न जाने कितने जन्मदिन ,
आये और चले गए ,याद नहीं।
मैं अपनी उम्र ही भूल गई।
न जाने कितनी, तन्हा रातें ,
न जाने कितनी, दिल दुखाती बातें।
कभी रोकर ,कभी हंसकर न जाने ,
कितनी उम्र पार की ,याद नहीं।
उम्र कहीं खो गई ,गुम हो गई।
जीवन चक्र में फंसकर रह गई।
कर्तव्यों के बोझ तले दबी रह गई।
अपने -पराये रिश्तों में उलझ गई
उम्र कहीं खो गई।
न जाने कितने बसंत बीते ,
कितने पतझड़ आये ,याद नहीं।
गुल के दरीचों में ग़ुम हो गई।
पुस्तकों में गुम हो गई ,या
सखियों संग कहीं रिल गई।
न जाने उम्र कहाँ खो गई।
खो गयी कहीं ,वीरानों में याद नहीं।
तलाशती उन लम्हों को ,जो खुशहाल हों।
उन लम्हों की उम्र न जाने ,कहाँ गई?
खो गई ,इस जीवन के पथरीले रस्ते पर ,
लहूलुहान होकर
खोजती हूँ ,उस उम्र को ,
जो कहीं खो गई।
आये और चले गए ,याद नहीं।
मैं अपनी उम्र ही भूल गई।
न जाने कितनी, तन्हा रातें ,
न जाने कितनी, दिल दुखाती बातें।
कभी रोकर ,कभी हंसकर न जाने ,
कितनी उम्र पार की ,याद नहीं।
उम्र कहीं खो गई ,गुम हो गई।
जीवन चक्र में फंसकर रह गई।
कर्तव्यों के बोझ तले दबी रह गई।
अपने -पराये रिश्तों में उलझ गई
उम्र कहीं खो गई।
न जाने कितने बसंत बीते ,
कितने पतझड़ आये ,याद नहीं।
गुल के दरीचों में ग़ुम हो गई।
पुस्तकों में गुम हो गई ,या
सखियों संग कहीं रिल गई।
न जाने उम्र कहाँ खो गई।
खो गयी कहीं ,वीरानों में याद नहीं।
तलाशती उन लम्हों को ,जो खुशहाल हों।
उन लम्हों की उम्र न जाने ,कहाँ गई?
खो गई ,इस जीवन के पथरीले रस्ते पर ,
लहूलुहान होकर
खोजती हूँ ,उस उम्र को ,
जो कहीं खो गई।
