सोचती हूँ !
एक संग्रहालय बना लूँ ,
ऐसे लोगों को संवारूं,
जिनके लिए' प्यार ,अपनापन' सब कुछ था।
जो प्यार के लिए जान देते थे,
उनके ह्रदय, अपनेपन से भरे होते थे।
किसी अनजान को देख खुश होते थे।
अपने वचन के पक्के होते थे।
ऐसे लोग ,
जो परिवार में एकता की मिसाल होते ,
अपने से पहले ,दूसरों की सोचते।
अपमान सहकर भी जीवन जीते।
संस्कार -परम्पराओं का मान रखते।
जीवन की कमियों को भुला आगे बढ़ते।
जिंदगी की कड़ी धूप में भी मुस्कुराते।
कोई भुला -भटका राही ,उसे राह दिखा आते।
फिर ख़ुशी से फूले न समाते।
ऐसे लोग ,
जो आज के लोगों के लिए उदाहरण होते।
उनके किस्से -कहानी , आज भी होते।
अपनी 'आन -मान' के लिए मिट गए होते।
अपनी रोटी से आधी रोटी बाँट आते।
ऐसे लोग ,
घर को एक सूत्र में पिरोते।
' त्याग ',कर्मशीलता 'का उदाहरण होते।
बिन किसी 'भेद- भाव' रक्षक' होते।
मिटा देते उस जीवन को ,जो' भक्षक' होते।
लोग कहते ,किसी समय में '' ऐसे लोग''भी थे।
