तू नूर है ,नज़र का।
जान है ,मेरी।
मान है ,पापा का।
शान है ,घर की।
फिर भी ,उसे
लड़ते -झगड़ते ,
कुलबुलाते देखा -
मैं ही क्यूँ !
मुझ पर ही क्यूँ ?
ये पाबन्दियाँ ,बंदिशें।
पगली !नहीं जानती।
नूर हमारी नज़र का ,
रत्न है ,इस घर का ,
रत्न संभाल रखा है।
किसी घर का ,
तिजौरी में तो नहीं।
एहतियात से रखा है।
बाहरी नज़र से ,
बचा रखा है।
इसीलिए संभाल रखा है।
जान है ,मेरी।
मान है ,पापा का।शान है ,घर की।
फिर भी ,उसे
लड़ते -झगड़ते ,
कुलबुलाते देखा -
मैं ही क्यूँ !
मुझ पर ही क्यूँ ?
ये पाबन्दियाँ ,बंदिशें।
पगली !नहीं जानती।
नूर हमारी नज़र का ,
रत्न है ,इस घर का ,
रत्न संभाल रखा है।
किसी घर का ,
तिजौरी में तो नहीं।
एहतियात से रखा है।
बाहरी नज़र से ,
बचा रखा है।
इसीलिए संभाल रखा है।