घर, हां जी मैं घर हूँ ,मैं कई नामों से जाना जाता हूँ जैसे -सदन ,गृह ,भवन ,बसेरा ,आलय ,मकान इत्यादि नामों से मैं जाना जाता हूँ ,वैसे तो मैं ईंट पत्थरों से बना होता हूँ लेकिन इसकी क़ीमत तो वो ही लगा सकता है ,जिसने अपनी मेहनत व खून -पसीने की कमाई इसमें लगाई है। किसी के लिए मैं उसका ख़्वाब हूँ ,किसी के लिए सर ढकने के लिए छत ,मेरे तो रूप भी अनेक हैं वो इस बात पर निर्भर करता है कि जो बनाता है ,उसकी जेब का वजन कितना है ?गरीब की मैं झोपडी हूँ ,किसी के लिए मकान ,किसी की कोठी हूँ तो किसी का फ्लैट। सबके अपने -अपने अंदाज हैं ,लेकिन बसता तो मैं घरवालों से ही हूँ। मैं भी न जाने क्या बातें लेकर बैठ गया? मैं गोस्वामीजी का घर हूँ ,जो आज बसा हुआ है। घर में जो गोल
बदन, गोरी सी जो बुढ़िया है ,उसके साथ कुर्ते पजामे में जो बुजुर्ग़ हैं वो गोस्वामी जी के बेटे -बहु हैं। जी हां ,गोस्वामीजी ने बड़ी मेहनत करके एक- एक पैसा जोड़कर ये मकान बनवाया था। उनकी पत्नी तो बहुत ही अच्छी थी ,बहुत मीठा बोलती थीं। दोनों ही पति पत्नी सबसे मिलजुलकर रहते थे। उनका एक बेटा और एक बेटी थी। बेटी का विवाह कर दिया ,बेटा नौकरी पर बाहर चला गया। उन्होंने कहा भी था -कि दूर नौकरी करने मत जाओ ,पास में ही कोई नौकरी कर लो। लेकिन बेटे ने कहा -क्या मैंने इतनी मेहनत से पढ़ाई इसीलिए की है? कि मैं इस घर के कारण कम पैसों में ही एड़ियाँ रगड़ता रहुँ। और वो अपनी पत्नी को लेकर बाहर चला गया।
पहले तो दोनों पति -पत्नी बहुत दुखी हुये फिर सोचा -ठीक ही है ,उसे अपनी जिंदगी जीने दो। उन्होंने हालात से समझौता कर लिया। ऊपर के हिस्से में किरायेदार रख लिया। बहु -बेटा कभी -कभी मिलने आ जाते ,अब उनके दो पोते भी हो गए वो भी किसी महंगे स्कूल में पढ़ते। कभी -कभी अपने माता -पिता के साथ दादी -बाबा के पास घूमने आ जाते। उनके लिए वे दिन सार्थक हो जाते और कहते कि घर बना लिया, तो अच्छा ही हुआ कम से कम छुट्टियों में तो घर में रौनक हो ही जाती है। इसी तरह दिन बीतने लगे। पोते बड़े हुए ,उनके लिए बहु ढूढ़ी जाने लगीं । दोनों के विवाह यहीं हुए इसी घर में। घर में चह ल -पहल हो जाती, फिर दोनों ही अपनी -अपनी पत्नियों को लेकर चले गए। फिर से घर शांत हो गया।
फिर भी उन्हें संतुष्टि थी कि कोई भी कार्यक्रम करने यहीं आ जाते हैं लेकिन वे नहीं जानते थे कि वो लोग इधर की तरफ, ज्यादा खर्चे से बचने के लिए यहाँ आते हैं। उनके लिए यही बहुत था कि आ तो जाते हैं।
एक दिन अचानक श्रीमति गोस्वामी की तबियत बिगड़ गई उन दिनों बहु -बेटा आये हुए थे। गोस्वामीजी ने अपने बेटे से अपने पिता का ध्यान रखने का वायदा लिया और मुझे अनाथ करके चली गईं। उस रात मैं रोता रहा। अपनी माँ के सारे संस्कार करके उनके बहु -बेटे अपने पिता को लेकर चले गए। उन्होंने मना तो बहुत किया लेकिन उनका ध्यान कौन रखेगा? खाने की परेशानी होगी, सोचकर वो उनके साथ चले गए और मैं वीरान हो गया। बहुत सालों तक मैं वीरान खड़ा रहा। एक दिन एक लड़का आया और उसने मेरी सफाई की, इतने दिनों बाद मेरे ऊपर से जो धूल जमी थी, वो साफ हुई थी क्योंकि आज गोस्वामी जी का पूरा परिवार जो आ रहा था। दो गाड़ियों से सामान उतरे ,मुझमें फिर से रौनक आ गई। बाद में पता चला कि गोस्वामीजी तो पड़दादा बनने वाले हैं। सब लोग खुश थे ,दो-तीन महीने बाद मेरे अंदर, एक नई कोंपल ने जन्म लिया। उनके यहाँ प्यारी सी गोल -मटोल गुड़िया जो आई थी। उसे देखकर उनकी आँखों में आंसू आ गए ,मुस्कुराकर बोले -तुम्हारी दादी ने फिर से जन्म ले लिया। फिर अचानक उदास हो गए, शाम तक तबियत बिगड़ गई। सुबह डॉक्टर ने बताया -अब वो नहीं रहे। मैं भी कैसा हूँ ?एक तरफ तीसरी पीढ़ी की ख़ुशी दूसरी तरफ पूरी तरह अनाथ होने का ग़म।
मैं चुपचाप खड़ा सब देखता रहा ,उनकी बहु और बेटे अपनी नौकरी जा चुके थे पोता रजत और बहु नीलम यहाँ रह गए थे, उनके साथ जो नौकर आया था वो ही मेरी साफ -सफाई करता था। नीलम तो हाथ भी नहीं लगाती थी। उन दोनों ने फिर से ऊपर का हिस्सा किराये पर दे दिया। आधी सफाई वो करते थे लेकिन वो अपनापन मुझे आज तक नहीं मिला, जितने प्यार से दोनों पति -पत्नी मेरी सफाई करते थे। रजत -नीलम तो सिर्फ़ एक बेटा आने तक यहाँ रहे और चले गए। मैं फिर से एकांत में बसर करने लगा पर किरायेदार थे, जो कभी -कभी मुझे झाड़ -पोंछ दिया करते। आज मैं फिर से आबाद हो गया हूँ क्योंकि उनके बेटा -बहु जो फिर से आ गए है। कारण एक बीमारी ,बीमारी नहीं महामारी जो फैली है देश भर में। सुना है, कि ये दोनों तो ऑस्ट्रेलिया में अपनी बेटी के पास थे ,वहाँ से भागकर अपने बेटे के पास गए लेकिन उसने इस डर से अपने पास रखा ही नहीं कि कहीं ये वो बीमारी न ले आये हों। इतना सब हो जाने के बाद, ये लोग मेरी शरण में आये। मैंने बड़ा दिल करके इन्हें अपने पास रखा, जैसी कि मेरे माता -पिता की इच्छा थी। आज दोनों मेरी साफ -सफाई उसी तत्परता से करते हैं। यह देखकर मेरा दिल भर आता है ,फिर भी मैं इसका श्रेय ,उस बिमारी को ही दूंगा जिसने न जाने कितने घर आबाद करा दिए।
बदन, गोरी सी जो बुढ़िया है ,उसके साथ कुर्ते पजामे में जो बुजुर्ग़ हैं वो गोस्वामी जी के बेटे -बहु हैं। जी हां ,गोस्वामीजी ने बड़ी मेहनत करके एक- एक पैसा जोड़कर ये मकान बनवाया था। उनकी पत्नी तो बहुत ही अच्छी थी ,बहुत मीठा बोलती थीं। दोनों ही पति पत्नी सबसे मिलजुलकर रहते थे। उनका एक बेटा और एक बेटी थी। बेटी का विवाह कर दिया ,बेटा नौकरी पर बाहर चला गया। उन्होंने कहा भी था -कि दूर नौकरी करने मत जाओ ,पास में ही कोई नौकरी कर लो। लेकिन बेटे ने कहा -क्या मैंने इतनी मेहनत से पढ़ाई इसीलिए की है? कि मैं इस घर के कारण कम पैसों में ही एड़ियाँ रगड़ता रहुँ। और वो अपनी पत्नी को लेकर बाहर चला गया।
पहले तो दोनों पति -पत्नी बहुत दुखी हुये फिर सोचा -ठीक ही है ,उसे अपनी जिंदगी जीने दो। उन्होंने हालात से समझौता कर लिया। ऊपर के हिस्से में किरायेदार रख लिया। बहु -बेटा कभी -कभी मिलने आ जाते ,अब उनके दो पोते भी हो गए वो भी किसी महंगे स्कूल में पढ़ते। कभी -कभी अपने माता -पिता के साथ दादी -बाबा के पास घूमने आ जाते। उनके लिए वे दिन सार्थक हो जाते और कहते कि घर बना लिया, तो अच्छा ही हुआ कम से कम छुट्टियों में तो घर में रौनक हो ही जाती है। इसी तरह दिन बीतने लगे। पोते बड़े हुए ,उनके लिए बहु ढूढ़ी जाने लगीं । दोनों के विवाह यहीं हुए इसी घर में। घर में चह ल -पहल हो जाती, फिर दोनों ही अपनी -अपनी पत्नियों को लेकर चले गए। फिर से घर शांत हो गया।
फिर भी उन्हें संतुष्टि थी कि कोई भी कार्यक्रम करने यहीं आ जाते हैं लेकिन वे नहीं जानते थे कि वो लोग इधर की तरफ, ज्यादा खर्चे से बचने के लिए यहाँ आते हैं। उनके लिए यही बहुत था कि आ तो जाते हैं।
एक दिन अचानक श्रीमति गोस्वामी की तबियत बिगड़ गई उन दिनों बहु -बेटा आये हुए थे। गोस्वामीजी ने अपने बेटे से अपने पिता का ध्यान रखने का वायदा लिया और मुझे अनाथ करके चली गईं। उस रात मैं रोता रहा। अपनी माँ के सारे संस्कार करके उनके बहु -बेटे अपने पिता को लेकर चले गए। उन्होंने मना तो बहुत किया लेकिन उनका ध्यान कौन रखेगा? खाने की परेशानी होगी, सोचकर वो उनके साथ चले गए और मैं वीरान हो गया। बहुत सालों तक मैं वीरान खड़ा रहा। एक दिन एक लड़का आया और उसने मेरी सफाई की, इतने दिनों बाद मेरे ऊपर से जो धूल जमी थी, वो साफ हुई थी क्योंकि आज गोस्वामी जी का पूरा परिवार जो आ रहा था। दो गाड़ियों से सामान उतरे ,मुझमें फिर से रौनक आ गई। बाद में पता चला कि गोस्वामीजी तो पड़दादा बनने वाले हैं। सब लोग खुश थे ,दो-तीन महीने बाद मेरे अंदर, एक नई कोंपल ने जन्म लिया। उनके यहाँ प्यारी सी गोल -मटोल गुड़िया जो आई थी। उसे देखकर उनकी आँखों में आंसू आ गए ,मुस्कुराकर बोले -तुम्हारी दादी ने फिर से जन्म ले लिया। फिर अचानक उदास हो गए, शाम तक तबियत बिगड़ गई। सुबह डॉक्टर ने बताया -अब वो नहीं रहे। मैं भी कैसा हूँ ?एक तरफ तीसरी पीढ़ी की ख़ुशी दूसरी तरफ पूरी तरह अनाथ होने का ग़म।
मैं चुपचाप खड़ा सब देखता रहा ,उनकी बहु और बेटे अपनी नौकरी जा चुके थे पोता रजत और बहु नीलम यहाँ रह गए थे, उनके साथ जो नौकर आया था वो ही मेरी साफ -सफाई करता था। नीलम तो हाथ भी नहीं लगाती थी। उन दोनों ने फिर से ऊपर का हिस्सा किराये पर दे दिया। आधी सफाई वो करते थे लेकिन वो अपनापन मुझे आज तक नहीं मिला, जितने प्यार से दोनों पति -पत्नी मेरी सफाई करते थे। रजत -नीलम तो सिर्फ़ एक बेटा आने तक यहाँ रहे और चले गए। मैं फिर से एकांत में बसर करने लगा पर किरायेदार थे, जो कभी -कभी मुझे झाड़ -पोंछ दिया करते। आज मैं फिर से आबाद हो गया हूँ क्योंकि उनके बेटा -बहु जो फिर से आ गए है। कारण एक बीमारी ,बीमारी नहीं महामारी जो फैली है देश भर में। सुना है, कि ये दोनों तो ऑस्ट्रेलिया में अपनी बेटी के पास थे ,वहाँ से भागकर अपने बेटे के पास गए लेकिन उसने इस डर से अपने पास रखा ही नहीं कि कहीं ये वो बीमारी न ले आये हों। इतना सब हो जाने के बाद, ये लोग मेरी शरण में आये। मैंने बड़ा दिल करके इन्हें अपने पास रखा, जैसी कि मेरे माता -पिता की इच्छा थी। आज दोनों मेरी साफ -सफाई उसी तत्परता से करते हैं। यह देखकर मेरा दिल भर आता है ,फिर भी मैं इसका श्रेय ,उस बिमारी को ही दूंगा जिसने न जाने कितने घर आबाद करा दिए।


