yovan

मैं तेज़ ,गर्म , धूल  भरी ,
  धूप में चल रही थी। 
नंगे पाँव ,बिन आलंबन,
 स्वप्निल आँखें लिए खड़ी थी। 
  न कोई छायादार वृक्ष ,
  न कोई गली -कूचा ,
  न कोई छतरी वाला  घर था। 
  था तो सिर्फ़ मेरा सूनापन ,
  बेबस जिंदगी को जिए जा रही थी। 
 किसी स्वर्णिम किरण की तलाश में। 
   आलंबन था मेरा ,
  सूनापन ,बेबसी ,अकेलापन। 
  बेबसी ,सूनेपन को नहीं ,मुझे बाँटा ,
  अपने संग ,मोह भंग हुआ तब ऐसा ,
   छिटक दिया आँचल को ,
    खींच लिया दामन को ,
  कुटिल मुस्कान, भेदती मुझको।
    किस्मत की पुड़िया समेटे ,
  अनजान पथ पर चल रही थी। 
  मैं तेज़ ,गर्म ,धूल भरी ,
              धूप में चल रही थी। 
  अचेतन सी ,बंद किये पलकों को ,
देख प्रकाश ,समझ न आया मुझको। 
  ये केेसा मीठा ,सुंदर ,शांत स्वप्न था। 
 कोई छाया दार ,वृक्ष था। 
   तेज़ ,गर्म धूप शांत हो गई। 
   मैं जैसे सपनों में खो गई। 
 उस पल को मैं जीना चाहूँ। 
  आगे न मैं बढ़ना चाहूँ। 
   मंजिल मेरी मिल गयी। 
    गर्म धूप भी चली गयी। 
मुस्काई कली खिल गयी। 
    छायादार पेड़ फैल गया ,
   जो जहाँ था ,वहीं रह गया।

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post