आज माँ का दिन है, यानि' मदर्स डे 'माँ का दिन तो रोजाना ही होता है। माँ का दिन सुबह बच्चों को उठाने से लेकर स्कूल भेजना ,लाना , सुबह के नाश्ते से लेकर रात के खाने तक माँ का ही दिन होता है, वो शायद घर में इसलिए आज के दिन माँ फेसबुक व व्हाट्सएप पर भी दिख जाती है। मेरी सारी दोस्त नई -नई पोस्ट डाल रहीं थीं. कोई गाने गाते हुए ,कोई अपनी माँ के पैर छू रहा था किसी ने अपनी माँ के साथ सेल्फी ली ,इतनी सारी पोस्ट देखकर मेरा भी मन हो आया कि मैं भी इसमें अपना योगदान दूँ। मेरे पास तो मेरी माँ की ,मेरे साथ कोई ऐसी फोटो ही नहीं थी फिर मैंने सोचा-' मैं भी तो अपने बच्चों माँ ही हूँ।' चलो कोई तो दिन ऐसा है जब माँ को महत्वपूर्णं माना जाता है। जीवन तो ऐसे ही चलता रहता है ,कुछ सेल्फी या गाने जिंदगी की परेशानियों को कम नहीं करते।
जब माँ थी ,तब उस पर अपनी चिन्ताएं छोड़ देते थे ,हालाँकि डांट भी पड़ती थी -इधर -उधर घूमती रहती है काम में ध्यान ही नहीं रहता। कुछ उल्टा कह दो, तो कहतीं -जब तू भी माँ बनेगी तब तुझे पता चलेगा कि माँ क्या होती है ?कितनी मेहनत करनी पड़ती है ?घर के हर आदमी का ख्याल रखना। बात बीच में ही काटते हुए ,मैं कहती -मुझे मत बताओ ,मैं सब संभाल लूँगी ,सारा दिन पीछे पड़ी रहती हैं। जब माँ कोई काम देकर बैठ जाती तो मेरे पिता मेरे साथ खड़े हो जाते ,मेरी मदद के लिए। तब माँ कहती -अगले घर जाना है इसे ,वहाँ कुछ नहीं किया तो मुझे ही कोसेंगे इसके ससुराल वाले कि माँ ने कुछ नहीं सिखाया। मैं बड़बड़ाती -काम भी करो ,पढ़ाई भी करो फिर नौकरी भी। सारे कामों का ठेका जैसे मैंने ही ले रखा है। मैं अपनी जिंदगी नहीं जी रही ,लगता है जैसे मुझे किसी मिशन के लिए तैयार किया जा रहा है।
घर में भाभी आईं ,मुझे थोड़ी राहत मिली लेकिन उनकी भी मदद तो करनी ही पड़ती ,इस बीच माँ बीमार हो गई और भाभी गर्भवती। सारा काम मेरे ऊपर ही आन पड़ा ,झुंझलाहट होती क्या जिंदगी है ?अपने विवाह के बाद तो शायद ही मुझे आराम मिले। अब मैंने मन ही मन निर्णय लिया -'विवाह चाहे कितनी भी देर से हो पर ऐसे से विवाह करुँगी जो मेरी इच्छाओं की भावनाओँ की क़द्र करे ,काम का बोझ भी न पड़े। हुआ भी ऐसा ही ,पति बहुत प्यार करता ,सास -ससुर भी अपना काम स्वयं करते ,कामवाली भी लगी थी ,काम का कोई बोझ नहीं था। आराम दायक जीवन जो मैं चाहती थी। सब कुछ मन मुताबिक मिला। सास -ससुर में मुझे कभी अपने माता -पिता नज़र नहीं आये। हालाँकि मेरे घर से ज्याद आराम और सुविधा यहाँ थीं। धीरे -धीरे मैं इन सबकी आदि हो गई।
सास -ससुर अपना काम स्वयं करते ,कहते -हाथ -पैर चलते रहेंगे तो हमारा स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा। कभी उन्होंने भी मदद नहीं माँगी न ही मैंने कोशिश की। फिर भी मैं उनसे बची -बची सी अलग -थलग रहती। इतनी परेशानी के बाद भी जो अपनापन ,लगाव मुझे अपने माता -पिता से था ,वो सुख -सुविधा के बावजूद मैं वो संबंध सास -ससुर से नहीं जोड़ पाई। फिर भी पराये लगते रहे। मैंने अपनी सेल्फी डाली लेकिन मेरा फोटो सुना सा लग रहा था। मेरी सहेली ने भी अपनी फोटो डाली उसमें उसके साथ उसकी सास थी दोनों की फोटो बहुत ही अच्छी लग रही थी। मेेने कमेंट में डाला-' कि माँ नहीं तो सास ही सही'। अगले दिन दफ्तर में मुझे मेरी सहेली नीता मिली बोली -मुझे तुम्हारा कमेंट अच्छा लगा। मैं सोचने लगी मेेने तो व्यंग में डाला था ,ये क्या समझ बैठी ?वो बोली -क्या हमारी माँ हमे डांटती नहीं थी ,हंसकर बोली -कभी -कभी तो हाथ भी साफ किया है। जब मेरा विवाह हुआ तब सास ने भरसक प्रयास किये -कि बहु का दिल लगा रहे हमारी तरफ से कोई ऐसी गलती न हो कि बहु दुःखी या परेशान हो।
काम में मेरे साथ लगीं रहती कि अकेली बहु परेशान न हो जो हमारा इतना ध्यान रखती है तो क्या माँ का वो स्थान हम सास को नहीं दे सकते ?पैदा ही तो नहीं किया हमें लेकिन अपना बेटा तो दिया ,जो हमारा जीवन भर साथ दे। फिर बोली -अब तो 'ललिता पवार 'जैसी सास भी नहीं रहीं ,न ही ऐसी बहुएं जो अत्याचार सहेंगी तो इस रिश्ते में सुधार क्यों नहीं हो सकता ?कल हम भी तो सास बनेंगी। अपने ऊपर डालकर सोचो -तुम्हारे अच्छे व्यवहार के बाद भी वो उचित सम्मान न मिले तो तुम पर क्या बीतेगी ?अगर सास सही है तो उन्हें उचित सम्मान देने में क्या हर्ज़ है ?सब समझ -समझ का फेर है ,वो भी तो माँ ही है तो फिर माँ के दिन सेल्फी अधूरी क्यों ?माँ के साथ ही होनी चाहिए। ये बात मेरे मन में बैठ गई -अगले साल मेरी फोटो भी अधूरी नहीं रही।
जब माँ थी ,तब उस पर अपनी चिन्ताएं छोड़ देते थे ,हालाँकि डांट भी पड़ती थी -इधर -उधर घूमती रहती है काम में ध्यान ही नहीं रहता। कुछ उल्टा कह दो, तो कहतीं -जब तू भी माँ बनेगी तब तुझे पता चलेगा कि माँ क्या होती है ?कितनी मेहनत करनी पड़ती है ?घर के हर आदमी का ख्याल रखना। बात बीच में ही काटते हुए ,मैं कहती -मुझे मत बताओ ,मैं सब संभाल लूँगी ,सारा दिन पीछे पड़ी रहती हैं। जब माँ कोई काम देकर बैठ जाती तो मेरे पिता मेरे साथ खड़े हो जाते ,मेरी मदद के लिए। तब माँ कहती -अगले घर जाना है इसे ,वहाँ कुछ नहीं किया तो मुझे ही कोसेंगे इसके ससुराल वाले कि माँ ने कुछ नहीं सिखाया। मैं बड़बड़ाती -काम भी करो ,पढ़ाई भी करो फिर नौकरी भी। सारे कामों का ठेका जैसे मैंने ही ले रखा है। मैं अपनी जिंदगी नहीं जी रही ,लगता है जैसे मुझे किसी मिशन के लिए तैयार किया जा रहा है।
घर में भाभी आईं ,मुझे थोड़ी राहत मिली लेकिन उनकी भी मदद तो करनी ही पड़ती ,इस बीच माँ बीमार हो गई और भाभी गर्भवती। सारा काम मेरे ऊपर ही आन पड़ा ,झुंझलाहट होती क्या जिंदगी है ?अपने विवाह के बाद तो शायद ही मुझे आराम मिले। अब मैंने मन ही मन निर्णय लिया -'विवाह चाहे कितनी भी देर से हो पर ऐसे से विवाह करुँगी जो मेरी इच्छाओं की भावनाओँ की क़द्र करे ,काम का बोझ भी न पड़े। हुआ भी ऐसा ही ,पति बहुत प्यार करता ,सास -ससुर भी अपना काम स्वयं करते ,कामवाली भी लगी थी ,काम का कोई बोझ नहीं था। आराम दायक जीवन जो मैं चाहती थी। सब कुछ मन मुताबिक मिला। सास -ससुर में मुझे कभी अपने माता -पिता नज़र नहीं आये। हालाँकि मेरे घर से ज्याद आराम और सुविधा यहाँ थीं। धीरे -धीरे मैं इन सबकी आदि हो गई।
सास -ससुर अपना काम स्वयं करते ,कहते -हाथ -पैर चलते रहेंगे तो हमारा स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा। कभी उन्होंने भी मदद नहीं माँगी न ही मैंने कोशिश की। फिर भी मैं उनसे बची -बची सी अलग -थलग रहती। इतनी परेशानी के बाद भी जो अपनापन ,लगाव मुझे अपने माता -पिता से था ,वो सुख -सुविधा के बावजूद मैं वो संबंध सास -ससुर से नहीं जोड़ पाई। फिर भी पराये लगते रहे। मैंने अपनी सेल्फी डाली लेकिन मेरा फोटो सुना सा लग रहा था। मेरी सहेली ने भी अपनी फोटो डाली उसमें उसके साथ उसकी सास थी दोनों की फोटो बहुत ही अच्छी लग रही थी। मेेने कमेंट में डाला-' कि माँ नहीं तो सास ही सही'। अगले दिन दफ्तर में मुझे मेरी सहेली नीता मिली बोली -मुझे तुम्हारा कमेंट अच्छा लगा। मैं सोचने लगी मेेने तो व्यंग में डाला था ,ये क्या समझ बैठी ?वो बोली -क्या हमारी माँ हमे डांटती नहीं थी ,हंसकर बोली -कभी -कभी तो हाथ भी साफ किया है। जब मेरा विवाह हुआ तब सास ने भरसक प्रयास किये -कि बहु का दिल लगा रहे हमारी तरफ से कोई ऐसी गलती न हो कि बहु दुःखी या परेशान हो।
काम में मेरे साथ लगीं रहती कि अकेली बहु परेशान न हो जो हमारा इतना ध्यान रखती है तो क्या माँ का वो स्थान हम सास को नहीं दे सकते ?पैदा ही तो नहीं किया हमें लेकिन अपना बेटा तो दिया ,जो हमारा जीवन भर साथ दे। फिर बोली -अब तो 'ललिता पवार 'जैसी सास भी नहीं रहीं ,न ही ऐसी बहुएं जो अत्याचार सहेंगी तो इस रिश्ते में सुधार क्यों नहीं हो सकता ?कल हम भी तो सास बनेंगी। अपने ऊपर डालकर सोचो -तुम्हारे अच्छे व्यवहार के बाद भी वो उचित सम्मान न मिले तो तुम पर क्या बीतेगी ?अगर सास सही है तो उन्हें उचित सम्मान देने में क्या हर्ज़ है ?सब समझ -समझ का फेर है ,वो भी तो माँ ही है तो फिर माँ के दिन सेल्फी अधूरी क्यों ?माँ के साथ ही होनी चाहिए। ये बात मेरे मन में बैठ गई -अगले साल मेरी फोटो भी अधूरी नहीं रही।

