मैं तेज़ ,गर्म , धूल भरी ,
धूप में चल रही थी।
नंगे पाँव ,बिन आलंबन,
स्वप्निल आँखें लिए खड़ी थी।
न कोई छायादार वृक्ष ,
न कोई गली -कूचा ,
न कोई छतरी वाला घर था।
था तो सिर्फ़ मेरा सूनापन ,
बेबस जिंदगी को जिए जा रही थी।
किसी स्वर्णिम किरण की तलाश में।
आलंबन था मेरा ,
सूनापन ,बेबसी ,अकेलापन।
बेबसी ,सूनेपन को नहीं ,मुझे बाँटा ,
अपने संग ,मोह भंग हुआ तब ऐसा ,
छिटक दिया आँचल को ,
खींच लिया दामन को ,
कुटिल मुस्कान, भेदती मुझको।
किस्मत की पुड़िया समेटे ,
अनजान पथ पर चल रही थी।
मैं तेज़ ,गर्म ,धूल भरी ,
धूप में चल रही थी।
अचेतन सी ,बंद किये पलकों को ,
देख प्रकाश ,समझ न आया मुझको।
ये केेसा मीठा ,सुंदर ,शांत स्वप्न था।
कोई छाया दार ,वृक्ष था।
तेज़ ,गर्म धूप शांत हो गई।
मैं जैसे सपनों में खो गई।
उस पल को मैं जीना चाहूँ।
आगे न मैं बढ़ना चाहूँ।
मंजिल मेरी मिल गयी।
गर्म धूप भी चली गयी।
मुस्काई कली खिल गयी।
छायादार पेड़ फैल गया ,
जो जहाँ था ,वहीं रह गया।
धूप में चल रही थी।
नंगे पाँव ,बिन आलंबन,
स्वप्निल आँखें लिए खड़ी थी।
न कोई छायादार वृक्ष ,
न कोई गली -कूचा ,
न कोई छतरी वाला घर था।
था तो सिर्फ़ मेरा सूनापन ,बेबस जिंदगी को जिए जा रही थी।
किसी स्वर्णिम किरण की तलाश में।
आलंबन था मेरा ,
सूनापन ,बेबसी ,अकेलापन।
बेबसी ,सूनेपन को नहीं ,मुझे बाँटा ,
अपने संग ,मोह भंग हुआ तब ऐसा ,
छिटक दिया आँचल को ,
खींच लिया दामन को ,
कुटिल मुस्कान, भेदती मुझको।
किस्मत की पुड़िया समेटे ,
अनजान पथ पर चल रही थी।
मैं तेज़ ,गर्म ,धूल भरी ,
धूप में चल रही थी।
अचेतन सी ,बंद किये पलकों को ,
देख प्रकाश ,समझ न आया मुझको।
ये केेसा मीठा ,सुंदर ,शांत स्वप्न था।
कोई छाया दार ,वृक्ष था।
तेज़ ,गर्म धूप शांत हो गई।
मैं जैसे सपनों में खो गई।
उस पल को मैं जीना चाहूँ।
आगे न मैं बढ़ना चाहूँ।
मंजिल मेरी मिल गयी।
गर्म धूप भी चली गयी।
छायादार पेड़ फैल गया ,
जो जहाँ था ,वहीं रह गया।