जब मैं पैदा हुआ ,तब से अपनी कहानी सुनाता हूँ। मैं रोबोट हूँ ,जो इंसानों द्वारा ही निर्मित हूँ किन्तु मुझे बनाया नहीं गया ,पैदा किया गया है। मेरे अनेक नाम हो सकते हैं। जैसे --रमेश ,सुरेश ,अभय ,विनीत इत्यादि। इन नामों का भी एक दौर चलता है। जैसे -जैसे मानव आधुनिक होता जाता है ,नामों में भी परिवर्तन आता रहता है लेकिन मेरे प्यार के नाम भी होते हैं जैसे -गुड्डू ,डब्बू ,पिंटू ,बबलू इत्यादि कभी -कभी हमें नाम हमारी शक्ल -सूरत देखकर भी मिल जाते हैं जैसे -काला रंग है तो कालू ,गोरा रंग है तो भूरे। ये प्यार के नाम हमें वो ही देते हैं जो हमसे जुड़े हैं या जिनसे हम जुड़े होते हैं। जिनका खून हमारे अंदर प्रवाहित होता रहता है। मैं उन लोगों के बताये रास्ते पर चलता रहता हूँ क्योंकि उन्होंने ही मुझे बनाया है। मुझे इस मानव रूपी रोबोट की दुनिया में लाये हैं, उनका मुझ पर अधिकार भी है ,वे ही हमें इस अजनबी दुनिया से परिचित कराते हैं।
मेरा भी फ़र्ज बन जाता है कि मैं उन लोगों की बातों पर विश्वास करूँ, उनका कहना मानूँ ।जब मैं छोटा था, तब उन्होंने ही तो मेरा भरण -पोषण किया ,मुझसे प्यार भी किया। हम'' इंसानी रोबोटों 'में यही तो बात है जो जिसका निर्माण करता है, उसी का अधिकार भी होता है। दूसरा तो कोई भी बिना मतलब बात ही न करे। जैसे -जैसे मैं बढ़ता जाता हूँ ,मुझसे अपेक्षाएं भी बढ़ती जाती हैं। पहले मुझे शिक्षित किया जाता है ,शिक्षित कराने के लिए मुझे विद्यालय रूपी कारखाने में दाखिल कराते हैं। उन कारखानों में यूँ ही नहीं दाखिल होते, उसके लिए भी परीक्षा देनी होती है। दाखिल होने के बाद मुझे वहाँ के सुनिश्चित किये वस्त्रों में पैक करके कई सालों तक भेजा जाता है। मेरी इच्छा होती कि मैं खेलूँ ,दोस्त बनाऊँ उनके साथ घूमूँ लेकिन मेरे अंदर चाबी भरी जाती ''पढ़ो -लिखो ,कामयाब हो जाओ। ''ताकि मैं अपना भरण -पोषण स्वयं कर सकूं। मैं अपने अरमानों को दबा उस चाबी के तहत चलता रहता हूँ। इस संसार में भिन्न -भिन्न प्रकार के रोबोटिक माता -पिता हैं। कुछ समझदार ,कुछ अपनी इच्छाएं ही अपने बच्चों पर थोपते हैं। इस मामले में मैं भाग्यशाली रहा। मुझ पर दबाब था ,अपनी सोच के आधार पर सफल होना। मैंने अपनी शिक्षापूर्ण की। पढ़ते -पढ़ते लगभग मैं थक सा गया था। किसी तरह मैंने अपनी शिक्षा समाप्त कर अपने भरण -पोषण के लिए नौकरी कर ली। अभी मैं चैन की साँस ले भी न पाया था कि मेरे माता -पिता सतर्क हो गए। कहीं मैं किसी अन्य महिला रोबोट के सम्पर्क में न आ जाऊँ। आखिर हम रोबोटो का भी एक स्तर है। मैं तो भूल ही गया था कि मैं'' मानव रोबोट ''हूँ। मेरा दायित्व बनता है कि मैं भी ऐसे ही'' मानव रोबोटों ''का निर्माण करूं। इस कारण मेरे लिए एक महिला रोबोट ढूंढी जाने लगी जो मेरी देखभाल करे या यूँ कहो ,मुझ पर नियंत्रण रखे। मानव होने के कारण मेरे मन में भी कुछ इच्छाएं पल्ल्वित होने लगीं और आखिरकार एक तेज़ -तर्रार ,होशियार ,शिक्षित 'महिला रोबोट' मुझसे विवाह कर मेरे सम्पर्क में आई। मेरे ही नहीं परिवार के सम्पर्क में भी आई। अब मैं उस जीवन में प्रवेश कर गया था जिसे लोग 'गृहस्थ जीवन'' कहते थे।