा इतना कठिन होता है जिसमें वो भविष्य तो क्या ,वर्तमान का सही -गलत भी नहीं देख पाता। रिश्तों में कब कड़वाहट घुल जाती है ये पता नहीं लग पाता ,जब तक पता लगता है ,तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।                                           
 पृथ्वी पर जितने भी जीव हैं सभी अपने -अपने बच्चों को पालते -पोषते हैं लेकिन उसकी सुविधा उन्हें प्रकृति से मिलती है।किन्तु  मनुष्य  ही पृथ्वी पर ऐसा जीव है जो अपने बच्चों के लालन -पालन के लिए कमाता है ,अपने बच्चों व परिवार के भरण -पोषण के लिए ,उन लोगों की इच्छाएं पूरी करते -करते क्या से क्या हो जाता है ?इसका अंदाजा वो स्वयं भी नहीं लगा पाता। इस बात का एहसास उसे तब होता है ,जब उसके अपने उसे यह एहसास दिलाते हैं कि अब तक उसने जीवन में किया ही क्या है ?जब वे पंक्षी उड़ने लायक हो जाते हैं।स्वतन्त्र जीवन जीना चाहते हैं। [वे भी अपनी जगह सही हैं ]तब वो एकाकीपन उस व्यक्ति को दे जाते हैं। जिसने न जाने कितने अरमान ,कितनी इच्छाएं अपने उन बच्चों के लिए उस परिवार के लिए दबाकर रखीं। उसका अपना अस्तित्व ही खतरे में पड़ा नजर आता है ,फिर भी वो हिम्मत नहीं हारता [इस जीवन का मोह ही ऐसा है ]उस परिवार को एकजुट करने में ,उनकी इच्छानुसार अपनी सोच को बदलने का प्रयत्न करता है। तब तक वो लाचार हो चुका होता है। तब वो अपनी उस बदली सोच को लेकर कहता है कि हम ज़माने के साथ चल रहे हैं। परेशान तो वो पंक्षी भी हैं जो इच्छाओं की अंधी दौड़ में शामिल हैं क्योंकि वो स्वयं भी तो इतिहास दोहराते हैं। बस समय और लोग बदल जाते हैं। वे भी अपने -अपने कर्मों के आधार पर जीवन व्यतीत करते हैं और अंत में परिणाम वो ही आता है जो उनके माता -पिता का था।  

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

2 Comments

  1. Bahot badhi bat asani se sundar shabdo mein bayan kiya hain!!
    Muze accha laga!
    Aapake muh se jo kabirdas ke dohe sune vo yad aaye!

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