जिसने भी ये खबर सुनी ,वो ही सकते में आ गया। क्या !अम्माजी नहीं रहीं ?जो जा सकते थे सभी उनके घर में पहुंच गए ,उनको अंतिम विदाई देने। घर में तिल रखने की भी जगह नहीं थी। पर्दे वाली औरतें तो छत से झाँक रहीं थीं। रोने सिसकने की आवाजें लगातार आ रहीं थीं। गाँव का कोई घर ऐसा नहीं था जिसकी छत पर कोई भी न खड़ा हो। सब एक दूसरे से पूछ रहे थे ,अम्माजी को कब ले जा रहें हैं ?जो दूर रहने वाले रिश्तेदार थे जिसने भी सुना, फौरन चल पड़ा। अम्माजी की अर्थी की तैयारी चल रही थी ,सब रिश्तेदारों के आते ही अम्माजी को लेकर श्मशान की तरफ चल दिए। लगता था ,अम्माजी को कंधा देने की सबमें होड़ लगी हो। ये अम्माजी के मौहल्ले पड़ोस के लोग नहीं वरन उनके अपने ही पोते- बेटे हैं। अम्माजी कोई छोटे -मोटे परिवार से नहीं , पूरा साठ आदमियों का परिवार है। सभी अम्माजी का बड़ा आदर करते थे । आज पूरा दिन गाँव में अम्माजी की चर्चा होती रही।
दीदी !ये अम्माजी कौन थी ?जो लोग इतने परेशान थे। कोई बड़ी हस्ती थीं क्या ?निर्मला ने अपनी बहन शर्मिला से पूछा। शर्मिला बोली -नहीं कोई बड़ी हस्ती नहीं थीं पर वो बहुत ही अच्छी थीं ,सबके सुख -दुःख में हमेशा खड़ी रहती थीं। पूरे गांव में किसी की ताई किसी की दादी किसी की चाची लगतीं थीं। पूरे गाँव में घूमती थीं ,किसी को भी जरूरत पड़ने पर ,उससे पहले ही इसके घर होतीं। मदद के लिए कभी किसी को मना नहीं करतीं। बड़ी बुजुर्ग़ थीं, कोई गलती करता तो उसे डपट भी देतीं।सब पर अपना अधिकार समझती थीं। कोई उनके कहे का बुरा भी नहीं मानता था।क्यों, उनका अपना परिवार नहीं था? निर्मला ने पूछा। था क्यों नहीं ?भरा -पूरा परिवार है। अम्माजी बतातीं थीं -जब वो गाँव में ब्याहकर आईं ,उनके जैसी सुंदर पूरे गाँव में नहीं थी। निर्मला बात को बीच में काटते हुए बोली -अपने मुँह मियाँ मिट्ठू थीं। नहीं -नहीं वो वास्तव में ही सुंदर थीं ,गोरा -चिट्टा चिकना बदन ,पतले -पतले गुलाबी होंठ। जब कभी भी हमारे घर आतीं हम मेकअप कर रहे होते तो कहतीं - हमने तो कभी भी कोई क्रीम ,पाउडर,लाली लिपस्टिक नहीं लगाई। आज भी मेरे होंठ गुलाबी हैं, खाल चिकनी है। तुम न जाने क्या क्या पोतती रहती हो ?तब भी चमक न है तुम्हारे चेहरों पर। तब हम कहते -अम्माजी आपने तो देसी माल खाये हैं ,हम पीते हैं काली चाय ,तो सुनकर मुस्कुरा देतीं,शर्मिला ने बताया।
अम्मा जी को अपने बचपन की बातें याद आ जातीं -कहतीं, मैं अपने बाप की इकलौती औलाद थी ,मुझे बेटे की तरह रखा। जब हमारा बाप दूध निकालता था तो सीधे भैंस के थनों से मेरे मुँह में धार मारता था ,मेरा बाप मुझे बड़ा लाड़ लड़ाता था। बस पंद्रह साल की थी, तब तुम्हारे बाबा से ब्याह हो गया ,तब से इसी गाँव में हूँ। हमने पूछा -अब नहीं जाती हो अपने गाँव में ,तो बोलीं -जब मेरा बाप मरा था तब गई थी ,फिर जिम्मेदारियों में ऐसी फँसी कि अब कम ही जाना होता है। सगे भइया तो हैं नहीं चाचा के यहाँ ही जाना होता है। क्या वो लोग नहीं बुलाते आपको ?नहीं बुलाते हैं, मेरे बाप ने सारी जमीन उनके नाम कर दी थी कि कभी बेटी आये तो उसे अपने मायके की कमी न खले ,इससे पता चलता कि अम्माजी को अपने पिता से बहुत लगाव था। गाँव में जिन्होंने उन्हें उस उम्र में देखा कहते थे बहुत ही तंदुरुस्त और मेहनती महिला थीं।
उनके विवाह को सालभर भी नहीं हुआ था ,उनकी जेठानी अपने दूसरे बेटे के जन्मते ही भगवान को प्यारी हो गईं। अम्माजी की गोद में अपने बच्चे को डालकर चली गईं ,अम्माजी पर इतनी कम उम्र में दो बच्चों की जिम्मेदारी थी। सारा घर का काम करतीं , बच्चों की देखभाल भी करती। जेठ से दूसरा विवाह करने के लिए गांववालों ने कहा भी कि अकेली सरबती सारा घर नहीं संभाल पायेगी ,लेकिन उन्होंने मना कर दिया कि दूसरी ने आकर ठीक से नहीं संभाला तो। अम्माजी के अपने बच्चे भी हुए उनकी देखभाल भी करतीं पर कभी भी बच्चों में भेदभाव नहीं किया। जहाँ माता -पिता भी कभी -कभी अपने बच्चों में भी भेदभाव कर जाते हैं वहीँ अम्माजी ने जेठ के बच्चों को भी पूरी जिम्मेदारी के साथ पाला। बच्चे पढ़े भी ,कामयाब भी हुए। अपने बच्चे ही कामयाब नहीं हो पाए और इसका श्रेय बच्चों ने अम्माजी को दिया, उन पर ही अधिक ध्यान देती थीं। कुछ दिन दुखी रहीं फिर बोलीं -ये तो जीवन है ,हमें तो अपना कर्म करना है। अच्छे काम के लिये कभी किसी को भलाई मिली है क्या ?
उन्होंने बच्चों के विवाह किये उसके बाद वो अपने को फुरसत के क्षणों में गांव में किसी भी कार्यक्रम में किसी के भी घर पहुंच जातीं क्योंकि बड़ी -बुढ़ियो में वो ही ऐसी थी कि कहीं भी बुलाओ तो चलीं जातीं उनके आने से रौनक आ जातीं , कभी किसी बहु की नकल उतारती, कभी कोई किस्सा सुनाती। उनके किस्से चुटकुले मजेदार होते। सब हँस -हँसकर लोटपोट हो जाते। कोई भी कार्यक्रम होता तो पहले पूछते- अम्माजी नहीं आईं क्या ? सबके बच्चों से प्रेम करतीं कोई गलत करता भी तो उसे समझा भी देतीं। एक बार का किस्सा है -'हमारे गांव में कुछ अंग्रेज आये, हमारा गाँव देखने
-अम्मा जी ने उन्हें अपना गाँव दिखाया उन्होंने किसी चीज को देखकर पूछा -व्हाट इज दिस ?अम्मा जी पू रे आत्मविश्वास के साथ बोलीं -बिटोड़ा। हमारे गाँव में जो गोबर के उपले होटे हैं ये उनका घर है।वहाँ जो सब लोग थे वो हंस रहे थे कि अम्माजी कैसे समझा रहीं हैं ?इतनी हँसमुख ,मिलनसार महिला का एक पहलू ये भी था कि अपने ही घर में बहुओं द्वारा बेईज्जत होती थीं ,रोती भी थीं पर कभी उन्होंने अहसास नहीं होने दिया कि उनका अंतर्मन कितना दुःखी है। आज इस गाँव की आधी रौनक चली गई पर भाग्यवान थी,न जाने कितने तो पोते -पोती हैं उन्हें सब बहुत ही प्यार करते थे ।
दीदी !ये अम्माजी कौन थी ?जो लोग इतने परेशान थे। कोई बड़ी हस्ती थीं क्या ?निर्मला ने अपनी बहन शर्मिला से पूछा। शर्मिला बोली -नहीं कोई बड़ी हस्ती नहीं थीं पर वो बहुत ही अच्छी थीं ,सबके सुख -दुःख में हमेशा खड़ी रहती थीं। पूरे गांव में किसी की ताई किसी की दादी किसी की चाची लगतीं थीं। पूरे गाँव में घूमती थीं ,किसी को भी जरूरत पड़ने पर ,उससे पहले ही इसके घर होतीं। मदद के लिए कभी किसी को मना नहीं करतीं। बड़ी बुजुर्ग़ थीं, कोई गलती करता तो उसे डपट भी देतीं।सब पर अपना अधिकार समझती थीं। कोई उनके कहे का बुरा भी नहीं मानता था।क्यों, उनका अपना परिवार नहीं था? निर्मला ने पूछा। था क्यों नहीं ?भरा -पूरा परिवार है। अम्माजी बतातीं थीं -जब वो गाँव में ब्याहकर आईं ,उनके जैसी सुंदर पूरे गाँव में नहीं थी। निर्मला बात को बीच में काटते हुए बोली -अपने मुँह मियाँ मिट्ठू थीं। नहीं -नहीं वो वास्तव में ही सुंदर थीं ,गोरा -चिट्टा चिकना बदन ,पतले -पतले गुलाबी होंठ। जब कभी भी हमारे घर आतीं हम मेकअप कर रहे होते तो कहतीं - हमने तो कभी भी कोई क्रीम ,पाउडर,लाली लिपस्टिक नहीं लगाई। आज भी मेरे होंठ गुलाबी हैं, खाल चिकनी है। तुम न जाने क्या क्या पोतती रहती हो ?तब भी चमक न है तुम्हारे चेहरों पर। तब हम कहते -अम्माजी आपने तो देसी माल खाये हैं ,हम पीते हैं काली चाय ,तो सुनकर मुस्कुरा देतीं,शर्मिला ने बताया।
अम्मा जी को अपने बचपन की बातें याद आ जातीं -कहतीं, मैं अपने बाप की इकलौती औलाद थी ,मुझे बेटे की तरह रखा। जब हमारा बाप दूध निकालता था तो सीधे भैंस के थनों से मेरे मुँह में धार मारता था ,मेरा बाप मुझे बड़ा लाड़ लड़ाता था। बस पंद्रह साल की थी, तब तुम्हारे बाबा से ब्याह हो गया ,तब से इसी गाँव में हूँ। हमने पूछा -अब नहीं जाती हो अपने गाँव में ,तो बोलीं -जब मेरा बाप मरा था तब गई थी ,फिर जिम्मेदारियों में ऐसी फँसी कि अब कम ही जाना होता है। सगे भइया तो हैं नहीं चाचा के यहाँ ही जाना होता है। क्या वो लोग नहीं बुलाते आपको ?नहीं बुलाते हैं, मेरे बाप ने सारी जमीन उनके नाम कर दी थी कि कभी बेटी आये तो उसे अपने मायके की कमी न खले ,इससे पता चलता कि अम्माजी को अपने पिता से बहुत लगाव था। गाँव में जिन्होंने उन्हें उस उम्र में देखा कहते थे बहुत ही तंदुरुस्त और मेहनती महिला थीं।
उनके विवाह को सालभर भी नहीं हुआ था ,उनकी जेठानी अपने दूसरे बेटे के जन्मते ही भगवान को प्यारी हो गईं। अम्माजी की गोद में अपने बच्चे को डालकर चली गईं ,अम्माजी पर इतनी कम उम्र में दो बच्चों की जिम्मेदारी थी। सारा घर का काम करतीं , बच्चों की देखभाल भी करती। जेठ से दूसरा विवाह करने के लिए गांववालों ने कहा भी कि अकेली सरबती सारा घर नहीं संभाल पायेगी ,लेकिन उन्होंने मना कर दिया कि दूसरी ने आकर ठीक से नहीं संभाला तो। अम्माजी के अपने बच्चे भी हुए उनकी देखभाल भी करतीं पर कभी भी बच्चों में भेदभाव नहीं किया। जहाँ माता -पिता भी कभी -कभी अपने बच्चों में भी भेदभाव कर जाते हैं वहीँ अम्माजी ने जेठ के बच्चों को भी पूरी जिम्मेदारी के साथ पाला। बच्चे पढ़े भी ,कामयाब भी हुए। अपने बच्चे ही कामयाब नहीं हो पाए और इसका श्रेय बच्चों ने अम्माजी को दिया, उन पर ही अधिक ध्यान देती थीं। कुछ दिन दुखी रहीं फिर बोलीं -ये तो जीवन है ,हमें तो अपना कर्म करना है। अच्छे काम के लिये कभी किसी को भलाई मिली है क्या ?
उन्होंने बच्चों के विवाह किये उसके बाद वो अपने को फुरसत के क्षणों में गांव में किसी भी कार्यक्रम में किसी के भी घर पहुंच जातीं क्योंकि बड़ी -बुढ़ियो में वो ही ऐसी थी कि कहीं भी बुलाओ तो चलीं जातीं उनके आने से रौनक आ जातीं , कभी किसी बहु की नकल उतारती, कभी कोई किस्सा सुनाती। उनके किस्से चुटकुले मजेदार होते। सब हँस -हँसकर लोटपोट हो जाते। कोई भी कार्यक्रम होता तो पहले पूछते- अम्माजी नहीं आईं क्या ? सबके बच्चों से प्रेम करतीं कोई गलत करता भी तो उसे समझा भी देतीं। एक बार का किस्सा है -'हमारे गांव में कुछ अंग्रेज आये, हमारा गाँव देखने
-अम्मा जी ने उन्हें अपना गाँव दिखाया उन्होंने किसी चीज को देखकर पूछा -व्हाट इज दिस ?अम्मा जी पू रे आत्मविश्वास के साथ बोलीं -बिटोड़ा। हमारे गाँव में जो गोबर के उपले होटे हैं ये उनका घर है।वहाँ जो सब लोग थे वो हंस रहे थे कि अम्माजी कैसे समझा रहीं हैं ?इतनी हँसमुख ,मिलनसार महिला का एक पहलू ये भी था कि अपने ही घर में बहुओं द्वारा बेईज्जत होती थीं ,रोती भी थीं पर कभी उन्होंने अहसास नहीं होने दिया कि उनका अंतर्मन कितना दुःखी है। आज इस गाँव की आधी रौनक चली गई पर भाग्यवान थी,न जाने कितने तो पोते -पोती हैं उन्हें सब बहुत ही प्यार करते थे ।


