doodhvala[milk man]

हाँ भइया !दूध कैसे दिया ?जी तीस रूपये लीटर दूधवाले ने  जबाब दिया। नहीं ,अट्ठाइस रूपये हो रहा है। मिश्राइन ने मुँह बनाते हुए कहा।आप किस भाव लेंगीं ?उसने पूछा। अट्ठाइस के भाव लगाना हो तो बताओ ,और दूध में पानी नहीं होना चाहिए वरना पैसे नहीं दूँगी। वो हँसा बोला -ठीक है। कल से दूध लेकर आ जाना ,आज तो हमने मँगा लिया ,वो घर हमारा है, मिश्राइन ने एक घर की तरफ इशारा करते हुए कहा। वो बोला- मैं जानता हूँ। मिश्राइन ने उसे हैरानी से देखा और चली गयी। 
            अगले दिन दूधवाला दूध लेकर आ गया। दूध लेते समय मिश्राइन, कभी दूध को ,कभी दूधवाले को घूर रही थी। उसे घूरते देखकर दूधवाला बोला -दूध बहुत ही बढ़िया है ,पानी नहीं मिलाया है। हूँ...... किसी बड़े विशेषज्ञ की तरह मिश्राइन नीचे बैठी और अंगुली से एक बूँद दूध जमीन पर गिराया ,फिर उसे ध्यान से देखा। फिर संतुष्ट होकर बोली -ठीक है ,ऐसा ही दूध लाते  रहना। दूध वाला मुस्कुराया और चला गया। समय भी न जाने कितनी जल्दी बीत जाता है ,जब किसी का इंतज़ार हो तो ,काटे नहीं कटता और जब कुछ सोचा भी न हो तो पता ही नहीं चलता ,कब समय  बीत गया ?इसी तरह लग रहा था ,जैसे अभी तो दूध लगाया और एक माह हो भी गया। अब मिश्राइन की बारी थी, उसे चिंता सताने लगी कि दूधवाले का हिसाब करना है लेकिन पैसों का तो कहीं से भी इंतज़ाम नहीं हुआ। पति का व्यापार मंदा चल रहा है ,इस मोेहल्ले में नए आये हैं ,कहीं दूधवाला सारे मौहल्ले के सामने बेइज्जती न कर दे। पति से कहा भी ,तो बोले -क्या करूं ?कोशिश तो कर ही रहा हूँ और भी ख़र्चे हैं, तुम ही दूधवाले से कुछ दिन की और मौहलत माँग लो। पति के सुझाव पर, मिश्राइन ने मुँह बनाया पर बोली कुछ नहीं। 
                अगले दिन, मिश्राइन दूध लेने आई तो एकदम शांत ,न ही दूध देखा फिर धीरे से बोली -भइया !तेरे पैसे दस दिन बाद दे दूंगी ,अभी इनका वेतन नहीं मिला। दूधवाला मुस्कुराया बोला -कोई बात नहीं ,कहकर चला गया। उसके  जाते ही मिश्राइन ने एक लम्बी साँस ली। अंदर आकर जो भी मिला  बोली -वैसे दूधवाला अच्छा आदमी है ,दस दिन के लिए मान गया। दूधवाला प्रतिदिन आता और दूध देकर चला जाता। लेकिन अब मिश्राइन चिक -चिक करने लगी- एक तो सिर पर दूध के पैसों का उधार ,ऊपर से अब वो दूध भी पानी मिलाकर ला रहा है। बड़बड़ाती -'क्या  पैसे नहीं लेगा ?देर -सवेर पैसे तो दे ही देंगे ,तो फिर पानी का दूध क्यों पियें ?मिश्राइन का हाथ तंग था। एक -एक पैसा जोड़कर ,वो उसके दूध के पैसे देना चाहती थी। वो समझ रही थी, कि पैसे समय पर न मिल पाने के कारण  ही वो पानी मिला दूध दे रहा था लेकिन पैसा हो तो......  तब जुड़े न ,पैसा जोड़ने के लिए पैसा भी तो होना चाहिए। बेटी एक गैर सरकारी विद्यालय में पढाती  है। ऐसे विद्यालयों में भी शोषण ही है। काम ज्यादा लेते हैं ,वेतन के नाम पर मात्र तीन  हज़ार रूपये थमा देते हैं,सभी गरीबों की मजबूरी  फ़ायदा उठाते हैं। जब पता चल जाता है कि इन्हें पैसों की ज़्यादा ज़रूरत है, तो साफ़ कह देते हैं ,इतने ही मिलेंगे ,करना हो तो करो ,वरना जाओ ! 
             ये तीन  हज़ार भी बढ़कर हुए हैं ,अब मुसीबत के समय इन रुपयों का ही सहारा नज़र आ रहा है। पैसे आये तो घर का किराया भी मुँह बाये खड़ा है।क्या करें ?उसने आधे पैसे दूधवाले को देकर बाकी पैसों का जल्द ही इंतजाम करने को कहकर अपने मन को समझाया। कुछ पैसे पति ने भी दिये, उनसे मकान का किराया चुकता किया। वो सोच रही थी कि अमीर तो हम हैं ही नहीं ,ये तो सपनों में भी नहीं सोच सकते क्योंकि हमारी किस्मत तो भगवान ने टूटी कलम से लिखी है।  न ही हम गरीबों में रहे जो कोई भी छोटा-मोटा  काम कर लें या भीख ही मांगकर गुजारा कर  लें। इस बेबसी में मिश्राइन अपने को दो पाटों के बीच पिसा महसूस कर रही थी। इसी तरह कभी उसके पैसे, कभी इसके पैसे दिए ,घर में सूखी रोटी खाई ,चटनी से खाई पर बाहर किसी को पता नहीं चलने दिया कि हम कितनी परेशानियों से जूझ रहे हैं ?लेकिन मकान -मालकिन तो अब फुफकारने लगी -हमें तो समय पर किराया चाहिए वरना घर खाली क़र दो। उसकी भी अपनी जगह बात ठीक है ,क्या पता ?उसे हमसे ज्यादा किराया देने वाला मिल रहा हो। सब अपना ही लाभ देखते हैं।  
              हमने भी तो घर छोड़ा तो इससे महंगा ही मिलेगा। सोचती हूँ, दूध ही हटा देती हूँ लेकिन ये भी पानी मिला दूध लेकर रोज आकर खड़ा हो जाता है, कई बार मना कर चुकी हूँ। उससे कहा भी कि पानी के पैसे नहीं दूँगी, ये भी केेसा दूधवाला है ?मुस्कुराता रहेगा ,लेकिन रोज़ाना आकर खड़ा हो जाता है। अंदर से मिश्राइन दुखी थी कि इसके पैसे चढ़ते जा  रहे हैं , किस तरह चुकाऊँगी ?मन न जाने कितनी आशंकाओं से घिर गया। मन में न जाने कितने विचार घुमड़ने लगे -'कहीं इसकी निगाहें मेरी बेटी पर तो नहीं। गरीब की बेटी है, किसी की भी कुदृष्टि पड़ सकती है वरना ऐसे कोई क्यों ?जिद करके दूध देकर जायेगा। जिसे पैसे मिलने की उम्मीद भी कम  हो ,फिर कोई क्यों ,किस लालच से आएगा ?अपनी शंकाओं को शांत करने के लिए मिश्राइन ने एक दिन पूछ ही लिया -जुगनू क्या तेरा विवाह हो गया ?हाँ आंटीजी ,जबाब देने के साथ ही उसने प्रश्न दाग़ दिया -क्यों ,आंटीजी क्या बात है ?नहीं ऐसे ही पूछ रही थी।  उसने बात बनाते हुए कहा ,तू बड़ा खुश रहता है ,शादी -शुदा लोग इतने खुश कहाँ होते हैं ?आंटीजी आप मज़ाक अच्छा कर  लेती हैं ,मेरी पत्नी तो बहुत ही अच्छी और सुंदर भी है जुगनू ने जबाब दिया। 
             मन ही मन मिश्राइन ने सोचा ,चलो ये शंका तो दूर हुई लेकिन मकान मालकिन नहीं मानी और उसने मकान खाली करवाने की ठान ली। कुछ दिनों बाद मकान बदला लेकिन जुगनू वहाँ भी आ गया। नई -नई बात थी , मकान -मालकिन बोली -क्या ये दूध सही देता है ?मन में तो मिश्राइन सोच रही थी ,मना कर दूँ ,लेकिन बोली -दूध तो अच्छा दे जाता है ,कभी -कभी हरक़त बाजी कर जाता है। फिर सोचा ,हमें  इधर दूध देने आएगा तो बेचारे का और ज्यादा दूध बिक जायेगा। दूधवाले ने  मकान -मालकिन को दूध महंगा बताया ,उस हिसाब से उनका दूध भी गाढ़ा लाता। मिश्राइन अपने पति से कह रही थी -शुरू में तो दूध ठीक लाया लेकिन बाद में, मैं कितना लड़ी ,उससे? दूध पानी मिलाकर ही लाता रहा। मैंने कई बार लेने से इंकार भी किया लेकिन जबरदस्ती देकर ही जाता। क्या, मम्मी ! उनके दूध का मूल्य भी तो देखो ?हमसे सात रूपये ज्यादा भी तो दे रहीं हैं, वो'',जैसे पैसे ,वैसा दूध '', कहकर मिश्राइन की बेटी अपने विद्यालय चली गयी। 
           रिया जब अपने विद्यालय जा रही थी, तो रास्ते में उसने  दूधवाले को देखा जो किसी से उनके  घर की तरफ देखकर बातें कर  रहा था। रिया को थोड़ा शक़ हुआ ,वो पास ही किसी दीवार की आड़ में खड़ी हो गयी और उनकी बातों को ध्यान से सुनने लगी। दूधवाला अपने उस जानने वाले से कह रहा था -मैं 'मिश्राइन 'के यहाँ दूध इसीलिए देता हूँ ,मुझे पता है ,आदमी का काम नहीं ,पैसों की तंगी है। लगता है,'मिश्राइन' अच्छे घर की है,पर  थोड़ा चिक -चिक करती है , जिससे किसी को उसके घर की कमी का पता न चले। एक बेटी है , किसी  स्कूल में पढाती  है। बेचारे न जाने, कैसे -कैसे अपना समय काट रहे हैं? पानी का ही सही, कम से कम इनके बालक दूध व चाय से तो रोटी भिगोकर तो  खा लेते हैं। कभी -कभी तो बेचारों के सब्ज़ी भी नहीं बनती। उसका जानने वाला बोला -तुम्हें ये सब कैसे पता ?उनकी परेशानी मुझे उनके पहले मकान -मालकिन से ही पता चली। उसने तो पैसों के लिए इन्हें घर से ही निकाल दिया, समय पर किराया नहीं दे पा रहे थे।  रही बात मेरे  पैसों की ,पैसे तो थोड़े -थोड़े करके दे ही देते हैं। थोड़ा बहुत पानी मिलाकर थोड़ी हेर -फेर कर  जाता हूँ पर मुझे तसल्ली है कि किसी जरूरतमंद की सहायता कर  रहा हूँ। यदि मैंने दूध देना छोड़ दिया तो बेचारे न भी लगायें ,लगा भी लिया तो पता नहीं समय पर पैसे न मिलने पर वो उनके साथ केेसा व्यवहार करे ? यही सोचकर, मैं आज भी उन्हें दूध देकर जाता हूँ।  
             दूध वाले की बातें सुनकर उसकी आँखों में आँसू थे जिनमें उसे दूधवाले के रूप में कृष्ण की छवि दिख रही थी जो उनकी मदद के लिए इस रूप में आये हैं। 





















 
laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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