खन्नाक !की आवाज़ के साथ ,न जाने कितने टुकड़े हो गए ,जो सिर्फ़ मैंने सुने ,महसूस किये। किसी को इस बात की भनक भी नहीं लगी कि कहाँ ,क्या हो गया ?मैं उन टुकड़ों से हुई चुभन को महसूस करती ,सहन करती रही। हालॉंकि दर्द बहुत हो रहा था लेकिन उस पीड़ा को दबा लेना चाहती थी। नहीं चाहती थी कि कोई उस पीड़ा को महसूस भी करे लेकिन इस वक़्त मेरे पास है भी कौन ?जो मेरे इस दर्द को बाँट सके। जो बाँट सकता था ,समझ सकता था ,वो ही तो दर्द देकर गया। मैं अविश्वास में उन शब्दों को बार -बार मनन कर रही थी ,वे अविश्वसीय शब्द, मेरे कानों में किसी अँधेरी गुफा की तरह गूंजते हुए सीधे दिल पर असर कर रहे थे। मुझमें अब खड़े रहने की हिम्मत नहीं रह गई थी। बेजान सी स्थिति में बैठी मैं गहन अंधकार में डूबती जा रही थी ,जैसे संज्ञाहीन हो चुकी हूँ। सब कुछ देख सुनकर भी अनभिज्ञ थी ,चाहकर भी मैं उस अवस्था से उबरना नहीं चाहती थी या उबर नहीं पा रही थी।
कभी -कभी किसी के कहे हुए शब्द भी ,सम्पूर्ण जिंदगी को हिलाकर रख देते हैं। जिस पर हमें सम्पूर्ण विश्वास हो और वो ही हमारी सोच के विपरीत बात कर दे, तो एकाएक विश्वास करना कठिन हो जाता है। दिल उस बात पर यकीन ही नहीं करना चाहता कि ऐसा भी हो सकता है। विनोद और मैं हम दोनों अभी तो, थोड़ी देर पहले ही बातचीत कर रहे थे। बातचीत का विषय कोई सास -बहु के किस्से नहीं वरन हमारी ही कुछ खट्टी -मीठी यादें थीं। कुछ इधर -उधर की ,कुछ रिश्तेदारों की बातें करते -करते जैसे अचानक ही कुछ याद आया ,कुछ अपने अनुभव के आधार पर मैंने अपना सुझाव रखा -वीनू !मुझे लगता है ,कि वो लड़का ! प्रमोद को , अब किरण पसंद करने लगी है। वीनू ने अपनी अनभिग्यता जताते हुए कहा -कौन प्रमोद ?अरे ,वही जो हमारे कॉलिज में था। सबका ध्यान अपनी तरफ खींचने के लिए उटपटांग हरकतें करने लगता था ,तुम्हें उसकी हरकतें पसंद नहीं थीं। पहले तो मुझ पर उसकी निगाहें थीं लेकिन उसने जब तुम्हें देखा तो पीछे हट गया। प्रमोद की याद आते ही वीनू के चेहरे के भाव बदल गए ,बोले -उनका तो नाम भी मत लो ,हमारी तरफ से जैसे चाहें, करें। उसकी आवाज में उनके लिए कड़वाहट थी बोला -उसने तुम्हारा पीछा छोड़ा नहीं था ,मैंने छुड़वाया था।
मुझे तो लगता है, कि किरण से भी वो तुम्हारा बदला लेने के लिए ही पीछे पड़ा है, तुम्हारी चचेरी बहन जो है। मैंने तुम्हारे चाचा -चाची से कहा भी था कि इसके चक्कर में मत पड़ना, मुझे सही नहीं लगता। लेकिन तुम्हारी चाची तो ठहरीं लालची, उसका ऐशो -आराम देखकर लार टपकने लगी। उन्हें लगा, कि मैं उसके पैसों से जल रहा हूँ ,उसके आने से मेरी इज्जत कम हो जाएगी इसलिये मैं ये रिश्ता नहीं चाहता ,ऐसा उन्हें लगता है। बस उन बातों को अब यहीं ख़त्म करो !जैसे उसने फैसला सुनाया हो। वो सब बातें छोड़ो ,मैं तो ये कह रही थी -कि प्रमोद अब किरण को बहुत चाहने लगा है ,सुना है ,किरण के लिए उसने अपना रिश्ता जो माता -पिता ने तय किया था ,वो तोड़ दिया। इस बात ने किरण के मन पर भी असर किया। मेरा मानना है ,अब वो भी उसे चाहने लगी है। वो भी अभी असमंजस में है कि वो ये सब उसके लिए कर रहा है। वो तो पैसे वाले हैं, उन्हें तो एक से एक लड़की मिल जाएगी। क्या सचमुच ही वो उसे चाहने लगा है ?
सुनकर वीनू बोले -प्यार -व्यार कुछ नहीं, उसके ड्रामे हैं ,देखा नहीं कॉलिज में कैसे नए -नए ड्रामे करता था ?नौटंकी है ,साला। मैंने शरारत से मुस्कुराते हुए कहा -''अगर किरण से विवाह हो गया तो साला नहीं बहनोई लगेगा।वीनू ने गुस्से से मुझे घूरा ,मैंने उसे समझाने के लिए कहा -वो लड़का हर रूप में ,हर तरह से किरण को स्वीकार करने के लिए तैयार है। ये प्यार नहीं तो और क्या है ?वीनू ने लापरवाही से कहा -कोई किसी को प्यार -व्यार नहीं करता। सब भूल -भाल जाते हैं ,ये सब बेकार की बातें हैं। तभी मेरे मन में एक शरारत सूझी -मैंने विनोद को चुटकी काटते हुए, भौहों से इशारे करते हुए कहा -क्यों ,क्या तुमने मुझसे प्यार नहीं किया ?तुम्हारी मम्मी तो बताती हैं कि इसने तो कह दिया था कि विवाह करूंगा तो कंचन से वरना करूंगा ही नहीं। मुझे अपने प्यार पर पूरा भरोसा था और गर्व भी कि मुझे इतना प्यार करने वाला पति मिला है। कुछ अच्छा सुनने की उम्मीद से मैं बोलती चली गयी -अगर मुझसे तुम्हारी शादी न होती तो तुम्हें दुःख नहीं होता कि जिसे मैं चाहता हूँ ,प्यार करता हूँ उससे मेरी शादी न हो सकी। मैं थोड़ा रुककर उसकी तरफ हसरत भरी निगाहों से देखने लगी।
तभी वीनू ने मेरी उम्मीद के बिल्कुल विपरीत जबाब दिया -''तुमसे नहीं होती तो किसी और से होती ,तुम्हारी याद में मैं देवदास थोड़े ही बन जाता। मैं जो आसमान में उड़ रही थी ,सुनकर लगा जैसे एकाएक मेरे पंख कट गए और मैं धड़ाम से नीचे आ गिरी। मैं समझ नहीं पाई कि ये मज़ाक था या हकीकत। या उस प्यार की इतनी ही क़ीमत थी। जब तक वो स्वप्निल प्यार वास्तविक नहीं बन जाता तभी तक किसी जिद्दी बच्चे की तरह जिद थी उसे पाने की और जब मिल गया तो उस खिलौने का अब कोई मूल्य ही नहीं रहा।ये सब बातें कहकर वीनू तो बाहर गए लेकिन मैं पर कटे पंछी की तरह फ़ड़फ़ड़ाती रही। इस तरह पड़े -पड़े न जाने कितनी देर हो गयी ?सासू माँ की आवाज सुनकर जैसे मुझमें चेतना लौटी। वो कह रहीं थीं -कंचन क्या आज शाम का' दिया'' नहीं जलाना है।मन नहीं था, फिर भी उठी, न उठती तो चार सवाल पूछतीं।' दिया'' 'जलाकर मैं शाम के खाने की तैयारी में लग गयी। सासूमाँ ने मेरा चेहरा देखा, तो बोलीं -क्या कुछ हुआ है ,बहु ?नहीं, कुछ भी तो नहीं ,मेरे जबाब से वो संतुष्ट नहीं हुईं बोलीं -तुम्हारा चेहरा तो कुछ और कह रहा है ,,क्या वीनू ने कुछ कहा। मैं अपना सर झुकाये काम करती रही ,वो चलीं गईं, तो मेरी आँखों से आँसू टपक पड़े।
तभी पीछे से आकर किसी ने मुझे अपनी तरफ खींचा, मैंने देखा वो वीनू ही थे ,बोले -अरे पगली !प्यार नहीं करता तो तुम्हें पाने के लिए इतने'' पापड़ न बेलता''। क्या मेरे रिश्ते नहीं आ रहे थे ?लेकिन विवाह तो मुझे तुमसे ही करना था। वीनू ने मुझे पलंग पर बैठाते हुए मुस्कुराकर कहा -इतने'' पापड़ बेलने ''के बाद भी ,क्या मैं अपनी पत्नी से मज़ाक भी नहीं कर सकता ? ''हर चीज को दिल पर ले लेती हो ,किसी भी रिश्ते में अपने आप को जोड़कर मत देखा करो ,हर रिश्ते की वास्तविकता अलग होती है। '' और मुँह बनाकर बोले -ख्वाहमख़ाह मम्मी से डांट पड़वा दी। उनके इस तरह से बोलने पर मेरी हँसी छूट गयी।