maa ki lalsa

चार बेटियों के बाद तब जाके एक लड़का हुआ था ,बड़ी मन्नतें मांगी थीं ,कई पीर ,फकीरों के चक्कर भी काटे ,तब जाके ये हुआ था। बेटियों की तो शादी कर दी ,सब अपनी -अपनी ससुराल में हैं [पछताते हुए ]बेचारियों को तो मैंने पढ़ाया भी नहीं। और इसे पढ़ाया फिर इसका ब्याह कर दिया ,बहु ऐसी  आई कि घर का कोई काम होता ही नहीं। कहने -सुनने से दो -चार काम कर भी देगी, तो कोई स्वाद नहीं उसके काम में। जबान तो इतनी लम्बी है ,लड़ने को तुरंत खड़ी हो जाएगी। फेर सास -बहु के झगड़े होवें तो लौंडा उसी का साथ देवे। इससे तो अच्छी मेरी धी [बेटी ]थीं। बेचारी देखें थी कि माँ अकेली काम में लगी पड़ी है तो साथ में काम पे लग जावें थी। घरों के काम भी पकड़ लिए थे ,ख़र्चों में भी हाथ बटावें थीं। शादी होकर अपने घर चलीं गईं ,बेचारी वहाँ भी बड़ी मेहनत करें हैं। एक हमारा लौंडा है ,न कुछ काम करता ,सारे दिन घर में पड़ा रहवे ,बहुड़िया के कहने पर तो आज मेरे ऊपर हाथ भी उठा दिया। 

              बातें बताते हुए वो रोने लगी ,रोते  हुए कहने लगी -घर का सारा काम करूं ,घर के खर्चों के लिए इंगे -उंगे धक्के खाऊं ,दो पैसों के लिए गली -मौहल्ले में धक्के खाती फिरुँ,वो तो कुछ करता ही नहीं ,घर का खर्च कहाँ से चले ?उन दोनों आदमियों को तो कोई चिंता नहीं। वो बातें बता रही थी और रो रही थी। मुझे यह देखकर अचम्भा हो रहा था कि चार-या साढ़े चार फुट की कमज़ोर गठरी सी बुढ़िया बैठी थी ,ऐसे लग रहा था मानों कोई जीवित कंकाल हो। उसकी दर्द भरी कहानी सुनकर बड़ा दुःख हुआ उसके बेटे पर गुस्सा भी आया। समझाने का प्रयत्न करते हुए कहा -अम्मा! आप क्यों काम करती हो ?अपनी दो रोटी बनाओ और खाओ ,अपने खर्चे लायक काम तो कर  ही लेती हो।  वो बोली -बेटा तो नालायक है ,मैं कैसे हो जाऊँ ?दो पोतियाँ हैं। शकीना को तो उनकी भी चिंता न है, ससुरी पड़ी सोती रहव। बेचारे बालक रोते रहै हैं ,मैं ही उन्हें दूध ,चाय या रोटी दूँ। ऐसी बहुड़िया आई है, कानी कोडी की भी न। हमारा लौंडा उसके मारे पागल हुआ जा। 
                मैंने कहा -देखा बेटियाँ कमाती भी थीं ,काम में मदद भी करती थीं ,तुम्हारा कर्ज़ भी उतार गईं फिर भी तुमने उन्हें पढ़ाने की नहीं सोची। बेटा जिसे तुमने पढ़ाया -लिखाया यही सोचकर कि बुढ़ापे का सहारा बनेगा वो बेरोज़गार बैठा है और आपको पीटता भी है। अब तुम्हें सख़्त होना पड़ेगा ,दोनों को ख़र्चा भी मत दो तब उसे आटे -दाल का भाव मालूम पड़ेगा। न लाली मेरा दिल न सख़त होता। मुझे लगा कि मेरे समझाने से कोई फ़र्क नहीं पड़ने वाला ,करेंगी तो वो ही जो उन्हें करना है। कुछ लोग मोह वश अपने को इतना विवश कर लेते हैं कि वे उन्ही परिस्थितियों में उलझे रहते हैं ,निकलना चाहते हैं पर
निकलते नहीं। मैंने बात को बदलते हुए कहा -आपके मियां जी कैसे थे ?मैं अपनी बात पूरी भी न कर पाई थी वो बोलीं -अरे लाली !वो तो लम्बा -ठाडा था ,बहुत प्यार करता था मुझसे ,बूढ़े को याद करते ही अम्मा की झुर्रियों में भी चेहरे पर चमक आ गई। मैंने देखा ,अपने पति को याद करते हुए ,अम्मा कहीं खो गई ,उनके साथ की हसीन  यादें हैं। अम्मा बोली -वो तो बहोत लाड़ लड़ावे था मुझे। कई साल मेरे बच्चे न हुए तो सबने कही कि दूसरा ब्याह कर  ले ,उसने साफ मना कर  दी। उसका मौहल्ले में रोला था। 
          मोहम्मद इक़बाल नाम से दुकान थी अच्छा काम चले था ,उसके जाते ही उसके भाई ने दुकान हड़प ली। शक़ील भी छोटा था ,मैं लिख़त -पढ़त जाने न थी। कैसे -कैसे बालक पाले मैंने मुझे ही पता ?ख्यालों से धीरे -धीरे वो फिर से हकीक़त में आ गई और फिर से उसके चेहरे पर दुःख के बादल छा गए। अच्छा लाली चलूँ ,जा के देखूँ उसने बालकों को कुछ खाने को दिया होगा या नहीं ,बालक राह देखते रह कि अम्मा कुछ खाने को लाई होगी। आज सुबह मार खाने के बाद भी उसे उन छोटे -छोटे बच्चों की चिंता थी जो उसका इंतजार करते हैं उनको खाना खिलाकर वो अपने सब दुःख भूल जाती है ऐसी ही माँ होती हैं। 

              एक दिन अम्मा नए कपड़े पहनकर खुश होती हुई आई। हमने कहा -अम्मा बड़ी खुश नज़र आ रही हो आज तो ईद भी नहीं है फिर नए कपड़े क्या बात है ?पोता हुआ है उन्होंने बिना देर किये बताया। बच्चे तो पहले भी थे फिर भी मेरी बात काटकर बोली -शक़ील अब सुधर रहा है ,काम पर भी जाता है ,हालत अब सुधर रहे हैं। तीन बेटियाँ तो पहले से ही थीं फिर खर्चे भी तो बढ़ेंगे मैंने कहा। अम्मा बोली -एक लौंडा तो मैं भी चाहवै थी कि इसके एक लौंडा हो जावै। क्यों आपको पोते की इतनी लग्न थी ?अम्मा ने मुँह बिचकाकर कहा -जब इसके लौंडा होगा तभी तो मेरे दुःख का पता चलेगा, जब वो भी इनके साथ ऐसा ही करेगा अम्मा की बात सुनकर मैं उनका मुँह देखती रह गई वो ऐसा भी  सोच सकती हैं। 
 














laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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