umer khi kho gyi

न जाने कितने जन्मदिन ,
आये और चले गए ,याद नहीं। 
 मैं अपनी उम्र ही भूल गई। 
    न जाने कितनी, तन्हा रातें ,
    न जाने कितनी, दिल दुखाती बातें। 
कभी रोकर  ,कभी हंसकर न जाने ,
कितनी उम्र पार की ,याद  नहीं। 
  उम्र कहीं खो गई ,गुम हो गई। 
 जीवन चक्र में फंसकर रह गई। 
   कर्तव्यों के बोझ तले दबी रह गई। 
  अपने -पराये रिश्तों में उलझ गई 
   उम्र कहीं खो गई। 

  न जाने कितने बसंत बीते ,
   कितने पतझड़ आये ,याद नहीं।
    गुल के दरीचों में ग़ुम हो गई।  
  पुस्तकों में गुम हो गई ,या 
    सखियों संग कहीं रिल गई। 
   न जाने उम्र कहाँ खो गई।
   खो गयी कहीं ,वीरानों में याद नहीं। 
 तलाशती उन लम्हों को ,जो खुशहाल हों। 
उन लम्हों की उम्र न जाने ,कहाँ गई?
खो गई ,इस जीवन के पथरीले रस्ते पर ,
          लहूलुहान होकर 
खोजती हूँ ,उस उम्र को ,
          जो कहीं खो गई।  
laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post